हमारे यहां दो तरह के किसान हैं, एक प्रगतिशील और दूसरे पॉलिटिकल। प्रगतिशील किसान नई टेक्नोलॉजी और अपनी मेहनत से खुद को और दूसरों को भी फायदा पहुंचाता है। दूसरे तरह के पॉलिटिकल किसान से हम सबका सामना होता है। देश की जनसंख्या का एक विशाल भाग कृषि और उससे संबंधित क्षेत्रों से जुड़ा है। उनकी समृद्धि और खुशहाली इस क्षेत्र की खुशहाली से जुड़ी है। लेकिन कृषि क्षेत्र में कई तरह की चुनौतियां हैं। इसलिए कृषि क्षेत्र की तीव्र गति के साथ प्रगति आश्वस्त करना न केवल खाद्यान्न आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए जरूरी है, बल्कि यह कृषि क्षेत्र पर निर्भर लोगों की आय बढ़ाने के लिए भी आवश्यक है।
माननीय प्रधानमंत्री ने घोषणा की है कि जब हम वर्ष 2022 में स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ मना रहे होंगे, तब हमारे किसानों की आय दोगुनी होनी चाहिए। इस दिशा में सरकार ने विशेष पहल की है। 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लिए हमने संबंधित चुनौतियों और समस्याओं का जायजा लेने के उद्देश्य से एक समिति का गठन किया है। हम कृषि से संबंधित सभी क्षेत्रों सिंचाई, गुणवत्ता युक्त बीजों, वेयर हाउसिंग, शीत भंडार गृहों और खाद्य प्रसंस्करण में बड़े पैमाने पर निवेश पर कार्य कर रहे हैं।
हम बीज, जल, उर्वरकों और मृदा स्वास्थ्य (सॉइल हेल्थ) के लिए कार्यक्रमों पर कार्य कर रहे हैं। सरकार ने 2016 के खरीफ मौसम से ही किसानों की आय को दोगुना करने के लिए विभिन्न कार्यक्रम शुरू किए हैं।
मृदा स्वास्थ्य कार्ड (सॉइल हेल्थ कार्ड)
संयुक्त राष्ट्र ने 2007 में पूरी दुनिया को चेतावनी दी थी कि सॉइल हेल्थ मैनेजमेंट जरूरी है। जब हम सत्ता में आए तो 15 सॉइल हेल्थ लेबोरेट्रीज बनाए गए थे। आज हम कह सकते हैं कि हिंदुस्तान के अंदर 10 हजार सॉइल हेल्थ लेबोरेट्री हैं। 12 से 13 करोड़ किसानों में से 10 करोड़ 35 लाख किसानों को यह कार्ड मिल चुका है। राष्ट्रीय उत्पादकता परिषद (एनपीसी) की रिपोर्ट है कि जिन लोगों ने इसका प्रयोग किया, उनकी लागत 8-10 फीसदी तक कम हुई। किसानों की 8-10 फीसदी तक यूरिया की बचत हो रही है। उत्पादकता में भी 5-6 फीसदी की वृद्धि हो रही है।
नीम कोटेड यूरिया
किसानों के लिए नीम कोटेड यूरिया की उपलब्धता बढ़ी है तथा दुरुपयोग पर अंकुश लगा है। इससे लागत में भी कमी आ रही है। जब मैं कृषि मंत्री बना तो देखा कि 2002-03 में यूरिया संकट पर वैज्ञानिकों की एक कमिटी बनी थी। उस समय अटल जी की केंद्र में सरकार थी। उस वक्त पता चला कि 35 फीसदी यूरिया केमिकल फैक्ट्रियों को जाता था। जब हमारी सरकार बनी तो दो साल के भीतर हम नीम कोटेड यूरिया लेकर आए। अब यह यूरिया फैक्ट्रियों को नहीं जाता। सो, यूरिया का संकट खत्म हो गया।
जैविक खेतीः एक और बड़ी पहल जो हमने की है वह जैविक खेती को बढ़ावा देना है, जिससे मृदा स्वास्थ्य में सुधार होता है और बेहतर गुणवत्ता वाली फसल प्राप्त होती है। 2015-16 से 20 हेक्टेयर के क्लस्टर आधार पर एक नई स्कीम ‘परंपरागत कृषि विकास योजना’ की शुरुआत की जा रही है। प्रत्येक किसान को तीन वर्ष की अवधि में 50,000 रुपये प्रति हेक्टेयर प्राप्त हो रहे हैं। लक्ष्य के अनुसार 10,000 क्लस्टर का अनुमोदन किया गया है और इसे 29 राज्यों और एक केंद्र शासित राज्य में कार्यान्वित किया जा रहा है। इस योजना में अब तक दो लाख हेक्टेयर क्षेत्र जैविक खेती में परिवर्तित हो चुका है और पूरे भारत में 22.5 लाख हेक्टेयर में जैविक खेती हो रही है।
मंडी सुधार: वर्तमान कृषि विपणन प्रणाली में सामने आ रही चुनौतियों का ठोस ढंग से समाधान करने के लिए अप्रैल, 2016 में माननीय प्रधानमंत्री ने राष्ट्रीय कृषि बाजार की शुरुआत की। इससे किसानों की पहुंच नजदीकी एपीएमसी से बाहर स्थित मंडियों तक होगी, जिससे बेहतर मूल्य प्राप्त होंगे और लेने-देन में पारदर्शिता आएगी। अब तक 14 राज्यों के 470 बाजारों का जोड़ा गया है और मार्च, 2018 तक 585 बाजारों को जोड़ने का लक्ष्य है। अभी तक इस प्लेटफॉर्म पर 73.28 लाख किसानों और एक लाख व्यापारियों का पंजीकरण किया गया है। कृषि विपणन क्षेत्र को उदार बनाने के लिए, हमारी सरकार ने 24 अप्रैल, 2017 को एक नया मॉडल कृषि उपज एवं पशुधन विपणन (संवर्धन एवं सुविधा) अधिनियम, 2017 जारी किया है, जिसमें प्रगतिशील सुधारों का प्रावधान है जिसमें निजी मंडियां, प्रत्यक्ष विपणन, किसान उपभोक्ता बाजार और राष्ट्रीय महत्व के बाजार शामिल हैं।
जल सुरक्षा: सिंचाई आपूर्ति सीरीज में समग्र समाधान यानी जल स्रोतों, वितरण नेटवर्क व फार्म में अनुप्रयोग पर बल देने के लिए ‘प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना’ नामक नई योजना की शुरुआत की गई है। 2011-14 के दौरान सूक्ष्म सिंचाई के अंतर्गत 16.13 लाख हेक्टेयर क्षेत्र कवर किया गया था। हम जब मंत्री बने तो संसद में पूछा गया कि देश में 20-25 साल से सिंचाई की 99 योजनाएं लंबित पड़ी हैं, वह कब पूरा होंगी। पूछने वाले 60 साल से शासन में थे। आज हम कह सकते हैं कि बजट के अलावा 40 हजार करोड़ रुपये का कॉर्पस फंड बनाया। 2019 के अंत या 2020 के आते-आते 99 योजनाएं पूरी हो जाएंगी।
पीएमकेएसवाई: प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना प्रति बूंद अधिक फसल के तहत सूक्ष्म सिंचाई के अंतर्गत वर्ष 2014-17 के दौरान 23.92 लाख हेक्टेयर क्षेत्र लाया गया है (20.01.2018 की स्थिति के अनुसार) जो लगभग 48 प्रतिशत की वृद्धि है। ड्रॉप सिंचाई से जल की उपयोग क्षमता 90 प्रतिशत तक और स्प्रिंकलर सिंचाई से लगभग 70 प्रतिशत तक बढ़ती है और लागत में कमी आती है और उत्पादकता में वृद्धि होती है।
फसल बीमा: फसल बीमा की नई योजना “प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना’’ की शुरुआत की गई है। जिसमें किसानों को रबी फसलों के लिए 1.5%, खरीफ फसलों के लिए 2% और वार्षिक वाणिज्यिक बागवानी फसलों के लिए 5% कम प्रीमियम देना होगा। योजना के अंतर्गत खरीफ मौसम के दौरान 2016 में केरल (200%), त्रिपुरा(165%), और रबी 2016-17 में तमिलनाडु (250%), सिक्किम (98%), पुद्दुचेरि (281%) में बीमा दावों का भुगतान कुल प्रीमियम के मुकाबले अधिक होने का अनुमान है|
प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना: सरकार खाद्य प्रसंस्करण के माध्यम से कृषि में गुणवत्ता को बढ़ावा दे रही है। छह हजार करोड़ रुपये के आवंटन से प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना की शुरुआत की गई है। इसके तहत एग्रोप्रोसेसिंग क्लस्टरों के फार्वर्ड एवं बैकवर्ड लिंकेज पर कार्य करके फूड प्रोसेसिंग क्षमताओं का विकास किया जाएगा, जिससे 20 लाख किसानों को लाभ मिलेगा और करीब साढ़े पांच लाख लोगों के लिए रोजगार पैदा होंगे।
इसके अलावा देसी गाय की उत्पादकता को दोगुना करने के लिए राष्ट्रीय गोकुल मिशन के तहत 1335.24 करोड़ रुपये की परियोजनाएं 28 राज्यों में स्वीकृत की गई हैं। इससे देसी गायों की 41 और भैसों की 13 नस्लों का संवर्धन किया जा रहा है। 12 राज्यों में 18 गोकुल ग्रामों की स्थापना के लिए 173 करोड़ रुपये स्वीकृत किए गए हैं। देश में पहली बार दो नेशनल कामधेनु ब्रीडिंग सेंटर स्थापित किए जा रहे हैं। देसी नस्लों के प्रजनकों और किसानों को जोड़ने के लिए ई-पशुधन हाट पोर्टल शुरू किया गया है। 2011-14 के सापेक्ष 2014-17 के दौरान डेयरी किसानों की आय में 23 फीसदी की वृद्धि हुई। 2013-14 की तुलना में 2016-17 में दूध उत्पादन में 20.12% की वृद्धि हुई है।
इसी तरह मत्स्य विकास हेतु नीली क्रांति के तहत 2015 में तीन हजार करोड़ रुपये की योजना ‘खेत में मछली, घर में लक्ष्मी’ घोषित की गई है, जिससे 2019-20 तक मछली उत्पादन में 50 फीसदी वृद्धि हो जाएगी। वर्ष 2011-14 की तुलना में 2014-17 में मछली उत्पादन 20.1 फीसदी बढ़ा है जो अभूतपूर्व है। वहीं, मधुक्रांति की ओर भी हम तेजी से बढ़ रहे हैं। राष्ट्रीय मधुमक्खीपालन बोर्ड को पिछले तीन साल में 205 फीसदी ज्यादा वित्तीय सहायता दी गई। मधुमक्खी कॉलोनियों की संख्या 20 लाख से बढ़कर 30 लाख हो गई। शहद उत्पादन में 20.54 फीसदी की वृद्धि है।
(आउटलुक एग्रीकल्चर कॉनक्लेव में केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्री के भाषण पर आधारित लेख)