मध्य प्रदेश में राज्यस्तरीय पर्यावरण प्रभाव निर्धारण प्राधिकरण (एसईआइएए या सिया) की जिम्मेदारी तो पर्यावरण की रक्षा है मगर खनन के लिए अनापत्ति प्रमाणपत्र (ईसी) जारी करने में आपराधिक साजिश और करोड़ों रुपये के लेनदेन के आरोपों से राज्य में सियासी भूचाल आ गया है। खनिज माफिया, सत्ता और दलालों के गठजोड़ ने न केवल कानून का मजाक बना दिया है, बल्कि पर्यावरण पर खतरे बढ़ा दिए हैं। यहां सैकड़ों अवैध अनापत्ति प्रमाणपत्र बिना वैधानिक प्रक्रिया दे दी गईं हैं, जिसमें करोड़ों रुपये के भ्रष्टाचार का अंदेशा है। अनियमितताओं की हद यह थी कि खुद सिया के चेयरमैन शिवनारायण चौहान को पत्र लिख कर इसकी शिकायत दर्ज करवानी पड़ी है।
घोटाले का खुलासा
सिया में घोटाला तब सामने आया, जब पता चला कि सैकड़ों अनुमति बिना प्राधिकरण की बैठक और अप्रेजल के जारी कर दी गई हैं। चेयरमैन की जानकारी के बिना परियोजनाओं को मंजूरी दे दी गई, जबकि कायदे से चेयरमैन के अलावा किसी और को अनापत्ति प्रमाण-पत्र जारी करने का अधिकार नहीं है। तो, मंजूरी कैसे दी गई? उसके लिए अनोखा रास्ता अपनाया गया। 22 मई से सिया की नियमित सदस्य सचिव उमा महेश्वरी मेडिकल आधार पर छुट्टी लेकर चली गईं। उनकी अनुपस्थिति में एप्को के कार्यकारी निदेशक तथा जनजातीय कार्य विभाग के आयुक्त श्रीमन शुक्ला को महेश्वरी का प्रभार दिया गया। प्रभार मिलने के ठीक अगले दिन यानी 24 मई को पर्यावरण विभाग के प्रमुख सचिव नवनीत मोहन कोठारी के अनुमोदन के बाद 450 मामलों को डीम्ड मंजूरी दे दी गई। अस्थायी प्रभार संभालने के सिर्फ एक दिन बाद ही श्रीमन शुक्ला को अनुमतियां जारी करने की ऐसी कौन सी जल्दी थी इसका जवाब किसी के पास नहीं है। आउटलुक ने कई बार उमा महेश्वरी और नवनीत कोठारी से संपर्क करने और उनका पक्ष जानने की कोशिश की लेकिन दोनों ने ही न फोन उठाया, न संदेश का जवाब दिया।
नाम न छापने की शर्त पर एक अधिकारी ने बताया कि बैठकें न आयोजित करना एक सुनियोजित साजिश का हिस्सा है। ईआइए (एनवायरमेंटल इम्पैक्ट असेसमेंट) अधिसूचना, 2006 की धारा 3 (7) स्पष्ट कहती है कि सिया के सभी निर्णय बैठक में लिए जाएंगे। लेकिन मध्य प्रदेश में सदस्य सचिव ने 25 मार्च 2025 से 21 अप्रैल 2025 तक (25 दिन) एक भी बैठक नहीं होने दी। यह सब साजिश के तहत किया गया, ताकि खनन माफियाओं को फायदा पहुंचाया जा सके। अप्रैल 2025 में केवल 2 बैठकें की गईं और मई 2025 में मात्र 1 बैठक हुई। कुल मिलाकर, 60 दिनों में सिर्फ 3 बैठकें ही हुईं।
शिवनारायण चौहान, नवनीत कोठारी
चेररमैन और सदस्य ने लगभग 12 पत्र लिखे और मौखिक अनुरोधों के माध्यम से बैठकें बुलाने की मांग की लेकिन उनकी अनदेखी की गई। अधिकारियों ने उन्हें जवाब देने की भी जहमत नहीं उठाई। मई की बैठक का कार्यवाही विवरण अभी तक लंबित है। जब बैठकें हुईं भी, तब भी एजेंडा और बैठक की तारीख का अनुमोदन अध्यक्ष से नहीं लिया गया, जो ईआइए अधिसूचना का सीधा-सीधा उल्लंघन है। सिया चेयरमैन शिव नारायण सिंह चौहान से आउटलुक ने इस बारे में जानना चाहा तो उन्होंने बस इतना ही कहा, ‘‘कुछ अनियमितताएं हुई हैं, मैंने पत्र लिखा है, जल्द ही कार्रवाई की उम्मीद है।’’ वे सीधे-सीधे किसी अधिकारी का नाम लेने के बजाय, बस अनियमितताओं की ओर इशारा करते हैं।
अवैध अनुमतियां
सदस्य सचिव ने सैकड़ों प्रकरणों को सिया की बैठक में प्रस्तुत किया और खुद अनुमतियां जारी कीं। इन अनुमतियों पर प्रमुख सचिव (पर्यावरण) का अनुमोदन होने का उल्लेख किया गया, जबकि नियम सदस्य सचिव और प्रमुख सचिव दोनों को ही ईसी जारी करने की शक्ति नहीं देता है। यह ईआइए अधिसूचना की धारा 8 (3) और 8 (4) का उल्लंघन है, जो स्पष्ट कहती है कि ईसी का निर्णय केवल सिया ले सकता है। लेकिन अधिकारियों ने ऐसे हर नियम को ताक पर रख दिया, जो उनकी मनमर्जी में बाधक साबित हो सकता था। अधिकारी सीधे-सीधे इस मामले में कुछ भी कहने से इसलिए भी बच रहे हैं कि कथित तौर पर श्रीमन शुक्ला प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के एक कद्दावर नेता के दामाद हैं।
45-दिन की चाल
इस अनियमितता के लिए सदस्य सचिव ने जानबूझकर 45 दिन तक बैठकें न बुलाकर प्रकरणों को लंबित रखा, ताकि बाद में अपने हिसाब से काम कर सकें। ईआइए अधिसूचना की कंडिका 8 (3) के तहत, सिया 45 दिनों में प्रकरण पर विचार नहीं करता, तो एसईएसी की अनुशंसा को अनापत्ति माना जाता है। इस खामी का लाभ, खनिज माफिया को दिया गया। इस पर अब तक प्रशासनिक चुप्पी भी संदेह पैदा करती है। 20 से अधिक पत्रों और मौखिक शिकायतों के बावजूद, शासन ने सदस्य सचिव या प्रमुख सचिव के खिलाफ अब तक कोई कार्रवाई नहीं की है।
सरकार का कदम
सरकार ने अब तक हालांकि कोई कदम नहीं उठाया है। लेकिन अधिकारी चाहते हैं कि अवैध ईसी पर रोक लगे और इन्हें निरस्त कर प्रकरणों को सिया के समक्ष अप्रेजल के लिए भेजा जाए। 90 दिनों में अप्रेजल पूरा हो और एनजीटी या सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया जाए। साथ ही सदस्य सचिव, प्रमुख सचिव और प्रभारी अधिकारी के खिलाफ आपराधिक प्रकरण दर्ज हो। निलंबन और विभागीय जांच शुरू हो। सिया के सचिवालय पर सिया का ही पूर्ण नियंत्रण हो, जैसा कि रेरा, एनजीटी और लोकायुक्त में है। नियुक्ति और प्रशासनिक निर्णय सिया के ही हों। सचिवालयीय सुविधाएं (वित्तीय, लॉजिस्टिक) प्रदान किए जाएं, ताकि सिया बिना दबाव के काम कर सके। इसके अलावा पारदर्शिता के लिए डिजिटल पोर्टल पर सभी ईसी प्रकरणों का वास्तविक समय अपडेट हो। बैठक के एजेंडा और कार्यवाही विवरण सार्वजनिक हों।
ईसी की जरूरत
पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986, पर्यावरण (संरक्षण) नियम, 1986 और ईआइए अधिसूचना, 2006 ने इसे कानूनी आधार प्रदान किया है। ईआइए अधिसूचना, 2006 के अनुसार, खनन, निर्माण और औद्योगिक परियोजनाओं जैसे कामों के लिए एनवायरनमेंटल क्लीयरेंस (ईसी) अनिवार्य है। इन परियोजनाओं को दो भागों में बांटा गया हैः एक, केंद्र सरकार के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा अप्रेजल और ईसी जारी किया जाता है। दो, इसमें राज्य स्तरीय सिया अप्रेजल और ईसी जारी करता है।
श्रीमन शुक्ला, उमा महेश्वरी
ईसी देने से पहले देखना होता है कि परियोजनाएं पर्यावरण को नुकसान न पहुंचाएं और किसी कारणवश कुछ नुकसान हो, तो उसकी क्षतिपूर्ति संभव हो। बिना ईसी के परियोजना शुरू करना दंडनीय अपराध है, जिसमें ईपीए 1986, धारा 15-17 के तहत 5 वर्ष तक की सजा का प्रावधान है।
सिया का गठन
मध्य प्रदेश में सिया का गठन केंद्र सरकार की अधिसूचना क्र. (अ) 134, के तहत 7 जनवरी 2025 को किया गया। इसमें शिव नारायण सिंह चौहान (चेयरमैन), डॉ. सुनंदा सिंह रघुवंशी (सदस्य) और उमा महेश्वरी, श्रीमन शुक्ला (सदस्य सचिव, कार्यपालक निदेशक, पर्यावरण नियोजन एवं समन्वय संगठन, भोपाल) शामिल हैं। सिया को श्रेणी बी परियोजनाओं के लिए ईसी जारी करने की शक्ति है। ईआइए (एनवारमेंटल इम्पैक्ट असेसमेंट) अधिसूचना की धारा 3 (7) के अनुसार, सभी निर्णय बैठक में लिए जाएंगे और सामान्यतः सर्वसम्मति से होंगे। सदस्य सचिव या प्रमुख सचिव (पर्यावरण) को स्वतंत्र रूप से ईसी जारी करने का कोई अधिकार नहीं है।
घोटाले के दूरगामी परिणाम
बिना जांचे ईसी देने से खनन परियोजनाएं जंगल, नदियां और जैवविविधता को नष्ट कर सकती हैं। सिया ने आकलन किया होता, तो पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली परियोजनाओं की अनुमति रोकी जा सकती थी। जैसे, मध्य प्रदेश में नर्मदा और चंबल नदियों के किनारे अवैध खनन से पर्यावरण संकट पैदा हो गया है। घोटाले ने उसे बढ़ाने का काम किया है। स्थानीय समुदाय की आवाज भी इस घोटाले में कहीं दब या गुम गई है, जो खनन से विस्थापित या प्रदूषण से प्रभावित हैं।