“देश एक बार फिर चंपारण जैसी त्रासदी झेलने जा रहा है। तब अंग्रेज कंपनी बहादुर थे, अब मोदी-मित्र कंपनी बहादुर है। लेकिन आंदोलन का हर किसान, मजदूर सत्याग्रही है जो, अपना अधिकार लेकर ही रहेगा।
राहुल गांधी, कांग्रेस नेता
‘तलैवा’ की सियासत से दूरी
तमिलनाडु में सुपरस्टार का दर्जा रखने वाले रजनीकांत के लाखों प्रशंसकों को उम्मीद थी कि उनके प्रिय ‘तलैवा’ उन्हें नए साल में बढ़िया उपहार देंगे। लेकिन अनुमान के विपरीत, 70 वर्षीय अभिनेता ने एलान कर दिया वह सियासत से दूर रहेंगे। उम्मीद थी कि रजनीकांत 2021 की शुरुआत में औपचारिक रूप से अपनी नई राजनीतिक पार्टी के गठन की घोषणा कर राज्य के अगले विधानसभा चुनाव में जोरशोर से शिरकत करेंगे। गिरती सेहत के कारण उन्होंने चुनावी रण से दूर रहना ही श्रेयस्कर समझा। हालांकि रजनी ने कहा, “भले ही वे राजनीति में प्रवेश नहीं कर रहे, लेकिन लोगों के हित के लिए उनका काम जारी रहेगा।” पिछले दिनों आने वाली फिल्म अन्नाते की शूटिंग के दौरान रजनीकांत की तबीयत खराब हो गई थी। इसके बाद डॉक्टरों की सलाह पर उन्होंने सक्रीय राजनीति में आने का इरादा त्याग दिया। उन्होंने इसे ‘ईश्वर के संदेश’ के रूप में देखा। शूटिंग के दौरान चार लोगों के कोरोना से संक्रमित पाए जाने के बाद रजनीकांत की सेहत को लेकर चिंताएं बढ़ गई थीं।
एक बयान में रजनी ने कहा, “वे पार्टी शुरू करने के बाद केवल मीडिया और सोशल मीडिया के माध्यम से प्रचार करें, तो वे लोगों के बीच पार्टी से जुड़ने की वजह पैदा नहीं कर पाएंगे और चुनावों में बड़ी जीत हासिल नहीं कर पाएंगे।” उन्होंने यह भी कहा कि चुनावी राजनीति में उतरे बिना जनता की सेवा करने के लिए जो कुछ भी बन सकेगा, वे करेंगे। अपने प्रशंसकों को एक भावुक संदेश में उन्होंने कहा, “मैं सच बोलने से कभी नहीं हिचकिचाया। ईमानदारी और पारदर्शिता से प्यार करने वाले तमिलनाडु के प्रशंसकों से मैं निवेदन करता हूं कि वे मेरे इस निर्णय को स्वीकार करें।”
रजनीकांत के इस निर्णय को प्रशंसकों ने स्वीकार तो कर लिया है लेकिन उनके अपने संगठन, रजनीकांत मक्कल मन्दरम (आरएमएम) के कुछ कार्यकर्ता नाखुश हैं। उन्होंने रजनीकांत के निर्णय के खिलाफ विरोध प्रदर्शन की योजना भी बनाई थी लेकिन आरएमएम की ओर से रजनीकांत के प्रशंसकों को कहा गया कि उन्हें इस तरह के किसी भी प्रदर्शन में शामिल नहीं होना चाहिए। रजनीकांत के चुनाव न लड़ने के फैसले से जाहिर है, राज्य के बड़े दलों ने जरूर चैन की सांस ली होगी। इसमें दो मत नहीं है कि ‘तलैवा’ तमिलनाडु की राजनीति में मजबूत विकल्प के रूप में उभर सकते थे।
कोरोना काल में भी वाह ताज !
कोई वैश्विक महामारी ताजमहल के प्रति लोगों की दीवानगी कम नहीं कर सकती। पिछले दिनों ऐसा ही नजारा देखने को मिला। 17 मार्च से देशव्यापी लॉकडाउन के कारण बंद पड़े ताजमहल को सैलानियों के लिए फिर से खोला गया। पच्चीस हजार से ज्यादा सैलानियों ने एक ही दिन में ताज के दीदार किए। यहां प्रवेश के लिए 15,000 से ज्यादा ऑनलाइन टिकट बेचे गए थे। दिसंबर तक मात्र 5 हजार टिकटों की बिक्री के आदेश थे और उस समय हर दिन 3500 से चार हजार के बीच सैलानी आ रहे थे। यह संख्या बढ़ाकर 10 हजार करने के बाद भी 8 हजार तक ही पर्यटक आए, लेकिन पिछले सप्ताह जब कैपिंग बढ़ाकर 15 हजार की गई और नए साल में टिकट खिड़की से भी टिकट बेचने के आदेश हुए, तो भीड़ का रिकॉर्ड टूट गया। जाहिर है, आम दिनों के मुकाबले छह गुना ज्यादा सैलानी होने से कोविड प्रोटोकॉल का पालन नहीं हो पाया और सुरक्षा जांच के लिए लंबी कतारें शाम तक लगी रहीं।
नकल की अक्ल यहां भी, वहां भी
न्यूयार्क के पास वेस्ट पॉइंट स्थित यूएस मिलिट्री एकेडमी की भर्ती परीक्षा के दौरान बड़े पैमाने पर नकल करने मामला सामने आया, तो लोग आश्चर्य में पड़ गए। 44 साल के इतिहास में पहली बार हुआ कि 70 से ज्यादा कैडेट्स ने कैलकुलस परीक्षा में नकल की। कोरोनावायरस के कारण पिछले साल मई में ऑनलाइन परीक्षा कराई गई थी। चयन के बाद उम्मीदवारों का आमना-सामना जब परीक्षकों से हुआ तब जाकर नकल का खुलासा हुआ। बाद में, 55 कैडेट्स को रिहैबिलिटेशन प्रोग्राम सेंटर भेज दिया गया। यहां उन्हें ‘विल फुल एडमिशन प्रोग्राम’ के तहत अपनी गलती सुधारने का दूसरा मौका दिया जाता है। कुछ ऐसा ही मामला 1976 में आया था जब नकल के आरोप में 150 चयनित उम्मीदवारों को निकला गया था। इन लोगों ने इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की अंतिम परीक्षा में नकल की थी। इससे पहले, डोनाल्ड ट्रम्प की भतीजी मैरी ने अपनी एक किताब में आरोप लगाया है कि हाई स्कूल स्टूडेंट के तौर पर ट्रम्प ने किसी और को अपनी जगह परीक्षा लिखने के लिए पैसे दिए थे। मैरी ने लिखा है कि ट्रंप ने नकल से ही यूनिवर्सिटी ऑफ पेंसिल्वेनिया के प्रतिष्ठित व्हार्टन बिजनेस स्कूल में एंट्री पाई थी।
आखिर ले ली सुध
पाकिस्तान से बंबई आए हिंदी सिनेमा के दिग्गज कलाकारों में दिलीप कुमार और राज कपूर का नाम सबसे ऊपर है। दोनों के पुश्तैनी घर अभी भी पेशावर में मौजूद हैं। बरसों से, दोनों देशों में बसे उनके लाखों प्रसंशकों की मांग रही है कि उनके घरों को पाकिस्तानी सरकार सहेज कर रखे। वर्षों बाद जब, राज कपूर को दिवंगत हुए तीन दशक से अधिक हो चुके हैं और दिलीप कुमार 98 साल के हो गए हैं, पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रदेश के मुख्यमंत्री ने बॉलीवुड के दोनों लीजेंड्स के घरों को म्यूजियम में तब्दील करने का औपचारिक निर्णय लिया है।
पाकिस्तान के विशेष सहायक मुख्यमंत्री कामरान बंगश ने कहा कि सरकार राज्य में पर्यटन को बढ़ावा देने की कोशिश कर रही है। अब पर्यटक उनके पुश्तैनी मकानों को देख सकेंगे। मुख्यमंत्री महमूद खान ने दोनों ऐतिहासिक मकानों की मरम्मत के लिए 2.35 करोड़ रुपये मंजूर किए हैं। पेशावर के उपायुक्त मुहम्मद अली असगर के विभाग की एक रिपोर्ट के मुताबिक दिलीप कुमार के 101 वर्ग मीटर के घर की कीमत 80.56 लाख रुपये और राज कपूर के 151.75 वर्ग मीटर बंगले की कीमत 1.50 करोड़ रुपये तय की है। राज कपूर के पैतृक घर का नाम कपूर हवेली है। इसका निर्माण 1918 और 1922 के बीच हुआ था। यहीं पर राज कपूर और उनके चाचा त्रिलोक कपूर का जन्म हुआ और उनका बचपन बीता। किस्सा ख्वानी बाजार में स्थित इस हवेली को राज कपूर के दादा दीवान बशेश्वर नाथ सिंह कपूर ने बनवाया था। दिलीप कुमार का घर भी इसी इलाके में स्थित है।