Advertisement

कर्जमाफी से नहीं छंटी किसान नाराजगी

वादाखिलाफी का आरोप, सरकार की कर्जमाफी को बताया नाकाफी
सड़कों पर किसानः किसानों के जयपुर पहुंचने के बाद तुरंत बचाव मुद्रा में आ गई सरकार

राजस्‍थान में कर्जमाफी को लेकर किसान फिर सड़कों पर उतरे। हालांकि, इस बार आंदोलन की मियाद छोटी रही। पर यह राज्य की भाजपा सरकार और किसानों के बीच रिश्तों में दरार को गहरा कर गया। किसान नेताओं ने सरकार को दो माह का वक्त दिया है। इस दौरान गांव-गांव मंत्री और सत्तारूढ़ नेताओं का विरोध किया जाएगा। किसान  नेताओं का कहना है कि सरकार ने वादाखिलाफी की है। लेकिन भाजपा सरकार कहती है कि कुछ लोग किसानों के नाम पर सियासत करना चाहते हैं। किसान कर्जमाफी के साथ स्वामीनाथन रिपोर्ट लागू करने और कुछ अन्य मुद्दों को लेकर पिछले साल शेखावटी क्षेत्र में 11 दिनों तक सड़कों पर जमे रहे और गांव तब तक नहीं लौटे, जब तक कि सरकार ने उनसे मांगों पर सुलह नहीं कर ली। लेकिन इस बार किसान आंदोलन 40 घंटों में निपट गया, क्योंकि जैसे ही किसानों ने अलग-अलग मार्गों से जयपुर का रुख किया, पुलिस ने माकपा नीत किसान सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमराराम समेत 169 नेताओं को गिरफ्तार कर लिया। पूर्व विधायक अमराराम ही इस आंदोलन की अगुआई कर रहे थे, लेकिन जब सरकार को लगा कि किसानों में रोष फैल रहा है तो उन्हें रिहा कर दिया गया। जेल से छूटे किसान नेताओं ने मंत्रियों और भाजपा नेताओं को गावों में न घुसने देने का ऐलान किया है।

राज्य में किसान सभा के संयुक्त सचिव डॉ. संजय माधव कहते हैं, “हमारा तजुर्बा कहता है कि आंदोलन दो बार करना पड़ता है। एक बार मांगें मंजूर करवाने के लिए और दूसरी बार समझौते को लागू करवाने के लिए।” हाल में तीन सीटों के उपचुनाव में करारी हार का दंश झेल रही भाजपा सरकार ने सालाना बजट में किसानों के 50 हजार रुपये तक के कर्ज माफ करने का ऐलान कर दिया। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को लगा कि इससे किसान आंदोलन की धार कुंद हो जाएगी। लेकिन बजट घोषणा के साथ ही किसान सभा ने किसानों से जयपुर पहुंचने और वहां बेमियादी पड़ाव डालने का आह्वान कर दिया। किसान सभा के अध्यक्ष अमराराम कहते हैं, “सरकार ने हमारे साथ धोखा किया है। इस कर्जमाफी में सिर्फ छोटे और सीमांत किसानों को ही शामिल किया गया है। हम चुप नहीं बैठेंगे।”

सरकार के लिए यह राहत की बात है कि इस आंदोलन में मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस शामिल नहीं है। लेकिन इसके साथ चिंता भी है, क्योंकि मुख्यतः यह आंदोलन उस माकपा के नेतृत्व में चलाया जा रहा है, जिसका विधानसभा में एक भी सदस्य नहीं है। भाजपा को चिंता है कि क्या यह किसानों में कम्युनिस्टों के बढ़ते प्रभाव का परिणाम है? कांग्रेस ने भी कर्जमाफी को लेकर किसानों की मांगों का समर्थन किया है। कांग्रेस के मुख्य सचेतक गोविंद डोटासरा कहते हैं, “सरकार की घोषणा ऊंट के मुंह में जीरा है। भाजपा ने सुराज संकल्प यात्रा में जो वादे किए थे, सत्ता में आने के बाद वह उन सभी बातों को भूल गई।”

राज्य भाजपा के प्रवक्ता और विधायक अभिषेक मटोरिया कहते हैं कि किसानों से वादाखिलाफी की बात गलत है। भाजपा ने कोई वादाखिलाफी नहीं की है। कर्जमाफी पर बाकी बचे मुद्दों पर विचार के लिए एक कमेटी बना दी गई है। कमेटी की राय आएगी। फिर बातचीत के दरवाजे खुले हैं।

रिहाई के बाद किसान नेता अमराराम ने आउटलुक से बातचीत में कहा कि शेखावटी के किसान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस संबंध में ज्ञापन देंगे और सरकार की वादाखिलाफी के बारे में बताएंगे। पूर्व विधायक अमराराम कहते हैं कि एक मई को राज्यभर में किसान आंदोलन करेंगे। किसान सभा के साथ माकपा और समाजवादी विचारों से जुड़े किसान संगठन भी आंदोलन में लगे हुए हैं। उधर, आनन-फानन में आंदोलन को वापस लेने और बाद में इसे तेज करने पर कुछ किसानों में नाराजगी है। एक किसान ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि नेताओं ने ठीक से तैयारी नहीं की और किसानों को सड़कों पर ले आए। जैसे ही अमराराम गिरफ्तार हुए, आंदोलन नेतृत्वविहीन हो गया। लेकिन इतने से भाजपा सरकार का संकट टलता नहीं दिखता।

Advertisement
Advertisement
Advertisement