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प्रक्रिया में उलझी राहत

जटिल नियमों और गड़बड़ियों में फंसी फडनवीस सरकार की किसान कर्जमाफी योजना
ऐलानः कैबिनेट सहयोगियों के साथ बीते साल 24 जून को किसानों के लिए कर्जमाफी योजना का ऐलान करते महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फडणवीस

किसान संगठनों और विपक्ष के लगातार आंदोलन और दबाव की वजह से महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने 24 जून 2017 को जब किसानों की कर्जमाफी का ऐतिहासिक ऐलान किया तो नासिक जिले के मोह गांव के 36 वर्षीय सुनील भिसे की खुशी का ठिकाना नहीं था। कम पैदावार और बाजार में उचित दाम नहीं मिलने पर भी भिसे ने किसी तरह से पैसे जुटाकर बैंक का एक लाख रुपये का कर्ज चुकाया था। फडणवीस सरकार की घोषणा से उन्हें 25 हजार रुपये की मदद मिलने का रास्ता साफ हुआ। लेकिन, पांच एकड़ में गेहूं और मौसमी सब्जियां पैदा करने वाला यह युवा किसान आज भी सरकार से पैसे मिलने का इंतजार कर रहा है।

नासिक जिले के ही गायगांव के 28 वर्षीय किसान ज्ञानेश्वर चोले भी बेहद परेशान हैं। उन्होंने बैंक से 10 लाख रुपये का कर्ज लिया था। लेकिन पर्याप्त आमदनी नहीं होने के कारण किस्त का भुगतान नहीं कर पा रहे थे। सरकारी घोषणा के बाद उन्होंने भी राहत की सांस ली थी। पर कर्जमाफी के लिए नीचे से ऊपर तक महीनों दौड़ लगाने के बाद जब हकीकत से उनका सामना हुआ तो वे चकित रह गए। बुझी आवाज में चोले बताते हैं, “अधिकारियों ने बताया कि बैंक के बकाया छह लाख रुपये का भुगतान करने के बाद ही मुझे 1.5 लाख रुपये की मदद मिलेगी। यह जुल्म है। मैं जैसे-तैसे गुजारा कर रहा हूं। बैंक को छह लाख रुपये कहां से दूं?” चोले और भिसे राज्य के उन 60 लाख किसानों में हैं जिन्हें भाजपा-शिवसेना सरकार की कर्जमाफी योजना के तहत मदद मिलने का अब भी इंतजार है।

सरकारी आंकडों के मुताबिक अब तक 31 लाख किसानों को मदद मिली है, जिनका कुल बकाया करीब 12,200 करोड़ रुपये था। इसकी प्रति आउटलुक के पास है। फडणवीस सरकार ने जब कर्जमाफी की घोषणा की थी उस समय 89 लाख किसानों को मदद मिलने और इससे खजाने पर करीब 34 हजार करोड़ रुपये का बोझ पड़ने का अनुमान लगाया गया था। इस योजना के तहत सरकार ने बैंकों को किस्त का भुगतान नहीं कर पाने वाले किसानों का 1.5 लाख रुपये तक का कर्ज माफ करने का वादा किया था। जिनका कर्ज 1.5 लाख रुपये से ज्यादा था वे बैंकों को शेष राशि का भुगतान कर इसका फायदा ले सकते थे। राज्‍य सरकार ने उन किसानों के लिए भी एक विशेष योजना की घोषणा की थी जो नियमित तौर पर बैंक को किस्त दे रहे थे। ऐसे किसानों को चुकाए जा चुके कर्ज का 25 फीसदी या 25 हजार रुपये में से जो भी ज्यादा हो बोनस के तौर पर देने की घोषणा की गई थी।

घोषणा के सात महीने बाद भी ‘छत्रपति शिवाजी महाराज शेतकारी सन्मान’ नामक इस योजना के क्रियान्वयन में बहुत झोल है। अब तक योजना के तहत 31 लाख किसानों को फायदा हुआ है और 12,262 करोड़ का कर्ज माफ किया गया है। योजना की घोषणा के समय स्टेट लेवल बैंकर्स कमेटी से मिले आंकड़ाेें के आधार पर 89 लाख किसानों को फायदा होने और खजाने पर करीब 34,000 करोड़ रुपये का बोझ पड़ने का अनुमान लगाया गया था। कर्जमाफी में देरी की मुख्य वजह प्रशासनिक उदासीनता और राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के अलावा त्रुटिपूर्ण योजना और लाभार्थियों का डाटाबेस तैयार करने में गड़बड़ी निकलकर सामने आई है। कुछ राष्ट्रीयकृत बैंकों पर बड़ी संख्या में फर्जी नाम पर बिल बढ़ा-चढ़ाकर ‌पेश करने के भी आरोप हैं। इसके कारण भी सरकार इस दिशा में बहुत धीरे-धीरे आगे बढ़ने को मजबूर हुई।

गड़बड़ी कहां?

राज्य सरकार ने बड़ी चालाकी से इस योजना का नाम छत्रपति शिवाजी महाराज शेतकारी सन्मान रखा था। शुरुआत में योजना के तहत माफ रकम सीधे किसानों के खाते में ट्रांसफर किए जाने का प्रावधान था। सरकार ने राष्ट्रीयकृत और डिस्ट्रिक्ट सेंट्रल को-ऑपरेटिव (डीसीसी) बैंकों से किसानों का डाटा मांगा था। खाते से आधार को लिंक करना अनिवार्य कर दिया गया था। डाटा इकट्ठा करने के लिए दोतरफा प्रक्रिया अपनाई गई। पूरे राज्य के किसानों को ‘आपली सरकार (आपकी सरकार)’ पोर्टल पर आवेदन करने को कहा गया। दूसरी ओर, बैंकों से भी राज्‍य सरकार ने कर्ज का भुगतान नहीं करने वाले किसानों की सूची मांगी। इस तरह कर्जमाफी की योजना को अमल में लाने की प्रक्रिया में आइटी वेंडर भी शामिल हो गए।

किसानों को कर्ज देने में शामिल 60 से अधिक बैंकों को जो फॉर्म दिए गए वे बहुत लंबे-चौड़े थे। आमतौर पर बैंक लोन अकाउंट का डाटा 46 वर्गों (नाम, उम्र, शहर, कर्ज की राशि, भगुतान की गई राशि, बकाया वगैरह) में जुटाकर रखते हैं। लेकिन, कर्जमाफी के लिए उन्हें जो फॉर्म दिए गए उसमें 66 वर्ग थे। उनके खुद के वर्ग से बीस ज्यादा, जिसमें आधार भी शामिल था। किसान और बैंक दोनों जगह से डाटा जुटाने के कारण सिस्टम एग्रीटेर की जरूरत सॉफ्टवेयर डेवलप करने के लिए पड़ी ताकि दोनों सूची का मिलान करने के बाद लाभार्थियों की सही और अंतिम सूची तैयार की जा सके।

बैंकों पर भी त्रुटिपूर्ण डाटाबेस जमा करने के आरोप हैं। मसलन, देश के सबसे बड़े सरकारी बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने 11 लाख किसानों के कर्ज का ब्योरा दिया। कर्जमाफी योजना को लागू करने के लिए जिम्मेदार ‌सहकारी विभाग के एक अधिकारी ने बताया, “इनमें से तीन लाख में त्रुटि थी। 11 हजार से ज्यादा किसानों का एक ही आधार नंबर था। कुछ मामलों में आधार नंबर तो ‌जीरो सहित सिंगल डिजिट में था।” साथ ही, अन्य बड़े बैंकों मसलन, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, एचडीएफसी, आइसीआइसीआइ, केनरा बैंक, सेंट्रल बैंक, बैंक ऑफ महाराष्ट्र, बैंक ऑफा बड़ाादा पर भी किसानों का त्रुटिपूर्ण डाटा मुहैया कराने के आरोप हैं।

जब चीजें हाथ से निकल गईं तो सरकार प्रक्रिया बदलने को मजबूर हो गई। इसके बाद किसानों के खाते के बजाय बैंकों को राशि ट्रांसफर करने का फैसला किया गया। एक अधिकारी ने बताया, “अब भुगतान का काम तेजी से हो रहा है।”

आधी-अधूरी सूची

हालांकि, चीजें अब भी उलझी हुई हैं। सरकार के पास अभी भी वर्गवार, जिलावार लाभार्थी किसानों की संख्या और उनके बैंक के ब्योरे नहीं हैं। यहां तक कि लाभार्थियों की सूची वेबसाइट पर भी नहीं है। इससे फडणवीस सरकार की महत्वाकांक्षी योजना के क्रियान्वयन को लेकर गंभीर सवाल खड़े होते हैं। इसी योजना के कारण ही उत्तर प्रदेश जैसे अन्य राज्य भी किसानों की नाराजगी कम करने के लिए कर्जमाफी की योजना लाने को मजबूर हुए। नागपुर में हालिया शीतकालीन सत्र के दौरान फडणवीस ने खामी की बात मानते हुए सदन में कहा, “योजना के क्रियान्वयन में हमने कुछ गलतियां की हैं। 43 लाख खातों की जांच पूरी हो चुकी है। अब कोई समस्या नहीं है। कर्जमाफी योजना तब तक चलेगी जब तक आखिरी लाभार्थी को इसका फायदा नहीं मिलता।”

विपक्ष ने बताया जुमला

महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने फडणवीस सरकार की कर्जमाफी योजना को “राजनीतिक जुमला” बताया। उन्होंने आरोप लगाया कि कर्जमाफी की कई शर्तें रखने की वजह से बड़ी संख्या में किसान प्रभावित हुए। उनका दावा है, “सरकार ने 89 लाख किसानों का कर्ज माफ करने की घोषणा की। लेकिन, अब यह संख्या 67 लाख के करीब हो गई है। सरकार ने इतनी ज्यादा शर्तें रखीं कि कई किसान इससे वंचित रह गए।”

चव्हाण ने आरोप लगाया, “बिजली, कंप्यूटर और इंटरनेट की सुलभता की स्थिति को देखते हुए किसानों से कर्ज माफी के लिए ऑनलाइन आवेदन के लिए कहना सरकार की निष्ठुरता थी। राहत में देरी के लिए ऐसा जानबूझकर किया गया, क्योंकि सरकार के पास जरूरत के मुताबिक फंड नहीं था।” चव्हाण ने बताया कि कांग्रेस-एनसीपी की सरकार ने भी 2008-09 में कर्ज माफ किया था, लेकिन उसके लिए कभी किसानों से आवेदन नहीं मांगे। भुगतान नहीं करने वाले किसानों की सूची बैंकों ने मुहैया कराई और उसी आधार पर कर्ज माफ किया गया। उन्होंने कहा, “सरकार ने कहा था कि आधार से जोड़ने पर योजना का लाभ गलत लोगों को मिलने पर रोक लगेगी। लेकिन, वास्तव में आधार की अनिवार्यता और जरूरत से ज्यादा जटिलता ने इस पूरी प्रक्रिया को ही पटरी से उतार दिया।” राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का आरोप है कि राज्य सरकार ने हकदारों का नाम हटाकर और फर्जी लाभार्थियों का नाम सूची में जोड़कर किसानों को अपमानित करने का काम किया।

कानूनी लड़ाई की तैयारी

चव्हाण ने आउटलुक को बताया कि इस मसले पर सरकार की अपारदर्शिता को लेकर कांग्रेस अदालत जाने पर विचार कर रही है। उन्होंने कहा, “मुख्यमंत्री का आरोप था कि यूनियन बैंक ने 5.4 लाख फर्जी नाम दिए थे। यदि यह सच है तो बैंक पर क्रिमिनल केस दर्ज कराना चाहिए था। लेकिन, ऐसा नहीं किया गया।” ज्यादातर गड़बड़ियों के लिए ऑनलाइन प्रक्रिया पर शक जताते हुए चव्हाण ने बताया, “यह गंभीर मसला है। मैंने फर्जी नामों के पीछे का सच जानने के लिए यूनियन बैंक ऑफ इंडिया को चिट्ठी लिखी थी। उनके जवाब का इंतजार है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया को अनयमितताओं की जांच को लेकर चिट्ठी लिखी, उसका भी जवाब नहीं मिला।” वे कहते हैं, “मुख्यमंत्री क्यों बैंकों और आइटी वेंडर को बचा रहे हैं? क्यों आइटी विभाग के प्रिंसिपल सेक्रेटरी (वी.के. गौतम) उस समय बर्खास्त किए गए जब कर्ज माफी की प्रक्रिया चल रही थी?” दिलचस्प यह है कि आइटी महकमा खुद मुख्यमंत्री के पास है।

सरकार की सफाई

सहकारिता मंत्री सुभाष देशमुख जिन्हें इस योजना के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी दी गई है बताते हैं, “50 लाख किसानों की ग्रीन लिस्ट अब तैयार है, जिसके लिए बैंकों को 23 हजार करोड़ रुपये दिए भी जा चुके हैं। अभी हम डाटाबेस में बेमेल आंकड़ांे की छंटनी का काम कर रहे हैं। फिलहाल तालुका स्तर पर सत्यापन की प्रक्रिया चल रही है।”

देशमुख का दावा है कि इस योजना के तहत लाभ पाने वाले किसानों की कुल संख्या 77 लाख है, न कि 89 लाख जैसा सरकार ने योजना की घोषणा करते वक्त अनुमान लगाया था। उन्होंने बताया कि आयकर का भुगतान करने वाले जनप्रतिनिधि, सरकारी कर्मचारी इसके दायरे में नहीं आते। साथ ही देशमुख यह भी साफ करते हैं कि ट्रैक्टर लेने के लिए किसानों द्वारा लिया गया कर्ज भी इसके दायरे में नहीं है। जिनका कर्ज 1.5 लाख रुपये से ज्यादा है उन्हें लंबित राशि का भुगतान करने के बाद ही इस योजना का लाभ मिल पाएगा।

इन सबके बीच महाराष्ट्र में किसानों की आत्महत्याएं जारी है। राज्य के छह डिवीजनल कमिश्नरेट के आंकड़े बताते हैं कि पिछले साल एक जनवरी से 31 अक्टूबर के बीच 2,414 किसानों ने खुदकुशी की। सबसे ज्यादा 907 ऐसी घटनाएं अमरावती डिवीजन में हुई, जिसके तहत विदर्भ के पांच जिले आते हैं। इसके बाद मराठवाड़ा के औरंगाबाद डिवीजन में 789 किसानों ने आत्महत्या की। राज्य के 36 जिलों में से 19 विदर्भ और मराठवाड़ा के तहत आते हैं। इन दो क्षेत्रों के ही गंभीर कृषि संकट ने कर्जमाफी योजना लाने के लिए सरकार को मजबूर किया।

लेकिन, मंत्रियों, कृषि क्षेत्र के विशेषज्ञों और एक्टिविस्ट्स का कहना है कि नौकरशाही और तकनीकी बाधाओं के कारण इस योजना का क्रियान्वयन प्रभावित हुआ है, जिससे संकट गहरा रहा है। नाम नहीं छापने की शर्त पर एक मंत्री ने माना कि कार्यान्वयन के लिए जिम्मेदार सरकारी महकमों ने “योजना को पटरी से उतार दिया”।

कृषि क्षेत्र के जानकारों का कहना है कि कर्जमाफी के बावजूद खेती-किसानी का संकट बना हुआ है, क्योंकि मुख्य चिंताओं मसलन, उपज का बेहतर लाभकारी मूल्य, समय पर कर्ज, आपदाओं और कीमतों में गिरावट से होने वाले नुकसान की भरपाई, चिकित्सा खर्च को पूरा करने के लिए सामाजिक और वित्तीय सुरक्षा का समाधान नहीं हो रहा है। इधर, कर्जमाफी योजना की सुस्त रफ्तार से किसानों की नाराजगी भी फिर से बढ़ने लगी है। संपूर्ण कर्जमाफी और उपज की उचित कीमत को लेकर किसान संगठन फिर से राज्य सरकार को आंदोलन की चेतावनी दे रहे हैं।

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