उस दस्तावेज को बजट कहते हैं। उसमें कर्जे से अभिशप्त किसानों के लिए कर्जमाफी है। नौकरी मांगते शिक्षित हाथों के लिए रोजगार का प्रावधान है। व्यापार के लिए कल्याण बोर्ड का प्रस्ताव है और ग्रामीण राजस्थान के लिए सड़कों का वादा भी है। राज्य में सत्तारूढ़ भाजपा को यकीन है कि यह बजट आठ माह बाद होने वाले विधानसभा चुनावों में पार्टी की जीत पुख्ता कर देगा। लेकिन, विपक्ष इन दावों को खारिज कर रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कहते हैं कि अब मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे आसमां से तारे भी तोड़ लाएं तो अवाम का मन बदलने वाला नहीं है।
राजस्थान की भाजपा सरकार का यह पांचवां बजट उस वक्त आया जब पिछले माह पार्टी को दो लोकसभा सीटों और एक विधानसभा सीट के लिए हुए उपचुनाव में करारी हार का मुंह देखना पड़ा। भाजपा सरकार ने इस बजट के जरिए हवा का रुख फिर से अपने हक में मोड़ने का प्रयास किया है। पर विपक्ष का कहना है कि बजट में की गई घोषणाएं पूरी होना नामुमकिन हैं। हालांकि, भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता और विधायक अभिषेक मटोरिया कहते हैं, “ये घोषणाएं सौ फीसदी पूरी होंगी। भाजपा की सत्ता में वापसी कोई नहीं रोक सकता।”
उधर, राज्य कांग्रेस प्रमुख सचिन पायलट का कहना है कि यह बजट उपचुनावों में भाजपा की पराजय का नतीजा है। सरकार खुद ही कह रही है कि इन घोषणाओं के पूरा होने की कोई गारंटी नहीं है। विपक्ष की इस आलोचना से अविचलित मुख्यमंत्री राजे शायराना अंदाज में कहती हैं, “मैं किसी से बेहतर करूं तो क्या फर्क पड़ता है, मैं किसी के लिए बेहतर करूं तो फर्क पड़ता है। हम न रुकेंगे न थकेंगे।” मगर सरकार की दिक्कत यह है कि सफर लंबा है और वक्त कम बचा है। हाल की शिकस्त से पार्टी कार्यकर्ता निराश हैं।
राज्य में किसानों के लिए कर्जमाफी बड़ा मुद्दा है। सरकार ने इस बजट में किसानों के 50 हजार रुपये तक के कर्ज को माफ करने का ऐलान किया है। ऐसा पिछले साल हुए किसान आंदोलन के दबाव में करना पड़ा। मगर बजट में कर्जमाफी की घोषणा से किसान खुश नहीं हुए। माकपा की अखिल भारतीय किसान सभा के अध्यक्ष अमराराम से जब बात हुई, वे किसानों के जत्थे के साथ पैदल जयपुर की ओर कूच कर रहे थे। उनका 22 फरवरी को जयपुर में बड़े जमावड़े का कार्यक्रम है। अमराराम कहते हैं, “सरकार ने वादाखिलाफी की है। इस कर्जमाफी में सिर्फ लघु और सीमांत किसानों को शामिल किया गया है। हमारी मांग है कि इसमें सभी किसानों को शामिल किया जाए। वरना इस कर्जमाफी का कोई मतलब नहीं रह जाएगा।” कर्जमाफी को लेकर कांग्रेस का भी यही रुख है।
निर्दलीय विधायक और पूर्व वित्त मंत्री माणिक चंद सुराणा कहते हैं, “इस बजट से भाजपा को कुछ तो लाभ होगा। पहले भाजपा कुछ भी कहने लायक नहीं थी। अब वह कुछ गिना सकती है।” मगर वित्तीय प्रबंधन कमजोर है। भाजपा ने इस बजट के जरिए पार्टी के आंतरिक समीकरणों को भी ठीक करने का यत्न किया है। पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत भैरों सिंह शेखावत और सुंदर सिंह भंडारी जैसे नेताओं के नाम से कुछ योजनाओं की शुरुआत का प्रस्ताव है। हालांकि, शेखावत ने कभी जाति की राजनीति नहीं की। मगर हाल में पद्मावत फिल्म और कई दूसरी वजहों से राजपूत समाज भाजपा से नाराज हो गया था। भाजपा ने बजट के जरिए अपने पारंपरिक वोट बैंक को साधने की कोशिश की है। पर कई राजपूत नेता कहते हैं कि सरकार ने बहुत देर कर दी। क्योंकि राजपूत समाज पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह का बाड़मेर से टिकट काटने और पूर्व उपराष्ट्रपति शेखावत के परिवार को सरकारी मकान खाली कराने के नोटिस के दर्द को भूल नहीं पा रहा है।
राज्य में कर्मचारी वर्ग एक बड़ा और संगठित वोट बैंक है जो सरकारी संस्थानों में निजीकरण के बढ़ावे को लेकर काफी नाराज है। कर्मचारी संगठनों ने बजट को निराशाजनक बताया है। लेकिन आंगनबाड़ी कार्यकर्ता मानदेय में बढ़ोतरी से खुश हैं। अंततः बजट दस्तावेजों में दर्ज राहत और विकास की बातें कितनी प्रभावी होंगी, इसका खुलासा तो इस साल दिसंबर माह में ही होगा। क्योंकि तब मतदाता राज्य में अपने लिए नई सरकार चुनने घरों से निकलेगा।