मध्य प्रदेश कांग्रेस ने हाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की मुलाकात की फोटो खूब वायरल की, जिसमें वे प्रधानमंत्री से दूर बैठे दिखते हैं। हालांकि इस मुलाकात के ठीक पहले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और अगले दिन तमिलनाडु के मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री के बगल में बैठे दिखे। कांग्रेस का कहना था कि मोदी शिवराज को पसंद नहीं करते इसलिए यह दूरी है। कांग्रेस के इस आरोप पर भाजपा की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई लेकिन यह सही है कि शिवराज सिंह चौहान मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में मोदी की पहली पसंद नहीं हैं। शिवराज सिंह के नई पारी संभालने के बाद से ही उनके विरोधी यह कहते रहे हैं कि बंगाल चुनाव के बाद मध्य प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन होगा।
उनका तर्क था कि एक तो बंगाल चुनाव भाजपा के लिए बहुत महत्वपूर्ण है और मध्य प्रदेश से तीन नेता उसमें लगे हुए हैं। बंगाल चुनाव के परिणाम के बाद इस तरह की मुलाकातों के दौर भी हुए, जिससे यह लगा कि ऐसी कोशिशें चल रही हैं। शिवराज सिंह के विरोधी माने जाने वाले और बंगाल चुनाव के प्रभारी रहे कैलाश विजयवर्गीय ने इस महीने भोपाल में पार्टी के कई नेताओं से मुलाकात की, जिसमें गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा, प्रदेश अध्यक्ष और प्रदेश संगठन महामंत्री शामिल थे। इन मुलाकातों के दौरान लगातार ये अटकलें चलती रहीं की राज्य में नेतृत्व परिवर्तन हो सकता है। कैलाश विजयवर्गीय और नरोत्तम मिश्रा मुख्यमंत्री पद पर अपनी दावेदारी पेश करते रहे हैं। प्रयास तो खूब हुए और दिल्ली तक नेताओं से मुलाकात हुई लेकिन सफलता नहीं मिल पाई।
यहां यह महत्वपूर्ण है कि पार्टी के बाहर इस बारे में किसी ने कुछ भी नहीं बोला। सभी नेताओं ने इस तरह की किसी भी बात से साफ इनकार कर दिया। इतना ही नहीं, पार्टी आलाकमान के दबाव के बाद एकजुटता का संदेश देने और इस तरह की अटकलों को खारिज करने के लिए कैलाश विजयवर्गीय और नरोत्तम मिश्रा से भी बयान दिलाए गए कि शिवराज सिंह ही मुख्यमंत्री रहेंगे।
भाजपा भले इससे इनकार करे लेकिन यह बात सही है कि राष्ट्रीय नेतृत्व भी विरोधियों की मदद नहीं कर पाया। फिलहाल राज्य में शिवराज के विरोधी और राष्ट्रीय स्तर पर मोदी और शाह के करीबी ही शिवराज को हटाना चाहते हैं। इसके उलट संघ और भाजपा का एक बड़ा धड़ा शिवराज के पक्ष में है। शिवराज संघ के दुलारे हैं। कांग्रेस की सरकार गिरने के बाद भी मोदी इस पक्ष में नहीं थे कि शिवराज को कमान दी जाए, मगर संघ के हस्तक्षेप के बाद उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया। कई जानकारों के अनुसार संघ यह भी देख रहा है कि राज्य का कोई और नेता शिवराज की लोकप्रियता के आसपास भी नहीं है। पार्टी में उनके किसी भी विरोधी की जनता में ऐसी पकड़ नहीं कि अगला विधानसभा चुनाव जिता सके। राज्य में जल्द ही होने वाले नगरीय निकाय चुनाव शिवराज सिंह के लिए अग्निपरीक्षा होंगे। अगर उसमें उन्हें सफलता मिलती है तो तय है कि 2023 का विधानसभा चुनाव उन्हीं के नेतृत्व में लड़ा जाएगा।