फसल उत्पादन के तरीके में नवाचार के जरिए कट्टा रामकृष्णा ने न केवल अपनी आमदनी बढ़ाई, बल्कि दूसरे किसानों के लिए भी प्रेरणा बन गए हैं। ट्राइकोडरमा विल्डी के साथ नीम की निंबोलियों के चूर्ण का इस्तेमाल कर चने की फसल को लगने वाली बीमारियों की रोकथाम की और पैदावार बढ़ाई है। इसके अलावा इन्होंने पंचगव्य के छिड़काव से उड़द का उत्पादन बढ़ाया। कपास की बुवाई की नई तरकीब से पैदावार बढ़ाने में कामयाबी हासिल कर चुके हैं।
इसके लिए कम वर्षा वाले क्षेत्र में उन्होंने पौधों के बीच की दूरी कम की। इससे पौधों के बीच ज्यादा से ज्यादा पानी संग्रहित करने में भी मदद मिली। तकनीक के बेहतर इस्तेमाल से उत्पादन में 20 फीसदी तक की वृद्धि हासिल की। मिट्टी के अनुसार काबुली चना की उपयुक्त किस्म की पहचान की। इसके लिए देसी और काबुली चने की 30 किस्में अलग-अलग जगहों से इकट्ठा की और उत्पादन शुरू किया।
कम पानी के इस्तेमाल से बेन्गॉल ग्रैम का उत्पादन बढ़ाने की प्रणाली विकसित की। खेती की लागत कम करने और पैदावार बढ़ाने के लिए वे बायो फर्टिलाइजर का इस्तेमाल ठोस और द्रव्य दोनों रूप में करते हैं। तंबाकू की खेती में भी ऑर्गेनिक फर्टिलाइजर का इस्तेमाल किया। जूट उत्पादन की नई प्रक्रिया विकसित की। तंबाकू अपशिष्ट को खाद में बदला। कपास की खेती में माइक्रो न्यूट्रिएंट को बढ़ावा दिया। बायो फर्टिलाइजर के छिड़काव से दालों को रोगमुक्त रखने का तरीका तलाशा। हाइड्रोसाल तकनीक के इस्तेमाल से खेती के दौरान पानी की बचत की।
कट्टा खेती के दौरान जमीन की जरूरत के हिसाब से खाद का इस्तेमाल करते हैं। जैविक और रासायनिक खाद के इस्तेमाल में संतुलन का खासा ध्यान रखते हैं। खुद के साथ-साथ वे दूसरे किसानों की जिंदगी में भी खुशहाली लाने में जुटे हैं। इसके लिए साथी किसानों को प्रशिक्षण और समय-समय पर सलाह देते रहते हैं। तकनीक की मदद से लागत कम करने और उत्पादन बढ़ाने के तरीकों को लेकर दूसरे किसानों के साथ जानकारी साझा करते हैं। किसानों और तकनीक के बीच की दूरी खत्म करने के लिए फार्मर फील्ड स्कूल संचालित करते हैं। इससे किसानों को कृषि वैज्ञानिकों से सीधा संवाद करने में मदद मिलती है। बेन्गॉल ग्रैम के अपशिष्टों को चारा के तौर पर इस्तेमाल के लायक बनाते हैं। अरहर और बेन्गॉल ग्रैम के अपशिष्ट जमीन की नमी बनाए रखने के लिए भी इस्तेमाल करते हैं। कट्टा ने आउटलुक को बताया कि खेती के दौरान वे मिट्टी के हिसाब से तकनीक के इस्तेमाल पर विशेष ध्यान देते हैं ताकि कम लागत में ज्यादा पैदावार हासिल की जा सके। इसके अलावा पानी बचाने और जरूरत के अनुसार माइक्रोन्यूट्रिएंट मिश्रण का इस्तेमाल करते हैं।