कोई व्यक्ति आत्महत्या करने के बारे में क्यों सोचता है? नए अध्ययनों से पता चलता है कि आत्महत्या करने वाले व्यक्ति के मस्तिष्क में होने वाले स्नायुवैज्ञानिक परिवर्तन अन्य मस्तिष्कों की तुलना में एकदम अलग होते हैं और ये परिवर्तन जीवनकाल में धीरे-धीरे विकसित होते हैं। शोधकर्ताओं का मानना है कि डिप्रेशन और आत्मघाती आचरण का संबंध मस्तिष्क में सेरोटोनिन रसायन के घटे हुए स्तर से है। जिन लोगों ने आत्महत्या करने की चेष्टा की है उनके मस्तिष्क के द्रव्य में 5-एचआइए (5-हाइड्रोक्सीइंडोलेसेटिक एसिड) नामक रसायन का कम स्तर देखा गया है। यह रसायन दरअसल सेरोटोनिन से ही संबंधित है। आत्महत्या करने वाले व्यक्तियों के पोस्टमार्टम अध्य्यन के दौरान मस्तिष्क के कुछ हिस्सों की जांच करने पर भी इस रसायन के स्तर में गिरावट दर्ज की गई है। सेरोटोनिन हमारे मस्तिष्क में एक अत्यंत महत्वपूर्ण रसायन है जो मस्तिष्क के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में संदेशों को संप्रेषित करने में मदद करता है। हालांकि, सेरोटोनिन का निर्माण मस्तिष्क में होता है, लेकिन हमारी सेरोटोनिन आपूर्ति का 90 प्रतिशत आंतों और ब्लड प्लेटलेट्स में पाया जाता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि मस्तिष्क में सेरोटोनिन कोशिकाओं के व्यापक वितरण के कारण यह शरीर के विविध मनोवैज्ञानिक और शारीरिक कार्यों को प्रभावित करता है। करीब चार करोड़ मस्तिष्क कोशिकाओं में अधिकांश कोशिकाएं सेरोनोटिन से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रभावित होती हैं। इनमें वे मस्तिष्क कोशिकाएं शामिल हैं जिनका संबंध मूड, खुराक, निद्रा, स्मृति और ज्ञान-अर्जन, तापमान नियंत्रण, यौन इच्छा और कुछ सामाजिक आचरण से है।
आत्मघाती व्यवहार के पीछे काम करने वाले जीव विज्ञान को समझने का एक मुख्य उद्देश्य इस तरह की प्रवृत्तियों के उपचार को बेहतर बनाना है। वैज्ञानिक यह जान चुके हैं कि बड़े डिप्रेशन और आत्मघाती आचरण से पीड़ित व्यक्तियों के मस्तिष्क में सेरोटोनिन रिसेप्टर अपनी गतिविधि बढ़ा देते हैं। यही वजह है कि इन रिसेप्टर को नियंत्रित करने के लिए दी जानी वाली दवाएं डिप्रेशन के इलाज में प्रभावी पाई गई हैं। इन दवाओं में एसएसआरआइ (सेलेक्टिव सेरोटोनिन रिअपटेक इन्हिबिटर) नामक दवा विशेष रूप से उल्लेखनीय है। कुछ समय पहले कनाडा स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्टर्न ओंटारियो के रोबार्ट्स रिसर्च इंस्टीट्यूट के स्नायुवैज्ञानिक माइकेल पोल्टर और उनके सहयोगियों ने आत्महत्या के कारणों का पता लगाने के लिए एक गहन अध्ययन किया था। इन शोधकर्ताओं का मानना है कि आत्महत्या की ओर बढ़ने वाले लोगों में डिप्रेशन ही एक बड़ा कारण होता है। इन शोधकर्ताओं ने पता लगाया कि डिप्रेशन से पीड़ित जो लोग आत्महत्या करते हैं उनके मस्तिष्क में जीएबीए (गामा एमिनोब्यूट्रिक एसिड) रसायन के रिसेप्टरों का वितरण असामान्य होता है। जीएबीए एक रासायनिक संदेशवाहक या न्यूरोट्रांसमीटर है जो मस्तिष्क में बहुतायत में पाया जाता है। यह रसायन स्नायु गतिविधि को नियंत्रित करता है। अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ के अनुसार, आत्महत्या करने वाले 90 प्रतिशत से अधिक लोग डिप्रेशन या किसी अन्य मनोविकार या किसी अन्य मानसिक समस्या के साथ नशीली चीजों के सेवन के शिकार होते हैं। रिसर्च से यह भी पता चलता है कि डिप्रेशन की बीमारी परिवारों में वंशानुगत होती है। प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज नामक पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पता लगाया कि 131 लोगों के नमूने में डिप्रेशन से पीड़ित लोगों की जैविक संतानों में मस्तिष्क की संरचनाओं में फर्क था। इनमें से कुछ लोगों पर 25 वर्षों से अधिक समय तक नजर रखी गई थी।
अध्ययन में पता चला कि जिन लोगों में डिप्रेशन होने का रिस्क बहुत ज्यादा था जिनके मष्तिष्क का दायां कॉर्टेक्स (मस्तिष्क की सबसे बाहरी सतह) 28 प्रतिशत पतला हो गया था। जिन लोगों के बाएं कॉर्टेक्स में पतला होने की अतिरिक्त विसंगति देखी गई उनमें डिप्रेशन या एंग्जाइटी होने की संभावना सबसे ज्यादा थी। अमेरिका में कोलंबिया यूनिवर्सिटी ऑफ मेडिकल सेंटर के मनोवैज्ञानिक डॉ. ब्रेडली पीटरसन ने कहा कि आंकड़ों से पता चलता है कि इन लोगों के मानसिक समस्याओं से ग्रस्त होने के पहले ही उनमें मस्तिष्क की सतह का पतलापन मौजूद था। डॉ. पीटरसन के अनुसार इस अध्ययन से डिप्रेशन से पीड़ित लोगों का बेहतर इलाज खोजने में मदद मिलेगी। भविष्य में उच्च डिप्रेशन के रिस्क को दर्शाने वाली मस्तिष्क की विसंगतियों का पता लगाने के लिए सही समय पर लोगों की स्क्रीनिंग की जा सकेगी और इसके आधार पर उनका उपचार किया जा सकेगा। डॉ. पीटरसन ने कहा कि रिसर्च से पता चलता है कि डिप्रेशन और आत्महत्या के मूल कारक आनुवंशिकी और परिवेश के मिश्रण हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ पीट्सबर्ग मेडिकल सेंटर के मनोवैज्ञानिक डॉ. डेविड ब्रेंट का कहना है कि आत्महत्या को रोकने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि हम इससे जुड़े मनोविकार का उपचार करें।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और विज्ञान पर लिखते हैं)