स्मार्ट यूनिवर्सिटी ने खेती-किसानी विषय पर निबंध प्रतियोगिता का आयोजन किया। इसमें प्रथम पुरस्कार प्राप्त निबंध इस प्रकार है-
किसान का भारी, घणा, बहुआयामी, विशेष, बहुतै जबरदस्त महत्व है। मतलब इतना महत्व है, इतना जबरदस्त महत्व है कि खुद किसान को भी ना मालूम कि कितना महत्व है। इसलिए तो महत्व से अनजान महाराष्ट्र के किसान लगातार आत्महत्याएं करते रहते हैं, जबकि सिर्फ उनकी बात ही हर तरफ हो रही है।
महाराष्ट्र में विधानसभा चुनावों के परिणाम आने के बाद तमाम नेता इधर-उधर मुलाकात करते रहे। पत्रकार उनसे पूछते थे कि आप फलां नेता से मिलकर क्या बोले, तो जवाब मिलता था-हमारी कोई राजनीतिक मुलाकात नहीं थी। हम तो खेती की, शेतकरी के भले की बातें करने आए थे। मराठी में किसान को शेतकरी कहते हैं। पर हम देखते हैं कि किसान की भलाई की बातें सिर्फ मराठी में ही नहीं हुईं हाल में, हिंदी भाषा में भी हुई हैं। शरद पवार पीएम मोदी से मिले, तो भी यही बताया गया कि किसानों की बातें करने के लिए मिले। शिवसेना के संजय राउत ने अनगिनत मुलाकातें कीं शरद पवार के साथ, हरेक बार पत्रकारों को यही बताया गया कि राजनीतिक बात थोड़े ही हुई, वो तो किसानों की बातें हुईं। शेतकरी का भला कैसे हो, इस विषय पर बात हुई। और बार-बार हुई, लगातार हुई। हिंदी में हुई, मराठी में हुई।
इस मुल्क का किसान अत्यधिक कृतघ्न लगता है। इतनी बातें हो रही हैं, इतनी बातें हो रही हैं फिर भी आभार ना मानता। जाकर जान दे देता है। अरे बातें कितनी सारी हो रही हैं, कितनी वेरायटी की हो रही हैं, मुंबई में हुईं, पुणे में हुईं, सतारा में हुईं, दिल्ली में हुईं, और क्या चाहिए। किसान कृतघ्न या मुल्क का शेतकरी शातिर है, वह चुप्पी मार जाता है, धन्यता का भाव ना दरशाता।
किसान कृतघ्न है या नासमझ है। उसे समझ ही ना आ रहा है कि वहां उसके इतने भले की बातें हो गई हैं। कृषि और राजनीति विश्वविद्यालय के एक अध्ययन में साफ हुआ कि किसान अगर एक क्विंटल गेहूं पैदा करता है, तो नेता एक क्विंटल के ऊपर पांच क्विंटल बातें पैदा कर देता है। किसान खस्ताहाल है, नेता खुशहाल है। यानी गेहूं पैदा करने से ज्यादा कमाई का धंधा बातें पैदा करने का है। पर जैसा कि पहले ही कहा जा चुका है कि किसान नासमझ भी है, वह गेहूं, प्याज, टमाटर पैदा करने लगता है, बातें पैदा ना कर पाता और एक दिन लटक लेता है। अगर सच में पता लग जाए किसान को कि उसके भले की कितने टन बातें नेता कर रहे हैं, तो वह जान देने का इरादा छोड़ दे। किसान को यह समझ में ना आता कि किसान मेहनत से टमाटर-प्याज उगाता है, फिर भी कमाई ना हो पाती। दूसरी तरफ किसान के गेहूं, प्याज, टमाटर पर नेता सिर्फ बातें उगाते हैं, और भरपूर कमाते हैं। बातों से धुआंधार कमाई है, ढंग से बातें उगाने का हुनर आए, तो बंदा टीवी एंकर से लेकर, निर्मोल बाबा से लेकर नेता तक बन सकता है।
पर किसी तरह की बातें उगाने में अक्षम किसान सिर्फ गेहूं-टमाटर उगाता रह जाता है, जहां उसे नाकामी मिलती है। यानी किसानों को अगर बातें उगाने की ट्रेनिंग दी जाए, तो वह भी कामयाबी हासिल कर सकता है।
एक एंकर है जो करीब पांच सौ भूत, हजार नाग उगा चुका है अपने कार्यक्रमों में, एकदमै फर्जी भूत और एकदमै फर्जी नाग। ये भाई फर्जी भूतों और फर्जी नागों से लाखों कमा लेता है और किसान यानी शेतकरी असली, सचमुच के टमाटर से भी हजारों ना कमा पाता। यानी कुल मिलाकर इस मुल्क में बातें उगाने का काम बहुत ही फायदेवाला है। पर किसान चूंकि इस बात को ना समझता, इसलिए हम कह सकते हैं कि किसान कतई अज्ञानी होता है और कृतघ्न तो होता ही है।
आदिवासी संस्कृति और खानपान की झलक
देश की राजधानी दिल्ली में पिछले दिनों आदिवासी लोक-संस्कृति की झलक देखने को मिली। दिल्ली हाट में जनजातीय हस्तशिल्प, कला, चित्रकला, वस्त्र, आभूषण, खान-पान के कई रंग नजर आए। दरअसल, जनजातीय कार्य मंत्रालय के अधीन ट्राइफेड ने ‘आदि महोत्सव- राष्ट्रीय जनजातीय उत्सव’ का आयोजन शुरू किया है, जिससे महानगरों और राज्यों की राजधानियों के बाजारों तक बड़े दस्तकारों और महिला शिल्पकारों की पहुंच बन सके। 16 नवंबर से 30 नवंबर तक चलने वाले इस आयोजन में यूं तो देश भर से आए आदिवासी कलाकारों और हस्तशिल्पियों ने भाग लिया, लेकिन लद्दाख और उत्तर पूर्व पर सरकार का खासा जोर दिखा। लद्दाख की पशमीना का काम, मेटल वर्क और एप्रिकॉट आधारित उत्पादों को विशेष तौर पर प्रदर्शित किया गया। जम्मू-कश्मीर, छत्तीसगढ़, तमिलनाडु, गुजरात, नगालैंड और सिक्किम के शिल्पकारों का भी विशेष आकर्षण रहा। इसके लिए 200 से ज्यादा स्टॉल लगाए गए थे।
लद्दाख से आए स्कर्मा टोकदन ने कहा, इस आयोजन से उन्हें यहां के ग्राहकों के रुझान के बारे में पता चला। उन्होंने बताया, “केंद्रशासित प्रदेश बनने के बाद हमें जिस तरह पहचान मिली है, वैसे ही अब हमारे उत्पादों की भी अलग पहचान बनेगी।” छत्तीसगढ़ के बस्तर की कलाकृतियों और वनोपज की भी अच्छी खासी मांग रही। बस्तर के आदिवासी किसानों की कंपनी ‘भूमगादी’ ने आदिवासी खाद्य परंपराओं को दिखाया। महाराष्ट्र के ‘आदि व्यंजन’ में महुए और मशरूम की बिस्किट के जरिए आधुनिकता का अंदाज भी दिखा। ग्राहकों के लिए खास बात यह रही कि यहां वे खरीदारी के साथ आदिवासी संगीत-नृत्य कार्यक्रमों का भी लुत्फ उठाते रहे। महोत्सव में आए दिल्ली के विशाल शुक्ला ने बताया कि उन्हें आदिवासी संस्कृति और खानपान को लेकर कई खास चीजों के बारे में जानने का मौका मिला। आदिवासियों को लेकर उनकी जिज्ञासा और बढ़ी है।