अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प से यारी टूटने, बाजार डूबने और दूसरे बड़े बाजार चीन में भी हिस्सेदारी घटने के बाद जाने-माने अमीर एलॉन मस्क की टेस्ला कार को क्या भारत में आसरा मिलेगा? अलबत्ता शायद इसी उम्मीद से उसने 15 जुलाई 2025 को मुंबई के बांद्रा-कुर्ला कॉम्प्लेक्स के मेकर मैक्सिटी मॉल में अपना पहला शोरूम लॉन्च किया। उसके कर्णधार बने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस, जिनके हाथों उद्घाटन हुआ और यह भी संकेत मिला कि देश सत्तारूढ़ पार्टी की मेहरबानी उस पर है। यह शोरूम न सिर्फ ईवी सेक्टर में चर्चा का विषय बना, बल्कि इससे जुड़ी चुनौतियां और आशंकाएं भी सामने आईं। करीब एक दशक से चल रही बातचीत, आयात शुल्क की खींचतान और ट्रम्प की अनिश्चित नीतियों के बीच टेस्ला भारत में पहला कदम रख रही है। सो, कई सवाल खड़े हैं। क्या टेस्ला कीमतों के मोलतोल में यकीन करने वाले भारतीय बाजार में अपनी जगह बना पाएगी? या फिर यह फोर्ड और फिएट जैसी प्रीमियम कंपनियों की तरह असफल प्रयोग बनकर रह जाएगी? क्या यह टाटा मोटर्स और महिंद्रा जैसी भारतीय कंपनियों के लिए खतरे की घंटी है या टेस्ला की देखा-देखी यहां की कंपनियां भी बेहतर करने की कोशिश करेंगी?
जोखिम भरा दांव?
वैसे तो टेस्ला की भारत में एंट्री अचानक नहीं हुई। कंपनी ने 2015 से ही भारतीय बाजार में दिलचस्पी दिखानी शुरू कर दी थी। लेकिन 70 से 100 प्रतिशत तक का भारी-भरकम आयात शुल्क लंबे समय तक बाधा बना रहा। एलॉन मस्क ने 2021 में ट्विटर (अब एक्स) पर कहा था कि भारत में दुनिया की सबसे ज्यादा आयात ड्यूटी है। तो, अब क्या बदला है? केंद्र सरकार ने हाल ही में एक नई नीति लागू की है, जिसमें विदेशी कंपनियों को 4,150 करोड़ रुपये के निवेश और 50 प्रतिशत स्थानीय उत्पादन की शर्त पर 15 प्रतिशत आयात शुल्क की रियायत दी गई है। इसी में टेस्ला को शायद मौका दिख रहा है, बशर्ते इस दिशा में बढ़े। हालांकि भारतीय बाजार के दूसरे पहलू उसके लिए चुनौती की तरह हैं।
मुंबई में टेस्ला शो रूम के उद्घाटन अवसर पर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़णवीस
मुंबई में लॉन्च टेस्ला के मॉडल वाइ की ऑन-रोड कीमत 59.89 लाख रुपये है। अमेरिका की तुलना में यह दोगुना है। इसके विपरीत, महिंद्रा की फ्लैगशिप बीई 6 और टाटा की हैरियर ईवी जैसे विकल्प 19 से 30 लाख रुपये में उपलब्ध हैं। फिर, एक बार बैटरी चार्ज होने पर कितने किलोमीटर का सफर यानी रेंज के मामले में भी टेस्ला को कड़ी टक्कर मिल रही है। महिंद्रा बीई 6 की रेंज 557 किलोमीटर है, जबकि टेस्ला मॉडल वाइ की रेंज 500 किलोमीटर है।
टेस्ला की भारत में शुरुआत ऐसे समय में हुई है, जब कंपनी अपने दो बड़े बाजारों (अमेरिका और चीन) में चुनौतियों का सामना कर रही है। 2025 की पहली तिमाही में टेस्ला की वित्तीय स्थिति डगमगाई हुई है। कंपनी का ग्रॉस मार्जिन (लागत घटाने के बाद का मुनाफा) 16.3 प्रतिशत तक गिर गया, जो पिछले साल 17.4 प्रतिशत था। जनवरी से मार्च के बीच कमाई 19.34 अरब डॉलर रही, जो बाजार के 21.11 अरब डॉलर के अनुमान से काफी कम थी। कमजोर मांग और कीमतों पर दबाव इसके पीछे की बड़ी वजहें थीं। अमेरिकी शेयर बाजार में टेस्ला के प्रति उत्साह घट गया है। पिछले छह महीने में शेयर मूल्य में लगभग 24.8 प्रतिशत की गिरावट आई है।
चीन में, जहां कभी टेस्ला की गाड़ियों की दीवानगी थी। 2020 में उसकी बाजार हिस्सेदारी 15 प्रतिशत थी, लेकिन 2025 के पहले पांच महीनों में घटकर 7.6 प्रतिशत रह गई है। वहां बीवाइडी और शाओमी जैसे स्थानीय ब्रांड सस्ते दामों में आकर्षक फीचर दे रहे हैं।
इन चुनौतियों के बीच भारत टेस्ला के लिए एक नया अवसर बनकर उभरा है। भारतीय बाजार उसे लुभा रहा है। कंपनी को उम्मीद है कि अमेरिका और चीन में घटती मांग की भरपाई भारत में हो सकती है। लेकिन राह आसान नहीं लगती है।
कंपनी ने अब तक भारत में फैक्ट्री लगाने की कोई औपचारिक घोषणा नहीं की है। वह पहले यह परखना चाहती है कि भारतीय ग्राहक उसके ब्रांड को किस हद तक स्वीकार करते हैं। ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट बताती है कि टेस्ला का यह कदम अभी वॉल्यूम बढ़ाने से ज्यादा ब्रांड की मौजूदगी दर्ज कराने पर है।
भारतीय बाजार की चुनौतियां
भारत में टेस्ला का मुकाबला उन कंपनियों से है, जो पहले ही भारतीय बाजार की नब्ज पहचान चुकी हैं। भारत में टाटा मोटर्स और महिंद्रा ऐंड महिंद्रा कंपनियां न सिर्फ किफायती कीमतों पर गाड़ियां पेश कर रही हैं, बल्कि भारतीय सड़कों और ग्राहकों की जरूरतों को बेहतर समझती हैं। ईवी मार्केट में टाटा का 60 प्रतिशत से अधिक बाजार की हिस्सेदारी के साथ दबदबा है।
टेस्ला के सामने एक और बड़ी चुनौती, उसका कम ग्राउंड क्लीयरेंस है। यानी यह सड़क से ज्यादा ऊंची नहीं है, जो भारत की उबड़-खाबड़ सड़कों पर मुश्किलें खड़ी कर सकता है। सामको सिक्योरिटीज के मुताबिक भारतीय ग्राहक दाम के मुकाबले गाड़ी की व्यावहारिकता को प्राथमिकता देते हैं। इस मामले में टेस्ला को स्थानीय कंपनियों से कड़ा मुकाबला मिलेगा।
चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर भी अभी यहां अहम मुद्दा है। 2024 तक भारत में केवल 20,000 चार्जिंग स्टेशन थे, जबकि चीन में यह संख्या 22 लाख और अमेरिका में 17 लाख तक पहुंच चुकी है। फास्ट चार्जिंग की कमी, बिजली ग्रिड की कमजोरी और भरोसेमंद सर्विस नेटवर्क की अनुपस्थिति ईवी क्रांति की गति को भारत में रफ्तार पकड़ने से रोक रही है।
इन चुनौतियों को भांपते हुए टेस्ला ने अपनी रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है। कंपनी मुंबई के बाद, दिल्ली में चार सुपरचार्जिंग स्टेशन और 16 सुपरचार्जर लगाने की योजना बना रही है। इसके अलावा, प्रमुख शॉपिंग मॉल्स में 16 डेस्टिनेशन चार्जिंग प्वाइंट स्थापित करने की भी तैयारी है।
सुनहरा अवसर
चीन और भारत ने लगभग एक ही दौर में इलेक्ट्रिक मोबिलिटी की शुरुआत की थी, लेकिन आज चीन इस क्षेत्र में वैश्विक नेतृत्व कर रहा है। वहां 2024 में 17 लाख इलेक्ट्रिक गाड़ियां बिकीं और सड़कों पर कुल 4.13 करोड़ ईवी मौजूद हैं। इसके मुकाबले भारत में कुल पैसेंजर व्हीकल बिक्री में ईवी का हिस्सा अभी भी सिर्फ 2.5 प्रतिशत है।
चीन की सफलता के पीछे भारी सब्सिडी और मजबूत चार्जिंग नेटवर्क का हाथ है। भारत में टेस्ला की एंट्री को लेकर मिली-जुली प्रतिक्रिया है। दुनिया के तीसरे सबसे बड़े ऑटो बाजार में कदम रखते वक्त टेस्ला ने न तो कोई बड़ा ऐलान किया और न मस्क खुद भारत आए। इसके उलट, एप्पल, माइक्रोसॉफ्ट और गूगल जैसी कंपनियों ने जब भारत में प्रवेश किया, तब उनके पीछे मजबूत घोषणाएं और विजन दिखता था।
एस ऐंड पी ग्लोबल मोबिलिटी का मानना है कि टेस्ला की मौजूदगी भारतीय बाजार को नई तकनीक और बेहतर ईवी इकोसिस्टम की ओर ले जाएगी। महिंद्रा के चेयरमैन आनंद महिंद्रा इसे प्रतिस्पर्धा का मौका मानते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत में टेस्ला की कामयाबी इस बात पर निर्भर करेगी कि वह यहां के लोगों की जरूरतों, बजट और बाजार की स्थिति को कितनी अच्छी तरह समझकर अपनी रणनीति बनाती है। लेकिन मस्क के अपने देश और दुनिया के बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की उथल-पुथल पर यह उतना ही निर्भर करेगा।