नए साल में नई संभावनाओं की उम्मीद करना गैर-मुनासिब नहीं है क्योंकि साल 2017 भी युवा और प्रतिभाशाली कलाकारों के लिए उतना अच्छा साबित नहीं हुआ। नोटबंदी से साल की शुरुआत अच्छी नहीं हुई। एक नामी कलाकार ने बताया, “एक गैलरी मेरी कुछ पेंटिंग के पैसे लंबे समय से नहीं दे रही थी। नोटबंदी के बाद गैलरी प्रबंधिका का फोन आया, “आपके पैसे ड्राइवर के हाथ भेज रही हूं।” पांच सौ और हजार के पुराने नोट देखकर मैंने पैसे लौटा दिए।” वह अब भी नए नोटों या चेक की शक्ल में अपने भुगतान की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
अधिकांश गैलरियां ‘मास्टर’ कलाकारों (हुसेन, सूजा, रजा, गायतोंडे, रामकुमार, कृष्ण खन्ना, तैयब मेहता, स्वामीनाथन, मनजीत बावा आदि) को तलाश रही हैं क्योंकि कला नीलामियों में उन्हीं की मांग है। जो कलाकार ‘ब्रांड’ बन चुके हैं उनकी स्थिति कुछ बेहतर है। लेकिन ‘मास्टर’ कलाकारों की उन्मादी तलाश में ‘फेक आर्ट’ का ‘केक’ ज्यादा खाया जा रहा है। मशहूर और महंगे कलाकार अकबर पदमसी ने एक इंटरव्यू में कहा, “हर महीने मेरे पास गैलरीवाले नकली काम प्रमाणित करने के लिए ले आते हैं। अगर आपको सही काम खरीदना है, तो सीधे कलाकार के स्टूडियो जाइए। गैलरीवालों पर भरोसा मत कीजिए।”
जाहिर है गैलरीवाले इस वक्तव्य से दुखी हैं। एक गैलरी के युवा प्रबंधक का कहना है, “पदमसी प्रतिष्ठित नाम हैं इसलिए वह ऐसा बयान दे सकते हैं। लेकिन उन्हें बड़ा नाम गैलरीवालों ने ही बनाया है।” अच्छे से अच्छे युवा कलाकार घर या गैलरी से अपना काम आसानी से नहीं बेच सकते। गैलरीवाले कला बाजार की दुर्दशा का लाभ उठाकर उनका काम सत्तर-अस्सी प्रतिशत कम में खरीद रहे हैं। जो कलाकार पूरी तरह कला बिक्री पर आश्रित हैं वे अधिक परेशानी में हैं। 2008 से पहले के तथाकथित ‘आर्ट बूम’ के बाद कई युवा कलाकारों ने काम पर अधिक ध्यान देने के लिए आर्ट मास्टरी की अपनी नौकरियां छोड़ दी थीं। अब उनमें से कई दोबारा आर्ट टीचर बनने की कोशिश कर रहे हैं। इन दिनों कम बिकने वाले एक प्रतिभाशाली कलाकार का कहना है, “मैंने सारी जिंदगी पेंट किया है। और कुछ नहीं जानता। कलाकार और कवि में फर्क है।” केरल का एक अच्छा कवि जीवनयापन के लिए मछली बेचने का काम करता है पर कलाकार को रचना सामग्री चाहिए, स्टूडियो स्पेस चाहिए।
आर्ट बूम में करोड़ों में बिकने वाले कलाकार तैयब मेहता नब्बे के दशक के अंत में मुंबई के अपने छोटे से फ्लैट के एक कोने में ईजल रख कर पेंट करते थे। उन जैसे वरिष्ठ कलाकार के लिए भी तब निजी स्टूडियो स्पेस के बारे में सोचना संभव नहीं था। अस्सी के दशक में फ्रांसिस न्यूटन सूजा को मैंने गेस्ट हाउस के छोटे से कमरे में काम करते हुए देखा था। रजा की तरह सूजा अपने जीवनकाल में धनवर्षा कभी नहीं देख पाए।
युवा मास्टरों (सुबोध गुप्ता, अतुल डोडिया, मिठु सेन, जितीश कल्लाट आदि) के लिए गया साल बुरा नहीं रहा। साल 2016 के अंत में सुबोध गुप्ता ने मुंबई में लंबे समय के बाद फेमस स्टूडियोज में अपना काम दिखाया था। बीते साल उन्होंने इंग्लैंड और इटली में अपनी एकल प्रदर्शनियां कीं। जनवरी में राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय, दिल्ली में जितीश कल्लाट के चित्रों की प्रदर्शनी लगी। राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय लंबे समय तक मृत कलाकारों पर ही फोकस करता रहा था। पर सुबोध गुप्ता, अतुल डोडिया, मृणालिनी मुखर्जी, जितीश कल्लाट की बड़ी प्रदर्शनियों से उसने अपना चेहरा थोड़ा बदल लिया है।
राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय, दिल्ली में इस साल वरिष्ठ कलाकार मनु पारेख की बड़ी प्रदर्शनी में 60 वर्षों का काम दिखाया गया। मनु पारेख हंस कर बताते हैं, “इस संग्रहालय में ‘श्राद्ध’ के बाद ही प्रदर्शनी की जगह मिलती थी। अब स्थिति बदल रही है।” नए डायरेक्टर जनरल (उनके पहले सिर्फ डायरेक्टर का पद था) अद्वैत गड़नायक ने संग्रहालय में इस साल आर्ट अड्डा में छात्रों, कलाकारों, समीक्षकों, गैलरी प्रबंधकों के बीच संवाद की परिकल्पना की है।
किरण नाडर म्यूजियम, दिल्ली (नोएडा और साकेत) ने अच्छी शुरुआत की है। हर साल इस संग्रहालय की प्रदर्शनियां मील का पत्थर साबित हो रही हैं। संग्रहालय ने विदेश के बड़े संग्रहालयों से गठबंधन कर मैड्रिड, पेरिस और न्यूयॉर्क में नसरीन, जयश्री चक्रवर्ती की महत्वपूर्ण प्रदर्शनियां लगाई हैं।
दिल्ली में किरण नाडर म्यूजियम की एक बड़ी प्रदर्शनी ‘स्ट्रैच्ड टैरेंस’ चर्चा में रही जिसकी क्यूरेटर रुबीना करोड़े थीं। यह अद्भुत प्रदर्शनी, सात स्वतंत्र प्रदर्शनियों को एक-दूसरे से कल्पनाशील ढंग से जोड़ती थी। इस प्रदर्शनी में सूजा, हुसेन, रजा की प्रसिद्ध तिकड़ी के अलावा स्थापत्य कला पर फोकस था। पार्थिव शाह की हुसेन की दुर्लभ तस्वीरों की प्रदर्शनी और आज के चर्चित अपेक्षाकृत युवा कलाकारों-अतुल डोडिया, मिठु सेन, पुष्पमाला, नवजोत अल्ताफ पर भी अच्छा फोकस था। किरण नाडर म्यूजियम, आकांक्षा रस्तोगी द्वारा क्यूरेट एक प्रदर्शनी आधुनिक भारतीय कला के इतिहास के साथ संवाद करती है। यहां सभी कला आंदोलनों, कला केंद्रों के बीच संवाद है।
मुंबई में डॉ. भाउ दाजी लाड म्यूजियम भी कला का अच्छा नया केंद्र बन गया है। राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय की मुंबई शाखा ने आर्ट म्यूजिंग्स गैलरी के सहयोग से पेरिस में रह रहे वरिष्ठ कलाकार शक्ति बर्मन की पुनरावलोकन प्रदर्शनी की। छायाकार जितेंद्र आर्य के छायाचित्रों में राज कपूर, नरगिस, देवानंद, नूतन को याद किया गया।
जयपुर के जवाहर कला केंद्र में हिम्मत शाह की बड़ी प्रदर्शनी किरण नाडर म्यूजियम के सहयोग से लगाई गई। पूजा सूद जयपुर के जवाहर कला केंद्र में अच्छी और महत्वाकांक्षी प्रदर्शनियां कर रही हैं। पर स्थानीय स्तर पर विरोध है। हिम्मत शाह चूंकि 2000 में जयपुर चले गए थे। इसलिए वह राजस्थान के ‘अपने’ हो गए। आधुनिक भारतीय कला में हिम्मत शाह की अद्वितीय उपस्थिति है। बाजार ने उन्हें देर से पहचाना पर कला मर्मज्ञ शुरू से उन्हें महत्वपूर्ण मानते थे। दिल्ली के धूमीमल में नामी कलाकार शैलोज मुखर्जी के दुर्लभ चित्रों की प्रदर्शनी बीते साल की बड़ी घटना है। देहरादून में उत्तरा म्यूजियम ऑफ कंटंपरेरी आर्ट की स्थापना उल्लेखनीय रही। सुरेंद्र जोशी उत्तराखंड के हैं उन्होंने लखनऊ में पढ़ाई की और जयपुर में बस गए। संग्रहालय से वह पानी, पत्थर और पहाड़ की हलचल को नया रूप दे पाए हैं।
साल के अंत में राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय ने मूर्तिशिल्पी धनराज भगत को जन्मशताब्दी ट्रिब्यूट दिया। धनराज भगत का काष्ठ का काम बड़ी उपलब्धि है। केंद्रीय ललित कला अकादेमी विवादों और कलाकारों की राजनीति का गए साल भी शिकार रही। पर भारतीय भाषाओं में कला लेखन पर अकादेमी का सार्थक परिसंवाद हुआ। ललित कला की रवींद्र भवन दीर्घा में वरिष्ठ कलाकार जतिन दास की पोट्रेट प्रदर्शनी इस साल की बड़ी कला घटना है। जतिन की रेखाओं का जादू इस प्रदर्शनी में अच्छी तरह सामने आया। साल के आखिर में वरिष्ठ मूर्तिशिल्पी नागजी पटेल का निधन दुखद खबर है। उन्होंने पश्चिमी मुहावरे से अलग भारतीय परिवेश में अपनी कला को पहचाना।
(लेखक कला समीक्षक हैं)