हाल में मुजफ्फरपुर शेल्टर होम हॉरर पटकथा में एक और पार्ट जुड़ गया। अब पटना शेल्टर होम की घटना ने बिहार में सनसनी मचा दी है। पहले एक लड़की इस ‘नरक’ से निकल कर दर-दर ठोकरें खाने के बाद जिलाधिकारी और एसपी से न्याय की गुहार लगाती रही। जब उनसे उम्मीदें टूट गईं तो मीडिया के सामने आकर रोते-बिलखते आरोप लगाया कि गायघाट स्थित आश्रय गृह में लड़कियों को दुष्कर्म के लिए उसकी महिला अधीक्षक वंदना गुप्ता ही मजबूर करती है, बाहर पुरुषों के पास भेजती है, नशे की सुई देती है, यौन उत्तेजक दवाइयां देती है और इनकार करने पर तरह-तरह से प्रताडि़त करती है। उसके अनुसार, ‘‘जब तक कबूल न कर ले, लड़कियों को कई दिनों तक खाना नहीं दिया जाता। शेल्टर होम में बाहर से पुरुष आते हैं और ऐय्याशी करते हैं। और, ये सब खेल होता है अधीक्षक की देखरेख में।’’ उसने अपने हाथ दिखाते हुए जबरन नशे का इंजेक्शन देने जैसी अमानवीय कृत्य की कहानियां भी बयान की।
यह वीडियो 29 जनवरी को वायरल हुआ तो पटना के कई नारी संगठन सड़क पर उतर आए। लड़की की आपबीती सुनाने के लिए जब महिला विकास मंच उसे डीएम और एसपी के पास ले गया तो जांच के बाद जल्दी कार्रवाई का आश्वासन दिया गया, लेकिन जांच का आदेश देकर उल्टे उस लड़की को ही बदचलन साबित करने पर प्रशासन आमादा हो गया। इस बीच पटना हाइकोर्ट ने 7 फरवरी को मीडिया की खबरों के आधार पर स्वत: संज्ञान लिया। सुनवाई चल ही रही थी कि पूर्व आइपीएस अफसर अमिताभ कुमार दास ने राज्यपाल को पत्र को लिखकर दावा किया कि उन्हें पक्की खबर है कि लड़कियों को मंत्रियों के पास भेजा जाता रहा है। उन्होंने यह भी लिखा कि जरूरत पड़ने पर वे सबूत भी पेश कर सकते हैं।
यह सब चल ही रहा था कि समाज कल्याण विभाग ने शेल्टर होम प्रकरण की जांच के बाद वंदना गुप्ता को क्लीन चिट दे दी। आरोप लगाने वाली लड़की से पूछताछ की भी जरूरत नहीं समझी गई। क्लीन चिट मिलने के तुरंत बाद किसी सस्पेंस स्टोरी की तरह दूसरी लड़की ने 9 फरवरी को सामने आकर पहली पीडि़ता की बातों पर मुहर लगाई और वंदना गुप्ता पर सीधा आरोप लगाया कि शेल्टर होम में नशे का कारोबार होता है और मासूम लड़कियों को बाहर भेजकर हवस का शिकार बनाया जाता है। उसके अनुसार, ‘‘हॉस्टल के भीतर, बाहर से अजनबी भी आते हैं। लड़कियों से घिनौने कृत्य के लिए कहा जाता है और इनकार करने पर उन्हें पीटा जाता है।’’ वंदना गुप्ता पर लगे आरोपों पर उनका जवाब जानने के लिए इस संवाददाता ने उनसे संपर्क करने की कोशिश की लेकिन वे मीडिया के सामने नहीं आ रही हैं।
मामला उलझता देख पटना महिला थाना ने वंदना गुप्ता पर यौन उत्पीड़न के लिए धारा 325ए और नशीली दवा के लिए धारा 450ए के तहत प्राथमिकी दर्ज कर कार्रवाई शुरू कर दी है। महिला विकास मंच की अध्यक्ष वीणा मानवी के मुताबिक वंदना गुप्ता की करतूत उजागर करने के लिए कई लड़कियां उनके संपर्क में हैं। मंच की लीगल एडवाइजर और वकील मीनू कुमारी कहती हैं कि रिमांड होम की कई लड़कियां पहले भी शिकायत कर चुकी हैं, मगर प्रमाण के अभाव में कोई कानूनी कदम वे नहीं उठा सकीं। मामले की जटिलता को देखते हुए मंच ने निर्भया कांड की वकील सीमा समृद्वि को दिल्ली से बुलाया है। समृद्वि ने मंच को आवश्यक कानूनी सलाह देते हुए प्रेस कॉन्फ्रेंस की। उसी दौरान पटना हाइकोर्ट के चीफ जस्टिस संजय करोल और न्यायाधीश एस. कुमार की बेंच ने कई दिन गुजर जाने के बाद भी मामला दर्ज नहीं होने पर पुलिस और प्रशासन को कड़ी फटकार लगाई। अधिवक्ता मीनू कुमारी कहती हैं कि सरकार ने जांच का आदेश समाज कल्याण विभाग को ही दिया है, जिस पर संगीन आरोप हैं। पटना शेल्टर होम से 5 लड़कियां गायब हैं, उनमें दो बांग्लादेश की हैं। उन्होंने हाइकोर्ट में मध्यस्थ पिटीशन दायर की और शेल्टर होम से जानना चाहा कि रिलीज हुई लड़कियां कहां हैं? अब जवाब वंदना गुप्ता को देना है।
जिस दूसरी लड़की ने वंदना गुप्ता पर नशा देकर गलत काम करने का आरोप महिला थाना में लगाया है, उसे कथित रूप से शेल्टर होम से रिलीज कर मुजफ्फरपुर के एक दलाल के हाथों बेच दिया गया था। इस संबंध में राजनीतिक-सामाजिक कार्यकर्ता राजेश भट्ट कहते हैं कि इस बात की भी जांच होनी चाहिए कि मुजफ्फरपुर और पटना के शेल्टर होम में लड़कियों की खरीद-फरोख्त की कोई डील तो नहीं है। वे कहते हैं कि समाज में बदल रहे अपराध की प्रवृत्ति के आलोक में दंडविधान में भी तब्दीली होनी चाहिए। महिला संगठन से जुड़ी निवेदिता झा कहती हैं कि पूरी जांच न्यायिक बेंच के अंतर्गत होनी चाहिए। उनका मानना है कि सरकार की एजेंसी ऐसे कांडों की जांच इसलिए भी नहीं कर सकती क्योंकि खुद विभाग पर आरोप हैं। निवेदिता का सवाल है कि घटना के प्रकाश में आ जाने के बाद भी स्थानीय पुलिस प्रशासन ने किसके डर या इशारे पर मामला दर्ज नहीं किया?
हाइकोर्ट ने 11 फरवरी को जांच के लिए डीएसपी स्तर के अफसर की अगुआई में स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (एसआइटी) के गठन का आदेश दे दिया है। टीम में एक महिला पुलिसकर्मी भी रहेंगी। महिला विकास मंच को मध्यस्थ पिटीशन की अनुमति दी गई है। सुरक्षा कारणों से अदालत कक्ष में ही पीडि़ता के बयान की वीडियोग्राफी करने को कहा गया है, ताकि जांच प्रभावित न हो। जांच में गड़बड़ी पाए जाने पर अफसरों पर कार्रवाई की चेतावनी भी दी गई है।
मीनू कहती हैं कि एक स्वतंत्र टीम द्वारा पहले ही पीडि़ता के बयान रिकार्ड कर लिए गए थे। बयान के बाद मंच की टीम शेल्टर होम पहुंची तो अंदर जाने की इजाजत नहीं दी गई। निवेदिता झा कहती हैं कि मुजफ्फरपुर कांड को लेकर उनके संगठन ने मजबूती से आवाज उठाई थी। काली करतूतों का पर्दा घीरे-धीरे उठा था और 11 लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। 2018 में उजागर हुए मुजफ्फरपुर शेल्टर होम कांड में बिहार की तत्कालीन समाज कल्याण मंत्री मंजू वर्मा और उनके पति चंद्रशेखर वर्मा को काफी फजीहत झेलनी पड़ी थी। सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को फटकार लगाई, तो दोनों ने अगस्त 2018 में सरेंडर किया और जेल गए।
मुजफ्फरपुर आश्रय गृह प्रकरण
फरवरी 2018 में टीआइएसएस ने समाज कल्याण विभाग द्वारा संचालित मुजफ्फरपुर आश्रय गृह में नाबालिग बच्चियों पर यौन उत्पीड़न की सोशल ऑडिट रिपोर्ट सौंपी।
29 मई को लड़कियों को दूसरे शेल्टर होम में भेजा गया।
31 मई को जांच के लिए एसआइटी गठित हुई। उसी दिन ब्रजेश ठाकुर सहित 11 आरोपियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज।
14 जून को शेल्टर होम सील, 46 लड़कियां मुक्त।
01 अगस्त को तत्कालीन राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने केंद्र को पत्र लिखा, सभी शेल्टर होम की जांच के आदेश दिए।
02 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लिया। केंद्र और राज्य सरकार से भी जवाब मांगा।
05 अगस्त को पांच सहायक निदेशक कार्य में लापरवाही को लेकर संस्पेंड
08 अगस्त को समाज कल्याण मंत्री ने नैतिक जिम्मेदारी लेकर इस्तीफा दिया।
04 अक्टूबर को सीबीआइ ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि शेल्टर होम से एक नारी कंकाल बरामद किया गया।
28 नवंबर को 16 मामले सीबीआइ को हस्तांतरित।
07 फरवरी 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने मामले को दिल्ली साकेत जिला अदालत के पोक्सो कोर्ट में हस्तांतरित किया।
03 मई को सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि 11 लड़कियों की कथित हत्या ब्रजेश ठाकुर और अन्य ने कर दी।
06 मई को सुप्रीम कोर्ट ने हत्या की जांच का आदेश दिया।
11 फरवरी 2020 को कोर्ट ने ब्रजेश ठाकुर सहित 11 को उम्रकैद की सजा सुनाई।