भारतीय खेलों के लिहाज से तीरंदाजी उन चुनिंदा खेलों में है, जिनमें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतने की संभावना पिछले कुछ साल में बढ़ी है। लेकिन, करीब पांच साल से भारतीय तीरंदाजी संघ (एएआइ) भंग होने के कारण इसका हाल बेहाल है। संघ के 45 साल के इतिहास में भाजपा नेता विजय कुमार मल्होत्रा 40 साल तक इसके अध्यक्ष रहे। उन्होंने उस वक्त पद छोड़ा, जब खेल मंत्रालय ने 17 दिसंबर 2012 में भारतीय तीरंदाजी संघ की मान्यता रद्द कर दी। मान्यता रद्द होने के कारण स्टेट और नेशनल स्तर पर टूर्नामेंट का आयोजन नहीं हो पा रहा है। प्रतियोगिताओं की कमी की वजह से खिलाड़ियों की ट्रेनिंग प्रभावित हो रही है और तीरंदाजी में नए खिलाड़ी सामने नहीं आ रहे हैं। भारतीय तीरंदाजी संघ के असिस्टेंट आर्चरी कोच विकास शास्त्री बताते हैं कि हमें टूर्नामेंट का शेड्यूल नहीं मिल रहा है। इस शेड्यूल के आधार पर ही हम खिलाड़ियों के लिए कोचिंग की तैयारी करते हैं। इससे कोच, खिलाड़ी के लिए बहुत परेशानी हो रही है। जब तक कमेटी का गठन नहीं होता, तब तक टूर्नामेंट ऑर्गनाइज नहीं होंगे, क्योंकि इन्हें आयोजित कौन करेगा और किस आधार पर खिलाड़ियों का चयन होगा। वह आगे बताते हैं कि अगर हमें टूर्नामेंट का पता चल जाता है तो खिलाड़ियों के लिए ट्रेनिंग शेड्यूल बनाने में आसानी होती है। खिलाड़ियों का रिजल्ट शेड्यूल पर ही आधारित रहता है। जैसे, इस सीजन/सेशन के कोई टूर्नामेंट नहीं हुए यानी 2017 या 2018 की बात करें तो जूनियर हो या सब-जूनियर या सीनियर किसी तरह की प्रतियोगिता ही अभी तक नहीं हुई है। 2016 में भी घरेलू प्रतियोगिता का कैलेंडर पूरा नहीं हो पाया।
आपसी हितों की टकराहट
जब नवंबर 2012 के चुनाव में विजय कुमार मल्होत्रा को 10वीं बार लगातार अध्यक्ष चुना गया तो खेल मंत्रालय ने नेशनल स्पोर्ट्स डेवलपमेंट कोड के तहत चुनावी प्रक्रिया के उल्लंघन का हवाला देकर भारतीय तीरंदाजी संघ की मान्यता रद्द कर दी थी। मंत्रालय की तरफ से कहा गया कि चुनाव में उम्र और कार्यकाल की सीमा पार करने के आधार पर इस संस्था की मान्यता रद्द की जा रही है। हालांकि, मान्यता रद्द होने के बावजूद भारतीय तीरंदाजी संघ के पदाधिकारी नवंबर 2016 तक अपने पद पर बने रहे। जबकि दिल्ली हाइकोर्ट ने 15 फरवरी 2012 और 17 नवंबर 2012 को निर्देश दिया था कि भारतीय तीरंदाजी संघ नेशनल स्पोर्ट्स डेवलपमेंट कोड-2011 के मुताबिक चुनाव नहीं कराता है तो सरकार उसे मान्यता नहीं दे। उसके बाद से ही भारतीय तीरंदाजी संघ भंग है। जब हमने इसके बारे में संघ के महासचिव अनिल कामिनेनी से संपर्क किया तो हैदराबाद से उन्होंने बताया कि हमने 2016 में चुनाव कराने के लिए अपना संविधान संशोधन किया और स्पोर्ट्स कोड के हिसाब से उसे मार्च 2016 में तैयार किया। अब हम सुप्रीम कोर्ट के निर्देश और स्पोर्ट्स कोड के मुताबिक चुनाव के लिए तैयार हैं। मुझे लगता है कि एक-दो हफ्तों में इसकी घोषणा हो जानी चाहिए।
लेकिन चुनाव नहीं होने पर मार्च 2016 के बाद हाइकोर्ट ने फिर हस्तक्षेप किया और 31 मार्च 2017 तक भारतीय तीरंदाजी संघ को अपने संविधान और नेशनल स्पोर्ट्स कोड के मुताबिक, चुनाव कराने का निर्देश दिया। लेकिन निलंबित संघ ने कोर्ट के आदेश का उल्लंघन करते हुए अपने संविधान में संशोधन के लिए 15 मार्च 2017 को जनरल काउंसिल की आपात बैठक बुला ली। तीरंदाजी संघ ने दावा किया कि यह आपात बैठक नेशनल स्पोर्ट्स डेवलपमेंट कोड-2011 के हिसाब से अपना संविधान संशोधित करने के लिए बुलाई गई थी। बाद में दिल्ली हाइकोर्ट ने 11 अगस्त 2017 को तीरंदाजी संघ के संविधान संशोधन वाली इस बैठक को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि निलंबित भारतीय तीरंदाजी संघ ने नियमों का उल्लंघन करके आपात बैठक बुलाई थी। इसमें निशानेबाजी में मजबूत दखल रखने वाले पूर्व और पूर्वोत्तर के अधिकांश राज्यों को नहीं बुलाया गया। यहां तक कि जनरल काउंसिल की आपात बैठक बुलाने की 30 दिनों की नोटिस अवधि का भी पालन नहीं किया गया।
इधर, इस मामले को अदालत में ले जाने वाले स्पोर्ट्स एक्टिविस्ट और एडवोकेट राहुल मेहरा भी कहते हैं कि अगर स्पोर्ट्स की सबसे गंदी कोई संस्था है तो वह आर्चरी यानी निशानेबाजी की है। इस मामले में आइओए और आर्चरी एसोसिएशन ऑफ इंडिया सब भाई-बहन हैं। विजय कुमार मल्होत्रा 40 साल से ज्यादा समय तक भारतीय तीरंदाजी संघ के अध्यक्ष बने रहे और भारतीय तीरंदाजी संघ कह रहा है कि 2016 में उसने चुनाव कराए, लेकिन वह स्पोर्ट्स कोड के खिलाफ कराया था। उधर, दिल्ली हाइकोर्ट ने 10 अगस्त 2017 को अपने फैसले में पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त और पूर्व खेल सचिव एसवाई कुरैशी को भारतीय तीरंदाजी संघ का मामला देखने और चुनाव कराने की खातिर चार महीने के लिए प्रशासक सह रिटर्निंग ऑफिसर नियुक्त किया। उन्होंने आठ नवंबर 2017 को नोटिफिकेशन जारी कर एएआइ के चुनाव के लिए 20 दिसंबर 2017 की तारीख तय की। लेकिन, भारतीय तीरंदाजी संघ ने यह फैसला मानने से इनकार कर दिया।
संघ के तत्कालीन महासचिव अनिल कामिनेनी ने इस फैसले को चुनौती देने की बात कही थी। मामला जब सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा तो चार दिसंबर 2017 को शीर्ष अदालत ने हाइकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा और एएआइ को नेशनल स्पोर्ट्स डेवलपमेंट कोड (एनएसडीसी)-2011 के मुताबिक अपने संविधान में संशोधन करने का निर्देश दिया। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा और जस्टिस एमएम खानविलकर ने दिल्ली हाइकोर्ट द्वारा प्रशासक नियुक्त एसवाई कुरैशी की निगरानी में चार सप्ताह के भीतर संघ का चुनाव कराने के भी निर्देश दिए थे, लेकिन अभी तक चुनाव नहीं हुए हैं। इस पर एसवाई कुरैशी कहते हैं कि हमने चुनाव की प्रक्रिया शुरू कर दी थी। पहले मामला हाइकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट में गया। वहां शीर्ष कोर्ट के फैसले के बाद हमें उसे रोकना पड़ा, क्योंकि कोर्ट ने कहा कि तीरंदाजी संघ के संविधान में संशोधन करने के बाद ही चुनाव होगा। सुप्रीम कोर्ट ने जो प्रावधान बताए थे, उसके तहत हमने तीरंदाजी संघ का संविधान संशोधित कर लिया है। अब हम कोर्ट से पूछेंगे कि क्या अब चुनाव शुरू कर सकते हैं?
जाहिर है, आर्चरी एसोसिएशन के विवाद से नुकसान इस खेल को ही हुआ है। जूनियर स्तर पर प्रतियोगिता नहीं होने से नए खिलाड़ी सामने नहीं आ रहे और न ही उनकी ट्रेनिंग पर ध्यान दिया जा रहा है। विकास शास्त्री भी कहते हैं कि अगर आप देखें तो इंटरनेशनल लेवल पर आज भी वही खिलाड़ी हैं, जो चार साल से लोगों की जुबान पर हैं। सबसे बड़ी बात यह कि इंटरनेशनल लेवल पर कौन-से प्लेयर्स खेलते हैं, वही जो जूनियर लेवल से निकलकर जाते हैं, लेकिन बच्चों को मौके ही नहीं मिल रहे तो भविष्य के खिलाड़ी कैसे तैयार होंगे?