परंपरागत तौर पर कर्नाटक में क्षेत्रीय संगठनों और फिल्मी सितारों का कभी वर्चस्व नहीं रहा है। लेकिन तब उपेंद्र नहीं थे, जो 1990 के दशक में कन्नड़ फिल्म में आगमन के बाद से ‘विद्रोही’ तेवर के कारण जाने जाते हैं। अब यह 49 वर्षीय निर्देशक-अभिनेता भी बदलाव की पटकथा लिखना चाहता है।
उपेंद्र ने आउटलुक को बताया कि वे राजनीति में लंबी भागीदारी के लिए आए हैं क्योंकि वे केवल शिकायत करते रहना नहीं चाहते। कहा, “यदि आप बदलाव चाहते हैं तो आपको इसका हिस्सा बनना होगा।” बीते साल अक्टूबर में उपेंद्र ने कर्नाटक प्रज्ञानयावंता जनता पार्टी (केपीजेपी) का गठन किया था। ऑटोरिक्शा उनका चुनाव चिह्न है। इस मौके पर उन्होंने ऑटो चालक की वर्दी जैसी खाकी कमीज पहन रखी थी। इतना ही नहीं कवरेज के लिए आए पत्रकारों को मुख्य अतिथि के तौर पर मंच पर बिठाया गया जबकि उपेंद्र और उनके समर्थक जमीन पर बैठे थे। लेकिन केपीजेपी जिसके विधानसभा की सभी 224 सीटों पर लड़ने की उम्मीद है, अब तक परिदृश्य में नजर नहीं आ रही है।
वहीं, फरवरी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कर्नाटक में तीन रैलियों को संबोधित किया और कांग्रेस सत्ता वाले राज्य में भाजपा के हमलों को धार दी। राहुल गांधी ने राज्य के उत्तरी इलाकों का दूसरी बार दौरा किया और वे लगातार नीरव मोदी और बैंकिंग धोखाधड़ी को लेकर केंद्र पर निशाना साध रहे हैं। तीसरी ताकत पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवेगौड़ा की जनता दल सेक्यूलर है, जिसने हाल में बेंगलूरू में एक बड़ा सम्मेलन कर मायावती की बसपा के साथ गठबंधन किया है।
उपेंद्र कहते हैं, “हमारा लोकतंत्र एक दिन का है। जनता अपने अधिकार का पांच साल में केवल एक बार इस्तेमाल करती है। मैं उन्हें साल के 365 दिन अधिकार देना चाहता हूं। यह राजाओं जैसी व्यवस्था दूर होनी चाहिए। सभी लोगों को इसी तरह की सोच के साथ राजनीति में आना चाहिए।” हालांकि बीते वर्षों में कई कन्नड़ अभिनेता राष्ट्रीय दलों के लिए चुनाव जीत चुके हैं। मसलन, एम.एच. अंबरीश, मुख्यमंत्री चंद्रू, अनंत नाग, कुमार बंगरप्पा, उमाश्री (सिद्धरमैया कैबिनेट की मंत्री) और रमैया जो कांग्रेस की सोशल मीडिया टीम का नेतृत्व करती हैं। लेकिन, ये बड़े दलों को चुनौती देने में नाकामयाब रहे हैं और काफी कम समय तक ही इनका प्रभाव रहा है। राजनीतिक जानकार नरेंद्र पाणि कहते हैं, “एक बार अभिनेता राजकुमार ने कोशिश की थी, लेकिन वे उस तरह का प्रभाव नहीं पैदा कर सके जैसा आंध्र में उसी समय और इसी तरह के हालात में एनटीआर ने कर दिखाया था। तमिलनाडु में फिल्मी सितारों का जितना बड़ा प्रशंसक समूह है वैसा कर्नाटक में नहीं दिखता।”
उपेंद्र जिन्हें प्रशंसक ‘उप्पी’ कहते हैं, ने कन्नड़ सिनेमा में अपनी पहचान धारदार संवादों और अपरंपरागत तरीके से बनाई है। मसलन, 1995 में आई हिट फिल्म ओम में उन्होंने बेंगलूरू के कुछ डॉन को कास्ट किया था। बाद में वे निर्देशक से इंडस्ट्री के सबसे ज्यादा पैसा पाने वाले अभिनेताओं में शुमार हो गए। पिछले साल उन्होंने एक साक्षात्कार के दौरान कहा था कि अपनी कई फिल्मों से उन्होंने राजनीतिक संदेश देने की कोशिश की और वे हमेशा से एक राजनीतिक दल का गठन करना चाहते थे। कन्नड़ फिल्म के प्रशंसकों की आदत स्क्रीन की छवि के अनुसार सितारों को नाम देने की रही है। मसलन, अंबरीश अपने जमाने में ‘रिबेल स्टार’ कहलाते थे। राजकुमार के सबसे छोटे बेटे पुनीत राजकुमार ‘पावर स्टार’ और उपेंद्र ‘रिअल स्टार’ कहलाते हैं। तो, क्या वे राजनीति के रिअल स्टार बन पाएंगे?