महात्मा गांधी स्मार्ट विश्वविद्यालय द्वारा एक निबंध प्रतियोगिता का आयोजन किया गया, इसमें प्रथम पुरस्कार प्राप्त निबंध इस प्रकार है-
महात्मा गांधी का हमारे जीवन में घणा महत्व है, क्योंकि हमारे जीवन में डिस्काउंट का घणा महत्व है। 2 अक्टूबर के बाद काफी लंबे समय के लिए खादी के तमाम वस्त्रों पर तीस परसेंट का डिस्काउंट मिलना शुरू हो जाता है। गांधी डिस्काउंट के लिए याद रखे जाते हैं। हर साल जो भी गांधी के नाम पर चलनेवाले डिस्काउंट वाले कुरते जैकेट खरीदता है, वह गांधी और गांधी के डिस्काउंट को घणा धन्यवाद देता है। गांधी और उनके नाम पर चलनेवाला डिस्काउंट बताता है कि इस मुल्क में अगर किसी महापुरुष को याद रखा जा सकता है, तो डिस्काउंट के जरिए। सुभाष चंद्र बोस को यह मुल्क उस तरह से याद नहीं करता, क्योंकि सुभाष चंद्र बोस के नाम पर कोई डिस्काउंट योजना नहीं चलती। किसी आइटम पर सुभाष चंद्र बोस डिस्काउंट योजना शुरू हो जाए, तो फिर मामला एकैदम फिट हो लेगा। आचार्य कृपलानी, राममनोहर लोहिया आदि महापुरुषों के नाम पर कोई न कोई डिस्काउंट योजना शुरू की जाए, तो इन्हें भी नियमित तौर पर याद किया जाता रहेगा। महात्मा गांधी के नाम पर चल रही खादी डिस्काउंट योजनाओं से यह साफ होता है कि भले ही लोग महात्मा गांधी को भूल जाएं, पर उनके नाम पर चलनेवाले डिस्काउंट को ना भुलाया जा सकता।
आज से पांच सौ हजार साल बाद महात्मा गांधी को लोग यूं भी याद करेंगे कि महात्मा गांधी वह शख्स थे, जिनके नाम पर बने कई लाख संस्थानों में जमकर भ्रष्टाचार हुआ। इसलिए हम गांधी को चाहे किसी और वजह से याद करें या न करें, पर इस बात के लिए पक्के तौर पर याद कर सकते हैं कि भ्रष्टों ने उनके नाम का जमकर इस्तेमाल किया। अरबों, खरबों खैंचनेवाले नेताओं ने अनिवार्यतः गांधी के नाम का इस्तेमाल किया।
महात्मा गांधी का रोजगार से भी गहरा रिश्ता है। इतना गहरा रिश्ता है कि तमाम लोगों ने अपने सरनेम बदलकर गांधी कर दिए। जो नहीं कर पाए, वो भी कहते रहते हैं कि वह गांधी के आदर्शों पर चल रहे हैं। गांधी के जिक्र के बगैर इंडिया में परम धनप्रदायक रोजगार यानी नेतागीरी का रोजगार नहीं चल सकता है। ये वाले नेता भी गांधी के नाम पर अपनी दुकान चला रहे हैं और उनके विरोध में जो खड़े हैं, उनका काम भी बगैर गांधी के नाम के नहीं चलता। इधर भी गांधी उधर भी गांधी, विकट गांधीगीरी मची हुई है। ‘गांधी ही गांधी, मिल तो लें’, इस कदर गांधी नाम से ओतप्रोत हो लिया है भारत कि गांधी खुद आ जाएं इस दौर में तो चकरा जाएं कि गांधीवाद का असली युग तो अब आया है। यह अलग बात है कि गांधी के नाम पर खादी बेचनेवाले इस कदर महंगी खादी बेच रहे हैं कि गांधी उसे अफोर्ड ही न कर पाएं। पर इससे क्या। गांधी पर चलने वाले सेमिनारों की रजिस्ट्रेशन फीस कई मामलों में कई डॉलरों में होती हैं, वह भी शायद गांधी अफोर्ड न कर पाते। पर इससे क्या।
गांधी के नाम पर कई फिल्में बनीं, उनसे कई लोगों को रोजगार, अवार्ड आदि मिले। मुन्नाभाई एमबीबीएस जैसी फिल्मों ने उन संजय दत्त के जीवन में गांधीवाद के महत्व को रेखांकित किया, जो संजय दत्त खुद जेल में इसलिए बंद रहे कि उनके पास खतरनाक हथियार बरामद हुए थे। इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि गांधी की शिक्षाओं के विपरीत आचरण करके गांधी के नाम से खूब कमाया जा सकता है। गांधी हरेक के काम आते हैं, गांधी सर्वसुलभ हैं। नेता से लेकर अभिनेता तक उनका नाम लेकर खूब कमा-खा सकता है। संजय दत्त से लेकर तमाम नेताओं की सफलता की गाथाएं यही बताती हैं।
इस तरह से हम कह सकते हैं कि गांधी का डिस्काउंट, भ्रष्टाचार और तरह-तरह के धनप्रदायक रोजगार के अवसरों में घणा योगदान है।