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गोलबंदी और रणनीति

पुलवामा हमले और राफेल पर कैग रिपोर्ट से परिस्थितियां नई, मगर मोर्चेबंदियां होने लगीं साफ
लामबंदी के तेवरः दिल्ली में आम आदमी पार्टी के मंच पर तमाम विपक्षी दिग्गजों की पेशबंदी अब साझा न्यूनतम कार्यक्रम तक आगे बढ़ी

दक्षिण कश्मीर के पुलवामा में 14 फरवरी को केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के काफिले पर भीषण आतंकी हमले के बाद बदले माहौल में रणनीतियां भी थोड़ी मुड़ीं। हमले के दिन लखनऊ में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने अपनी पूर्व निर्धारित प्रेस कॉन्फ्रेंस को दो मिनट की मौन श्रद्धांजलि के बाद खत्म कर दिया। कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी पार्टियों ने इस घड़ी में सुरक्षा बलों और सरकार के साथ खड़े होने का संकल्प दिखाया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह अपनी हर रैली में दोषियों को न बख्‍शने का संकल्प जताते रहे। बेशक, बदले माहौल का असर आम चुनावों की मोर्चेबंदी पर भी दिख सकता है। महाराष्ट्र में अरसे से नाराज चल रही शिवसेना के साथ भाजपा का चुनाव-पूर्व गठबंधन अंतिम शक्ल लेने लगा। मगर विपक्ष की मोर्चेबंदी के लिए पुलवामा हमले के एक दिन पहले ही दिल्ली में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के मुखिया शरद पवार के घर विपक्षी नेताओं की बैठक में न सिर्फ ज्यादातर सीटों पर भाजपा-एनडीए के खिलाफ एक उम्मीदवार खड़े करने पर, बल्कि सरकार चलाने के लिए एक साझा न्यूनतम कार्यक्रम तैयार करने पर भी बात हुई।

यानी मोर्चेबंदी में हर उस सवाल का ख्याल रखा जा रहा है, जो विरोधी पक्ष की तरफ से उठ सकता है। बैठक के बाद साझा न्यूनतम कार्यक्रम और साझा उम्मीदवार का ऐलान शरद पवार ने किया और कहा, “देश के सामने हम अपना वैकल्पिक एजेंडा भी पेश करेंगे।” मगर अभी भी यह सवाल बाकी है कि क्षेत्रीय स्तर पर कुछ पार्टियों में आपसी टकराहटों से निबटने का क्या फॉर्मूला है? पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री, तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी ने कहा, “भाजपा और मोदी को हराने के लिए हम हर तरह का बलिदान देने को तैयार हैं। ज्यादातर सीटों पर दोतरफा टक्कर ही होगी।” वैसे भी विपक्षी नेताओं का जुटान लगातार कई मौकों पर जाहिर हुआ है, जिससे यह अंदाजा निकाला जा सकता है कि फॉर्मूले पर बातचीत जारी है।

इस साल 19 जनवरी को कोलकाता में 22 पार्टियों के नेताओं के मंच साझा करने के बाद 11 फरवरी को दिल्ली में आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने के लिए तेलुगु देशम नेता, मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के धरने पर भी ये नेता जुटे। वहां कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी पहुंचे। फिर, 13 फरवरी को दिल्ली में आम आदमी पार्टी के मंच पर सभी नेताओं के साथ कांग्रेस के आनंद शर्मा के पहुंचने पर कुछ लोग हैरान हुए। खासकर दिल्ली प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष शीला दीक्षित कई बार कह चुकी हैं कि आप से कोई समझौता नहीं होगा। फिर पवार के घर पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और राहुल गांधी दोनों की मौजूदगी से कई कयास लगाए जाने लगे। अटकलें ये हैं कि आप और कांग्रेस के बीच 3-3-1 के फॉर्मूले पर बात अंतिम दौर में है। एक सीट किसी बाहरी नेता के लिए रखी जा रही है। हालांकि हाल के नगर निगम चुनावों में कांग्रेस करीब 21 फीसदी वोट से उत्साहित है कि उसका वोट बैंक बढ़ रहा है। इन चुनावों में आप को करीब 26 फीसदी वोट मिले थे। लेकिन संसदीय चुनावों में शायद यह दोनों को एहसास है कि लड़ाई तितरफा हुई तो उसका लाभ भाजपा को मिल सकता है, जिसका वोट प्रतिशत किसी चुनाव में 32 फीसदी से नीचे नहीं गया है।

दिल्ली के अलावा उत्तर प्रदेश में भी पेच फंसा हुआ है, जो लोकसभा चुनावों के लिहाज से सबसे अहम है। यह भी गौर करने वाली बात है कि शरद पवार के घर पर समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का कोई नेता नहीं पहुंचा था। लेकिन सपा-बसपा-रालोद गठबंधन से बाहर रह गई कांग्रेस ने प्रियंका गांधी को खासकर पूर्वी उत्तर प्रदेश और अवध की जिम्मेदारी देकर कुछ नई स्थितियां पैदा करने की कोशिश की है। प्रियंका गांधी के असर को लेकर कई तरह के कयास हैं। बसपा नेता मायावती लगातार भाजपा के साथ कांग्रेस पर निशाना साध रही हैं। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव भी कह चुके हैं, “हम भाजपा को हराना चाहते हैं मगर कांग्रेस अपनी पार्टी बनाना चाहती है।” लेकिन पुलवामा हमले के बाद भावनात्मक उफान की नई परिस्थितियों में समीकरणों पर नए सिरे से विचार की गुंजाइश बन सकती है। बाकी राज्यों में, पश्चिम बंगाल में कांग्रेस और वामपंथी पार्टियों के बीच तालमेल की सुगबुगाहट है। उसी के बारे में शायद ममता कह रही हैं कि हर तरह की कुर्बानी देने को तैयार हैं। ममता संसद के आखिरी दिन प्रदेश कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी और माकपा के सांसदों के तृणमूल सरकार पर हमले से भी खिन्न बताई जाती हैं, जिसका इजहार उन्होंने संसद के सेंट्रल हॉल में मिलीं सोनिया गांधी से भी किया। कथित तौर पर सोनिया गांधी ने कहा, “लेकिन हम दोस्त हैं।”

अभी तस्वीर बहुत हद तक साफ सिर्फ महाराष्ट्र में दिख रही है। वहां कांग्रेस-राकांपा के बीच 24-24 सीटों के बंटवारे के फॉर्मूले में स्वाभिमानी शेतकरी संघटना और प्रकाश आंबेडकर की अगुआई में छोटी पार्टियों के लिए जगह क्या होगी, इस पर अभी असमंजस है। भाजपा ने भी शिवसेना से गठबंधन कायम करके स्थितियां साफ कर दी हैं। लेकिन असली सवाल साझा न्यूनतम कार्यक्रम का है। कांग्रेस पहले ही ऐलान कर चुकी है कि किसान कर्जमाफी और न्यूनतम बुनियादी आय योजना उसकी फेहरिस्त में होगी। इसके अलावा शायद इस कार्यक्रम में संवैधानिक संस्‍थाओं की बहाली का भी कोई कार्यक्रम हो, जिनको बर्बाद करने का आरोप विपक्ष मोदी सरकार पर लगाता रहा है। लेकिन अभी कई तरह के ऊहापोह हैं।

इस ऊहापोह के बीच राफेल विमान सौदे पर नियंत्रक और महालेखापरीक्षक (कैग) की ‘अधूरी’ रिपोर्ट भी संसद में पेश हो गई है। कैग ऑफसेट पार्टनर अनिल अंबानी की कंपनी को चुनने के मामले पर रिपोर्ट बाद में पेश करेगा जो अब नई लोकसभा में ही पेश हो पाएगी, जबकि विपक्ष इसी मुद्दे पर सबसे अधिक हमलावर है। मौजूदा रिपोर्ट में कीमत तो जाहिर नहीं की गई है लेकिन वह 2.86 प्रतिशत तक यूपीए के दौर से सस्ती बताई गई है। रिपोर्ट के मुताबिक, बैंक गारंटी, सोवरेन गारंटी न लेने पर फायदा राफेल की कंपनी दस्सो को ही होगा। यही नहीं, रिपोर्ट सौदे को लेकर कई दूसरे सवाल भी खड़े करती है। सो, रिपोर्ट को सरकार और विपक्ष दोनों ही अपने हक में बता रहे हैं। बिलाशक, राफेल मुद्दा चुनावों में गरम रह सकता है।

बहरहाल, पुलवामा हमले से परिस्थितियां जरूर बदली हैं। इससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा को नई उम्मीद जगी है। उसे लगता है कि नए भावनात्मक उभार में मोदी सरकार के कामकाज और जवाबदेहियों से ध्यान हट जाएगा। लेकिन विपक्ष भी चौकस है और वह अपनी रणनीतियों में पूरी सावधानी बरतता दिख रहा है। जो भी हो, मोर्चेबंदियां और आम चुनावों में तीखी जंग की तस्वीर साफ होने लगी है।          

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