नब्बे के दशक में हिंदी फिल्मों में अपनी सुरीली आवाज से गीत सजाने वाली गायिका अनुराधा पौडवाल, उन चुनिंदा गायिकाओं में शामिल हैं, जिन्होंने फिल्मी संगीत और भक्ति संगीत, दोनों ही क्षेत्र में शोहरत की बुलंदियों को छूने का काम किया। गायन के क्षेत्र में एक ऊंचा मुकाम प्राप्त करने के बाद अनुराधा पौडवाल अब पूर्ण रूप से समाजसेवा को समर्पित हैं। उनके द्वारा ऐसे बच्चों को हियरिंग मशीन प्रदान की जा रही है, जो ठीक से सुन सकने में असमर्थ हैं। अनुराधा पौडवाल से उनके फिल्मी करियर, भक्ति संगीत के सफर और सामाजिक कार्यों के विषय में आउटलुक से मनीष पाण्डेय ने बातचीत की।
अपनी यात्रा में पीछे मुड़कर देखती हैं, तो किस तरह के अनुभव नजर आते हैं?
मेरे लिए यह यात्रा अलौकिक रही है। मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि मैं फिल्मों में गाने गाऊंगी। मैंने कभी कल्पना नहीं की थी कि मैं इतने गाने रिकॉर्ड कर पाऊंगी और मुझे श्रोताओं का इतना प्यार मिल पाएगा। इन सभी उपलब्धियों के लिए मैं अपने माता-पिता, सास-ससुर, गुरु और ईश्वर का आभार व्यक्त करना चाहूंगी। इस पूरी यात्रा में मेरे पति, मेरे बच्चों ने पूरा साथ दिया। उनके सहयोग के बिना मेरे लिए इस स्तर पर पहुंच पाना संभव नहीं था। एक कलाकार की यात्रा यूं भी कई लोगों के सहयोग से आगे बढ़ती है। मेरी यात्रा में परिवार, मीडिया, श्रोताओं, म्यूजिक इंडस्ट्री से जुड़े लोगों का बड़ा योगदान रहा है। इस पूरी यात्रा के दौरान मुझे यह संतुष्टि मिली है कि मेरा काम लोगों को पसंद आया। लोगों के मन में मेरे काम के प्रति प्रेम उमड़ पाया। यही मेरी यात्रा का हासिल है।
बचपन से जुड़ी, ऐसी कौन सी यादें हैं, जिसका ख्याल आते ही चेहरे पर मुस्कान खिल उठती है?
बचपन अपने आप में इतना खास और सुंदर था कि उससे जुड़ी हर बात को याद करके मन प्रसन्नता से भर जाता है। मेरा सौभाग्य है कि मैं ऐसे घर में पैदा हुई, जहां किसी किस्म की पाबंदी या रूढ़िवादी मानसिकता नहीं थी। माता-पिता, बुआ ने मुझे बहुत प्यार दिया। बहनों के साथ खेलते हुए बचपन के दिन बीते। हम लोग बहुत अमीर नहीं थे लेकिन जीवन में संतोष था। हर छोटी सी छोटी चीज में तृप्ति मिलती थी।
समाज सेवा के क्षेत्र में किस उद्देश्य से कदम रखा?
मैं साल 1983 से ही सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में सक्रिय हूं। समाज कल्याण के कार्यों के पीछे एक ही वजह रही, आत्मिक शांति। जब हम किसी के लिए कुछ करते हैं तो हमारे भीतर पूर्णता आती है। अपने अधूरेपन, अपने दुखों को दूर करने का सबसे सशक्त माध्यम है दीन, दुखियों की सेवा। यूं तो कई वर्षों से समाज कल्याण के कार्य कर रही हूं लेकिन वर्तमान में मेरा सारा ध्यान उन बच्चों पर है, जो ठीक से सुन नहीं पाते। मैं देशभर में ऐसे ही बच्चों को हियरिंग मशीन उपलब्ध कराने का काम कर रही हूं।
इस सामाजिक कार्य के दौरान आपके क्या अनुभव रहे?
मैंने देखा कि चूंकि बहरापन जानलेवा बीमारी नहीं है, इसलिए लोग इसे गंभीरता से नहीं लेते। सामान्य स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे भी बहरेपन का शिकार हैं। अफसोस की बात है कि लोगों को इस विषय में अधिक ज्ञान नहीं है। मेरा प्रयास है कि लोग इस कमी को नजर अंदाज न करें और सतर्क रहें। मैं और मेरी टीम देशभर में जागरूकता अभियान चला रहे हैं। इसमें मुझे शासन और प्रशासन से पूर्ण रूप से सहयोग मिल रहा है। मीडिया के साथियों ने मेरे सामाजिक कार्य को प्रमुखता से छापा है। अभी 9 मई को मैंने माननीय केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी की मौजूदगी में बच्चों को हियरिंग मशीन उपलब्ध कराने का कार्य किया। इस सेवा कार्य में जो भी इंसान जुड़ रहा है, मेरे प्रयास को आगे बढ़ाने का कार्य कर रहा है, उनका मैं आभार प्रकट करती हूं।
जिस दौर में लता मंगेशकर और आशा भोंसले जैसी गायिकाओं का बोल बाला था, उस समय में अपना मुकाम हासिल करना कितना चुनौतीपूर्ण था?
जैसा कि मैंने कहा, यह सब कुछ ईश्वर की कृपा से संभव हुआ है। मैंने कभी सोचा नहीं था कि फिल्मों में गाने का अवसर मिलेगा। मुझे उम्मीद नहीं थी कि मैं कभी स्टूडियो में फिल्म का गाना रिकॉर्ड करूंगी। इन कारणों से मैंने कभी अपने लिए कोई पैमाना नहीं रखा। शोहरत पाना, नाम कमाना, उस दौर की लोकप्रिय गायिकाओं से आगे निकलना, मेरा उद्देश्य ही नहीं था। मुझे जब मौका मिला तो मैंने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया। धीमे धीमे लोगों तक मेरे गीत पहुंचे और उन्होंने मुझे भरपूर प्यार और सम्मान दिया। चूंकि मैं यह सोचकर ही नहीं आई थी कि मुझे महान गायिका बनना है या मैं महान गायिका बन सकती हूं तो, मेरी यात्रा में दबाव नहीं था। मुझे जो भी हासिल हुआ, उसे मैं ईश्वर की कृपा मानकर स्वीकार करती रही। इस प्रवृत्ति के कारण मेरे जीवन में हमेशा ही सुकून और संतोष रहा।
आपकी फिल्म आशिकी ने जिस तरह की लोकप्रियता हासिल की, क्या आपको उसकी उम्मीद थी?
फिल्म इतनी बड़ी हिट होगी, इसकी उम्मीद तो नहीं थी। मगर जिस मेहनत, ईमानदारी और समर्पण से हमने काम किया था, उसकी बुनियाद पर हम सभी जानते थे कि यह फिल्म दर्शकों को जरूर पसंद आएगी और इसका संगीत लोगों के दिलों में हलचल पैदा कर देगा। वह अलग ही दौर था। गुलशन कुमार, नदीम-श्रवण, समीर, कुमार सानू के साथ जो टीम बनी थी, उसमें हर इंसान अपना श्रेष्ठ देना चाहता था। इस प्रयास में साथी कलाकार का भी प्रदर्शन निखर जाता था। मुझे खुशी है कि मैं उस दौर में काम कर पाई, जब लोगों के लिए कला एक विशुद्ध साधना थी, कारोबार नहीं।
फिल्मी करियर में जब आप शीर्ष पर थीं, तब आपने भक्ति संगीत की राह चुन ली। इस निर्णय के पीछे क्या वजह रही?
मैं यही कहूंगी कि यह ईश्वर की इच्छा थी। मेरा फिल्मी करियर बहुत शानदार रहा। मैं जो सोच नहीं सकती थी, वह सब मुझे अपने फिल्मी करियर से मिला। नाम, सम्मान, प्रतिष्ठा, प्रेम, लोकप्रियता की कभी कोई कमी नहीं महसूस हुई। इसलिए मैं किसी स्वार्थ या अभाव के कारण भजन संगीत के क्षेत्र में नहीं गई। यह तो केवल और केवल नियति थी। इसके अलावा मैं यह भी कहना चाहूंगी कि मैंने कई वर्षों तक भजन संगीत के साथ-साथ फिल्मी गीतों को भी गाया। मैंने कई भारतीय भाषाओं में गीत रिकॉर्ड किए। यह ईश्वर की कृपा रही कि भजन संगीत के क्षेत्र में मुझे अपार सफलता मिली।