लॉकडाउन से मरणासन्न हुए लघु, छोटे और मझोले उद्यमों (एमएसएमई) के लिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 13 मई 2020 को 3.7 लाख करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा की थी। इसमें से तीन लाख करोड़ रुपये बिना कुछ गिरवी रखे एमएसएमई को कामकाजी पूंजी का कर्ज देने के लिए हैं। इस प्रस्ताव को कैबिनेट की मंजूरी मिले एक महीना और लॉकडाउन के तीन महीने बीत जाने के बाद स्थिति यह है कि इमरजेंसी क्रेडिट लाइन गारंटी स्कीम (ईसीएलजीएस) के तहत 20 जून तक 79,000 करोड़ रुपये के कर्ज स्वीकृत हुए और इसमें से वास्तव में 35,000 करोड़ रुपये दिए गए। महज तीन हफ्ते में इतना कर्ज निश्चित रूप से बड़ा है, लेकिनआउटलुक ने इस सिलसिले में सबसे ज्यादा एमएसएमई वाले राज्यों के उद्योग संगठनों से बात की, तो कुछ और कहानी सामने आई। कोलेटरल-फ्री लोन होने के बावजूद बैंक कहीं कोलेटरल मांग रहे हैं, तो कहीं उद्यमियों की निजी गारंटी ले रहे हैं। नियम तो है कि उद्यमियों को बस एक आवेदन करना होगा जिसके आधार पर उनका कर्ज मंजूर होगा, इसके विपरीत बैंक सामान्य दिनों की तरह पूरे कागजात मांग रहे हैं। एमएसएमई में जो मझोले उपक्रम हैं, इस स्कीम के तहत बैंक उन्हें ही ज्यादा कर्ज दे रहे हैं। इनकी माली हालत पहले से ही अच्छी है। बैंक इन उद्यमियों को तो अपनी तरफ से फोन करके कर्ज देने की बात कह रहे हैं, लेकिन जिनकी स्थिति पहले खराब थी और लॉकडाउन में जो बंदी के कगार पर पहुंच गए, उन्हें बैंकों से कोई मदद नहीं मिल रही है।
देश के 6.3 करोड़ एमएसएमई में 99 फीसदी उद्यम लघु श्रेणी के हैं जो बैंकों से कामकाजी पूंजी के लिए कर्ज कम ही लेते हैं, जबकि नियम बना है कि नई स्कीम के तहत कर्ज उन्हीं को मिलेगा जिन्होंने पहले से कर्ज ले रखा है। इसलिए करोड़ों उद्यमी स्कीम के दायरे से बाहर हो गए हैं। आश्चर्य नहीं कि कुछ महीने बाद इनमें से अनेक के बंद हो जाने की खबरें आएं। रेटिंग एजेंसी क्रिसिल का आकलन है कि 2020-21 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में पांच फीसदी गिरावट से बड़ी कंपनियों का राजस्व 15 फीसदी और एमएसएमई का 21 फीसदी तक घट सकता है। इससे छोटी कंपनियों के सामने अस्तित्व का संकट होगा। एसपी जैन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट रिसर्च और मैगमा फिनकॉर्प के एक सर्वे के अनुसार, कोविड-19 के कारण करीब 50 फीसदी एमएसएमई का कारोबार 20 से 50 फीसदी तक कम हो गया है, इसलिए 51 फीसदी उद्यमियों ने कहा कि वे फिलहाल कर्ज नहीं लेंगे।
सरकार की तरफ से बैंकों को जो गारंटी दी जानी है, उसके लिए अथॉरिटी बनाने में करीब तीन हफ्ते लग गए। इसलिए शुरू में इस स्कीम के तहत कर्ज नहीं मिल पा रहा था। कहा गया था कि उद्यमियों को कर्ज के लिए सिर्फ एक आवेदन करना होगा, लेकिन वास्तव में उनसे सभी कागजात मांगे जा रहे हैं। कुछ उद्यमियों से निजी गारंटी भी ली जा रही है। हालांकि, कुछ बैंकों का रवैया जरूर लचीला है। दिल्ली स्थित एमएसएमई डेवलपमेंट फोरम के चेयरमैन रजनीश गोयनका कहते हैं, “आखिर लोन देने वाले अधिकारी तो वही पुराने हैं। उन्हें यह डर भी है कि कल सरकार उनसे यह न पूछ ले कि कर्ज देते समय कंपनी का धंधा क्यों नहीं देखा।”
पांच लाख से अधिक सदस्यों वाली महाराष्ट्र इंडस्ट्रियल ऐंड इकोनॉमिक डेवलपमेंट एसोसिएशन के प्रेसिडेंट चंद्रकांत सालुंखे के अनुसार बैंकों को उद्यमियों के आवेदन पर 24 घंटे में निर्णय लेना चाहिए, लेकिन वे 15 से 20 दिन लगा रहे हैं। महाराष्ट्र की ही मराठवाड़ा एसोसिएशन ऑफ स्मॉल स्केल इंडस्ट्रीज ऐंड एग्रीकल्चर के प्रेसिडेंट अभय हंचनाल ने कहा, “बैंक उन लोगों को तो बुलाकर कर्ज दे रहे हैं जिनका रिकॉर्ड अच्छा है, पर जिन्हें वास्तव में जरूरत है उन्हें कर्ज मिल रहा है या नहीं। बैंक लीज एग्रीमेंट या दूसरे कागजात भी मांग रहे हैं। कोविड-19 की वजह से सरकारी कार्यालयों में जाकर जल्दी कागजात नहीं ला सकते। व्यावहारिक तो यह होता कि बैंक इसके लिए तीन महीने का समय देते, भले ही इसके बाद वे पेनल्टी का प्रावधान जोड़ दें।”
महाराष्ट्र के बाद दूसरे सबसे अधिक एमएसएमई वाले राज्य तमिलनाडु में बैंकों का रवैया कुछ अलग है। नियम है कि उद्यमी बकाया कर्ज के 20 फीसदी के बराबर नया कर्ज ले सकते हैं, लेकिन कुछ बैंक पहले 10 फीसदी कर्ज दे रहे हैं। उनका कहना है कि बिजनेस सुधरने पर बाकी 10 फीसदी देंगे। कोलेटरल की मांग का विरोध करते हुए तमिलनाडु स्मॉल ऐंड टाइनी इंड्स्ट्रीज एसोसिएशन के महासचिव एम. हिंदूनाथन कहते हैं, “मान लीजिए किसी ने दस लाख रुपये का कर्ज ले रखा है तो उसका एक करोड़ रुपये का कोलेटरल पहले ही बैंक में जमा है। अब बैंक को सिर्फ 20 फीसदी अतिरिक्त कर्ज देना है तो उन्हें कोलेटरल या निजी गारंटी नहीं लेनी चाहिए।” सालुंखे की राय में अगर कोई बैंक गारंटी मांगता है तो रिजर्व बैंक में उसकी शिकायत की जानी चाहिए।
बैंकों के रवैए पर पश्चिम बंगाल की फेडरेशन ऑफ स्मॉल एंड मीडियम इंडस्ट्रीज (फोस्मी) के प्रेसिडेंट विश्वनाथ भट्टाचार्य सटीक टिप्पणी करते हैं, “सरकार एमएसएमई की मदद के लिए स्कीम लेकर आई है, लेकिन कुछ बैंक संकट की इस घड़ी में भी मुनाफा देख रहे हैं। मौजूदा संकट में जिन कंपनियों की स्थिति खराब हुई है उन्हें मदद की ज्यादा जरूरत है, लेकिन उन्हें कुछ नहीं मिल रहा है।” आमतौर पर मार्च-अप्रैल में कंपनियों की नई क्रेडिट लिमिट तय होती है, जो इस बार नहीं हो पाई। इसलिए भी उद्यमियों को नया कर्ज लेने में परेशानी हो रही है। बैंक उनसे पहले नई लिमिट की मंजूरी लेने के लिए कह रहे हैं।
नियम के मुताबिक 29 फरवरी 2020 को बकाया कर्ज के 20 फीसदी के बराबर ही कर्ज मिल सकता है। उत्तर प्रदेश की इंडियन इंडस्ट्रीज एसोसिएशन (आइआइए) के प्रेसिडेंट पंकज कुमार के अनुसार, यह सीमा समझ से परे है, यह टर्नओवर के हिसाब से होना चाहिए था। अगर किसी का बकाया कर्ज 29 फरवरी को चार-पांच लाख रुपये होगा तो वह एक लाख रुपये के लिए बैंकों के चक्कर नहीं लगाएगा। सालुंखे मानते हैं कि 20 फीसदी कर्ज से तात्कालिक राहत तो मिल जाएगी, लेकिन इससे बूस्ट नहीं मिलेगा। यह कम से कम 35 फीसदी होना चाहिए। इसकी वजह बताते हुए वे कहते हैं कि अभी रोजाना कोरोनावायरस संक्रमित लोगों की संख्या रिकॉर्ड तेजी से बढ़ रही है और दो महीने तक यही स्थिति रहने के आसार हैं।
कर्ज लेने में उद्यमियों की अपनी परेशानियां भी हैं। पंकज कुमार के मुताबिक, अभी मांग, सप्लाई चेन और कर्मचारी तीनों की समस्या है। इसलिए उद्यमी कर्ज लेने में जल्दबाजी नहीं कर रहे हैं। सालुंखे के अनुसार यह स्कीम 31 अक्टूबर तक है, इसलिए बहुत सी कंपनियां अभी स्थिति का जायजा ले रही हैं।
कोविड-19 से पहले की तुलना में उत्पादन कुछ जगहों पर 50 फीसदी तक पहुंचा है, तो कहीं एक चौथाई काम भी शुरू नहीं हो सका है। सालुंखे ने बताया कि अभी उत्पादन 18 से 20 फीसदी ही हो रहा है। वे कहते हैं, “कच्चे माल की समस्या है और ज्यादातर पुराने ऑर्डर रद्द हो गए हैं, तो सामान किसे बेचेंगे। सिर्फ जरूरी वस्तुओं का उत्पादन हो रहा है।” हालांकि मराठवाड़ा क्षेत्र में स्थिति बेहतर है। हंचनाल के अनुसार अभी उत्पादन का स्तर 40 से 50 फीसदी तक है। अगर कोरोनावायरस पर नियंत्रण पा लिया गया और मानसून अच्छा रहा तो दिवाली तक यह 70 से 80 फीसदी तक पहुंच जाएगा। दिल्ली एनसीआर में स्थिति थोड़ी बेहतर है। गोयनका के अनुसार, यहां उत्पादन स्तर 60 फीसदी के आसपास पहुंचा है। ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में यह करीब 70 फीसदी हो गया है। उत्तर प्रदेश की इकाइयों में यह 50 से 60 फीसदी तक है। पंकज बताते हैं कि दिल्ली और एनसीआर के बीच जब तक लोगों का आना-जाना सामान्य नहीं होगा और जब तक बीमारी पर नियंत्रण नहीं होगा, तब तक कामकाज सामान्य होने की उम्मीद नहीं है।
श्रमिकों की समस्या
उत्पादन कम हो रहा है इसलिए फिलहाल श्रमिकों की समस्या नहीं है। गोयनका के अनुसार, दिल्ली-एनसीआर में यह समस्या 70 फीसदी तक हल हो गई है क्योंकि करीब 50 फीसदी श्रमिक स्थानीय होते हैं। जो बाहरी हैं उनमें भी अनेक लौट आए हैं। लेकिन हर जगह स्थिति ऐसी नहीं है। पंकज बताते हैं कि उत्तर प्रदेश में गारमेंट, लकड़ी पर नक्काशी, हैंडीक्राफ्ट जैसे सेक्टर में श्रमिक नहीं होने के चलते काम लगभग ठप है। श्रमिकों को लगता है कि लॉकडाउन दोबारा लागू हो सकता है, इसलिए वे डरे हुए हैं। मेरठ में ज्वेलरी का काफी काम होता है, यहां करीब 6,000 कारीगर पश्चिम बंगाल के हैं जो चले गए हैं। सूरत और दूसरे शहरों से लौटे श्रमिक भी इस काम में माहिर हैं और यहां काम तलाश रहे हैं, लेकिन यहां उन्हें पैसे कम मिलेंगे। हंचनाल भी मानते हैं कि उत्पादन बढ़ने के साथ श्रमिकों की समस्या आने वाली है, क्योंकि जो लोग वापस गए हैं उनका दो-तीन महीने में लौटना मुश्किल है।
सरकार ने एमएसएमई की परिभाषा बदलते हुए 50 करोड़ रुपये तक निवेश और 250 करोड़ रुपये तक टर्नओवर वाली कंपनियों को इस श्रेणी में ला दिया है। इससे 90 फीसदी कंपनियां एमएसएमई श्रेणी में आ गई हैं। हंचनाल के अनुसार इस श्रेणी में आने वाली बड़ी कंपनियों को ही लाभ मिलेगा, जो कंपनियां पहले से इस श्रेणी में हैं उन पर फर्क नहीं पड़ेगा। कैसे लाभ मिलेगा, इस पर गोयनका कहते हैं, “50 करोड़ के टर्नओवर में विदेशी फंडिंग नहीं आती थी, अब कंपनियों को छह फीसदी ब्याज पर विदेशी कर्ज मिल सकता है। इसके अलावा, एमएसएमई होने के कारण उन्हें घरेलू बैंकों से भी आसान और सस्ता कर्ज मिल सकेगा।” सालुंखे मानते हैं कि छोटे उद्यमों के लिए भी टर्नओवर की सीमा 50 करोड़ के बजाय 75 करोड़ रुपये होनी चाहिए थी।
सामान बेचने की दिक्कत
कर्ज के अलावा और समस्याएं भी हैं। फोस्मी के भट्टाचार्य के अनुसार मौजूदा हालात में उत्पादन करना ही मुश्किल है। अगर सामान बना लिया तो बेचने की दिक्कत है। सप्लाई चेन अभी तक बाधित है, लॉजिस्टिक्स का खर्च भी बढ़ गया है। बड़ी कंपनियां इनपुट क्रेडिट तो ले रही हैं लेकिन एमएसएमई को भुगतान में देरी कर रही हैं। लॉकडाउन खुलने के बाद कच्चे माल के सप्लायर पैसे मांग रहे हैं, दूसरी तरफ हमारा भुगतान अटका हुआ है। जब तक सप्लायर को पैसे नहीं देंगे, हमें कच्चा माल नहीं मिलेगा। हिंदूनाथन के अनुसार, वित्त मंत्री ने कहा था कि 30 दिनों में भुगतान कर दिया जाएगा, लेकिन सरकारी कंपनियों ने भी अभी तक भुगतान रोका हुआ है।
हंचनाल मानते हैं कि एमएसएमई की मदद के लिए सरकार को पुरानी स्कीमों का बजट भी बढ़ाना चाहिए। उदाहरण के लिए, अगर किसी कंपनी को टेक्नोलॉजी अपग्रेड करने पर एक करोड़ रुपये का खर्च आता है तो 15 लाख रुपये सरकार देती है, लेकिन यह सीमा 10 साल से ज्यादा पुरानी है। आज एक करोड़ रुपये में टेक्नोलॉजी अपग्रेड नहीं हो सकती है। भट्टाचार्य के अनुसार सरकार को तकनीक विकसित करके एमएसएमई को देना चाहिए, इससे उत्पादन की लागत कम होगी। गोयनका मानते हैं चीन की तरह यहां भी रिसर्च ऐंड डेवलपमेंट का जिम्मा सरकार ले तो भारत के एमएसएमई काफी आगे निकल सकते हैं।
हंचनाल सरकार की एक और घोषणा की बात करते हैं। छोटी कंपनियों के लिए भविष्य निधि में नियोक्ता और कर्मचारी दोनों का हिस्सा सरकार जमा करेगी, लेकिन शर्त यह है कि कंपनी के 90 फीसदी कर्मचारियों का वेतन 15,000 रुपये से कम होना चाहिए। इस शर्त के कारण बहुत कम कंपनियों को इसका लाभ मिल रहा है। हंचनाल सवाल उठाते हैं कि क्या सरकार कम वेतन देने वाली कंपनियों को प्रोत्साहन देना चाहती है।
लॉकडाउन में कुछ एमएसएमई ने खुद को तेजी से बदला है। गोयनका के अनुसार, करीब 1,500 एमएसएमई पीपीई किट और सैनिटाइजर बना रहे हैं। मांग से ज्यादा सप्लाई हो रही है, इसलिए हमने सरकार से इनका निर्यात करने की अनुमति मांगी है। लेकिन क्या ऐसी नीतियां बनेंगी जिनसे एमएसएमई फल-फूल सकें? इसके जवाब में भट्टाचार्य कहते हैं, उद्यमिता एक बात है और नौकरशाहों की मानसिकता दूसरी बात। एमएसएमई के लिए नियम बनाने वाले नौकरशाहों का नजरिया उद्यमियों से बिलकुल अलग होता है। उन्होंने कभी बिजनेस किया ही नहीं तो इसके तौर-तरीकों की भी जानकारी उन्हें नहीं होती है। भट्टाचार्य के अनुसार, सरकार ने गरीबों को नकद ट्रांसफर दिया है, दूसरी तरह की मदद भी की है जो बेहद जरूरी हैं। लेकिन इनसे खाने-पीने जैसी बुनियादी चीजों की ही मांग बढ़ेगी। इंडस्ट्री को इससे फायदा नहीं होगा। एमएसएमई की डिमांड तभी बढ़ेगी जब बड़ी कंपनियों द्वारा बनाई जाने वाली वस्तुओं की मांग बढ़े।
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20 फीसदी की सीमा समझ से परे है, यह टर्नओवर के हिसाब से होना चाहिए था। अगर किसी का बकाया कर्ज 29 फरवरी को चार-पांच लाख रुपये होगा तो वह एक लाख रुपये के लिए बैंकों के चक्कर नहीं लगाएगा
पंकज कुमार, प्रेसिडेंट, इंडियन इंडस्ट्रीज एसोसिएशन
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बैंकों को उद्यमियों के आवेदन पर 24 घंटे में निर्णय लेना चाहिए, लेकिन वे 15 से 20 दिन लगा रहे हैं। लीज एग्रीमेंट या दूसरे कागजात भी मांग रहे हैं। उन लोगों को तो बुलाकर कर्ज दे रहे जिनका रिकॉर्ड अच्छा है
चंद्रकांत सालुंखे, प्रेसिडेंट, महाराष्ट्र इंडस्ट्रियल ऐंड इकोनॉमिक डेवलपमेंट एसोसिएशन
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बिजनेस नहीं तो कर्ज लेकर क्या करें
विनय राठी, डायरेक्टर, ओमेक कंपोनेंट्स प्राइवेट लिमिटेड, महाराष्ट्र
“ मुझे बैंक ने 7.25 फीसदी ब्याज पर लोन का ऑफर किया है। जब भविष्य के बिजनेस का ही पता नहीं, तो कर्ज लेकर क्या करेंगे। कहने को यह लोन कोलेटरल-फ्री है लेकिन अगर किसी ने लोन लिया और भुगतान में डिफॉल्ट किया तो उसका क्रेडिट खराब हो जाएगा। कर्ज पर मोरटोरियम से ब्याज की देनदारी काफी बढ़ जाएगी, इसलिए कम लोग ही यह विकल्प चुन रहे हैं। सिडबी पांच फीसदी ब्याज पर कर्ज की स्कीम लेकर आई है लेकिन यह सिर्फ कोविड-19 से लड़ने वाले उपकरण बनाने वालों के लिए है। सरकार को राहत देनी ही थी, तो इसका दायरा बढ़ाना चाहिए था। जीएसटी भुगतान को कुछ समय के लिए टाला जाए तो छोटी कंपनियों को काफी मदद मिलेगी। वे इस रकम का इस्तेमाल कारोबार में कर सकेंगे।”
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एमएसएमई के लिए क्या है स्कीम
कैबिनेट ने 20 मई को इमरजेंसी क्रेडिट लाइन गारंटी स्कीम (ईसीएलजीएस) के तहत तीन लाख करोड़ रुपये की अतिरिक्त फंडिंग को मंजूरी दी थी और 26 मई को इसकी अधिसूचना जारी हुई। बैंक और वित्तीय संस्थान अधिकतम 9.25 फीसदी और एनबीएफसी अधिकतम 14 फीसदी ब्याज पर कर्ज दे सकते हैं। कर्ज और ब्याज की 100 फीसदी गारंटी नेशनल क्रेडिट गारंटी ट्रस्टी कंपनी (एनसीजीटीसी) देगी। सरकार ने मौजूदा वित्त वर्ष समेत चार वर्षों के लिए 41,600 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है। यह स्कीम छह महीने यानी 31 अक्टूबर 2020 तक है। अगर बैंक उससे पहले तीन लाख करोड़ रुपये का कर्ज दे देते हैं तो उसी दिन स्कीम की अवधि समाप्त मानी जाएगी। 29 फरवरी को जिन इकाइयों पर 25 करोड़ रुपये तक का कर्ज और सालाना टर्नओवर 100 करोड़ रुपये तक था, वही इस स्कीम के तहत आवेदन कर सकती हैं। यह कर्ज चार साल के लिए है और इसे लौटाने पर एक साल का मोरेटोरियम रहेगा। कैबिनेट ने 1 जून को एमएसएमई की नई परिभाषा को मंजूरी देते हुए निवेश और टर्नओवर की सीमा बढ़ा दी और निर्यात को टर्नओवर से बाहर कर दिया। नई परिभाषा 1 जुलाई से लागू होगी। कैबिनेट ने 1 जून को ही ज्यादा संकट वाले एमएसएमई के लिए 20,000 करोड़ रुपये और इक्विटी में सरकारी निवेश के लिए 50,000 करोड़ रुपये के फंड को मंजूरी दी। आमतौर पर एमएसएमई स्टॉक एक्सचेंज में नहीं जाते, क्योंकि वहां अनेक नियमों का पालन करना होगा। इसलिए उद्योग के जानकार इक्विटी में सरकारी निवेश को अच्छा विकल्प मानते हैं। सरकार को जब तक डिविडेंड मिलता रहेगा तब तक वह कंपनी में निवेश बरकरार रख सकती है।