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चर्चा में रहे जो
बिहार के पूर्व सांसद पप्पू यादव

 

‘‘कोरोना काल में जिंदगियां बचाने के लिए अपनी जान हथेली पर रख जूझना अपराध है, तो हां, मैं अपराधी हूं। पीएम साहब, सीएम साहब दे दो फांसी या भेज दो जेल, झुकूंगा नहीं, रुकूंगा नहीं। लोगों को बचाऊंगा। बेईमानों को बेनकाब करता रहूंगा!’’

बिहार के पूर्व सांसद पप्पू यादव पटना में अपनी गिरफ्तारी के बाद

 

एक डॉन का अंत

किसी जमाने में ‘सिवान का आतंक’ के रूप में कुख्यात, पूर्व राजद सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन का दिल्ली में कोरोना संक्रमण के कारण देहांत हो गया। वे 53 वर्ष के थे। वे तिहाड़ जेल में बंद थे, जहां तबीयत बिगड़ने के बाद उन्हें दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल में भर्ती कराया गया था। वे चार बार सांसद और दो बार विधायक रहे। बिहार में लालू प्रसाद प्रसाद और राबड़ी देवी के 15 साल के लंबे शासनकाल के दौरान जबर्दस्त दबदबा रखने वाले डॉन हत्या और अन्य आपराधिक मामलों में आजीवन कारावास की सजा काट रहे थे। उनके निधन के साथ, अपराध और राजनीति के अपवित्र गठजोड़ का एक अध्याय समाप्त हो गया है। उन पर हत्या, फिरौती और अपहरण जैसे अनेक मामले दर्ज थे। 2005 में नीतीश कुमार के सत्ता में आने के बाद उन पर कानून का तब शिकंजा कसा जब नेताओं के आपराधिक मामलों में लिप्त होने के सभी मामलों की त्वरित सुनवाई होने लगी और उन्हें एक के बाद एक मामलों में दोषी ठहराया गया। इसकी वजह से वे चुनाव लड़ने के लिए भी अयोग्य हो गए। 2009 के लोकसभा चुनाव और उसके बाद, उन्होंने अपनी पत्नी हेना शहाब को कई बार सीवान सीट से राजद के टिकट पर मैदान में उतारा, लेकिन सफलता नहीं मिली।

शहाबुद्दीन पर वर्षों तक सिवान में एक समानांतर शक्ति केंद्र चलाने का आरोप लगता था। मार्च 2001 में, जब तत्कालीन सीवान के एसपी बच्चू सिंह मीणा के नेतृत्व में पुलिस बल उनके प्रतापपुर गांव पहुंचा तो मुठभेड़ में दस लोग मारे गए। लेकिन वे शहाबुद्दीन को पकड़ने में विफल रहे, जिन्होंने बाद में यह कहते हुए एसपी को मारने की कसम खाई थी कि भले ही उन्हें इसके लिए पुलिस अधिकारी के गृह राज्य राजस्थान तक पीछा करना पड़े। तत्कालीन सांसद के दबदबे का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता था कि उस समय की राबड़ी देवी सरकार ने छापे के अगले ही दिन मीणा सहित सभी वरिष्ठ जिला अधिकारियों का तबादला कर दिया था। उसके पांच साल पहले, तब जीरादेई निर्वाचन क्षेत्र से राजद विधायक शहाबुद्दीन ने तत्कालीन पुलिस अधीक्षक, एसपी सिंघल (फिलहाल बिहार डीजीपी) पर जानलेवा हमला किया, जो उनके खिलाफ एक शिकायत की जांच कर रहे थे। 2003 में, तत्कालीन डीजीपी डी.पी. ओझा ने न केवल एक कश्मीरी आतंकवादी संगठन के साथ बल्कि आइएसआइ और दाऊद इब्राहिम के साथ उनके कथित संबंधों का विवरण देते हुए उन पर एक डोजियर तैयार करवाया, लेकिन इसके कारण उनका लालू प्रसाद के साथ सीधे टकराव हुआ। बाद में ओझा को पद से हटा दिया गया। कहा जाता है शहाबुद्दीन ने लालू के मुस्लिम-यादव (एमवाइ) वोट बैंक को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।

अपने खिलाफ लंबे समय से चली आ रही कानूनी लड़ाई को उन्होंने हमेशा राजनीतिक साजिश करार दिया। वे अपनी डॉन की छवि से कभी परेशान नहीं थे। उन्होंने एक बार कहा, ‘‘यह वह छवि है जिसमें लोगों ने पिछले कई वर्षों से मुझे स्वीकार किया है। मुझे इसे बदलने की कोशिश क्यों करनी चाहिए?’’ बिहार के स्वयंभू गॉडफादर की कहानी आखिरकार कोविड-19 के दौर में समाप्त हो गई।

 

बीच बहस में

 

बिल और मेलिंडा गेट्स

अरबपति समाजसेवी बिल (65) और मेलिंडा गेट्स (56) 27 साल की शादी तोड़ रहे हैं। वे दंपती के रूप में साथ नहीं रहेंगे लेकिन अपनी संस्था में साथ काम करते रहेंगे। माइक्रोसॉफ्ट के सह-संस्थापक बिल की मेलिंडा से मुलाकात 1987 में हुई थी और 1994 में शादी की।

सुशील कुमार

दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में पहलवानों के दो गुटों के बीच भिड़ंत में पहलवान सागर धनखड़ की मौत के मामले में ओलंपिक विजेता, सुशील कुमार के खिलाफ दिल्ली पुलिस ने लुकआउट नोटिस जारी किया है। सुशील और बाकी पहलवानों में झगड़ा फ्लैट को लेकर हुआ था।

 

लालू प्रसाद यादव

झारखंड हाइकोर्ट से जमानत मिलने और दिल्ली एम्स से डिस्चार्ज होने के बाद राजद सुप्रीमो लालू यादव एक्टिव हो गए हैं। वर्चुअल माध्यम से नेताओं से रू-ब-रू हुए, पर ऑक्सीजन लेवल घटने से तीन मिनट ही संबोधित कर पाए।

 

कदमो के निशां

 

विजेंद्र

हिंदी के कवि, गद्यकार, चित्रकार और संपादक 86 वर्षीय विजेंद्र भी कोरेाना से जंग में स्वास्थ्य सेवा की बदहाली का शिकार हुए। वे प्रगतिशील लेखक संघ से जुड़े थे। उनसे दो दिन पहले उनकी पत्नी भी कोरोना का शिकार हो गई थीं।

 

वनराज भाटिया

अंकुर, भूमिका, जुनून जैसी फिल्मों और भारत एक खोज जैसे टीवी सीरियल में यादगार संगीत देने वाले वनराज भाटिया का 94 साल की उम्र में मुंबई में 7 मई को निधन हो गया। उन्होंने अपर्णा सेन की 36 चौरंगी लेन और कुंदन शाह की जाने भी दो यारो में भी संगीत दिया था। उन्हें धारावाहिक तमस के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार और संगीत नाटक अकादमी अवार्ड से नवाजा गया था।

 

अजित सिंह

राष्ट्रीय लोक दल के मुखिया अजित सिंह 82 वर्ष की आयु में 6 मई को कोविड-19 से जंग हार गए। कंप्यूटर इंजीनियर अजित सिंह 1980 के दशक में अपने पिता पूर्व प्रधानमंत्री चरण सिंह की गंभीर बीमारी के बाद राजनीति में उतरे और कई दशकों तक सांसद और मंत्री रहे। हाल में किसान आंदोलन को लेकर वे फिर सक्रिय हुए थे।

 

प्रभु जोशी

प्रसिद्ध चित्रकार, साहित्यकार, संपादक, टेली फिल्म निर्माता तथा रेडियो प्रस्तोता प्रभु जोशी का  अस्पताल में दाखिले का इंतजार करते इंदौर में 4 मई को एंबुलेंस में ही निधन हो गया। प्रभु जोशी बाजार और भूमंडलीकरण के भाषाओं पर पड़ते दुष्प्रभाव को लेकर हमेशा चिंतित रहते थे। उन्होंने हिंदी को भ्रष्ट करने वाली ताकतों के खिलाफ लंबे-लंबे लेख लिखे।

 

देबू चौधरी

विलायत खान और रविशंकर के बाद सितार को लोकप्रिय बनाने वाले देबू (देवव्रत) चौधरी 1 मई को महामारी कोविड के शिकार हुए। 1935 में बांग्लादेश में जन्मे देबू दा सेनिया घराने जुड़े थे। दुर्भाग्यपूर्ण यह भी कि हफ्ते भर बाद ही 7 मई को उनके बेटे 49 वर्षीय प्रतीक चौधरी को भी कोरोना हमारे बीच से उठा ले गया। पद्मभूषण समेत अनेक सम्मान से नवाजे गए देबू दा के बाद प्रतीक भी अनोखी प्रतीभा के धनी थे।

 

शेष नारायण सिंह

वरिष्ठ पत्रकार शेष नारायण सिंह 7 मई को कोरोनावायरस से जंग हार गए। 70 वर्षीय सिंह एनडीटीवी जैसे कई जाने-माने संस्थानों के साथ जुड़े रहे थे और पिछले कुछ समय से अपनी स्वतंत्र टिप्पणियों के लिए जाने जाते थे।

 

सोली सोराबजी

जाने-माने वकील और संविधानविद् सोली सोराबजी 90 साल की उम्र में 30 अप्रैल को कोविड से जंग हार गए। वे 1989 से 1990 और फिर 1998 से 2004 तक देश के अटॉर्नी जनरल रहे। मानवाधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी के प्रबल पैरोकार सोराबजी कई चर्चित मामलों में सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए, जिनसे लोकतांत्रिक मूल्यों का विस्तार हुआ

 

 

शमीम हनफी

उर्दू के विद्वान, नाटककार, लेखक शमीम हनफी भी 6 मई को कोरोनवायरस से जंग हार गए। हनफी साहब उर्दू साहित्य और आलोचना में आधुनिकतावाद के पैरोकार थे और हिंदी साहित्य की दुनिया में भी दखल रखते थे। 1938 में उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर में जन्मे हनफी साहब उन चंद लेखकों में थे जो उर्दू और हिंदी में समान अधिकार के साथ लिखते थे।

 

एम.के. कौशिक

भारतीय हॉकी के दिग्गज, 1980 के ओलंपिक के गोल्ड मेडलिस्ट, अर्जुन अवार्ड से सम्मानित एम.के. कौशिक की 8 मई को कोविड-19 संक्रमण से मौत हो गई। 1955 में जन्मे कौशिक हॉकी खिलाडि़यों की कई पीढ़ी के प्रेरणास्रोत थे।

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