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भाजपा में सुलगने लगी आंच

नौकरशाहों के बेलगाम तेवरों से मंत्री से लेकर विधायक सभी नाराज
मंत्रिमंडल की बैठक करते शिवराज सिंह चौहान

मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री के रूप में शिवराज सिंह चौहान की बेरोकटोक चल रही पारी के बीच भाजपा के विधायकों को 2018 के विधानसभा चुनाव की चिंता सताने लगी है। विधायकों की चिंता का सबब कुछ और है तो भाजपा की मायूसी प्रदेश भाजपा संगठन और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को परेशान कर रही है। नौकरशाहों के बेलगाम तेवरों ने मंत्रियों से लेकर विधायकों और सांसदों से लेकर आम कार्यकर्ताओं को आक्रोशित कर रखा है।  

गुजरात की तरह ही संघ का सर्वे मध्य प्रदेश के लिए भी चिंता की लकीरें पैदा कर रहा है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आंतरिक सर्वे में गुजरात में भाजपा के 60 सीटों के आसपास टिकने का अनुमान लगाया जा रहा है। मध्य प्रदेश में भाजपा की सीटें एक सौ के नीचे जाने की आशंका है। 230 सीटों वाले मध्य प्रदेश में भाजपा 165 सीटों पर काबिज है। संघ का सर्वे भाजपा के लिए चेतावनी की घंटी है। प्रदेश भाजपा में गुटबाजी दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। प्रदेश भाजपा के पूर्व संगठन महामंत्री अरविंद मेनन के कार्यकाल के दौरान सतह के नीचे खदबदाता असंतोष अब लावा बनकर निकल रहा है।

पिछले महीने शिवराज सिंह चौहान कैबिनेट के विस्तार के बाद जल्द ही एक और विस्तार के हालात बन गए हैं। सत्ता की चाशनी चंद लोगों को ही नसीब हो रही है। प्रदेश भाजपा में चौतरफा गुटबाजी तेज हो चुकी है। उज्जैन से काबीना मंत्री बने पारस जैन के खिलाफ विधायक मोहन यादव ने मोर्चा खोल दिया है। उज्जैन में एक बैठक के दौरान मोहन यादव और पारस जैन के बीच हाथापाई की नौबत आ गई।

सागर में ग्रामीण विकास मंत्री गोपाल भार्गव और गृह मंत्री भूपेंद्र सिंह के बीच अदावत तो पुरानी है। अब भार्गव की स्थानीय सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल से लड़ाई सड़कों पर आ गई है। ताई और भाई की अदावत के चलते इंदौर का एक भी भाजपा विधायक ताजा विस्तार में मंत्री नहीं बन सका है। शिवराज सिंह चौहान की इच्छा ताई समर्थक सुदर्शन गुप्ता को मंत्री बनाने की थी, लेकिन कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि सुदर्शन के साथ रमेश मेंदोला या उषा ठाकुर को भी मंत्री बनाया जाए। अब बढ़ते दबाव के बीच शिवराज जल्द एक विस्तार और कर सकते हैं। लेकिन काबीना विस्तार ने दो दर्जन से ज्यादा उन विधायकों को रुष्ट कर दिया है जो मंत्री बनने की हसरत पालकर बैठे थे। दरअसल, शिवराज की समस्या यह है कि प्रदेश में 64 विधायकों में से किसको चुनें। ये सभी वे विधायक हैं जो दो बार या उससे अधिक बार चुनाव जीत चुके हैं। शिवराज ने पूर्व सीएम सुंदरलाल पटवा और कैलाश जोशी के भतीजे और बेटे को स्वतंत्र प्रभार देकर संतुष्ट कर दिया। वरिष्ठ भाजपा नेता कैलाश सारंग के बेटे विश्वास सारंग को भी सहकारिता विभाग का स्वतंत्र प्रभार दिया। लेकिन एक अन्य पूर्व सीएम वीरेंद्र सखलेचा और पूर्व प्रदेशाध्यक्ष लक्ष्मीनारायण पांडे के बेटे राजेंद्र पांडे को काबीना में जगह नहीं मिल सकी। विंध्य इलाके में तीन वरिष्ठ विधायकों शंकरलाल तिवारी, केदार शुक्ला और गिरीश गौतम के मंत्री नहीं बन पाने के कारण विरोध के सुर उभर रहे हैं। मंत्री बनने से वंचित भाजपा के नेता रीवा के कद्दावर मंत्री राजेंद्र शुक्ला के खिलाफ मोर्चा खोल चुके हैं। छतरपुर में पूर्व कांग्रेसी मंत्री और भाजपा विधायक मानवेंद्र सिंह की विधायक गुडन पाठक से खुली अदावत चल रही है। ग्वालियर चंबल इलाके में सत्ता के सूत्र केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री जयभान सिंह पवैया के इर्द-गिर्द सिमट गए हैं। भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभात झा, अटल जी के भांजे और मुरैना सांसद अनूप मिश्रा और इलाके की मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया हाशिये पर हैं।

भाजपाइयों में मचे यादवी संग्राम से नौकरशाह मजे में हैं। विधायकों को कोई तवज्जो नहीं दे रहे हैं। श्योपुर के विधायक दुर्गा लाल विजय ने प्रभारी मंत्री से शिकायत की है कि जिले का एक कार्यपालन यंत्री इतना गुस्ताख है कि उनके मुंह पर सिगरेट का धुआं छोड़ता है। यही नहीं, सीएम की नाक के नीचे भोपाल जिला भाजपा में भी जबरदस्त मारकाट है। मंत्री उमाशंकर गुप्ता और विश्वास सांरग के साथ ही सांसद आलोक संजर, विधायक रामेश्वर शर्मा और महापौर आलोक शर्मा एक दूसरे को फूटी आंखों नहीं सुहाते।

प्रदेश भाजपा में मचे इस गुटीय घमासान के बीच प्रदेश भाजपा अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान असहज स्थिति से गुजर रहे हैं। आठ महीने पहले प्रदेश अध्यक्ष निर्वाचित होने के बावजूद प्रदेश भाजपा कार्यकारिणी गठित नहीं हो सकी है। नए संगठन महामंत्री सुहास भगत अब भी चीजों को समझने की कवायद में जुटे हैं। उनके पूर्व संगठन महामंत्री अरविंद मेनन की लॉबी उन्हें स्थापित नहीं होने दे रही है। शिवराज सिंह चौहान लगातार दौरे करके पार्टी में गतिशीलता तो बनाए हुए हैं लेकिन कार्यकर्ताओं को मलाल है कि चौहान अपने प्रवास के दौरान उनसे मिलने का वक्त नहीं जुटा पाते। 

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