भारतीय कुटीर, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) को भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ कहा जाता है। कोरोना महामारी ने बीते दो साल में इस रीढ़ को तकरीबन पूरी तरह तोड़ दिया है। बिहार के भागलपुर शहर के सुजागंज निवासी रोहित संथालिया ने लॉकडाउन के दौरान अपने रेडीमेड कपड़ों के कारोबार में भारी नुकसान झेलने के बाद आत्महत्या कर ली। उनके ऊपर अपने व्यवसाय को बहाल करने और कर्ज चुकाने का जबरदस्त दबाव था। इसी तरह कारोबार में बढ़ते कर्ज के चलते जूता व्यवसायी राजीव तोमर ने अपनी पत्नी पूनम के साथ जहर खाकर जान देने की कोशिश की। तोमर ने पत्नी के साथ फेसबुक पर लाइव होकर जहर खाया और बढ़ते कर्ज को इसका जिम्मेदार बताया।
फेसबुक लाइव में रोते हुए राजीव लोगों से अपनी आपबीती साझा करते हैं, "मुझे लगता है कि मुझे बोलने की आजादी है। मेरे ऊपर बहुत कर्ज है। मैं (नरेंद्र) मोदी से कहना चाहता हूं कि आप छोटे व्यापारियों और किसानों के हितैषी नहीं हैं। आप अपनी नीतियों को बदलिए।"
पिछले साल 24 अगस्त को मध्य प्रदेश की वाणिज्यिक राजधानी इंदौर की एक घटना ने पूरे प्रदेश को झकझोर दिया था। भरी दोपहर में लगभग 65 और 75 साल के दो बुजुर्गों को एक-एक शव गोद में थामे चलते देख लोग सहम से गए। इनके ठीक पीछे कई सारे लोग चल रहे थे और बीच में और शव को कुछ लोगों ने कंधा दिया हुआ था। ये चारों शव एक ही परिवार के थे। इस घटना के संबंध में पुलिस को जो सुसाइड नोट हाथ लगा वो तो और भी विचलित कर देना वाला था: "मैं अमित यादव अपने पूरे होश में यह पत्र लिख रहा हूं। जीने की इच्छा मेरी भी है पर मेरे हालात अब ऐसे नहीं रहे। आदमी मैं बुरा नहीं हूं। इसमें किसी की कोई गलती नहीं है, मेरी ही है। मैंने कई ऑनलाइन ऐप से लोन ले रखा है। मैं लोन नहीं भर पा रहा हूं। इज्जत के डर से यह कदम उठा रहा हूं। कृपा कर पुलिस मेरे परिवार जैसे मां-बाप, सास-ससुर को परेशान न करे। मैं ही दोषी हूं।"
बिहार के नवादा जिले के न्यू एरिया में फलों का कारोबार करने वाले केदारलाल गुप्त को भी कर्ज की बेइज्जती से उबरने का यही रास्ता समझ में आया। परिवार के छह सदस्यों के साथ जहर खाकर उन्होंने जान दे दी। दो पन्ने के सुसाइड नोट में केदार लाल ने सूदखोरों की प्रताड़ना की चर्चा करते हुए छह लोगों के नाम लिखे थे। केदार कर्ज अदायगी के लिए मोहलत मांग रहे थे मगर वे कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थे और पांच-छह साल से लगातार उन्हें परेशान कर रहे थे। परिवार का सातवां सदस्य अमित दिल्ली में रहता था। यहां रहता तो शायद उसकी भी कुछ ऐसी ही गति होती।
अमित के अनुसार सूदखोर कर्ज अदा नहीं करने पर परिवार के लोगों को उठा लेने की धमकी देते थे, टॉर्चर करते थे। मजबूरी में परिवार ने यह कदम उठाया। जहर खाकर जान देने वालों में केदार लाल गुप्ता, उनकी पत्नी, बेटी गुड़िया, शबनम, साक्षी और बेटा प्रिंस थे।
रोहित, राजीव, अमित और केदार लाल की एक जैसी दिखने वाली अलग-अलग कहानियों से यह आसानी से समझा जा सकता है कि कैसे तरह-तरह के व्यापारिक संकट व्यापारियों के ऊपर कहर बनकर टूटे हैं। सरकार के आंकड़ों के अनुसार, देश में वित्तीय वर्ष 2021-22 (9 मार्च, 2022 तक) के दौरान सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों के रूप में एमएसएमई मंत्रालय के साथ पंजीकृत लगभग 5,907 व्यवसाय बंद हो गए हैं।
हरियाणा स्थित एक छोटी इलेक्ट्रिकल पैनल फर्म माइक्रोटेक इंडस्ट्रीज के मालिक सच्चिदानंद मिश्रा आउटलुक से कहते हैं, "कोविड-19 से पहले भी कारोबारी माहौल इतना अच्छा नहीं था, लेकिन कोविड ने हमारे कारोबार को पस्त कर दिया है।"
फार्माकैम कंपनी के मालिक संजय कुमार आउटलुक से कहते हैं, "सरकार हमें आसमान से चांद-तारे लाने के सपने दिखा रही है फिर भी वह इस क्षेत्र की बुनियादी समस्याओं को हल नहीं कर रही है। व्यवसायियों द्वारा बढ़ती आत्महत्याएं इस बात की स्पष्ट गवाही देती हैं कि सिस्टम में बहुत कुछ गलत है और सरकार को इस पर ध्यान देने की जरूरत है।"
मिश्रा कहते हैं, "बड़े बिजनेस घरानों को नहीं बल्कि छोटे उद्यमियों को सरकार के समर्थन की जरूरत है। बड़े व्यवसायी उस स्तर पर हैं जहां वह स्वयं अपनी मदद कर सकते हैं लेकिन सरकार अगर छोटे बिजनेस को आगे बढ़ाने के बारे में सोच रही है तो सबसे पहले इसकी नींव को मजबूत करना होगा।"
पीएचडी चैंबर ने आगामी बजट-2023 के लिए सरकार को अपनी सिफारिशों में एमएसएमई के बकाया को अनिष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) में वर्गीकृत करने के लिए 90 दिनों की सीमा के प्रावधान को बढ़ाकर 180 दिन करने का आग्रह किया था। संजय कुमार इस पर कहते हैं, "कई मामलों में एमएसएमई का कार्य-चक्र 90 दिन की अवधि से बहुत अधिक का होता है और यही वजह है जिससे एमएसएमई अपने खरीदारों से समय पर भुगतान प्राप्त करने के लिए संघर्ष करते हैं।"
लुधियाना के एक कपड़ा व्यापारी राजन रिखी कहते हैं, "हमें कुछ बुनियादी मदद मिलनी चाहिए, पूंजी तक आसान पहुंच से लेकर जमीन की आसान उपलब्धता तक, हमें लगभग हर चीज पर स्पष्टता मिलनी चाहिए।" सच्चिदानंद मिश्र कहते हैं कि अगर इन समस्याओं पर सरकार ध्यान नहीं देती है तो ऐसी हृदयविदारक खबरें मिलती रहेंगी। वे कहते हैं, "दुखद यह है कि किसानों की तरह हमारे लिए कोई खड़ा नहीं होगा।"
(दिल्ली से राजीव नयन, भोपाल से अनूप दत्ता और रांची से नवीन मिश्रा की रिपोर्ट)