हर चार साल पर होने वाले ओलंपिक खेलों से पहले मेडल को लेकर हमारी उम्मीदें भी चार गुना बढ़ जाती हैं। हालांकि, ज्यादातर निराशा ही हाथ लगती है। ओलंपिक के 100 से अधिक साल के इतिहास में भारत अभी तक नौ गोल्ड के साथ सिर्फ 28 पदक ही जीत पाया है, जबकि हमसे काफी बाद में ओलंपिक में भागीदारी करने वाला चीन काफी आगे निकल चुका है। उसने 2008 का ओलंपिक आयोजित किया और उस साल 100 मेडल भी जीते। वहीं, भारत के खाते में 2008 में सिर्फ तीन मेडल आए। 2012 के लंदन ओलंपिक में भारत ने अभी तक के इतिहास में सबसे ज्यादा छह मेडल जीते, लेकिन चीन ने 91 मेडल जीते थे। 2016 के रियो ओलंपिक में भारत का प्रदर्शन दो मेडल तक सिमट गया।
विश्व स्तर पर इस तरह का शर्मनाक प्रदर्शन हमारे लिए एक टीस की तरह है। दरअसल, देश में खेल संस्कृति की कमी की वजह से हमारा ध्यान इस तरफ नहीं जाता। अब ‘खेलो इंडिया’ प्रोग्राम लगता है इसके समाधान के रूप में सामने आया है। इसके तहत देश में खेले जाने वाले सभी खेलों के लिए एक मजबूत ढांचा तैयार किया जाना है। ओलंपियन बॉक्सर अखिल कुमार कहते हैं, “यह एक बेहतरीन पहल है, क्योंकि इससे खेलों को लेकर जागरूकता बढ़ेगी। यह ज्यादा जरूरी है, क्योंकि आज आप राजधानी दिल्ली या किसी दूसरी जगह के लोगों से पूछ लें कि कॉमनवेल्थ गेम्स कब होने वाले हैं, तो आपको पता नहीं लगेगा। इसलिए जागरूकता के लिहाज से यह एक सही कदम है।” पहली बार खेलो इंडिया स्कूल गेम्स जैसा कोई इवेंट हुआ है, जिसमें खेल मंत्रालय, स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (साई) और स्कूल गेम्स फेडरेशन ने एक साथ काम किया। “मैं यह नहीं कह रहा कि सब कुछ बड़ी आसानी से हो जाएगा। हम सोचते तो हैं कि खेलों में मेडल कम आ रहे हैं, लेकिन उसके लिए ठोस कदम न के बराबर उठाए गए। दरअसल, देश में जागरूकता ही नहीं है और मुझे लगता है कि खेलो इंडिया प्रोग्राम से खेलों के प्रति बच्चों और खासकर उनके पैरेंट्स की जागरूकता बढ़ेगी।”
हालांकि, पदकों की संख्या बढ़ाने के लिहाज से एक सवाल उठता है कि ‘खेलो इंडिया’ के लिए दिए गए फंड कितने पर्याप्त हैं। अगर चीन की बात करें तो 2008 में बीजिंग ओलंपिक के दौरान उसने सिर्फ अपने खिलाड़ियों पर ही 58.6 करोड़ डॉलर (करीब 37.81 अरब रुपये) खर्च किए थे। जबकि हमारे बजट में ‘खेलो इंडिया’ के लिए कुल 520.09 करोड़ रुपये की ही राशि आवंटित की गई है। वहीं, ब्रिटेन आमतौर पर स्पोर्ट्स इंफ्रास्ट्रक्चर और ट्रेनिंग पर 1.5 अरब डॉलर यानी लगभग नौ हजार करोड़ रुपये खर्च करता है। उसकी तुलना में भारतीय युवा मामले एवं खेल मंत्रालय का बजट एक तिहाई (2196.35 करोड़ रुपये) से भी कम है। ‘खेलो इंडिया’ में हाइपावर कमेटी में शामिल एक सदस्य ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि ओलंपिक की तैयारी के लिहाज से यह फंड पर्याप्त नहीं कहा जा सकता।
2016 में रियो ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने वाली महिला रेसलर साक्षी मलिक भी मानती हैं कि ‘खेलो इंडिया’ से बहुत फायदा होने वाला है। इससे एक बहुत अच्छा होम ग्राउंड मिल रहा है। खिलाड़ियों को कॉम्पिटिशन का माहौल मिल रहा है। उन्हें अच्छे स्तर पर प्रतियोगिता खेलने को मिल रही है, जो पहले हमें सिर्फ इंटरनेशनल लेवल पर ही मिलती थी। लेकिन इस पहल से एथलीट अधिक प्रेरित होंगे और आने वाले समय में वे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व करने के बारे में सोचेंगे। वे आगे कहती हैं कि हमारे समय में अगर इतना अच्छा माहौल मिलता तो हम और अच्छा करके दिखाते। अब अगर इस दिशा में ‘खेलो इंडिया’ जैसी पहल की गई है तो इससे पहले की तुलना में हमारे खेलों में और अधिक सुधार आने की अधिक संभावना है।
चुनौतियां भी कम नहीं
हालांकि, इसके सामने चुनौतियां भी कम नहीं हैं, क्योंकि ‘खेलो इंडिया’ के कुछ कॉन्सेप्ट को लेकर अभी स्थिति तय नहीं है। जैसे, स्कॉलरशिप। इसके तहत खिलाड़ियों को आठ साल तक पांच लाख रुपये की स्कॉलरशिप देने की योजना है। अगर पहले साल अच्छे प्रदर्शन के बाद खिलाड़ी आगे अच्छा नहीं करते हैं तो फिर ऐसी स्थिति में यह स्कीम फ्लॉप ही मानी जाएगी। इस पर अखिल कुमार का कहना है कि हमारे यहां खिलाड़ियों का रोना रहता है कि हमें मदद नहीं मिलती। मेरा मानना है कि खिलाड़ी परफॉर्म तो करें, फिर उसे मदद भी मिलती है। ऐसा नहीं कि आप कुछ करो भी नहीं और मदद लेते रहो। अखिल कुमार को लगता है कि ‘खेलो इंडिया’ में भी जो स्कॉलरशिप है, उसमें रिव्यू सिस्टम हो, ताकि जरूरतमंद और सही एथलीट को मदद मिले।
इन सबके बावजूद ओलंपिक पदक विजेता रेसलर सुशील कुमार के लंबे समय तक कोच रहे यशवीर सिंह कहते हैं कि हमारे यहां एक रिवाज है कि जो खिलाड़ी बड़ा या सेलिब्रेटी बन जाता है, हम उस पर तो बहुत खर्च करते हैं, लेकिन शुरुआती स्तर पर जो बच्चे हैं, उन पर ध्यान नहीं देते हैं। हमारी नर्सरी वही है, अगर हम नर्सरी पर ध्यान नहीं देंगे तो खिलाड़ी कैसे निकल कर सामने आएंगे। यशवीर सिंह कहते हैं कि अभी तक हम बड़े खिलाड़ियों पर ज्यादा ध्यान देकर ही मेडल जीतते आए हैं।
‘खेलो इंडिया’ प्रोग्राम के तहत आयोजित पहले स्कूल गेम्स में अंडर-17 खिलाड़ियों ने 16 खेलों में भागीदारी की। इन खेलों में तीरंदाजी, एथलेटिक्स, बैडमिंटन, बास्केटबॉल, बॉक्सिंग, फुटबॉल, जिम्नास्टिक्स, हॉकी, जूडो, खो-खो, कबड्डी, शूटिंग, स्वीमिंग, वॉलीबॉल, वेटलिफ्टिंग और कुश्ती शामिल थे। शुरुआती स्तर पर इन पर ही ध्यान देने की बात कही गई है। वह कहते हैं कि जब तक नर्सरी स्तर पर उन्हें हम ट्रेनिंग नहीं देते और अंतरराष्ट्रीय सुविधा मुहैया नहीं कराते, तब तक देश में खेल संस्कृति नहीं पैदा कर सकते हैं। इसके बिना हम कॉमनवेल्थ या ओलंपिक में मेडल का जो लक्ष्य लेकर चलते हैं, उसे हासिल नहीं कर पाएंगे। हमें दूसरे बच्चों पर भी ध्यान देने की जरूरत है। जैसे अव्वल खिलाड़ी को पांच लाख रुपये तक स्कॉलरशिप दी जा रही है, लेकिन जो सेकेंड और थर्ड आ रहे हैं, उनका भी ध्यान रखा जाना चाहिए। उनकी कंबांइड ट्रेनिंग होनी चाहिए, बाकी जगह ट्रेनिंग सेंटर की तरह कोच और अन्य आधुनिक सुविधाएं कम ही होती हैं। ट्रेनिंग के नए मेथड्स, उपकरण, तकनीक आदि खिलाड़ियों को ट्रेनिंग सेंटर में ही मिल सकते हैं।
विवादों से कितनी मिलेगी सफलता
‘खेलो इंडिया’ के तहत हुआ पहला स्कूल गेम्स भी विवादों से अछूता नहीं रहा। दरअसल, बैडमिंटन में वाइल्ड कार्ड एंट्री से जगह पाने वाले ज्यादा खिलाड़ी पूर्वोत्तर राज्यों से थे। कुछ मामलों में खिलाड़ियों की उम्र अधिक होने की भी बात सामने आई। इस पर बॉक्सर अखिल कुमार कहते हैं कि मैं चीजों की राजनीति पर कुछ नहीं कहूंगा। मैं सिर्फ खेलों की भलाई पर बात करूंगा। अगर गलत होगा तो भी बोलूंगा और सही होगा तब भी।
सुशील कुमार के कोच रहे यशवीर सिंह भी स्कूल गेम्स में कुश्ती में हुई कुछ खामियों की तरफ इशारा करते हैं। वह बताते हैं कि खेल मंत्रालय ने कहा था कि अंडर-17 के बच्चे ही इस प्रतियोगिता में भाग लेंगे। लेकिन इसमें आठ बच्चे फाइनल ईयर वाले थे। ऐसे में साल बदलने के साथ ही उनकी वेट कैटेगरी बदल चुकी थी। इसे वह कुछ इस तरह समझाते हैं कि अब जो बच्चा पिछले साल 50 किलोग्राम वर्ग में कुश्ती लड़ा था। एक साल बाद उसी वर्ग में नहीं रहेगा। इससे क्या हुआ कि एक कैटेगरी में 10-15 तो एक में आठ से नौ और एक में चार से पांच बच्चे ही रह गए। ऐसे में ‘खेलो इंडिया’ का जो हमारा मकसद है, वह पूरा नहीं होगा। वैसे, अभी यह एक शुरुआत है। अंतरराष्ट्रीय खेल मंच पर पदकों के लिहाज से यह कितना सफल हो पाता है, इसके लिए हमें 2020 ओलंपिक का इंतजार करना पड़ेगा।
‘खेलो इंडिया’ आखिर कैसे बदलेगी सूरत
यह खेल मंत्रालय की एक योजना है, जिसे अक्टूबर 2017 में मंजूरी मिली। इस योजना का मकसद खेल और प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को बढ़ावा देना है। इसके तहत सरकार खिलाड़ियों को प्रशिक्षण देने के साथ-साथ बुनियादी ढांचों के विकास पर भी काम करेगी, ताकि खेल की स्थिति और स्तर में सुधार किया जा सके। इसके तहत सरकार ने 2017-20 तक ‘खेलो इंडिया’ प्रोग्राम पर 1756 करोड़ रुपये खर्च करने की योजना बनाई है।
‘खेलो इंडिया’ प्रोग्राम के तहत हर साल चुनिंदा खेलों से 1000 प्रतिभावान खिलाड़ियों को चुना जाना है। इसमें अखिल भारत स्तरीय स्पोर्ट्स छात्रवृति योजना को भी शामिल किया गया है। इसके तहत खिलाड़ियों को पांच लाख रुपये की छात्रवृत्ति दी जाएगी। यह छात्रवृत्ति उन्हें आठ साल तक मिलती रहेगी, ताकि युवा एथलीटों को हर संभव सुविधा और प्रशिक्षण मुहैया कराई जा सके। खेल मंत्रालय की योजना पूरे देश में 150 स्कूल और 20 यूनिवर्सिटीज को गोद लेने की भी है, ताकि उन्हें स्पोर्टिंग हब के तौर पर तैयार किया जा सके।
इसका सबसे बड़ा लक्ष्य 10 से 18 साल की उम्र के लगभग 20 करोड़ बच्चों के लिए खेल का अवसर मुहैया कराना है। इसी के तहत हाल में खेलो इंडिया स्कूल गेम्स कराए गए, जिसमें हरियाणा नंबर वन बनकर सामने आया। अब यूनिवर्सिटी स्तर पर गेम्स आयोजित कराने की योजना है, ताकि टैलेंट की पहचान कर उसे तराशा और निखारा जा सके।
टैलेंटेड खिलाड़ियों को पहचानने और उन्हें तराशने के लिए टैलेंट आइडेंटिफाइंग कमेटी का गठन किया गया। इसमें अर्जुन अवॉर्ड और द्रोणाचार्य अवॉर्ड से सम्मानित कोच शामिल होंगे। कोचिंग के संदर्भ में यशवीर सिंह कहते हैं कि हर देश का कोचिंग का अपना-अपना तरीका होता है। उनकी अपनी पारंपरिक ट्रेनिंग स्किल होती है। विदेशी कोच के मुद्दे पर वह कहते हैं कि मैं 13-14 साल सीनियर टीम के साथ रहा हूं। हमारे साथ जॉर्जियन कोच भी रहे हैं। उनका प्रदर्शन शानदार था, लेकिन वहीं, हम विदेशी कोचों को 13-14 साल के जूनियर खिलाड़ियों पर लगाते तो वे ज्यादा तरक्की करते।
वहीं, फंड के लिहाज से वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बजट में 2018-19 के लिए 2196.35 करोड़ रुपये खेल मंत्रालय को दिए। यह पिछली बार की तुलना में 258.19 करोड़ रुपये अधिक है। इस आवंटन में सबसे अधिक फंड ‘खेलो इंडिया’ प्रोग्राम को ही दिया गया है। पिछले बजट में इसके लिए 320 करोड़ रुपये आवंटित थे, जबकि इस साल इस महत्वाकांक्षी योजना को 520.09 करोड़ रुपये दिए गए हैं। खेल बजट में यह बढ़ोतरी ऐसे समय में की गई, जब भारतीय एथलीट इस साल होने वाले कॉमनवेल्थ गेम्स और एशियाई खेलों के लिए तैयारी में लगे हैं।