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तीसरे मोर्चे की सुगबुगाहट

विधायक हनुमान बेनीवाल और किरोड़ी लाल मीणा की रैली से शुरू हुई सक्रियता क्या भाजपा-कांग्रेस को दे पाएगी चुनौती
बाड़ेमर रैलीः क्या नया समीकरण बना पाएगी यह भीड़

राजस्थान के मरुस्थल की सियासी स्लेट पर जब भी तीसरे मोर्चे की इबारत लिखी गई, दो प्रमुख दलों भाजपा और कांग्रेस की हवा के झोंकों ने उसे मिटा दिया। लेकिन निर्दलीय विधायक हनुमान बेनीवाल और नेशनल पीपुल्स पार्टी के विधायक डॉ. किरोड़ी लाल मीणा मानते हैं कि अब हालात बदल गए हैं। राज्य के सीमावर्ती जिले बाड़मेर में पिछले दिनों एक बड़ी रैली कर बेनीवाल और मीणा ने राजस्थान की पारंपरिक राजनीति के ठहरे पानी में एक लहर सी पैदा कर दी। नागौर जिले में खींवसर सीट से भाजपा और कांग्रेस को शिकस्त देकर चुनाव जीते बेनीवाल ने अपनी रैली के लिए ऐसा वक्त चुना जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तेल रिफाइनरी का शिलान्यास करने बाड़मेर आने वाले हैं। इसके लिए सत्तारूढ़ भाजपा ने बड़ी तैयारियां की हैं। क्योंकि यह इतना बड़ा और महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट है जो रेगिस्तानी राज्य के आर्थिक नक्शे को बदल देगा। भाजपा को उम्मीद है कि मतदाता इसके लिए उसे अगले विधानसभा चुनावों में इनाम देगा। बेनीवाल ने रैली आयोजित की तो डॉ. मीणा भी हिमायत के लिए बाड़मेर पहुंचे और राज्य की भाजपा सरकार पर तीखे हमले किए। विधायक बेनीवाल ने प्रधानमंत्री मोदी को भी निशाने पर लिया।

आयोजकों का दावा है कि इस रैली में पांच लाख लोगों ने शिरकत की। सभा में उमड़ी संख्या की पुष्टि तो मुश्किल है मगर प्रेक्षक कहते हैं कि यह एक बड़ा जनसैलाब था और इसमें बाड़मेर के अलावा दूसरे जिलों से भी लोग पहुंचे थे। इसमें नौजवानों का बाहुल्य था। बेनीवाल राज्य में राजनैतिक तौर पर प्रभावशाली किसानों की जाट बिरादरी से आते हैं। इसमें जाट समुदाय के युवकों ने बड़ी संख्या में भाग लिया। मगर आयोजकों ने इसमें अन्य समुदायों को जोड़ने का प्रयास भी किया। ताकि उन्हें उनके ख्वाबों की सियासी मंजिल मिल सके।

बेनीवाल कहते हैं, “इससे पहले वह सात दिसंबर, 2016 को नागौर में एक भीड़भरी रैली कर चुके हैं। यह सिलसिला आगे बढ़ेगा। जल्द ही बीकानेर, सीकर और जयपुर में भी ऐसी ही बड़ी रैलियां की जाएंगी। लोग सत्तारूढ़ भाजपा और विपक्षी कांग्रेस से परेशान हैं। उन्हें एक ठोस तीसरे विकल्प की जरूरत है। इस जरूरत को हम पूरा करेंगे।”

राजस्थान में पिछले तीन माह में यह दूसरा मौका है जब भाजपा और कांग्रेस के अलावा किसी और ने किसानों और बेरोजगारों के मुद्दों को लेकर बड़ा विरोध आयोजित किया हो। इससे पहले सीपीआइ (एम) के नेता अमराराम की अगुआई में शेखावाटी में किसानों ने दस दिन तक सड़कें जाम रखीं और हुकूमत को कर्ज माफी पर गौर करने के लिए बाध्य कर दिया। मगर उस आंदोलन का हासिल कमजोर रहा, क्योंकि मुद्दे अपनी जगह यथावत हैं। बाड़मेर रैली में आयोजकों ने धरती के नीचे से निकाले जा रहे तेल में रॉयल्टी का मुद्दा उठाया और किसानों के लिए कर्ज माफी की मांग की। वह स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट लागू करने की भी मांग कर रहे हैं।

तीसरे मोर्चे की कामयाबी की स्क्रिप्ट लिखने को बेताब डॉ. मीणा कहते हैं, “मुझे यकीन है कि इस बार जनता दोनों प्रमुख दलों की हैसियत छोटी कर देगी, क्योंकि हम इस बार बहुत नियोजित और गंभीरता से प्रयास कर रहे हैं। पहले राज्य में ऐसे गंभीर प्रयोग नहीं हुए हैं।” डॉ. मीणा और बेनीवाल ऐसे नेता हैं, जिनकी राजनैतिक शिक्षा-दीक्षा भाजपा और संघ के शामियाने में हुई है। मगर वे अब उस हिंदुत्व से इतर सोशल इंजीनियरिंग और सामाजिक न्याय की बात करते दिखते हैं, जिसके सबक कभी उन्होंने भाजपा में पढ़े थे। डॉ. मीणा कहते हैं, “मैं संघ से दीक्षित हूं। मैं संघ के अधिकारी वर्ग के शिक्षण में शामिल रहा हूं। संघ 1925 से काम कर रहा है। मगर अब संघ ने गांव में एक मंदिर, एक श्मशान और एक कुएं की बात की है। संघ की विचारधारा ठीक है। मगर धरातल पर हालत बहुत खराब है।”

डॉ. मीणा कहते हैं, “राज्य में ऐसे कई जिले हैं, जहां मंदिर की देहरी दलितों से दूर है। आज भी सामंतशाही सर चढ़ कर बोलती है। इसीलिए अभी हमने जालौर जिले में दलितों के मंदिर प्रवेश को लेकर आंदोलन किया और मुझे सरकार ने गिरफ्तार भी किया। डॉ. मीणा ने बाड़मेर रैली में लालू यादव का यह कहते हुए जिक्र किया कि किसानों का आलू सड़कों पर है और लालू जेल में है।

दिखाया दमः बाड़मेर की रैली में हनुमान बेनीवाल और किरोड़ी लाल मीणा

तीसरे विकल्प के लिए राज्य की जमीन कितनी उर्वर है, इस सवाल पर वरिष्ठ पत्रकार और विश्लेषक ओम सैनी कहते हैं, “राजस्थान का इतिहास बताता है कि अब तक ऐसा प्रयास किसी ठोस राजनैतिक परिणाम में नहीं बदला है। इससे पहले 1967 में चौधरी कुंभाराम आर्य ने दमदारी से तीसरा फ्रंट खड़ा करने की कोशिश की। मगर कामयाब नहीं हो पाए।” सैनी कहते हैं हाल की रैली में आई भीड़ सत्तारूढ़ भाजपा से मोहभंग और विपक्षी कांग्रेस की नेतृत्वहीनता से पैदा हुए शून्य का नतीजा है। मगर राजस्थान के लोग स्वभाव से दो ध्रुवीय राजनीति में ही भरोसा रखते है। वे कहते हैं, “यूपी और बिहार की सियासी जमीन अलग है। वहां एक जाति का प्रादेशिक प्रभाव और दूसरी जातियों से तालमेल एक मजबूत राजनैतिक मोर्चा बना देता है।” इससे उलट डॉ. मीणा अपने अभियान को लेकर बहुत आशावादी हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में डॉ. मीणा भाजपा और कांग्रेस दोनों के खिलाफ झंडा उठाए अकेले चले। डॉ. मीणा ने पीपुल्स पार्टी के चुनाव चिह्न किताब पर 132 प्रत्याशी मैदान में उतारे। मगर इनमें चार ही कामयाब हो पाए। डॉ. मीणा कहते हैं। “गत चुनाव में हमारी पार्टी ने अकेले ही साढ़े चार फीसदी वोट हासिल किए थे। इस बार हम बड़ा मोर्चा बना कर मैदान में उतरेंगे तो राजस्थान का सियासी मानचित्र बदल देंगे।”

पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने दो सौ में से 163 सीट जीत कर उस वक्त सत्तारूढ़ कांग्रेस को वनवास में भेज दिया था। भाजपा को 46 फीसदी वोट मिले जबकि कांग्रेस को इक्कीस सीट और 33 फीसदी वोटों पर ही संतोष करना पड़ा। बहुजन समाज पार्टी ने तीन सीट जीती और उसे एक फीसदी से थोड़ा ज्यादा वोट मिले। सत्तारूढ़ भाजपा तीसरे मोर्चे के इन प्रयासों को बेकार की कवायद मानती है। पार्टी के प्रवक्ता और विधायक अभिषेक मटोरिया कहते हैं, “चुनावों को सामने देख कर कुछ लोग किसानों और लोगों को गुमराह करने का यत्न कर रहे हैं। लेकिन इसका कोई असर नहीं होगा। किसान जानते हैं कि उसकी सबसे ज्यादा हमदर्द भाजपा ही है। विधायक बेनीवाल कहते हैं, “हम किसी एक जाति या एक वर्ग तक सीमित नहीं हैं। न हम किसी जाति की बात करते हैं। हम 36 बिरादरियों को साथ लेकर चल रहे हैं। बाड़मेर की रैली गवाह है। इसमें दलित, आदिवासी, किसान और अल्पसंख्यक एक साथ थे।”

बेनीवाल की नजर सोशल मीडिया पर उठे उस नारे पर भी है जिसमे कहा गया है ‘मोदी से बैर नहीं वसुंधरा की खैर नहीं।’ वे कहते हैं, “मोदी ने राजस्थान में भाजपा हुकूमत में हुए भ्रष्टाचार पर आंखें मूंदे रखीं। मैंने कई मुख्यमंत्रियों का शासन देखा है मगर ऐसा भ्रष्टाचार कभी नहीं देखा। ये वो भाजपा नहीं है जो कभी भैरोंसिंह शेखावत के दौर में हुआ करती थी। अब तो यह व्यक्तिपरक पार्टी है। तीसरे मोर्चे की कामयाबी का मंसूबा लेकर चल रहे ये नेता मीडिया से भी खुश नहीं हैं। उन्हें लगता है तीन माह पहले शेखावटी में किसान आंदोलन को मीडिया के एक बड़े हिस्से ने जानबूझकर अनदेखा किया। बेनीवाल कहते हैं कि हम सोशल मीडिया का उपयोग कर रहे हैं। बाड़मेर रैली के आयोजकों की मानें तो उनके आयोजन को बड़ी संख्या में लोगों ने सोशल मीडिया पर लाइव देखा। राजस्थान का भू-भाग मरुस्थल में उठते रेत के बवंडर देखने का अभ्यस्त रहा है। लेकिन इस सूबे ने गंगा-यमुना के मैदान की तरह सियासी झंझावात कम देखे हैं। आगामी विधानसभा चुनाव में इन नेताओं के दावे और प्रयास कसौटी पर होंगे। क्या वे बियाबान सहारा में कोई नई सियासी बयार ला सकेंगे। इस पर सबकी निगाहें रहेंगी।  

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