इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव में साफ लग रहा है कि छत्तीसगढ़ में त्रिकोणीय मुकाबला रहेगा। भाजपा भी चाहती है कि कांग्रेस के साथ अजीत जोगी की पार्टी भी मैदान में रहे, जिससे कांग्रेस का वोट कटे और उसे फायदा मिले। फिलहाल यहां सरकार विरोधी लहर (एंटी इनकंबेंसी फैक्टर) सिर चढ़कर बोलती दिखाई पड़ रही है। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने एंटी इनकंबेंसी फैक्टर को दूर कर 2018 में चौथी बार सरकार बनाने के लिए राज्य का खजाना खोल दिया है। धान और तेंदूपत्ता बोनस बांटने के साथ नए साल में 55 लाख लोगों को मोबाइल सेट बांटा जाएगा। लोगों को जोड़ने के लिए बिजली तिहार और कई उत्सव भी मनाए जा रहे हैं।
विधानसभा चुनाव को मद्देनजर रखते हुए भाजपा-कांग्रेस के राष्ट्रीय और प्रदेश स्तर के नेता पदयात्रा और बैठकों के जरिए जनता को जोड़ने और अपने-अपने कार्यकर्ताओं का गिला-शिकवा दूर करने में लगे हैं, वहीं जोगी कांग्रेस के सुप्रीमो अजीत जोगी हेलीकॉप्टर से लोगों तक पहुंच रहे हैं। अजीत जोगी ने इसके लिए अगस्ता कंपनी का हेलीकॉप्टर तीन महीने के लिए किराए पर लिया है। भाजपा, कांग्रेस और जोगी कांग्रेस जिस तरह जोर-आजमाइश पर लग गए हैं, उससे साफ है कि छत्तीसगढ़ में इन तीनों के बीच मुकाबला होना है। राज्य में अभी बसपा का एक विधायक है, लेकिन पूरे राज्य में इस पार्टी का जोर नहीं दिखाई पड़ता। आम आदमी पार्टी (आप) भी लोगो के पास जा रही है, लेकिन जमीनी पकड़ नहीं दिखती। 2003 में भी यहां त्रिकोणीय संघर्ष था, तब कांग्रेस नेता विद्याचरण शुक्ला ने एनसीपी से प्रत्याशी खड़े कर कांग्रेस के सात फीसदी वोट काटे थे और भाजपा को 90 में से 50 सीटें मिली थीं। एक सीट एनसीपी के खाते में गई थी।
2008 के चुनाव में सस्ता चावल की रणनीति चल गई और कांग्रेस में भितरघात का लाभ भाजपा को मिल गया। 2013 में चुनावी मैनेजमेंट काम आ गया। अनुसूचित जाति मतदाता बहुल सीटों पर सतनाम सेना के प्रत्याशी मैदान में रहने से कांग्रेस के वोट कट गए और फायदा भाजपा उम्मीदवारों को हो गया। इस एहसान के बदले डॉ. रमन सिंह की सरकार ने धर्मगुरु बालदास के खिलाफ दर्ज आपराधिक प्रकरण वापस ले लिए। वोट बैंक की राजनीति के चलते न तो इसका कांग्रेस ने विरोध किया और न ही अजीत जोगी की पार्टी ने। कांग्रेस प्रवक्ता असलम का कहना है कि अजीत जोगी का प्रभाव अनुसूचित जाति बहुल सीटों पर है। ऐसे में जोगी की पार्टी के मैदान में रहने से भाजपा को नुकसान होगा, क्योंकि अभी अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित दस में से नौ सीटों पर भाजपा का कब्जा है। अजीत जोगी के मैदान में रहने से कांग्रेस को ही फायदा होगा। लेकिन भाजपा कि गणित दूसरा है। भाजपा नेताओं का मानना है कि जोगी के उम्मीदवार रहने से कांग्रेस के वोट कटेंगे और पिछली बार की तरह भाजपा को लाभ होगा। अजीत जोगी शहरी इलाकों की जगह खुद को ग्रामीण इलाकों पर ज्यादा केंद्रित किए हुए हैं। भाजपा रणनीति के तहत मैदानी इलाकों की जगह आदिवासी इलाकों पर फोकस किए हुए है। पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री सौदान सिंह और प्रदेश अध्यक्ष धरमलाल कौशिक राज्य के ट्राइबल इलाके बस्तर और सरगुजा को मथने में लगे हैं। 2013 के चुनाव में भाजपा को आदिवासी बहुल सरगुजा की आठ सीटों में से एक पर ही जीत मिली, वहीं बस्तर इलाके की 12 में से चार सीटें ही उसके खाते में आ सकी थीं। दोनों ही इलाकों में कांग्रेस अच्छी स्थिति में रही। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष धरमलाल कौशिक का कहना है पिछली बार के मुकाबले हम इस बार आदिवासी इलाकों में मजबूत होंगे और मैदानी इलाकों में पहले से दमदार हैं। इस कारण से छत्तीसगढ़ में चौथी बार भाजपा की सरकार बनेगी।
यह बात साफ है कि कांग्रेस के मुकाबले भाजपा की चुनाव तैयारियां काफी मजबूत हैं। बूथ से लेकर शीर्ष स्तर तक उसने योजना बना ली है, वहीं कांग्रेस बंटी नजर आ रही है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल के खिलाफ कई बड़े नेता लामबंद नजर आ रहे हैं। मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए लड़ाई भी दिखने लगी है। भाजपा को इसका लाभ मिलने की उम्मीद है। धरमलाल कौशिक का कहना है कि बिखरी हुई कांग्रेस का फायदा अगले चुनाव में भाजपा को मिलेगा। कांग्रेस में डॉ. रमन सिंह जैसा चेहरा भी नहीं है। उनकी सहज और सरल छवि की तोड़ कांग्रेस के पास नहीं है।
प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और समन्वय समिति के सदस्य राजेंद्र तिवारी भी मानते हैं कि कांग्रेस के पास डॉ. रमन सिंह जैसा चेहरा नहीं है। लेकिन उनके राज में जिस तरह से किसान, युवा और समाज का हर तबका नाराज है और 33 लाख की जगह 13 लाख किसानों को ही बोनस मिला है उसका लाभ अगले चुनाव में कांग्रेस को मिलेगा। विकास कार्य ठप हैं। उद्योग बदहाल हैं और रोजगार की संभावना खत्म हो गई है। कानून-व्यवस्था खराब है। नेता प्रतिपक्ष टी.एस. सिंहदेव का कहना है कि 2003 में डॉ. रमन सिंह भाजपा के चेहरा नहीं थे। हरियाणा, झारखंड और कुछ राज्यों में भाजपा मुख्यमंत्री का चेहरा प्रोजेक्ट किए बिना चुनाव लड़ी। छत्तीसगढ़ में चेहरा मायने नहीं रखेगा।
रमन सरकार ने चुनावी वादे के बाद भी धान का बोनस देने में काफी विलंब किया। सरकार पहले तो खराब वित्तीय स्थिति का हवाला देती रही, लेकिन जब उसे लगा कि किसान उससे दूर हो रहे हैं, तब बैंकों से लोन लेकर 2100 करोड़ का बोनस बांटा। साथ में अगले साल के बोनस का भी ऐलान कर दिया। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि सरकार का यह दांव तो उल्टा पड़ गया। 20 लाख किसानों को बोनस का लाभ नहीं मिला। 13 लाख भी ठगे महसूस कर रहे हैं। उन्हें पांच साल के बोनस की जगह दो साल का ही मिला। राज्य में किसानों की बढ़ती आत्महत्या की घटनाओं को भी सरकार के लिए मुसीबत का सबब माना जा रहा है। गृह मंत्री ने विधानसभा में स्वीकारा है कि ढाई साल में 1300 से अधिक किसानों ने आत्महत्या की। भाजपा को अपने मंत्रियों और विधायकों की कार्यशैली के साथ व्यवहार को लेकर भी नाराजगी झेलनी पड़ रही है। पिछले दिनों बस्तर में कार्यकर्ताओं ने सौदान सिंह और धरमलाल कौशिक से शिकायत में मंत्रियों पर उनकी उपेक्षा का आरोप लगाया। धरमलाल कौशिक मानते हैं कि भाजपा ही नहीं, दूसरी पार्टियों के जनप्रतिनिधियों से भी लोग नाराज हैं। लेकिन सरकार के खिलाफ नाराजगी नहीं है। माना जा रहा है कि लगातार तीन बार भाजपा की सरकार रहने से पार्टी कार्यकर्ता पहले जैसे उत्साहित नहीं दिख रहे हैं। पार्टी के बड़े नेता जोश जगाने की कोशिश कर रहे हैं।
कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने जनहित की कई योजनाएं शुरू कीं, लेकिन जमीनी स्तर पर उसका क्रियान्वयन कमजोर दिख रहा है। वहीं, भाजपा के भीतर भी गुटबाजी बढ़ गई है। प्रदेश अध्यक्ष धरमलाल कौशिक और नगरीय प्रशासन मंत्री अमर अग्रवाल के गृह जिले में पार्टी नेताओं की लड़ाई होर्डिंग में दिखाई दे जाती है। भाजपा को जमीनी हकीकत का एहसास हो चला है, इस कारण सबको साधने में लगी है। किसानों, आदिवासियों और दूसरे वर्ग के साथ वोट बैंक को प्रभावित कर सकने वाले दूसरे लोगों को जोड़ने की दिशा में काम शुरू कर दिया है। वोट बैंक को प्रभावित कर सकने वाले शिक्षाकर्मियों के प्रति उदारता दिखाते हुए रमन सरकार ने हड़ताल के बाद भी उनके लिए सकारात्मक फैसले लिए। भाजपा के लिए चौथी बार सरकार बनाना काफी चुनौतीपूर्ण है, फिर भी पार्टी 2018 में 65 सीटें जीतने का टारगेट लेकर चल रही है, तो इसका सबसे बड़ा कारण राज्य में त्रिकोणीय मुकाबला और अजीत जोगी का मैदान में रहना है।
2003 के चुनाव में जब यहां पर कांग्रेस सरकार के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी का माहौल था, तब भी भाजपा ने 50 सीटें जीती थीं। छत्तीसगढ़ में भाजपा और कांग्रेस के बीच एक फीसदी से भी कम वोटों का अंतर है। गुजरात चुनाव के बाद कांग्रेस को लगने लगा है एंटी इनकंबेंसी से उसे बड़ा फायदा होगा। नेता प्रतिपक्ष सिंहदेव को उम्मीद है 2018 में कांग्रेस का वोट तीन से चार फीसदी बढ़ जाएगा। वरिष्ठ पत्रकार अशोक भटनागर का मानना है कि राज्य में बेलगाम नौकरशाही के कारण एंटी इनकंबेंसी फैक्टर ज्यादा दिखाई पड़ रहा है। दूसरी तरफ रमन सिंह की सरकार भाजपा का वोट बैंक बढ़ाने के लिए लुभावनी योजनाओं को हथियार बना रही है। धान और तेंदूपत्ता का बोनस बांटने के बाद 55 लाख युवाओं और महिलाओ को मोबाइल सेट बांटने की योजना वोट बैंक बढ़ाने की रणनीति का हिस्सा है। सरकार ने मोबाइल नेटवर्क बढ़ाने के लिए निजी कंपनियों को टावर लगाने के लिए 600 करोड़ की राशि पंचायतों के विकास मद से मंजूर की है। कहा जा रहा है कि यह राशि कंपनियां बाद में लौटाएंगी। सरकार वोट बैंक को प्रभावित कर सकने वाले हर वर्ग के साथ सहानुभूति रख रही है। मसलन लंबे समय तक आंदोलन करने वाले शिक्षाकर्मियों के लिए भी सरकार सकारात्मक दिखी। यहां कांग्रेस के साथ सबसे बड़ी समस्या एकजुटता की है। कांग्रेस के जमीनी कार्यकर्ता पसोपेश में दिखते हैं। उन्हें दिशा देने के साथ उनमें जोश जगाने की भी जरूरत है। कांग्रेस कभी किसान आंदोलन तो कभी किसी और मुद्दे को लेकर सक्रिय दिखती है, पर सरकार को घेरकर कोई बड़ा मुद्दा खड़ा करने में अब तक सफल नहीं हुई। सीडी कांड भी बड़ा राजनैतिक मसला नहीं बन सका। कांग्रेस की सभाओं में भीड़ जरूर आ रही है। भीड़ तो अजीत जोगी की सभाओं में भी दिख रही है और जोगी ताकत भी दिखा रहे हैं, लेकिन उनका वैसा जमीनी आधार नहीं है जैसा भाजपा या कांग्रेस का है। इससे कहा जा रहा है कि जोगी की पार्टी सीटें जीतने से ज्यादा वोट काटेगी। सिंहदेव का कहना है कि लोग पहले कांग्रेस के भीतर रहकर ही पार्टी का वोट कटवाते थे, ऐसे में जोगी की पार्टी से कांग्रेस को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है। अब कांग्रेस कार्यकर्ता पूरे दमखम से प्रत्याशियों के लिए काम करेंगें। कांग्रेस कार्यकर्ताओं का मानना है कि इस बार राज्य में पार्टी की सरकार नहीं बनी तो कार्यकर्ता पूरी तरह निराश हो जाएंगे।
छत्तीसगढ़ में भले चुनाव नवंबर में होना है, लेकिन सरकार और राजनैतिक पार्टियां चुनावी मूड में पूरी तरह आ गई हैं। कांग्रेस और अजीत जोगी की पार्टी के मुकाबले भाजपा रणनीति के साथ धन बल से मजबूत दिखाई देती है। अजीत जोगी ने अपनी पार्टी के लिए फंड जुटाने के मकसद से 11 हजार रुपये में उनके साथ डिनर की योजना शुरू की है। वरिष्ट पत्रकार अशोक भटनागर का कहना है कि एंटी इनकंबेंसी फैक्टर को धन बल से समाप्त नहीं किया जा सकता। ऐसा होता तो कई दिग्गज चुनाव कभी नहीं हारते। छत्तीसगढ़ में अभी जिस तरह से माहौल चल रहा है उससे साफ है कि मुकाबला रोचक होगा। जोगी की पार्टी सत्ता विरोधी लहर के बीच भाजपा की वैतरणी पार कराने वाली बनकर रह जाएगी या फिर शक्ति संतुलन वाली। इस पर भी लोगों के मन में बड़ी उत्सुकता है। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह कहते हैं, “भाजपा के लिए 2018 का चुनाव भी अच्छा रहेगा। 65 के टारगेट को पूरा कर पाएंगे या नहीं यह अलग बात है।”
बीजेपी का चेहरा डॉ. रमन
गुजरात चुनाव के बाद लगने लगा है कि छत्तीसगढ़ में भाजपा भले ही चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर लड़ेगी, लेकिन सामने चेहरा डॉ. रमन सिंह का रहेगा। भाजपा के एक नेता का कहना है कि छत्तीसगढ़ में भी व्यापारी जीएसटी और नोटबंदी को लेकर नाराज हैं। इस कारण भाजपा को यहां डॉ. रमन सिंह को आगे करके ही चुनाव लड़ना होगा। गुजरात तो नरेंद्र मोदी का गृह राज्य था और मोदी की अस्मिता काम कर गई। रमन सिंह के चेहरे को सामने रखकर ही 2008 और 2013 के चुनाव में यहां पार्टी सत्ता में आई।
जोगी का हेलीकॉप्टर मुद्दा
छत्तीसगढ़ की डॉ. रमन सिंह सरकार द्वारा खरीदे गए अगस्ता कंपनी के हेलीकॉप्टर पर अजीत जोगी के विधायक बेटे अमित जोगी सवाल उठाते रहे हैं। इस कंपनी के हेलीकॉप्टर को किराए पर लेने से कांग्रेस को जोगी कांग्रेस पर हमला करने का मौका मिल गया है। कांग्रेस के कई नेता रमन सिंह और अजीत जोगी में साठगांठ का आरोप लगा रहे हैं। नेता प्रतिपक्ष टी.एस. सिंहदेव का कहना है कि साठगांठ के सबूत नहीं हैं, पर संदेह होता है। अमित जोगी कांग्रेस के आरोपों को गलत बताते हुए कहते हैं, “कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी भी ऐसी कंपनी के हेलीकॉप्टर से उड़ान भर चुके हैं। जोगी कांग्रेस ने पूरी पारदर्शिता बरतते हुए जिस कंपनी ने सस्ते में हेलीकॉप्टर किराए पर दिया उससे लिया।”