अभी बिहार में सात नए कुलसचिवों ने विश्वविद्यालयों की धूल पड़ी संचिकाओं को ठीक से साफ भी नहीं किया था कि हिमाचल प्रदेश से बिहार में राज्यपाल पद पर नियुक्त किए गए नए कुलाधिपति राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर ने उनकी नियुक्ति पर रोक लगा दी। सात विश्वविद्यालयों के कुलसचिवों की ये नियुक्तियां पूर्व राज्यपाल फागू चौहान ने की थी। उच्चपदस्थ सूत्र बताते हैं कि पिछले कुलाधिपति ने सात विश्वविद्यालयों में कुलसचिवों की नियुक्ति 13 से 15 फरवरी के बीच की थी जबकि उन्हें मेघालय के नए राज्यपाल के लिए 12 फरवरी को ही अधिसूचना जारी हो गई थी। इस पर कई शिक्षाविदों ने इन नियुक्तियों में भ्रष्टाचार का आरोप लगाया और ट्वीट में प्रधानमंत्री कार्यालय और राजभवन को भी टैग किया। बिहार विश्वविद्यालय के रिटायर प्रोफेसर रत्नेश आनंद ने प्रधानमंत्री कार्यालय को टैग किए गए अपने ट्वीट को दिखाते हुए कहा कि इस तरह के कई ट्वीट किए गए हैं।
नए राज्यपाल ने पदभार ग्रहण करने के बाद घोषणा की कि वे विश्वविद्यालयों की सीनेट और सिंडिकेट की बैठकों में भाग लेंगे। यह परंपरा मृतप्राय हो चुकी थी। हाल के वर्षों में कुलाधिपतियों के प्रतिनिधि ही बैठक के निर्णयों की जानकारी उन्हें देते थे। कुलाधिपति ने छपरा में जयप्रकाश यूनिवर्सिटी की सीनेट की बैठक में भाग लिया और कुलसचिव नीरज कुमार बबलू की छुट्टी कर दी। इससे शेष कुलसचिवों में बेचैनी बढ़ गई है।
राजभवन द्वारा जारी पत्रांक बीएसयू 6-2023-412 के अनुसार राज्य के सात विश्वविद्यालयों के कुलसचिवों के कामकाज रोक संबंधी पत्र में कामेश्वर सिंह दरभंगा विश्वविद्यालय, आरा का वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय, मुंगेर विश्वविद्यालय, मगध विश्वविद्यालय, पटना विश्वविद्यालय, मौलाना मजहरुल हक अरबी फारसी विश्वविद्यालय तथा पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय हैं। जानकारी के मुताबिक इन विश्वविद्यालयों में व्याप्त वित्तीय अनियमितता, सत्र में देरी, मनमानी पदस्थापना होती रही। मगध और जयप्रकाश विश्वविद्यालयों में तीन साल की बीए की पढ़ाई में आठ साल तक लग रहे हैं।
स्पेशल विजिलेंस यूनिट ने 22 मार्च को मगध विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति राजेंद्र प्रसाद के विरुद्ध 1,000 पन्ने की चार्जशीट दाखिल की है। गौरतलब है कि उन्हें पूर्व गवर्नर ने मगध विश्वविद्यालय के अतिरिक्त वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय का भी प्रभार दिया था। मगध विश्वविद्यालय का रिकॉर्ड लेट सेशन उनके ही कार्यकाल में हुआ। एसवीयू के एडीजी एनएच खान कहते हैं कि डॉ. राजेंद्र प्रसाद की वैध आय से 500 प्रतिशत अधिक संपत्ति बरामद हुई है। उन पर यह भी आरोप है कि युनिवर्सिटी के शीर्ष अधिकारीगण कुलसचिव पी के वर्मा, प्रॉक्टर जयनन्दन सिंह, लाइब्रेरी इंचार्ज विनोद कुमार और पीए सुबोध कुमार ने साठगांठ कर करोड़ों का गबन उनके कार्यकाल में किया।
आर्थिक अपराध इकाई के एक बड़े अधिकारी कहते हैं कि यह अपने किस्म का पहला मामला है जिसमें यूनिवर्सिटी के सभी बड़े अधिकारी शामिल हैं। इसके अतिरिक्त वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय के कुलसचिव, वित्तीय सलाहकार, परीक्षा नियंत्रक तथा वित्त अधिकारी पर भी आरोप पत्र दाखिल हो चुका है। इस केस में पूर्व कुलपति राजेंद्र प्रसाद सहित पहले से ही चार अधिकारी जेल में हैं। इसमें स्पेशल विजिलेंस ने 29 आरोपियों पर चार्जशीट दायर की है।
यह तो महज बानगी है। वित्तीय अनियमितता से घिरी सरकार ने विश्वविद्यालयों के पर्सनल लेजर अकाउंट में 1100 करोड़ के लेखे-जोखे का विवरण लेना शुरू कर दिया है। यह जांच भी अभी चल ही रही है। हद तो यह है कि पिछले एक-दो वर्षों में एक पर एक घोटाले सामने आने से आजिज आ चुके शिक्षा विभाग ने महालेखाकार को पत्र लिख कर विश्वविद्यालयों में वर्षों से ऑडिट नहीं होने का हवाला देते हुए जांच का अनुरोध किया है। लेकिन यह बात यहीं खत्म नहीं होती। अरबी-फारसी विवि के कुलपति प्रो. कुदुस ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पत्र लिख कर प्रभारी कुलपति एसपी सिंह पर आरोप लगाया था कि उन्होंने सात रुपये की दर वाली 60 हजार कापियां 16 रुपये की दर से लखनऊ के ही एक फर्म से खरीदी। तत्कालीन शिक्षा मंत्री विजय कुमार चौधरी ने इसे गंभीर मामला बताते हुए जांच के आदेश दिए हैं।
वैसे, डॉ. राजेंद्र प्रसाद पहले वीसी नहीं हैं जो जेल की हवा खा रहे हैं। विगत में ललित नारायण मिथिला युनिवर्सिटी के वीसी भ्रष्टाचार के आरोप में हवालात जा चुके हैं।