तमाम पड़ोसी देशों में बांग्लादेश एक ऐसा राष्ट्र है जिससे भारत अपनी सुरक्षा को कोई खतरा नहीं होने को लेकर पूर्णत: आश्वस्त है। इसका मुख्य कारण है आज उसका राजनैतिक नेतृत्व शेख हसीना के हाथ में होना, जो पूरी तरह से भारत के लिए प्रतिबद्ध हैं।
इसके बावजूद हसीना के अपने घर की स्थिति बहुत सशक्त नहीं है। उनकी मुख्य प्रतिद्वंद्वी पूर्व प्रधानमंत्री बेगम खालिदा जिया की पार्टी, बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) आगामी चुनाव, जो 2018 के अंत में या 2019 के प्रारंभ में अपेक्षित है, को लेकर कुछ ज्यादा सक्रिय हो रही है।
इस राजनैतिक उठा-पठक के बीच खालिदा जिया एक कानूनी चंगुल में फंसी प्रतीत होती हैं। सरकार ने जिया ऑफनिज ट्रस्ट में भारी घोटाले के कारण उन पर कई मुकदमे दायर कर दिए हैं और बेगम जिया को अब तक जमानत नहीं मिल पाई है। बीएनपी आरोप लगा रही है कि आगामी चुनाव के मद्देनजर यह सरकार का एक राजनीतिक षड्यंत्र है। इन आरोपों और प्रत्यारोपों के बीच राजनीतिक पारा बांग्लादेश में बहुत गरम है और गतिविधियां निकट भविष्य में और तेज होने की आशा है। जानकार सूत्रों के अनुसार, बीएनपी को उन ताकतों से नैतिक और आर्थिक सहायता मिल रही है जो भारत के हित के विरुद्ध काम कर रहे हैं।
बेगम जिया के पुत्र तारिक रहमान आजकल लंदन में बसे हुए हैं और वहीं से अपनी पार्टी की गतिविधियों को संचालित कर रहे हैं। ऐसा मानना है कि वो कुछ अवांछित तत्वों के काफी नजदीक हैं जो उनके साथ मिल कर पुनः सत्ता में आने की योजना बना रहे हैं। यह भारत के लिए गंभीर चिंता का विषय है।
इतिहास गवाह है कि बीएनपी पाकिस्तान के बहुत निकट है और वह हरसंभव कोशिश करेगी कि अगले चुनाव में हसीना को हराकर खुद सत्ता हासिल करे। कुछ लोगों का ऐसा भी कहना है कि बेगम जिया की गिरफ्तारी के बाद बांग्लादेश का एक वर्ग जिया और बीएनपी के प्रति सहानुभूति रखता है।
भारत की चिंता का विषय इस बात पर भी आधारित है कि यदि बीएनपी वापस आती है तो उत्तर-पूर्वी उग्रवादी और आतंकवादी दोबारा बांग्लादेश में पनाह ले लेंगे जो भारत की सुरक्षा के प्रतिकूल होगा। स्मरण रहे, हसीना ने अपने कार्यकाल के दौरान भारत के प्रति मित्रता का अत्यधिक प्रमाण दिया है। उल्फा नेता परेश बरुआ को बांग्लादेश से भगाने वाली केवल हसीना हैं और आज की तारीख में एक भी भारतीय उग्रवादी को बांग्लादेश में संरक्षण नहीं मिला हुआ है।
बीएनपी का धर्मांध जमात-ए-इस्लामी के साथ गहरा संबंध रहा है और वह बीएनपी के साथ सरकार में भी सक्रिय रही है। जमात का भारत विरोधी रवैया और पाकिस्तान से नजदीकी जगजाहिर है। अतः बीएनपी की सत्ता में वापसी होने पर भारत के लिए अत्यंत बुरा होने की आशंका है।
बांग्लादेश में कई आतंकी संगठन बहुत सक्रिय हैं। मसलन, जमात-उल- मुजाहिदीन बांग्लादेश, अल अंसार और हिफाजते-इस्लाम वगैरह। ज्ञात है, 2013 से इन संगठनों ने कई समलैंगिकों, उदारवादियों और अल्पसंख्यकों पर घातक हमले किए हैं।
इसी बीच लगभग छह लाख से ऊपर रोहिंग्या मुस्लिम बांग्लादेश में विभिन्न शिविरों में बस चुके हैं और सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि इनमें से कुछ तत्व पाकिस्तान की नजर में हैं जिनको वह रेडिकलाइज करना चाहता है जिनके जरिए वह धर्मनिरपेक्ष सरकार और भारत के हितों के विरुद्ध काम करे। भारतीय सुरक्षा और गुप्तचर एजेंसियों को और चौकसी बरतने की आवश्यकता है जिससे भारत विरोधी ताकतें बांग्लादेश से भारत के लिए घातक न सिद्ध हों।
वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए यह आवश्यक प्रतीत होता है कि भारत अपने सारे अनुभव और संपदा को सर्वोपरि रख कर यह सुनिश्चित करे कि शेख हसीना सत्ता में बरकरार रहें जिससे कम से कम एक पड़ोसी ऐसा हो जो विपत्तियों में भारत के लिए चट्टान जैसा मित्र साबित हो, जिससे भारत की सुरक्षा प्राथमिकताएं बरकरार रहें और पाकिस्तान जैसी ताकत हावी न हो।
इस दृष्टिकोण को नजर में रखते हुए भारत को बांग्लादेश के अंदर जो धर्मनिरपेक्ष और उदारवादी तत्व हैं उनको अपने साथ लेकर चलना चाहिए, जिससे हसीना सत्ता में बनी रहें और विनाशकारी तत्व यथासंभव दूर रहें। इसी प्रसंग में यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि हसीना की व्यक्तिगत सुरक्षा सर्वोपरि हो क्योंकि उनको किसी प्रकार की शारीरिक क्षति होने का प्रभाव अत्यंत दुखदायी होगा। बांग्लादेश में भारत विरोधी सरकार कायम होने पर सांप्रदायिक तत्वों को बढ़ावा मिलेगा और आतंकवादी भारत पर निशाना बनाने के लिए बहुत प्रोत्साहित होंगे। अतः वर्तमान भारत सरकार जो कि हसीना के प्रति सहयोगी दिखती है, आशा करते हैं वह हसीना विरोधी ताकतों को विफल करने में सक्षम होगी।
(लेखक पूर्व आइपीएस अधिकारी, अनुभवी सुरक्षा विश्लेषक और बांग्लादेश मामलों के विशेषज्ञ हैं)