देश में खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता और मानकों को तय करने की अहम जिम्मेदारी फूड सेफ्टी ऐंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एफएसएसएआइ) के पास है। अथॉरिटी इस दिशा में क्या काम कर रही है और कुपोषण दूर करने में फूड फोर्टिफिकेशन पर उसकी पहल समेत अन्य मुद्दों पर अथॉरिटी की चेयरपर्सन रीता तेवतिया से एसोसिएट एडिटर प्रशांत श्रीवास्तव ने बात की। मुख्य अंश:
एफएसएसएआइ का गठन देश में खाद्य सुरक्षा और मानकों के नियंत्रण के लिए किया गया। क्या इसके उद्देश्य हासिल हो गए हैं?
अथॉरिटी का उद्देश्य है कि लोगों को सुरक्षित भोजन मिले। उसी दिशा में हम लगातार काम कर रहे हैं। इसी का परिणाम है कि देश में 266 प्रयोगशालाएं हैं, जो उत्पादों की जांच का काम करती हैं। नए फ्रेमवर्क में इंडस्ट्री, उपभोक्ता और रेग्युलेटर को बराबर का स्थान मिला है। 11 सालों में हमने जो उदाहरण पेश किए हैं, उससे दुनिया में प्रतिष्ठा बढ़ी है।
क्या हम गुणवत्ता और मानकों में अमेरिका, यूरोप जैसा स्तर हासिल कर चुके हैं?
मुझे यह कहने में कोई झिझक नहीं है कि हम अभी उस स्तर पर नहीं पहुंच पाएं हैं। लेकिन वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्धी बनने की दिशा की ओर बढ़ रहे हैं। हम मानकों को लेकर कोई ढिलाई नहीं बरतते हैं। इसी कड़ी में हमने 12 प्रयोगशालाओं को डी-लिस्ट भी किया है। इनमें राज्य और म्युनिसिपल स्तर की प्रयोगशालाएं भी शामिल हैं। साथ ही लोग कानून का पालन करें, इस दिशा में हम सहयोग कर रहे हैं।
एफएसएसएआइ द्वारा बड़ी कंपनियों पर कार्रवाई के मामले कम मिलते हैं?
मैं नहीं मानती कि इसमें सच्चाई है। हम कोई समझौता नहीं करते हैं। लेकिन हमारा उद्देश्य किसी का बिजनेस बंद कराना नहीं है। हम चाहते हैं कि इंडस्ट्री कानून का पालन करे। जहां तक कार्रवाई की बात है तो हम लगातार करते रहते हैं।
खाद्य पदार्थों में फोर्टिफिकेशन लागू करने की जरूरत क्यों महसूस हुई?
अथॉरिटी की प्रस्तावना में साफ लिखा है कि उसे सुरक्षित और संपूर्ण भोजन की दिशा में काम करना है। हम अपने मिशन को बड़े स्तर पर देखते हैं। इसमें पोषण भी शामिल है। जब हमारे देश की 70 फीसदी आबादी में पोषक तत्वों की कमी है, तो उसे दूर करने में हमारी भी भागीदारी होनी चाहिए। इसी दिशा में फूड फोर्टिफिकेशन की पहल हुई है। कई वर्षों की चर्चा के बाद मानक तय किए गए हैं। इसमें गेहूं, चावल, खाद्य तेल, नमक, दूध जैसे जरूरी खाद्य पदार्थों के लिए मानक बनाए गए हैं।
क्या इसके लिए कोई सर्वेक्षण हुआ है, सरकार कैसे जरूरतमंदों की पहचान करेगी?
सीधे तौर पर तो सर्वेक्षण नहीं हुआ है, लेकिन इसके लिए हम कई एजेंसियों के आंकड़ों के आधार पर काम कर रहे हैं। जैसे नेशनल न्यूट्रिशन मॉनिटरिंग ब्यूरो, नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे। पोषकता मिले, इसके लिए हमने मिड-डे मील योजना, सार्वजनिक वितरण प्रणाली और समेकित बाल विकास योजना को लक्षित किया है। इसमें सार्वजनिक वितरण प्रणाली के 80 करोड़ लोग और मिड-डे मील योजना के 12 करोड़ बच्चे शामिल होंगे। इसके लिए पायलट प्रोजेक्ट भी शुरू हो चुके हैं।
विशेषज्ञ कहते हैं कि फूड फोर्टिफिकेशन सिर्फ लक्षित समूह तक होना चाहिए?
पहली बात तो यह कि अभी यह स्वैच्छिक है। इसे कंपनियों के लिए अनिवार्य नहीं किया गया है। दूसरी बात हमने फोर्टिफिकेशन के जो मानक रखे हैं, वे विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के आधार पर सबसे सुरक्षित हैं। इससे किसी के शरीर में विटामिन और मिनरल की मात्रा ज्यादा नहीं होगी। ऐसे में डरने की कोई जरूरत नहीं है।
स्वैच्छिक है तो अमूल को नोटिस क्यों मिला?
अमूल को नोटिस मिलने की बात गलत है, असल में अमूल ने नेचुरल फोर्टिफिकेशन की बात कही है। हमने उसके लिए उनसे आंकड़े मांगे हैं। अगर प्राकृतिक रूप से ऐसा करना संभव है तो वह निश्चित तौर पर ज्यादा बेहतर होगा। लेकिन अभी तक हमें वैज्ञानिकों से जो फीडबैक मिला है, उसके अनुसार सिंथेटिक फोर्टिफिकेशन बेहतर विकल्प है।
आरोप हैं कि एफएसएसएआइ ने कंपनियों के फायदे के लिए ऐसा किया?
जब भी कहीं कोई नई चीज शुरू होती है तो उसके प्रति लोगों को अनुकूल होने में समय लगता है। भारत में फोर्टिफिकेशन अभी स्वैच्छिक है, अनिवार्य नहीं। दुनिया में 120 देश इसका इस्तेमाल कर रहे हैं। हम बिजनेस के लिए यह सब नहीं कर रहे। कुपोषण दूर करने के लिए दुनिया में जो भी सर्वोत्तम है, वही कर रहे हैं। जहां तक विदेशी कंपनियों की बात है तो भारत जैसे देश में बिजनेस के लिए कंपनियों को मैन्युफैक्चरिंग करनी पड़ेगी। इससे मेक इन इंडिया को बढ़ावा मिलेगा।