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रिश्तों में खटास के कूटनीतिक अक्स

भारत और पाकिस्तान में एक-दूसरे के राजनयिकों के उत्पीड़न के आरोपों से कड़वाहट चरम पर, बातचीत और सुलह के आसार धुंधले पड़े
इस्लामाबाद स्थित भारतीय उच्चायोग

कूटनीति का सदियों पुराना रिवाज है कि विदेशी धरती पर सेवा के दौरान हर राजनयिक को अंतरराष्ट्रीय विएना संधि के तहत आपराधिक और न्यायिक प्रक्रियाओं से छूट मिली होती है। इसी से जुड़ा यह भी है कि उनका किसी तरह का शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न या फिर किसी तरह की हिंसा नहीं की जा सकती। लेकिन भारतीय और पाकिस्तानी राजनयिक एक-दूसरे देश में होते हैं, तो इन अंतरराष्ट्रीय मर्यादाओं की सीमाओं का भी अंदाजा लगने लगता है। पिछले 70 वर्षों के इतिहास में भारत और पाकिस्तान के बीच आपसी रिश्ते ज्यादातर समय कड़वाहट और जंगी तेवरों वाले ही रहे हैं। लेकिन, जब यह दुश्मनी राजनयिक और दूतावास के अधिकारियों पर उतरने लगे तो समझिए इंतहा होने लगी है।

हाल के घटनाक्रम से एक बार फिर दोनों देशों के बीच संबंधों की बदसूरत तस्वीर सामने आई है। मजबूरन दोनों देशों के उच्चायुक्तों को अपने राजनयिकों और अधिकारियों को धमकी देने और लगातार उत्पीड़न को लेकर शिकायत दर्ज करानी पड़ी। पाकिस्तानी रणनीतिक टिप्पणीकार आयशा सिद्दिका कहती हैं, “राजनयिकों पर हमला एक-दूसरे के प्रति शत्रुतापूर्ण इरादे का संकेत है।”

लेकिन दुश्मनी का यह स्तर इस उपमहाद्वीप और दुनिया भर में परेशानी का सबब बनने लगा है। चिंता की वजह परमाणु हथियार संपन्न दोनों देशों के बीच मौजूदा कड़वाहट है। पिछले कुछ सप्ताह से भारतीय और पाकिस्तानी सेना के जवान नियंत्रण रेखा पर एक-दूसरे की चौकियों पर फायरिंग कर रहे हैं, जिससे इन इलाकों में रहने वाले ग्रामीणों को महफूज ठिकानों पर पलायन के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।

भारत के मुताबिक, राजनयिकों के साथ उत्पीड़न की मौजूदा घटना की शुरुआत उस वक्त हुई, जब पिछले लगभग एक साल से उसके राजनयिकों और अधिकारियों को पाकिस्तानी एजेंसी द्वारा धमकी दी जाने लगी, उन्हें परेशान किया जाने लगा। भारतीय उच्चायोग की गाड़ियों को जबरन रोका जाने लगा, उनके घरों में सेंधमारी होने लगी और यहां तक कि उच्चायोग के कॉन्ट्रैक्टर को एजेंसियों की धमकी के दबाव में काम रोकना पड़ा।

कुछ दिनों पहले भारतीय अधिकारियों ने शिकायत की थी कि उच्चायोग की बिजली और पानी की सप्लाई काट दी गई है। इस साल फरवरी में जब जरूरी सेवाओं को बाधित कर दिया गया और उच्चायोग में तोड़फोड़ की गई तो भारतीय उच्चायुक्त अजय बिसारिया को लगा कि अब पानी सिर से ऊपर गुजर चुका है। इसके बाद उन्होंने पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय को इन हालात से अवगत कराया और औपचारिक शिकायत दर्ज कराई।

अपनी पत्नी और मां से मुलाकात के दौरान कुलभूषण जाधव

दूसरी तरफ, दिल्ली में जब वरिष्ठ पाकिस्तानी राजनयिक की गाड़ियों का पीछा किया गया और ड्राइवर व उसमें बैठे लोगों को गालियां दी गईं और स्कूल से बच्चों को लाते समय पाकिस्तानी उप उच्चायुक्त की गाड़ी का पीछा किया गया तो पाकिस्तानी अधिकारियों ने भी इस तरह की कई घटनाओं की शिकायत की।

पाकिस्तानी उच्चायुक्त सोहैल महमूद ने साउथ ब्लॉक में वरिष्ठ अधिकारियों से मुलाकात की और कथित उत्पीड़न की औपचारिक शिकायत दर्ज कराई। महमूद ने नौ मार्च को कागजात के साथ साउथ ब्लॉक को औपचारिक शिकायत दी। उसमें कहा गया कि पिछले तीन दिनों में पाकिस्तानी राजनयिकों और अधिकारियों के साथ उत्पीड़न की छह घटनाएं हुई हैं। इन सबके बीच पाकिस्तान ने अपने उच्चायुक्त को बुला लिया है, तो इधर भारत ने भी उस पर नए आरोप लगाए हैं।

उधर पाकिस्तान में, यह पूरा विषबेल उस वक्त और भी जहरीला हो गया जब इस्लामाबाद क्लब का मामला सामने आया। अधिकारियों के मुताबिक, इस्लामाबाद में सभी उच्यायुक्तों को इस क्लब की मेंबरशिप खुद-ब-खुद मिल जाती है, जबकि बिसारिया की मेंबरशिप को होल्ड पर रख दिया गया। पाकिस्तानियों ने शिकायत की थी कि नई दिल्ली में उच्चायुक्त और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों को जिमखाना या दिल्ली गोल्फ क्लब के लिए भारी-भरकम मेंबरशिप फीस देनी पड़ती है, जबकि इस्लामाबाद क्लब में भारतीय उच्चायुक्त को मेंबरशिप फीस में छूट मिली हुई है। इस तरह के विशेष अधिकार दोनों तरफ से मिलने चाहिए। भारत ने अपनी तरफ से इसकी वजह समझाने की कोशिश की कि जिमखाना या दिल्ली गोल्फ क्लब निजी क्लब हैं और इनके अपने कायदे-कानून हैं, जहां पर सरकार के हस्तक्षेप को नहीं माना जाता है। अभी तक पाकिस्तान ने भारत की इस दलील को नहीं कबूला है।

अधिकारी बताते हैं कि तकनीकी मामलों के बावजूद क्लब विवाद दोनों देशों के बीच आपसी संबंधों को जाहिर करता है। इससे पहले इस्लामाबाद क्लब के मेंबरशिप का मामला कभी मुद्दा नहीं बना, जबकि दोनों देशों के संबंध अधिकांशत: ऐसे ही थे। एक-दूसरे के राजनयिकों के प्रति कूटनीतिक शिष्टता में यह टकराव क्या दोनों देशों के बीच संबंधों के सबसे निचले स्तर को दर्शाता है?

पूर्व विदेश सचिव विवेक काटजू कहते हैं, “नहीं, मैं ऐसा बिलकुल नहीं सोचता हूं। 1990 के दशक में इससे बुरे हालात थे, जब उत्पीड़न, धमकी और यहां तक कि मारपीट आम बात हो गई थी।” दूसरे भारतीय अधिकारी कहते हैं कि राजनयिकों को परेशान करना और धमकी देना आमतौर पर होता रहता है, इसलिए विएना समझौते के उल्लंघन को रोकने के लिए खास ध्यान दिया गया था। इसका मतलब है कि बिना राजनयिक पासपोर्ट वाले अधिकारियों से मारपीट की जा सकती थी, जबकि राजनयिकों को सिर्फ गालीगलौज और दूसरे तरीके से परेशान करके छोड़ दिया जाता था।

एक पूर्व भारतीय राजनयिक कहते हैं, “यह विएना समझौते के प्रत्यक्ष उल्लंघन से कहीं अधिक व्यवस्थित तरीके से परेशान करने का मामला है।” वह इशारा करते हैं कि इनमें से अधिकांश घटनाएं राजनीतिक नहीं लगतीं और इन्हें ऐसे समय में अंजाम दिया जा रहा है, जब आपसी संबंध गंभीर रूप से तनावपूर्ण हैं।

भारतीय अधिकारी अपनी तरफ से इन गतिविधियों को कबूलते हैं, लेकिन यह भी कहते हैं कि पाकिस्तान में हालात हमेशा खतरनाक हो जाते हैं। उनके मुताबिक, भारतीय एजेंसियां बिरले ही विदेश मंत्रालय की इजाजत के बिना पाकिस्तानी राजनयिक और अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करती हैं। जबकि सीमा के दूसरी तरफ आइएसआइ या समानांतर सत्ता चलाने वाले संगठन अक्सर पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय की सुनते नहीं या उसे अंधेरे में रखते हैं।

पाकिस्तान और भारत में कई लोग बताते हैं कि पाकिस्तानी जेल में बंद कुलभूषण जाधव से मिलने के लिए उनके परिवार के सदस्यों के पाकिस्तान आने के बाद से संबंध खराब होने लगे। पाकिस्तान ने काफी जद्दोजेहद और मशक्कत के बाद उन्हें यहां आने दिया और आइएसआइ ने यह सुनिश्चित किया कि यहां जाधव के परिवार का जीवन खौफनाक लगे। इसमें कोई शक नहीं कि भारत में इसे व्यापक मीडिया कवरेज मिली और इसने कई भारतीयों के मन में कड़वाहट भर दी। उन्हें लगा कि यह कितना खतरनाक संकेत है कि पाकिस्तान संबंधों को सामान्य बनाने को लेकर बिलकुल गंभीर नहीं है।

दोनों देशों में जल्द ही चुनाव होने वाले हैं, ऐसे में बातचीत की संभावना बहुत कम है। ऐसे में इस तरह की अप्रिय घटनाएं सशस्त्र जंग की बहस में बदल जाती है। सिद्दिका कहती हैं, “भारत सर्जिकल स्ट्राइक कर सकता है, लेकिन इससे इसकी संभावना कम है कि पाकिस्तानी फौज आतंकियों को शह देना बंद कर दे।”

उनके मुताबिक, भारत भले ही एक सीमित और पारंपरिक जंग जीतने में सक्षम न हो, जो खतरनाक और मुश्किल विकल्प है। हालांकि, इसे वह खारिज नहीं करतीं और कहती हैं, “राजनेता और नीति-निर्धारकों के पास सीमित विकल्प को समझने के लिए इतनी भावनात्मक समझ नहीं हो सकती है और इस तरह ऐसी गलती जंग के रूप में बदल सकती है।”

लेकिन भारतीय सत्ता प्रतिष्ठान में कई लोग मानते हैं कि भारत पाकिस्तान के मुख्य सहयोगी चीन से संबंध सामान्य बनाने की कोशिश कर रहा है और उधर, अमेरिका पाकिस्तान पर दबाव बना रहा है कि वह अपनी जमीन से संचालित आतंकी गतिविधियों को बंद करे तो ऐसे में पाकिस्तान को रास्ते पर लाने के लिए एक छोटा युद्ध या कम से कम इसकी धमकी देना, अच्छा विचार हो सकता है।

हालांकि, सिद्दिका चेताती हैं कि भारत का यह सोचना कि चीन से बेहतर संबंध होने से वह पाकिस्तान को दबा सकता है तो यह उसका गलत आकलन साबित हो सकता है। वह जोर देकर कहती हैं, “इस क्षेत्र में सबसे बड़ा मुद्दा यह है कि फिलहाल ऐसी कोई एक ताकत नहीं है, जिसके कूटनीतिक हस्तक्षेप को भारत और पाकिस्तान स्वीकार कर लेंगे। वह भी संकट के दौरान।”

यह तो सोच से भी परे है कि रिश्तों में खटास से राजनयिकों को मिलने वाले सही प्रोटोकॉल को तोड़ा जाए। एक परिपक्व देश के तौर पर भारत और पाकिस्तान को बातचीत की मेज पर आना चाहिए। उन्हें कम-से-कम उन लोगों को बख्श देना चाहिए, जो बेहतर संबंधों के लिए काम कर रहे हैं। 

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