साल 2024 भारतीय खेल के लिए बड़ी उपलब्धियां लेकर आया। पिछले साल भारतीय खेल जगत ने ओलंपिक और पैरालंपिक जैसे प्रतिष्ठित मंचों पर चमक बिखेरी। पेरिस ओलंपिक 2024 में नीरज चोपड़ा ने पुरुषों की भाला फेंक प्रतियोगिता में रजत पदक, मनु भाकर ने महिला 10 मीटर एयर पिस्टल और मिक्स्ड टीम इवेंट में दो कांस्य पदक, स्वप्निल कुशाले ने 50 मीटर राइफल 3पी में कांस्य पदक जीतकर देश को नई ऊंचाई दी। अमन सहरावत ने कुश्ती में कांस्य जीतकर देश के सबसे युवा ओलंपिक पदक विजेता बनने का गौरव हासिल किया। फाइनल में न खेल पाने के बावजूद विनेश फोगाट ने सबका दिल जीता। भारतीय पैरा-एथलीटों ने पिछले प्रदर्शन से बेहतर किया। पेरिस पैरालंपिक 2024 में भारत ने 29 पदक (7 स्वर्ण, 9 रजत, 13 कांस्य) जीतकर नया रिकॉर्ड बनाया। अवनी लेखरा और सुमित अंतिल ने लगातार दूसरी बार स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रचा। हरविंदर सिंह ने आर्चरी में भारत का पहला पैरालंपिक स्वर्ण पदक जीता।
भारतीय पुरुष क्रिकेट टीम ने 17 साल बाद आइसीसी टी20 वर्ल्ड कप 2024 का खिताब जीता। भारतीय फुटबॉल को नई वैश्विक पहचान दिलाने वाले सुनील छेत्री ने संन्यास लिया। भारतीय हॉकी के महान गोलकीपर, पीआर श्रीजेश ने पेरिस ओलंपिक में कांस्य पदक के साथ करियर को अलविदा कहा। 43 वर्षीय रोहन बोपन्ना ने ऑस्ट्रेलियन ओपन 2024 में पुरुष डबल्स खिताब जीतकर सबसे उम्रदराज ग्रैंड स्लैम विजेता का रिकॉर्ड बनाया। 2024 में भारतीय शतरंज टीम ने पुरुष और महिला दोनों वर्गों में शतरंज ओलंपियाड का खिताब जीता। शतरंज में सोने पर सुहागा डी. गुकेश का विश्व शतरंज चैंपियन बनना था।
2024 कई खिलाड़ी उभरे, जिन्होंने उम्मीद जगाई। सो, 2025 उम्मीदों का वर्ष है। इस साल कई बड़े टूर्नामेंट तय हैं। 14 से 19 जनवरी तक नई दिल्ली में इंडिया ओपन बैडमिंटन होगा। जनवरी में खो-खो विश्वकप है। फरवरी-मार्च में क्रिकेट चैंपियंस ट्रॉफी का आयोजन होना है। 15 अगस्त से देश में होने वाले वनडे विश्वकप में कप्तान हरमनप्रीत कौर की महिला क्रिकेट टीम के पास पहली बार विश्व चैंपियन बनने का मौका होगा। राष्ट्रमंडल वेटलिफ्टिंग चैंपियनशिप में मीराबाई चानू खेलती दिखेंगी। दिसंबर में हॉकी के जूनियर विश्वकप की मेजबानी भारत करेगा। नवंबर माह में बॉक्सिंग का विश्वकप फाइनल नई दिल्ली में होगा। उम्मीद है कि 2025 में खिलाड़ी न केवल पदकों के लिए लड़ेंगे, बल्कि हर भारतीय में गर्व की भावना भी पैदा करेंगे। ग्यारह दमकते युवा सितारों पर नजरः
मनु भाकर (निशानेबाजी)
साल 2004 ओलंपिक में राज्यवर्धन सिंह राठौर के रजत और 2008 में अभिनव बिंद्रा के स्वर्ण पदक के बाद भारत के निशानेबाजों से देश की उम्मीदें बढ़ गई थीं। 2012 ओलंपिक में गगन नारंग (कांस्य) और विजय कुमार (रजत) इन उम्मीदों पर खरे भी उतरे लेकिन इसके बाद एक लंबा विराम आ गया। पेरिस ओलंपिक से पहले निशानेबाजी में भारत के पास केवल यही 4 पदक थे। लेकिन ओलंपिक 2024 में यह कहानी बदल गई और इस बदलाव का प्रतिनिधित्व मनु भाकर ने किया। मनु भाकर न केवल ओलंपिक पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला निशानेबाज बनीं, बल्कि एक ही इवेंट में दो पदक (दोनों कांस्य) जीतने वाली पहली और इकलौती खिलाड़ी भी बन गईं। केवल 22 वर्ष में, मनु अब तक सफलता की ऊंचाइयां देख चुकी हैं और असफलताओं के आंगन भी। टोक्यो ओलंपिक में तकनीकी कमियों के कारण उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ा था। लेकिन, मनु ने अपने कोच जसपाल राणा की मदद से पेरिस ओलंपिक में हिसाब बराबर कर लिया। उन्होंने एक कांस्य पदक व्यक्तिगत 10 मीटर एयर पिस्टल स्पर्धा में जीता, दूसरा सरबजोत सिंह के साथ 10 मीटर एयर पिस्टल मिश्रित टीम में।
मनु ने अपने कौशल से सबको अपना प्रशंसक बनाया है। यात्रा के उतार चढ़ाव ने उन्हें धैर्य सिखाया है और एक पेशेवर खिलाड़ी के रूप में मजबूत बनाया है। उनके बात करने के तरीकों और हावभाव में एक वरिष्ठ खिलाड़ी की झलकियां नजर आती हैं। 2025 में मनु की नजर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय इवेंट पर तो होगी ही, साथ ही उनका ध्यान अब 2028 ओलंपिक की तैयारियों पर भी है। साल के शुरू में मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार से सम्मानित होना मनु के लिए एक बड़ी उपलब्धि है।
मनु भाकर भविष्य की उम्मीद हैं। बहुत समय बाद भारत को निशानेबाजी में एक ऐसी खिलाड़ी मिली है, जिसने हर बड़े मंच पर देश की मेडल की उम्मीदों का भार अपने ऊपर ले लिया है। यह जिम्मेदारी मनु को निश्चित ही और बड़ा खिलाड़ी बनाएगी। निशानेबाजी में आने वाले खिलाड़ी उनके संघर्ष से प्रेरणा ले सकेंगे। मनु हर हाल में बस जीतना चाहती हैं।
लक्ष्य सेन (बैडमिंटन)
बैडमिंटन भारतीयों के लिए भले ही बहुत चकाचौंध वाला खेल न रहा हो। लेकिन, वैश्विक मंच पर सम्मान देने वाला खेल जरूर रहा है। बैडमिंटन में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाली सूची में कई बड़े नाम हैं। प्रकाश पादुकोण, पुलेला गोपीचंद, साइना नेहवाल, पीवी सिंधु और युवाओं में किदांबी श्रीकांत, चिराग शेट्टी जैसे हुनरमंद खिलाड़ी भी। उनमें एक युवा खिलाड़ी का नाम आज प्रेरणा का पर्याय बन चुका है। उत्तराखंड के लक्ष्य सेन साल दर साल खेल के स्तर को भी बढ़ा रहे हैं और खुद से भारत की उम्मीदों को भी। 2024 का साल उनके करियर के लिए एक और मील का पत्थर साबित हुआ। उस वर्ष उन्होंने अपनी प्रतिभा, मेहनत और उत्कृष्ट प्रदर्शन के दम पर न केवल भारतीय बैडमिंटन का मान बढ़ाया, बल्कि खुद को विश्व स्तर पर एक मजबूत खिलाड़ी के रूप में स्थापित किया। 2024 में लक्ष्य सेन ने कई बड़े टूर्नामेंट में हिस्सा लिया और अपनी चमक बिखेरी। पेरिस ओलंपिक 2024 में उन्होंने अपने प्रदर्शन से सबका दिल जीत लिया। भले ही वे पदक जीतने से चूक गए, लेकिन क्वार्टरफाइनल तक पहुंचना उनके दृढ़ संकल्प और कड़ी मेहनत का प्रमाण था। यह अनुभव को और मजबूत बनाने वाला क्षण था। लक्ष्य सेन ने 2024 में अपनी रैंकिंग को अच्छा बनाए रखा।
फिलहाल वे विश्व बैडमिंटन पुरुष एकल में 12वें स्थान पर हैं। उनकी फिटनेस और मानसिक दृढ़ता ने उनके प्रदर्शन को और निखारा। लक्ष्य की सबसे बड़ी खूबी उनकी रणनीतिक सोच और दबाव में बेहतरीन प्रदर्शन करने की क्षमता है। उनकी तेज गति, शॉट चयन और नेट पर कंट्रोल उन्हें एक संपूर्ण खिलाड़ी बनाते हैं। पेरिस ओलंपिक के दौरान उनके द्वारा खेला गया एक शॉट काफी समय तक सोशल मीडिया पर छाया रहा। 2024 के दौरान उन्होंने कठिन मुकाबलों में कई शीर्ष खिलाड़ियों को हराया, जिससे उनके आत्मविश्वास को और बढ़ावा मिला होगा। अब आने वाले समय में भारतीय बैडमिंटन के लिए लक्ष्य सेन एक प्रमुख चेहरा होंगे। लक्ष्य सेन ने साल की शुरुआत भी किंग कप इंटरनेशनल बैडमिंटन ओपन में तीसरा स्थान हासिल कर की है। सेमीफाइनल में मिली हार के बावजूद सेन ने वापसी करते हुए निर्णायक जीत हासिल करते हुए देश को कांस्य जिताया। उनकी हालिया फॉर्म और अनुभव उन्हें आने वाले आयोजनों में भारत के लिए पदक जीतने का प्रबल दावेदार बनाते हैं। 2024 का साल लक्ष्य सेन के करियर में आत्मविश्वास और अनुभव का वर्ष रहा। अगर वह इसी ऊर्जा और समर्पण के साथ खेलते रहे, तो आने वाले वर्षों में वह भारतीय बैडमिंटन को नई ऊंचाइयों पर ले जाएंगे।
यशस्वी जायसवाल (क्रिकेट)
भारतीय क्रिकेट का उभरता सितारा, जिसने कम उम्र और छोटे करियर में अपने शानदार प्रदर्शन से सभी का ध्यान खींचा है। टेस्ट, टी20 और आईपीएल में अपनी धाक जमाकर यशस्वी ने भविष्य का ट्रेलर तो तैयार कर लिया मगर कहानी अभी बाकी है। बाएं हाथ के युवा बल्लेबाज ने साल 2023 में वेस्ट इंडीज के खिलाफ अपने टेस्ट करियर की शुरुआत की। डेब्यू पर ही 171 रनों की पारी खेली और फिर पीछे मुड़कर ही नहीं देखा। पूत के पांव पालने में दिख गए थे। 19 मुकाबलों की 36 पारियों में उन्होंने 1798 रन बनाए हैं, जिसमें चार शतक और 10 अर्धशतक शामिल हैं। 2024 में तो यशस्वी ने अपने खेल के स्तर को और ऊपर पहुंचा दिया। इस साल उनके बल्ले से 15 मैचों की 29 परियों में 1478 रन आए और औसत लगभग 55 का रहा। ऑस्ट्रेलिया दौरे पर भी यशस्वी कमजोर भारतीय बल्लेबाजी क्रम की इकलौती चमक बने रहे। तकनीकी दक्षता और धैर्य ने उन्हें टेस्ट क्रिकेट में भारत के शीर्ष बल्लेबाजों में शामिल कराया है।
लंबे फॉर्मेट नहीं, बल्कि टी20 क्रिकेट में भी यशस्वी जायसवाल ने अपनी आक्रामक शैली से सभी को प्रभावित किया है। उन्होंने 104 टी20 मैचों में 150.25 की स्ट्राइक रेट से 2,978 रन बनाए हैं। आईपीएल में जायसवाल अपना आक्रामक रूप सबको दिखा चुके हैं। ओपनर बल्लेबाज ने नीली जर्सी में 23 अंतरराष्ट्रीय मुकाबले भी खेले हैं, जिसमें उनके बल्ले से 164 के स्ट्राइक रेट से कुल 723 रन निकले। हालांकि, एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में उन्हें अब तक मौका नहीं मिला। अब 2025 में होने वाली चैंपियंस ट्रॉफी में यशस्वी जायसवाल से काफी उम्मीदें हैं। यह साल उनके और भारत की उम्मीदों के लिए बड़ा है। विशेषज्ञों का मानना है कि उन्हें वनडे टीम में भी मौका मिल सकता है। उनकी मानसिक दृढ़ता उन्हें एक मजबूत दावेदार बनाती है। जून में इंग्लैंड का दौरा यशस्वी के लिए नई चुनौतियां लेकर आएगा।
क्रिकेट पंडित जायसवाल को सचिन, विराट की श्रेणी में रखते हैं। कुल मिलाकर यशस्वी ने करियर का आगाज बेहतरीन ढंग से किया है, उसे आगे ले जाना उनकी मेहनत, अनुशासन और खेल के प्रति समर्पण पर निर्भर करेगा। 2025 में उनसे भारतीय क्रिकेट प्रेमियों को और भी बड़े प्रदर्शन की उम्मीद है।
अनाहत सिंह (स्क्वैश)
भारतीय स्क्वैश जगत में अनाहत सिंह उम्मीद की सबसे उजली किरण है। मात्र 16 वर्ष की उम्र में अनाहत ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में शानदार प्रदर्शन कर देश का नाम रोशन किया है। दिल्ली की इस युवा खिलाड़ी ने स्क्वैश खेलना महज आठ साल की उम्र में शुरू किया और अब तक कई सारे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय खिताब जीत चुकी है। हाल ही में उसने ब्रिटिश जूनियर ओपन 2025 में मिस्र की मलिका एल्काराक्सी को 3-2 (4-11, 11-9, 6-11, 11-5, 11-3) से हराकर अंडर-17 महिला वर्ग का खिताब अपने नाम किया। 2024 में, अनाहत ने अपने भारतीय सीनियर और जूनियर राष्ट्रीय खिताब सफलतापूर्वक बचाए और पहली बार महिलाओं की पीएसए रैंकिंग के शीर्ष 100 में जगह बनाई। वर्तमान में वह विश्व सीनियर रैंकिंग में 82वें स्थान पर हैं। अनहत ने फिलाडेल्फिया में आयोजित यूएस ओपन 2021 जूनियर (अंडर -15) स्क्वैश टूर्नामेंट भी जीता था। अनाहत की सबसे बड़ी उपलब्धियों में 2022 के कॉमनवेल्थ गेम्स में भागीदारी और विश्व जूनियर स्क्वैश चैंपियनशिप में शानदार प्रदर्शन शामिल है। अनाहत की आक्रामक खेल शैली, तेज रिफ्लेक्स, और फिटनेस उसे अन्य खिलाड़ियों से अलग बनाता है। जानकार मानते हैं कि उनसे ओलंपिक में पदक हासिल करने की उम्मीद काफी है। अनाहत युवा भारत की प्रेरणा बनती जा रही है और नए खिलाड़ियों के लिए मिसाल।
डी. गुकेश (शतरंज)
तमिलनाडु के 18 वर्षीय डी. गुकेश विश्व शतरंज के सबसे होनहार खिलाड़ी बनकर उभरे हैं। हाल ही में इस लड़के ने 18वां विश्व शतरंज चैंपियन बनकर इतिहास रच दिया। गुकेश अब विश्वनाथन आनंद के बाद यह प्रतिष्ठित खिताब जीतने वाले दूसरे भारतीय और यह उपलब्धि हासिल करने वाले सबसे कम उम्र के खिलाड़ी हैं। गुकेश ने छोटी उम्र में शतरंज खेलना शुरू किया था और 12 साल की उम्र में ही ग्रैंडमास्टर का खिताब हासिल कर लिया। वह दुनिया के सबसे कम उम्र के ग्रैंडमास्टरों में से एक है। गुकेश ने पिछले दो तीन साल में कई अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में जीत हासिल की है। 2024 में गुकेश ने हंगरी के बुडापेस्ट में आयोजित शतरंज ओलंपियाड में भारतीय पुरुष टीम को स्वर्ण पदक दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके अलावा, उन्होंने व्यक्तिगत बोर्ड पर भी स्वर्ण पदक जीता। अप्रैल में, उन्होंने टोरंटो में कैंडिडेट्स टूर्नामेंट जीता, जिससे वे सबसे कम उम्र के विजेता बन गए और विश्व शतरंज चैंपियनशिप के लिए चुनौती देने का अधिकार अर्जित किया।
शतरंज में गुकेश की गहरी समझ, रणनीति, तेज सोचने और सही निर्णय लेने की क्षमता ने उन्हें एक आक्रामक खिलाड़ी तो बनाया ही है। साथ ही दुनिया के शीर्ष खिलाड़ियों में शामिल करा दिया है। वह अब तक कई दिग्गजों को हार का स्वाद चखा चुका है। उसे केंद्र सरकार ने साल 2024 के लिए मेजर ध्यानचंद खेल रत्न अवार्ड से सम्मानित करने का फैसला किया है। इस सम्मान से नवाजे जाने वाला वह सबसे कम उम्र का खिलाड़ी है। अब 2025 में भी गुकेश से काफी उम्मीदें हैं। भारत के लिए फ्रीस्टाइल शतरंज ग्रैंडस्लैम 2025 में भाग लेने के साथ साथ गुकेश के पास नॉर्वे शतरंज 2025 प्रतियोगिता में खेलने का मौका होगा, जो स्टावेंजर में आयोजित होगी। गुकेश विश्वनाथन आनंद की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए तैयार हैं। आनंद ने जिस तरह भारतीय शतरंज को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाई, अब गुकेश उस पहचान को और मजबूत कर रहे हैं। 2025 में उनसे उम्मीद की जाती है कि वह न केवल शतरंज की दुनिया पर राज करेंगे, बल्कि अगली पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेंगे।
निकहत जरीन (मुक्केबाजी)
एमसी मैरी कॉम ने एक बार पूछा था, ‘‘कौन निकहत जरीन?’’ यह प्रश्न जरीन के दिल पर जा लगा। चोट ऐसी लगी कि निकहत ने 2022 में विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतकर इसका जवाब दिया। बॉक्सिंग में अपना लोहा मनवा चुकी निकहत को भारत बड़ी उम्मीद के रूप में देखता है। वह अब तक दो बार विश्व चैंपियनशिप खिताब जीत चुकी हैं, यह उपलब्धि हासिल करने वाली वह दूसरी भारतीय मुक्केबाज हैं। मैरी कॉम को सही मायनों में छह बार की विश्व चैंपियन मैरी कॉम के उत्तराधिकारी के तौर पर देखा जाता है। फिलहाल, निकहत भारतीय मुक्केबाजी की नई पहचान हैं। तेलंगाना के निजामाबाद से ताल्लुक रखने वाली निकहत ने अपने दृढ़ संकल्प और मेहनत से मुक्केबाजी के क्षेत्र में असाधारण उपलब्धियां हासिल की हैं। उन्होंने 2011 में अंताल्या में आयोजित एआइबीए महिला युवा और जूनियर विश्व मुक्केबाजी चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता था। जरीन ने 2022 इस्तांबुल और 2023 नई दिल्ली आइबीए महिला विश्व मुक्केबाजी चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीते। उन्होंने बर्मिंघम 2022 राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण तो 2022 एशियाई खेलों में लाइट फ्लाईवेट स्पर्धा में कांस्य पदक भी जीता। हालांकि, साल 2024 उनके लिए उतार चढ़ाव भरी यात्रा लेकर आया। पेरिस ओलंपिक में वह बहुत आगे नहीं जा सकीं, जिसका दर्द उन्होंने खुले तौर पर कई बार साझा भी किया।
अपनी ताकत, तकनीक और मानसिक स्थिरता का प्रदर्शन निकहत पहले भी कई बार कर चुकी हैं। उन्होंने एशियाई और राष्ट्रमंडल खेलों में भी स्वर्ण पदक जीते हैं। मैरी कॉम के बाद निकहत के रूप में भारत को ऐसी महिला मुक्केबाज मिली है, जिनसे हर बार बड़ी उम्मीदें की जाती हैं। 2025 में फैंस को उनसे और भी बड़ी उपलब्धियों की आशा है। वह अभी अपनी तकनीक को और बेहतर करने के लिए विदेश में प्रशिक्षण ले रही हैं। उनका लक्ष्य 2028 लॉस एंजेलिस ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतना है। इसमें कोई दो राय नहीं कि निकहत जरीन महिलाओं के लिए प्रेरणा हैं, खासकर उन लड़कियों के लिए, मुक्केबाजी जैसे कठिन खेल में करियर बनाना चाहती हैं। उन्होंने साबित किया है कि कड़ी मेहनत से लक्ष्य हासिल किया जा सकता है।
अंतिम पंघाल (कुश्ती)
अंतिम शब्द का अर्थ शब्दकोष में भले ‘आखिरी’ हो, लेकिन 19 वर्षीय युवा खिलाड़ी ने अपने छोटे से करियर में नंबर वन आने की आदत बनाई है। चाइल्ड प्रोडिजी कही जाने वाली अंतिम ने पिछले एक दो साल में कुश्ती की दुनिया में कमाल किया है। युवा कुश्ती पहलवान दो बार की अंडर 20 विश्व चैंपियन है। इसके साथ ही एशियन गेम्स, एशियन चैंपियनशिप और सीनियर विश्व कुश्ती चैंपियनशिप में पदक अपने नाम कर चुकी हैं। साधारण परिवार से आने वाली अंतिम की यात्रा में उनके परिवार के अथक समर्थन का सबसे बड़ा योगदान रहा। छोटी उम्र से शुरू हुआ करियर देखते ही देखते वैश्विक मंच पर पहुंच गया। अंतिम ने 2018 में 49 किलोग्राम श्रेणी में अंडर 15 राष्ट्रीय चैंपियन बनकर इतिहास रचा, फिर उसी साल अंडर 15 एशियाई कुश्ती चैंपियनशिप में कांस्य जीतकर अपनी प्रतिभा से हर किसी को रूबरू करा दिया। यह सिलसिला आगे चलता रहा और अंतिम की टोकरी में नई-नई उपलब्धियां जुड़ती रहीं। साल 2022 में उन्होंने विनेश फोगट को लगभग बर्मिंघम कॉमनवेल्थ गेम्स से बाहर का रास्ता दिखा दिया था। अंतिम ने विनेश को बेहद कड़ी टक्कर दी, हालांकि बाद में वह अच्छा फिनिश नहीं कर पाईं। इसके बाद उन्होंने 2022 में ही अंडर 20 विश्व कुश्ती चैंपियनशिप में ऐतिहासिक स्वर्ण पदक हासिल किया। अगले ही साल उन्होंने इस ताज को दोबारा जीतकर दिखा दिया कि वह यहां नहीं रुकने वाली। अपने शानदार प्रदर्शन की बदौलत अंतिम ने पेरिस 2024 ओलंपिक में भी जगह बनाई, लेकिन वो सफर उतना यादगार नहीं रहा। वह महिलाओं की 53 किलोग्राम वर्ग में अपना पहला मुकाबला हारने के बाद ओलंपिक से बाहर हो गईं और साथ ही उनकी बहन के विवाद ने भी सबका ध्यान खींचा था।
बहरहाल, भारत के लिए कुश्ती हमेशा ऐसा खेल रहा है, जिसमें पुरुष और महिला पहलवानों ने देश का खूब मान बढ़ाया। हर स्तर पर भारत ने कुश्ती में ऐतिहासिक कारनामे किए हैं। अंतिम पंघाल उसी सूची में एक नया नाम हैं। विशेषज्ञ कहते हैं कि आने वाले समय में वह देश को और गौरवान्वित करेंगी। गौरतलब है कि उन्हें 2023 में विश्व कुश्ती संघ द्वारा राइजिंग स्टार ऑफ द ईयर का अवार्ड भी दिया गया था। अंतिम को अर्जुन अवार्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है। अंतिम के लिए आने वाला समय महत्वपूर्ण है। अब अंतिम पंघाल का ध्यान करियर को तेजी के साथ आगे ले जाने और वैश्विक मंच पर देश को मेडल दिलाकर कुश्ती में भारत की नई ध्वजवाहक बनने पर होगा।
विवेक सागर प्रसाद (हॉकी)
हॉकी ने भारत को ढेर सारे चैंपियन खिलाड़ी भी दिए हैं और हर्ष उल्लास के अनगिनत मौके भी। कहते हैं, कुछ खिलाड़ियों को सालों साल कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है, तो कुछ को मौके जल्दी मिल जाते हैं। भारतीय पुरुष हॉकी टीम के मिडफील्डर विवेक सागर प्रसाद की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। उन्हें सफलता जल्दी हासिल हो गई। इसके लिए उन्होंने मेहनत भी बहुत की। विवेक सागर प्रसाद ने जनवरी 2018 में 17 साल, 10 महीने और 22 दिन की उम्र में भारतीय टीम के लिए खेलना शुरू कर दिया था। इसी के साथ वे अपने देश का प्रतिनिधित्व करने वाले दूसरे सबसे कम उम्र के खिलाड़ी भी बने। मध्य प्रदेश से आने वाले विवेक दो बार के ओलंपियन कांस्य पदक विजेता हैं। वह टोक्यो ओलंपिक में कांस्य पदक विजेता हैं और उन्होंने पेरिस में 2024 ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में अपना दूसरा कांस्य पदक जीता है। इसके अलावा उन्होंने 2018 सुल्तान जोहोर कप में जूनियर टीम की कप्तानी की और टीम को खिताब भी दिलाया। विवेक ने ब्यूनस आयर्स में युवा ओलंपिक खेल 2018 में भी भारतीय जूनियर हॉकी टीम को रजत पदक दिलाया था। उसी साल, उन्होंने भारत के द्वारा जकार्ता में हुए एशियाई खेलों में कांस्य पदक और नीदरलैंड में आयोजित चैंपियंस ट्रॉफी में रजत पदक जीतने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 2021 में उन्हें भारत का सर्वश्रेष्ठ खेल पुरस्कार अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। इसके अलावा टोक्यो ओलंपिक में शानदार प्रदर्शन के लिए एफआइएच यंग प्लेयर ऑफ द ईयर का भी पुरस्कार दिया गया।
विवेक सागर प्रसाद भारतीय हॉकी टीम के शानदार मिडफील्डर हैं, जो अपनी तेज निर्णय क्षमता और स्मार्ट खेल के लिए मशहूर हैं। उनकी खेल शैली में कौशल, गति और सटीकता का अद्भुत तालमेल देखने को मिलता है। विवेक सागर अपनी पोजिशनिंग और पासिंग में इतने माहिर हैं कि वह टीम के अटैक और डिफेंस को संतुलित बनाए रखते हैं। अब 2025 में विवेक भारतीय हॉकी टीम के मुख्य खिलाड़ियों में से एक होंगे। उनकी रणनीतिक सोच और नेतृत्व क्षमता उन्हें भारतीय हॉकी का भविष्य बनाती है। इस साल पुरुषों का एशिया कप भी आयोजित होना है, जिसमें विवेक से काफी उम्मीदें होंगी। विवेक युवाओं के लिए प्रेरणा हैं। उनका लक्ष्य भारत को ओलंपिक तथा अन्य बड़े मंचों पर जीत दिलाने का है और वह इसके लिए पूरी मेहनत भी कर रहे हैं।
शीतल देवी (तीरंदाजी)
भारत में अब धीरे-धीरे ही सही मगर क्रिकेट के अलावा अन्य खेलों पर भी ध्यान दिया जा रहा है। सरकारों द्वारा खिलाड़ियों की सुविधाओं के लिए बेहतर इंतजाम किए जा रहे हैं। ओलंपिक खेलों के साथ-साथ पैरालिंपिक में भारत का प्रदर्शन हमेशा चर्चा का विषय रहता है। पैरा खिलाड़ियों ने हर बार बड़े स्टेज पर भारत को खुशियां भी दी हैं और गौरवान्वित भी कराया है। इसी लीग में एक बड़ी प्रतिभाशाली युवा खिलाड़ी शीतल देवी भी उभर कर सामने आई हैं। शीतल देवी का जन्म साल 2007 में हुआ था। वह शुरुआत से ही फोकोमेलिया से पीड़ित थीं, जो एक दुर्लभ जन्मजात विकार है और जिसकी वजह से शरीर के किसी अंग का विकास नहीं होता है। यही वजह रही कि दुर्भाग्यवश उनकी भुजाओं का पूरी तरह से विकास नहीं हो पाया। इसके बावजूद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। शीतल ने 2023 एशियाई पैरा खेलों में व्यक्तिगत और टीम इवेंट में स्वर्ण पदक जीता। उन्होंने 2024 के पैरालंपिक में मिश्रित टीम कंपाउंड इवेंट में कांस्य पदक जीता। और तो और सन् 2022 के एशियन पैरा गेम्स में दो स्वर्ण और एक रजत पदक जीता था। भारतीय सेना ने भी पैरा तीरंदाजी में शीतल देवी के करियर को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका अदा की है। 2021 में जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ में भारतीय सेना द्वारा आयोजित एक यूथ इवेंट में सेना के कोच शीतल की सहज एथलेटिक क्षमता और आत्मविश्वास से रूबरू हुए थे।
बहरहाल, शीतल ने अब तक हर चुनौती को पार करते हुए देश को गर्व महसूस कराया है। उनकी कहानी विशेष रूप से प्रेरणादायक है, क्योंकि उन्होंने शारीरिक चुनौतियों को पार करते हुए यह उपलब्धि हासिल की। उनके असाधारण कौशल को सटीक तरह से दर्शाता है भारत सरकार द्वारा उन्हें दिया गया अर्जुन पुरस्कार। शीतल से 2025 और उसके बाद भी भारतीय तीरंदाजी में बड़ी उम्मीदें हैं। वह विश्व चैंपियनशिप और पैरालंपिक में पदक जीतने की तैयारी कर रही हैं। उनका अनुशासन और मानसिक मजबूती उन्हें भारतीय तीरंदाजी का चमकता सितारा बनाते हैं। शीतल देवी की उपलब्धियों को और चार-चांद लगाने वाली बात यह है कि वह बिना हाथों के निशाना लगाने वालीं एकमात्र सक्रिय महिला अंतरराष्ट्रीय तीरंदाज हैं। शीतल ने दिखा दिया है कि शारीरिक चुनौतियां किसी की सफलता में बाधा नहीं बन सकतीं। उनकी सफलता उन सभी के लिए प्रेरणा है जो कठिन परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं।
मानव ठक्कर (टेबल टेनिस)
भारत में खेल प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं है और टेबल टेनिस के क्षेत्र में मानव एक नाम है, जो भारतीय खेल जगत के भविष्य को उज्जवल बनाने का वादा करता है। राजकोट, गुजरात में जन्मे मानव ने केवल 24 साल की उम्र में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई है। उनकी मेहनत, कौशल और निरंतर उत्कृष्टता की चाह ने उन्हें विश्व के टॉप टेबल टेनिस खिलाड़ियों में शामिल कर दिया है। टेबल टेनिस के प्रति उनका जुनून बचपन से ही नजर आने लगा था। उन्होंने अपनी लगन और अनुशासन से छोटी उम्र में ही बड़े मुकाम हासिल किए। वह ऐसे पहले भारतीय बने जिन्होंने अंडर-18 और अंडर-21 कैटेगरी में विश्व नंबर वन बनने का गौरव प्राप्त किया। यह उपलब्धि उनके करियर का महत्वपूर्ण पड़ाव साबित हुई, जिसने उनके कौशल को वैश्विक मंच पर प्रदर्शित किया। इसके बाद, 2018 एशियाई खेलों में भारतीय टीम के लिए खेलते हुए मानव ने कांस्य पदक जीतने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके शानदार प्रदर्शन ने न केवल भारत को गर्व महसूस कराया, बल्कि यह भी दिखाया कि वह बड़े मंचों पर दबाव को संभालने में कितने सक्षम हैं। युवा खिलाड़ी की खेल शैली ‘राइट-हैंडेड शेकहैंड ग्रिप’ है, जो प्रतिस्पर्धी खिलाड़ियों के बीच एक आम तकनीक है। उनकी ट्रेनिंग में अन्य खेलों के तत्व भी शामिल हैं, जिनसे उन्होंने बचपन में सीख ली थी। यही वजह है कि उनकी गति और चुस्ती उन्हें अन्य खिलाड़ियों से अलग बनाती है। 2024 पेरिस ओलंपिक में खेलना उनके लिए बड़ा मौका था। हालांकि, यह यात्रा इतनी सुखद नहीं रही क्योंकि उनका सफर बिना किसी पदक के खत्म हो गया। अब 2025 में, युवा प्रतिभा से उम्मीद की जा रही है कि वे भारत को खेलों में नई ऊंचाइयों तक ले जाएंगे। भारतीय खेल जगत को उनके जैसे उभरते सितारों पर गर्व है।
नीरज चोपड़ा (भाला फेंक)
नीरज चोपड़ा, भारतीय खेल जगत का ऐसा नाम है जिसने अपने मेहनत, जज्बे और प्रतिभा से अंतरराष्ट्रीय मंच पर देश को बार-बार गौरवान्वित किया है। 2024 में नीरज चोपड़ा चोटों से पस्त रहे लेकिन इसके बावजूद पेरिस ओलंपिक में उनका रजत पदक जीतना भारत के लिए खास था। नीरज ने कई प्रतिष्ठित टूर्नामेंट में भाग लिया और देश को गौरवान्वित किया। नीरज चोपड़ा ने फेडरेशन सीनियर एथलेटिक्स चैंपियनशिप में 82.27 मीटर के थ्रो के साथ स्वर्ण जीता। दोहा डायमंड लीग में नीरज को दूसरे स्थान से संतोष करना पड़ा क्योंकि उनका 88.36 मीटर का थ्रो उन्हें गोल्ड नहीं दिला सका। लुसाने डायमंड लीग में नीरज ने 89.49 मीटर का थ्रो कर हर किसी को प्रभावित किया लेकिन यह जीतने के लिए काफी नहीं था। नीरज के लिए साल 2024 चोट से उबरने और अपनी लय वापस पाने वाला साल रहा। पेरिस ओलंपिक में भारतीय सितारे को 89.45 मीटर के थ्रो के बाद भी रजत पदक से तसल्ली करनी पड़ी क्योंकि पाकिस्तान के अरशद नदीम ने गोल्ड पर कब्जा कर लिया। इस साल नीरज ने दिखाया कि उनके अंदर मुश्किलों से बाहर आने और चोट से लड़कर दोबारा जीत दिलाने का माद्दा है।
भारतीय प्रशंसकों को पूरी उम्मीद है कि नीरज पूरी तरह फिट होकर अपनी दूसरी डायमंड ट्रॉफी पर कब्जा करेंगे और भारत के लिए पहली बार 90मी का बैरियर पार कर फैंस को तोहफा देंगे। नीरज का अब तक का करियर इस बात का प्रमाण है कि निरंतर कोशिश से सफलता दिलाती हैं। नीरज के लिए नया साल नई उम्मीद लेकर आया है। हरियाणा से आने वाले नीरज ने अब तक उवे होन, क्लॉस बार्टोनिट्ज़, गैरी कैल्वर्ट, वर्नर डेनियल, काशीनाथ नाइक, नसीम अहमद, जयवीर सिंह जैसे गुरुओं से सीखा है। अब विश्व रिकॉर्ड धारक और सीजेड जेवलिन थ्रो के लेजेंड खिलाड़ी जान जेलजनी और नीरज चोपड़ा ने आगामी 2025 सीजन से पहले हाथ मिलाया है। नीरज के नए कोच ने बार्सिलोना 1992, अटलांटा 1996 और सिडनी ओलंपिक 2000 में गोल्ड मेडल जीता है। भारत को नीरज चोपड़ा से हर इवेंट में उम्मीदें रहतीं हैं और नीरज ने भी कभी प्रशंसकों को निराश नहीं किया। नीरज वाकई भारत का वर्तमान भी हैं और आने वाले कल की बड़ी उम्मीद भी।