रंग-रंगीले मरु प्रदेश में राजनीति मोटे तौर पर दो ध्रुवों कांग्रेस और भाजपा में बंटी हुई है। यूं तो कुछ छोटी पार्टियों और बसपा तथा वामपंथी पार्टियों के अलावा आदिवासी पार्टियों के भी छोटे-मोटे दायरे हैं, लेकिन पूरे प्रदेश में दोनों मुख्य पार्टियों का ही असर दिखता है। लगातार दो संसदीय चुनावों 2014 और 2019 में भाजपा ने सुपड़ा साफ कर दिया था। सो, इस बार कांग्रेस को अपना मोर्चा मजबूत करने के लिए गठबंधन करना पड़ा, ताकि भाजपा को जीत की हैट्रिक लगाने से रोका जा सके। कांग्रेस ने ‘इंडिया’ गठजोड़ के तहत प्रदेश की कुल 25 में से दो सीटें नागौर और सीकर क्रमश: राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी को दी है। नागौर में आरएलपी प्रमुख हनुमान बेनीवाल और सीकर में माकपा के अमरा राम चुनाव लड़ रहे हैं। बेनीवाल और राम दोनों जाट समुदाय से हैं और किसान आंदोलन में सक्रिय रहे हैं। इस तरह कांग्रेस की कोशिश जाट समुदाय के वोट पर मजबूत पकड़ बनाने की है, जो खासकर शेखावटी और कुछ दूसरे हलकों में प्रभावी हैं।
सीकर में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का असर कम है और किसान आंदोलन का भी यहां भारी असर रहा है। फिर, माकपा की किसान शाखा, अखिल भारतीय किसान सभा (एआइकेएस) का भी इस इलाके में काडर का बड़ा आधार है। देखना है कि अमरा राम कांग्रेस के लिए पूरा समर्थन जुटा पाते हैं या नहीं। भारी-भरकम भीड़ वाली रैली में पर्चा दाखिल करने के बाद उन्होंने पूर्व मंत्री महादेव सिंह खंडेला, पूर्व कांग्रेस विधायक चौधरी रणमल सिंह, पूर्व स्पीकर दीपइंद्र सिंह शेखावत समेत शेखावाटी क्षेत्र के कई कांग्रेसी दिग्गजों से मुलाकात कर उनका समर्थन मांगा।
ज्योति मिर्धा
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने आउटलुक से कहा, ‘‘अमरा राम पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष तथा दांता रामगढ़ के मौजूदा विधायक वीरेंद्र सिंह के पिता नारायण सिंह से समर्थन मांगने गए थे। लेकिन वीरेंद्र सिंह न बैठक में दिखे, न कांग्रेस कार्यालय में और न अमरा राम की पर्चा दाखिल रैली में। इसलिए, कांग्रेस में सभी को साथ लेकर चलना बड़ी चुनौती है।’’ सीकर में 2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने आठ में से पांच सीटें जीतीं थीं, जिनमें तीन विधायक जाट समुदाय से हैं।
नागौर में बेनीवाल के लिए बड़ी चुनौती भाजपा उम्मीदवार ज्योति मिर्धा होंगी, जो खुद प्रमुख जाट नेता हैं। मिर्धा खानदान का जाट बहुल नागौर और आसपास के इलाकों में खासा राजनीतिक रसूख है। हाल ही में भाजपा में शामिल कांग्रेस के 25 नेताओं में मिर्धा परिवार के पूर्व कांग्रेस विधायक रिछपाल मिर्धा और उनके बेटे विजयपाल मिर्धा भी हैं। इस पाला बदल से कांग्रेस को इस इलाके में झटका लग सकता है। विजयपाल ने 2018 में कांग्रेस के टिकट पर डेगाना सीट जीती थी, लेकिन 2023 में वे अजय सिंह से हार गए थे। ज्योति मिर्धा ने 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस छोड़ दी थी। अब भाजपा ने नागौर से उन्हें अपना उम्मीदवार बनाया गया है।
इस बारे में एक कांग्रेस नेता कहते हैं, ‘‘पार्टी को इन दोनों ही निर्वाचन क्षेत्रों को दूसरों के लिए छोड़ने का फैसला करने में काफी समय लगा। पहले कांग्रेस गठबंधन सहयोगियों के लिए चुरू की सीट खाली छोड़ रही थी। हो सकता है, यहां से माकपा के विधायक बलवान पूनिया लोकसभा चुनाव लड़ते लेकिन राहुल कस्वां के कांग्रेस में शामिल होने के बाद यहां की स्थिति बदल गई।’’
प्रदेश में लोकसभा चुनाव दो चरणों, 19 और 26 अप्रैल को होंगे। नागौर और सीकर उन 12 संसदीय क्षेत्रों में हैं, जहां 19 अप्रैल को पहले चरण में मतदान होना है।
शेखावाटी का रण
सीकर में अमरा राम का मुकाबला भाजपा के सुमेधानंद सरस्वती से होगा। इस सीट को लेकर विपक्ष कितना गंभीर है, इसका अंदाजा अमरा राम के पर्चा भरने के दिन निकली रैली से ही लग जाता है। इस रैली में पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा, माकपा पोलित ब्यूरो सदस्य बृंदा करात मौजूद थे।
डोटासरा लक्ष्मणगढ़ निर्वाचन क्षेत्र से चार बार कांग्रेस विधायक और जाट नेता हैं, जिनकी शेखावाटी निर्वाचन क्षेत्र में मजबूत पकड़ है। अमरा राम के नाम की घोषणा से पहले खबर थी कि उन्हें जाट समुदाय के प्रभुत्व वाले क्षेत्र से उतारा जा सकता है। लेकिन यह चर्चा कोरी अफवाह साबित हुई। पर्चा भरने के बाद रैली में किसानों की आवाज उठाने के लिए चर्चित अमरा राम ने कहा, ‘‘हमें विश्वास है कि हम कांग्रेस के सहयोग से सीकर में जीत हासिल करेंगे। महंगाई, बेरोजगारी, एमएसपी और पेट्रोल की कीमतों से जनता त्रस्त है। भाजपा राज में आम जनता और उनके मुद्दों को अनसुना कर दिया गया है।’’
अमरा राम 1993, 1998 और 2003 में तीन बार धोद निर्वाचन क्षेत्र और 2008 में एक बार दांता रामगढ़ निर्वाचन क्षेत्र से विधायक रहे हैं। बाद में वे दांता रामगढ़ में 2023 सहित तीन चुनाव कांग्रेस के वीरेंद्र सिंह से हार गए थे। दिलचस्प है कि माकपा यहां तीसरे स्थान पर रही, जबकि भाजपा दूसरे नंबर पर।
बृंदा करात का कहना है, ‘‘लोकतंत्र खतरे में है और भाजपा संविधान इसे बदलने की योजना बना रही है। हम कुर्सी के लिए नहीं, बल्कि संविधान बचाने के लिए लड़ रहे हैं। हमारा मकसद संविधान और लोकतांत्रिक अधिकारों को बचाना है।’’ डोटासरा और गहलोत दोनों ने राजस्थान और केंद्र में भाजपा सरकार पर निशाना साधने के अलावा आश्वासन दिया कि वे अपना पूरा समर्थन देंगे।
दूसरी ओर, भाजपा ने एक बार फिर सीकर से अपने मौजूदा सांसद सुमेधानंद सरस्वती को मैदान में उतारा है। सरस्वती ने 2019 में 2.5 लाख वोटों के अंतर से जीत हासिल की थी। उनके पर्चा दाखिल करने के दौरान मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा, उप-मुख्यमंत्री दीया कुमारी सहित भाजपा के कई दिग्गज मौजूद थे। नामांकन के बाद आयोजित पहली रैली में 72 वर्षीय सरस्वती ने लोगों से राजस्थान में एक बार फिर भाजपा और मोदी को वोट देकर हैट्रिक बनाने का आग्रह किया।
नागौर का युद्ध नागाड़ा
नागौर में हनुमान बेनीवाल ‘इंडिया’ गठबंधन की ओर से भाजपा की ज्योति मिर्धा के खिलाफ खड़े हैं। मिर्धा पिछले साल विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हुई थीं। वे पूर्व केंद्रीय मंत्री तथा दिग्गज कांग्रेस नेता दिवंगत नाथूराम मिर्धा की पोती हैं। वे कांग्रेस 2009-2014 के दौरान नागौर से सांसद थीं और 2019 में उसी सीट से बेनीवाल से हार गईं थीं। दोनों प्रमुख जाट नेता माने जाते हैं और अब दोनों एक-दूसरे के खिलाफ लड़ रहे हैं।
पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के आलोचक माने जाने वाले बेनीवाल ने 2018 में जाटों के समर्थन से आरएलपी का गठन किया। 2019 में उन्होंने भाजपा के साथ गठबंधन किया और नागौर से चुनाव लड़ा और भगवा पार्टी की मदद से लोकसभा चुनाव जीता। हालांकि दो साल बाद किसान आंदोलन के दौरान वे भाजपा से अलग हो गए। 2023 में खिमसर से विधानसभा चुनाव जीतने के बाद उन्होंने सांसद पद से इस्तीफा दे दिया। उसके बाद से ही अटकलें तेज हो गई थीं कि बेनीवाल ‘इंडिया’ गठबंधन के उम्मीदवार हो सकते हैं क्योंकि उनके करीबी और विश्वासपात्र उम्मेद राम बेनीवाल आरएलपी से इस्तीफा देकर देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस में शामिल हो गए थे।
नागौर प्रत्याशी हनुमान बेनीवाल
ये दोनों क्षेत्र पूरे प्रदेश के बैरोमीटर की तरह है। इन दोनों ही क्षेत्रों में जीत से ही राज्य में पार्टी की ताकत का पता चलता है। यही वजह है कि कांग्रेस ने यहां अपनी पूरी ताकत लगा दी है और कांग्रेस को इन दोनों ही क्षेत्रों से काफी उम्मीद है। इसकी तस्दीक इस बात से भी होती है कि कांग्रेस ने अपना घोषणा-पत्र जारी करने के लिए सबसे पहले जयपुर को चुना। कांग्रेस की उम्मीद इस बात से भी बढ़ी है कि विधानसभा चुनावों में उसका वोट प्रतिशत लगभग भाजपा के बराबर ही रहा था। अगर इस बार भी पार्टी यही सफलता दोहरा सकते, तो पार्टी को नुकसान की कोई वजह दिखाई नहीं पड़ रही है। यही वजह है कि भाजपा पूरा जोर लगाकर कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं को अपने पाले में लाने की मुहिम चला रही है। पार्टी को इससे परिणाम अपने पक्ष में होने की आशा है। देखना है कि लोग 4 जून को क्या फैसला सुनाते हैं।