हरित क्रांति को 50 साल पूरे होने जा रहे हैं। इस दौरान देश ने न सिर्फ खाद्यान्न आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ाए, बल्कि खाद्यान्न आयातक से निर्यातक देश भी बन चुका है। इसमें दिल्ली के इंडियन एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीट्यूट (आइएआरआइ) की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इस यात्रा में जिन कृषि वैज्ञानिकों ने अहम योगदान दिया है, उनमें आइएआरआइ की प्लांट पैथोलॉजी डिवीजन की हेड डॉ. रश्मि अग्रवाल भी हैं।
फसल और सब्जियों के लिए बीज जितने महत्वपूर्ण हैं, उतना ही अहम उनके रोगों का निदान भी है। फसलों में जैविक तरीके से रोगों की रोकथाम के लिए डॉ. रश्मि अग्रवाल के नेतृत्व वाली टीम ने चार बायो कंट्रोल एजेंट की खोज की। इनसे पौधों की ग्रोथ अच्छी होती है। पैदावार भी बढ़ती है।
इनमें से एक है ट्राइकोडरमा हर्जिआनम, जो घुलनशील जैविक फफूंदनाशक है। इसका उपयोग झुलसा रोग, तना और जड़ खराब होने एवं पत्तों पर धब्बे होने की स्थिति में किया जा सकता है। गेहूं, धान के साथ-साथ दलहनी फसलों पर इसका प्रभाव विशेष लाभकारी रहा है। पंजाब की एक कंपनी के साथ मिलकर आइएआरआइ किसानों को यह उपलब्ध करा रही है। इसे जैव फॉर्म्यूलेशन भी कहते हैं। इसका इस्तेमाल बीज को बोने से पहले किया जा सकता है। इसके अलावा सिंचाई के समय पानी के साथ भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। किसान चाहें तो इसका छिड़काव भी कर सकते हैं। ट्राइकोडरमा के कवक तंतु फसल को नुकसान पहुंचाने वाले फफूंद के कवक तंतुओं को लपेटकर या सीधे अंदर घुसकर उनका जीवन-रस चूस लेते हैं और नुकसानदायक फफूंदों का नाश करते हैं।
दूसरा, बायो एजेंट है कीटोमिअम। यह एक तरह का फफूंद है और इसका इस्तेमाल पौधों में लगने वाले फफूंद को खत्म करने के लिए किया जा सकता है। इसका अंतिम परीक्षण किया जा रहा है। गेहूं के अलावा चना और आलू की फसलों में इसके लाभकारी परिणाम सामने आए हैं। इनके अलावा दो अन्य बायो एजेंट हैं, सुडोमोनास प्लूरेंसेंसे और बैसिलस सबटिलिस। दोनों सब्जियों खासकर आलू, टमाटर और बैगन की फसलों के लिए लाभकारी हैं। सब्जियों की जड़ों में लगने वाले रोग के निदान में ये कारगर साबित हुए हैं। डॉ. रश्मि अग्रवाल की टीम द्वारा तैयार किए गए बायो एजेंट पूरी तरह से जैविक हैं।
कृषि फसलों के सफल उत्पादन में विभिन्न प्रकार की समस्याएं आती हैं। इनमें कीट और विभिन्न प्रकार की बीमारियां मुख्य हैं। बीमारियां पौधों की वृद्धि और उत्पादन को प्रभावित करती हैं, तो कीट खेतों से लेकर भंडार गृह तक फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं। वातावरण में बहुत से ऐसे सूक्ष्मजीव हैं मसलन विषाणु, जीवाणु और फफूंद जो शत्रु कीटों में रोग उत्पन्न कर उन्हें नष्ट कर देते हैं। इन्हीं विषाणु, जीवाणु, फफूंद आदि को वैज्ञानिकों ने पहचान कर प्रयोगशाला में इनके गुणों में वृद्धि करके इन्हें बहुगुणी बनाया और प्रयोग के लिए किसानों को मुहैया करा रहे हैं।