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एनएसई घोटाला: चित्रा योग

पहली बार किसी संस्था के शीर्ष पद पर बैठे शख्स ने हिमालय में बैठे किसी ‘योगी’ के निर्देश पर फैसले लेने की बात कही, इसके पीछे तमाम गड़बड़ियों की आशंका
चित्रा और आनंद ने इस्तीफा दिया तो एनएसई बोर्ड ने उनकी तारीफ की

ईश्वर निराकार है, योगी भी निराकार। ईश्वर दुनिया चलाता है, योगी स्टॉक एक्सचेंज चलाता है। ईश्वर हर जगह मौजूद है, योगी भी जब मर्जी जहां चाहे पहुंच सकता है। ईश्वर जन्म और मरण तय करता है, योगी तय करता है किसे क्या प्रमोशन और कितनी तनख्वाह देनी है। ईश्वर लोक में अप्सराएं हैं, योगी लोक में सेशेल्स में समुद्र तट पर स्विमसूट पहनी बाला हैं। कहते हैं भक्त मन की शक्ति से ईश्वर से संपर्क कर सकता है, योगी से संपर्क का माध्यम ईमेल है। ईमेल भी ऐसा जिसमें ऋग, यजुर और साम तीन वेदों का सार है। योगी परमहंस है, सिद्ध पुरुष है, उसे चिकित्सा और विज्ञान वाले अथर्ववेद की क्या जरूरत। ईश्वर तक पहुंचने का मार्ग कठिन है, योगी तक पहुंचने का मार्ग भी। सेबी उस तक नहीं पहुंच सकी। अब सीबीआइ कोशिश कर रही है।

यह कहानी उस नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) की पूर्व एमडी और सीईओ चित्रा रामकृष्ण की है जिसकी स्थापना बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) का वर्चस्व खत्म करने और शेयर बाजार में पारदर्शिता लाने के मकसद से की गई थी। 1875 में स्थापित बीएसई के बारे में कहा जाता था कि चुनिंदा ब्रोकर अपने हिसाब से इसे चलाते हैं और निवेशक तथा कंपनियां उनके हाथों का खिलौना हैं। इसका बड़ा उदाहरण 1992 का हर्षद मेहता घोटाला है। तब सरकारी बैंक आइडीबीआइ को नया एक्सचेंज खड़ा करने की जिम्मेदारी दी गई। उद्देश्य यह था कि नए एक्सचेंज में प्रोफेशनल टीम होगी और सब कुछ डिजिटल यानी पारदर्शी तरीके से होगा। एनएसई के संस्थापकों में इसके पहले एमडी आर.एच. पाटील, बाद में एमडी और सीईओ बने रवि नारायण और चित्रा रामकृष्ण भी शामिल हैं। इन्होंने ही दशकों तक एक्सचेंज को चलाया। चुनिंदा लोगों के चंगुल से शेयर बाजार को निकालने के लिए जिस एनएसई की स्थापना हुई थी, वह खुद चुनिंदा लोगों के हाथों में रह गया।

एनएसई की पूर्व एमडी-सीईओ चित्रा रामकृष्ण

एनएसई की पूर्व एमडी-सीईओ चित्रा रामकृष्ण

हश्र देखिए, चित्रा अप्रैल 2013 में एनएसई की प्रमुख बनती हैं। उसी महीने वे अपने परिचित आनंद सुब्रमण्यम को एक्सचेंज का चीफ स्ट्रैटजिक एडवाइजर बना देती हैं। सभी नियम कायदे ताक पर रख कर। इंटरव्यू, कॉन्ट्रैक्ट की शर्तें, वेतन सब कुछ अकेले चित्रा तय करती हैं। भर्ती के लिए न कोई विज्ञापन न किसी और नाम पर चर्चा। इंटरव्यू का भी कोई दस्तावेजी सबूत नहीं। एक्सचेंज में काम का कोई अनुभव न हुआ तो क्या, चित्रा का करीबी होना ही आनंद की सबसे बड़ी योग्यता थी।

बात यहीं तक नहीं रुकी। दो साल बाद चित्रा ने आनंद को ग्रुप ऑपरेटिंग ऑफिसर और अपना एडवाइजर बना दिया। एक पार्ट टाइम कंसल्टेंट एक्सचेंज का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति बन गया। सभी अधिकारी उसके मातहत थे, लेकिन उसकी कोई जवाबदेही नहीं थी। चित्रा यह सब हिमालय में बैठे किसी योगी से ईमेल पर मिले ‘निर्देशों’ के आधार पर कर रही थीं। योगी के कहने पर ही चार साल में आनंद का पैकेज 1.68 करोड़ से 4.21 करोड़ हो गया।

एक्सचेंज का बोर्ड चुपचाप सब देखता रहा। मामले का खुलासा होने के बाद आनंद और चित्रा ने 2016 में इस्तीफा दिया तो बोर्ड ने उनकी तारीफ की। चित्रा अप्रैल 2013 से दिसंबर 2016 तक एक्सचेंज की एमडी और सीईओ थीं। उनसे पहले अप्रैल 1994 से मार्च 2013 तक रवि नारायण एमडी और सीईओ थे और अप्रैल 2013 से जून 2017 तक वे एक्सचेंज के वाइस चेयरमैन रहे। उन्हें चित्रा की अनियमितताओं की जानकारी थी, फिर भी कार्रवाई करने के बजाय 19 दिसंबर 2016 की बोर्ड मीटिंग में चित्रा के करोंड़ों रुपये के लीव एनकैशमेंट को मंजूरी दे दी।

सोचिए एक्सचेंज किन लोगों के हाथों में था। बाजार के रेगुलेटर सेबी की पूछताछ में चित्रा ने बताया कि गंगा के किसी तट पर (नाम नहीं बताया) 20 साल पहले योगी से मिली थीं। तब से निजी और प्रोफेशनल जिंदगी में उनकी सलाह लेती आ रही हैं। बकौल चित्रा, “मैंने उनसे पूछा कि मुझे जरूरत हुई तो आपसे कैसे संपर्क करूंगी, तो उन्होंने ईमेल आइडी [email protected] दी थी।” हिमालय में बैठे योगी ईमेल कैसे भेज सकते थे, इस पर चित्रा का जवाब था, “वे सिद्ध पुरुष हैं, उनके पास शक्ति है।”

लेकिन ईमेल वार्ता कुछ और इशारा करती है। एक ईमेल में योगी ने चित्रा को लिखा, “मैं सेशेल्स जा रहा हूं... तुम भी वहां आ जाओ। तैरना आता हो तो स्विम सूट लेती आना।” सेबी ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि अज्ञात व्यक्ति वास्तव में कोई व्यक्ति है, जो चित्रा के साथ छुट्टियां मनाने जा चुका है। एक ईमेल में योगी ने लिखा, “मैं भारत दौरे पर हूं और 7 और 8 मार्च (2015) को दिल्ली में रहूंगा।” योगी ने 8 मार्च को दिल्ली के वसंत विहार में चित्रा को बुलाया। जवाब में चित्रा के सचिव नवाज पटेल ने योगी को लिखा कि चित्रा 8 मार्च को मिलेंगी। समय और जगह बाद में तय कर लेंगे।

एनएसई के पूर्व एमडी-सीईओ रवि नारायण

एनएसई के पूर्व एमडी-सीईओ रवि नारायण 

सेबी को इस ईमेल संवाद की जानकारी एनएसई के कोलोकेशन घोटाले की जांच के दौरान मिली। सेबी के अनुसार चित्रा ने 2014 से 2016 के दौरान गोपनीय सूचनाएं योगी के साथ साझा कीं। 21 अक्टूबर 2016 को एनएसई की बोर्ड बैठक में यह खुलासा हो चुका था कि चित्रा ने आनंद की नियुक्ति में अनियमितताएं की हैं। लेकिन गोपनीयता का हवाला देते हुए उस बात को मीटिंग के मिनट्स में शामिल नहीं किया गया। सेबी को पता चला कि चित्रा किसी अनजान व्यक्ति के साथ गोपनीय सूचनाएं साझा करती हैं तो उसने एनएसई से स्पष्टीकरण मांगा। एक्सचेंज ने कंसल्टेंसी फर्म अर्नेस्ट एंड यंग की फॉरेंसिक जांच रिपोर्ट के साथ विस्तृत रिपोर्ट सेबी को भेजी, जिसमें बताया गया कि वह अनजान व्यक्ति और कोई नहीं बल्कि आनंद सुब्रमण्यम ही है। हालांकि सेबी ऐसा नहीं मानती, लेकिन वह यह पता लगाने में भी नाकाम रही कि अज्ञात व्यक्ति है कौन। एक कंसल्टेंसी फर्म से जुड़े अधिकारी ने कहा, “अगर यह मान लिया जाए कि आनंद ही योगी है, तो चित्रा पर किसी बाहरी व्यक्ति के साथ संवेदनशील सूचनाएं साझा करने का आरोप खत्म हो जाएगा क्योंकि आनंद तो एक्सचेंज का ही अधिकारी था।”

अर्नेस्ट एंड यंग ने जनवरी 2000 से मई 2018 के दौरान चित्रा, आनंद और योगी के बीच ईमेल संवाद के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला है। योगी के ईमेल से 1 दिसंबर 2015 को चित्रा को ईमेल भेजा गया, “कंचन (आनंद) की छुट्टी मैंने स्वीकार कर ली है और (होटल) उमेद भवन में मैंने बुकिंग की है।” इस ईमेल की प्रति आनंद को भी भेजी गई थी। आनंद के बैंक स्टेटमेंट के अनुसार 27 नवंबर 2015 को 2.37 लाख रुपये का भुगतान उमेद भवन को किया गया था। एक्सचेंज ने आनंद को जो डेस्क टॉप कंप्यूटर दिया था, उसके स्काइप अकाउंट में दो नाम मिले आनंद.सुब्रमण्यम9 और शिरोमणि.10, शिरोमणि.10 अकाउंट योगी की ईमेल आइडी और एक्सचेंज की तरफ से आनंद को दिए गए मोबाइल फोन 9167577412 से लिंक था। शिरोमणि.10 और ऋग्यजुर्साम ईमेल में इस्तेमाल किए गए शब्द भी एक जैसे थे। योगी की आइडी से भेजे गए नौ ईमेल के विश्लेषण में पता चला उनमें से आठ को आनंद ने मॉडिफाई किया था या उसी ने ईमेल लिखा था।

सीबीआइ तीन दिन की पूछताछ के बाद 24-25 फरवरी की रात आनंद को चेन्नई में गिरफ्तार कर दिल्ली ले आई, जहां विशेष अदालत ने उसे 6 मार्च तक हिरासत में भेज दिया। सेबी ने 11 फरवरी को अंतिम रिपोर्ट दी थी, जिसमें चित्रा और योगी के बीच संवाद का जिक्र है। उसी रिपोर्ट के आधार पर सीबीआइ एफआइआर दर्ज कर जांच कर रही है।

सीबीआइ ने 18 फरवरी को चित्रा से पूछताछ की। इनकम टैक्स अधिकारियों ने भी पूछताछ की है। चित्रा का कहना है कि उन्हें फंसाया जा रहा है। उनका कहना है कि कोलोकेशन सुविधा रवि नारायण के समय शुरू हुई थी। उन्होंने कुछ ब्रोकरों को एक्सचेंज के सर्वर तक पहले एक्सेस देने के आरोपों को गलत बताया और कहा कि वह तकनीकी खामी थी। टैक्स हेवन देशों के दौरे को उन्होंने आधिकारिक दौरा बताया और कहा कि एक्सचेंज में उसके रिकॉर्ड हैं। एजेंसी ने रवि नारायण से भी पूछताछ की है। रोचक बात यह है कि रवि नारायण और चित्रा दोनों ने एक दूसरे पर उंगली उठाई है।

कोलोकेशन घोटाले को करीब से जानने वाले एक अधिकारी के अनुसार सेबी की तरफ से भी जांच में ढिलाई हुई है, वर्ना यह सब बहुत पहले पकड़ में आ गया होता। इसलिए सीबीआइ ने सेबी के अधिकारियों से भी पूछताछ की है। आरोप है कि सेबी के कुछ अधिकारी भी इस मिलीभगत में शामिल थे। उनका गिरफ्तार होना भी तय माना जा रहा है। सेबी ने देरी के आरोप को गलत बताया है। उसका कहना है कि सीबीआइ ने 2018 में जब कोलोकेशन मामले में एफआइआर दर्ज की थी, तभी केंद्रीय जांच एजेंसी को रिपोर्ट दी गई थी। सेबी को चित्रा के ईमेल के बारे में 2018 की शुरुआत में पता चला। उसी साल अप्रैल में उसने चित्रा से पूछताछ की, मई में एक्सचेंज को अज्ञात व्यक्ति की पहचान करने के लिए लिखा। जुलाई में एक्सचेंज ने अर्नेस्ट एंड यंग की रिपोर्ट के साथ अपनी रिपोर्ट सेबी को दी। उसके बाद 2019 में सेबी ने एक्सचेंज और चित्रा को नोटिस भेजा।

सेबी ने चित्रा पर तीन करोड़ रुपये, एनएसई, आनंद और रवि नारायण पर दो-दो करोड़ और चीफ रेगुलेटरी ऑफिसर वी.आर. नरसिम्हन पर छह लाख रुपये का जुर्माना लगाया है। एक्सचेंज को चित्रा का डेढ़ करोड़ रुपये का लीव एनकैशमेंट और 2.8 करोड़ का डेफर्ड बोनस भी जब्त करने का निर्देश दिया है।

कोलोकेशन घोटाला

कुछ ब्रोकरेज फर्म 2010 से 2014 तक एनएसई परिसर से काम कर रहे थे। एक्सचेंज के कुछ अधिकारियों ने मिलीभगत से उन्हें सर्वर का विशेष एक्सेस दे रखा था। इससे ये ब्रोकरेज फर्म दूसरों की तुलना में पहले लॉगइन कर लेते थे और उन्हें ट्रेड के आंकड़े पहले मिल जाते थे। जांच में पता चला कि 90 फीसदी मौकों पर दिल्ली की ब्रोकरेज फर्म ओपीजी सिक्योरिटीज सबसे पहले लॉगइन करने वाली फर्म होती थी। बात फैलने पर ब्रोकर समुदाय में हलचल मची। जनवरी 2015 में पहली बार एक व्हिसलब्लोअर ने इसकी शिकायत की। सेबी की जांच के बाद सीबीआइ ने ओपीजी सिक्योरिटीज और उसके प्रमोटर संजय गुप्ता के खिलाफ मई 2018 में एफआइआर दर्ज की। उसमें चित्रा का नाम नहीं था लेकिन सेबी और एनएसई के कुछ अज्ञात अधिकारियों को आरोपी बनाया गया था। सीबीआइ के अनुसार गुप्ता अपने संबंधी अमन कोकराडी के साथ मिलकर इस धोखाधड़ी को अंजाम देता रहा। सेबी की जांच के दौरान उन्होंने रिश्वत भी दी। स्टॉक एक्सचेंज को शेयर बाजार का पहला और सेबी को दूसरा रेगुलेटर माना जाता है। लेकिन यहां दोनों के अधिकारी भ्रष्टाचार में लिप्त थे।

कोलोकेशन घोटाला कितना बड़ा है, इसका अभी तक आकलन नहीं किया जा सका है लेकिन कुछ लोगों का अनुमान है कि चुनिंदा ब्रोकरों को 50 हजार करोड़ रुपये तक का फायदा हुआ। जांच एजेंसियां अब यह पता लगाने की कोशिश कर रही हैं कि किन ब्रोकरेज फर्मों और उनके किन क्लाइंट को फायदा हुआ। लेकिन यह आसान नहीं होगा। विदेश स्थित लाभार्थियों का पता लगाना वैसे भी कठिन होता है क्योंकि वे एफपीआइ के माध्यम से पैसा लगाते हैं। जांच एजेंसियां यह पता लगाने की भी कोशिश कर रही हैं कि क्या योगी का भी कोलोकेशन से लेना-देना रहा है।

चित्रा को निर्देश देने वाला योगी कौन है, इसकी तीन संभावनाएं बनती हैं। पहली, चित्रा और आनंद आपस में मिले थे और संदेह से बचने के लिए दोनों ने मिलकर योगी को खड़ा किया हो। दूसरी, आनंद खुद योगी की भूमिका निभा रहा हो और उसके प्रभाव में आकर चित्रा उसके पक्ष में फैसले ले रही हों। तीसरी संभावना यह है कि योगी के नाम पर कोई तीसरा शख्स पर्दे के पीछे रहकर काम कर रहा हो। इस थ्योरी के पीछे वह ईमेल है जिसमें योगी ने चित्रा और आनंद को सेशेल्स बुलाया है।

गड़बड़ियां और घोटाला पकड़ में आने के बावजूद अभी तक जांच एजेंसियों के हाथ कुछ खास नहीं लगा है। इससे रेगुलेटर और जांच एजेंसियों पर एक बार फिर सवाल उठ रहे हैं। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा, सरकार देख रही है कि ‘सेबी ने दिमाग का पूरा इस्तेमाल किया या नहीं और पर्याप्त कदम उठाए या नहीं।’ कोलोकेशन घोटाला 2015 में सामने आया और आनंद की नियुक्ति में गड़बड़ी 2016 में पकड़ में आ गई थी। छह साल तक सरकार क्यों चुप थी? सेबी का कहना है कि कोलोकेशन मामला काफी जटिल है इसलिए उसे कदम उठाने में समय लगा। लेकिन कार्रवाई के नाम पर उसने भी तो मामूली जुर्माना ही लगाया है।

भारतीय उद्योग जगत में कॉरपोरेट गवर्नेंस की समस्या कोई नई नहीं है। सत्यम कंप्यूटर्स, किंगफिशर एयरलाइंस, जेट एयरवेज, भूषण स्टील, आइएलएफएस, डीएचएफएल, पीएमसी, यस बैंक, नीरव मोदी, एबीजी शिपयार्ड... यह सूची अंतहीन है। आइसीआइसीआइ बैंक की पूर्व प्रमुख चंदा कोचर का नाम भी घोटालों में आया, लेकिन उसके बोर्ड ने अपनी जांच में उन्हें बरी कर दिया था। बाद में जांच एजेंसियों ने उनके खिलाफ मामला दर्ज किया। सवाल उन स्वतंत्र डायरेक्टर पर भी उठते हैं जिनका काम कंपनी बोर्ड में किसी भी अनैतिक फैसले को रोकना है।

आश्चर्य है कि इतने सालों की छानबीन के बाद भी यह पता नहीं लग सका कि चित्रा रामकृष्ण किसके साथ ईमेल पर संवाद करती थीं, इन सबके पीछे उनकी मंशा क्या थी। सेबी की दलील है कि एक्सचेंज की नीति के अनुसार चित्रा और आनंद को दिए गए लैपटॉप उनके इस्तीफे के बाद नष्ट कर दिए गए। ऐसे में अब देखना है कि जांच एजेंसियां कितना खुलासा कर पाती हैं।

एबीजी शिपयार्ड: सुर्खियों से गायब सबसे बड़ा बैंक घोटाला

पूर्व सीएमडी ऋषि अग्रवाल के खिलाफ सीबीआइ ने दर्ज किया है केस

पूर्व सीएमडी ऋषि अग्रवाल के खिलाफ सीबीआइ ने दर्ज किया है केस

विजय माल्या के नौ हजार करोड़ और नीरव मोदी के 14 हजार करोड़ रुपये के घोटाले की चर्चा तो बहुत हुई, लेकिन 22,842 करोड़ रुपये का सबसे बड़ा बैंक घोटाला आश्चर्यजनक रूप से सुर्खियों से गायब है। घोटाला करने वाली कंपनी गुजरात के सूरत की एबीजी शिपयार्ड है। एसबीआइ की शिकायत पर सीबीआइ ने 1985 में स्थापित इस कंपनी के पूर्व सीएमडी ऋषि कमलेश अग्रवाल, पूर्व ईडी संथानम मुथुस्वामी, डायरेक्टर अश्विनी कुमार, सुशील कुमार अग्रवाल और रवि विमल नेबतिया के खिलाफ मामला दर्ज किया है। 28 बैंकों के कंसोर्टियम ने 2005 से 2010 के दौरान कंपनी को कर्ज दिया था। इसमें आइसीआइसीआइ बैंक के 7,089 करोड़, आइडीबीआइ बैंक के 3,639 करोड़ और एसबीआइ के 2,925 करोड़ शामिल हैं।

बैंकों के लिए अर्नेस्ट एंड यंग ने जनवरी 2019 में कंपनी के खातों की फॉरेंसिक ऑडिटिंग की थी। यह ऑडिटिंग अप्रैल 2012 से जुलाई 2017 की अवधि के लिए थी। उसी में पहली बार धोखाधड़ी का पता चला। कहा जा रहा है कि कम से कम 100 शेल कंपनियों के माध्यम से पैसा इधर से उधर हुआ है।

एसबीआइ को जनवरी 2019 में धोखाधड़ी का पता चला, लेकिन उसने शिकायत दर्ज कराई नवंबर 2019 में। बैंक की तरफ से अगस्त 2020 में विस्तृत शिकायत दर्ज कराई गई और सीबीआई ने 7 फरवरी 2022 को मामला दर्ज किया। ईडी भी जांच कर रही है। सीबीआइ की एफआइआर के मुताबिक एबीजी शिपयार्ड ने कर्ज को विदेश स्थित सब्सिडियरी में लगाया और उन कंपनियों के जरिए एसेट खरीदे। एसबीआइ का आरोप है कि एबीजी शिपयार्ड और इसके प्रमोटर से जुड़े लोगों ने प्रॉपर्टी खरीदने में कर्ज की रकम का इस्तेमाल किया।

कंपनी का अकाउंट 30 नवंबर 2013 को एनपीए घोषित कर दिया गया था और अभी उसके खिलाफ दिवालिया कार्रवाई चल रही है। एसबीआई ने शिकायत में यह भी कहा है कि वैश्विक संकट के चलते कार्गो जहाज की मांग घट गई। इसका असर शिपिंग इंडस्ट्री पर हुआ। इससे कंपनी को कर्ज लौटाने में दिक्कत हुई। 2012-13 में कंपनी 107 करोड़ रुपये मुनाफे में थी, लेकिन उसके बाद घाटा होने लगा और मार्च 2016 में घाटा 3700 करोड़ के पार चला गया।

एबीजी शिपयार्ड को ज्यादातर कर्ज 2005 से 2012 के दौरान दिया गया था। इसलिए कांग्रेस ने मोदी सरकार पर आरोप लगाए तो वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि कर्ज यूपीए सरकार के समय दिया गया था।

एसबीआइ ने एक बयान में कहा है कि प्रक्रिया को देर करने की कोशिश नहीं की गई। वित्त मंत्री ने सफाई दी कि फ्रॉड की पहचान करने में 52 से 56 महीने लगते हैं, इसलिए एबीजी शिपयार्ड मामले में देरी की बात कहना गलत है। सीतारमण के अनुसार बैंकों की तारीफ की जानी चाहिए कि उन्होंने औसत से कम समय में फ्रॉड की पहचान कर ली। सीबीआइ ने भी केस दर्ज करने में देरी से इनकार किया है। इसका कहना है कि औपचारिक शिकायत दर्ज कराने पर कंसोर्टियम के दूसरे बैंकों से सहमति नहीं मिली थी।

सीबीआइ ने एबीजी शिपयार्ड के पूर्व सीएमडी ऋषि कमलेश अग्रवाल से पूछताछ की है। उनके वकील विजय अग्रवाल का कहना है कि ऋषि ने 2008 में कंपनी के सभी एग्जीक्यूटिव पदों से इस्तीफा दे दिया था। उस समय कंपनी पर सिर्फ 441 करोड़ रुपये का कर्ज था। विजय अग्रवाल का कहना है कि 2016 से 51 फीसदी शेयर बैंकों के पास हैं और वे ही कंपनी चला रहे हैं। प्रमोटर के पास सिर्फ 7 फीसदी शेयर हैं। सीबीआइ और ईडी ने धोखाधड़ी, आपराधिक षड्यंत्र और मनीलांड्रिंग जैसे मामले दर्ज किए हैं। कंपनी के स्वतंत्र निदेशकों के खिलाफ भी जांच हो रही है। कंपनी में चार स्वतंत्र निदेशक थे। इनमें दो को उसे कर्ज देने वाले बैंकों ने ही नियुक्त किया था।

भारत पे: जब सफलता सिर चढ़ जाए

ग्रोवर

अशनीर ग्रोवर ने खुद इस्तीफा दिया तो माधुरी को बर्खास्त किया गया 

जल्दी मिली सफलता भी क्या व्यक्ति को बदल देती है? अगर इसका जवाब हां है तो महज चार साल पुरानी फाइनेंशियल टेक्नोलॉजी कंपनी भारत पे के सह संस्थापक अशनीर ग्रोवर इसका उदाहरण हैं, जिन पर कंपनी में मनमानी करने के आरोप लगे हैं। जनवरी के पहले हफ्ते में ग्रोवर का तथाकथित ऑडियो क्लिप सोशल मीडिया पर आया, जिसमें वे कोटक महिंद्रा बैंक के एक कर्मचारी के साथ अभद्र तरीके से बात कर रहे हैं। कहा तो यह भी जाता है कि भारत पे में अभद्र भाषा के इस्तेमाल के कारण ही शीर्ष स्तर पर अनेक लोग छोड़ गए। अगस्त 2020 में ग्रोवर की सिकोइया कैपिटल इंडिया के एमडी हर्षजीत सेठी से भी कहा-सुनी हुई थी। भारत पे में सिकोइया की 19 फीसदी शेयर होल्डिंग है।

1 मार्च की सुबह ग्रोवर के इस्तीफे की खबर आई। कोटक बैंक में इनवेस्टमेंट बैंकर और ग्रोफर्स में सीएफओ रह चुके ग्रोवर इससे पहले 19 जनवरी को अचानक 31 मार्च तक छुट्टी पर चले गए थे। हफ्ते भर बाद उनकी पत्नी माधुरी जैन ग्रोवर को भी छुट्टी पर भेज दिया गया। वे अक्टूबर 2018 से कंपनी के फाइनेंस का काम देख रही थीं। उसके बाद कंपनी ने अल्वारेज ऐंड मार्शल नाम की फर्म को भारत पे के कामकाज की ऑडिट करने का जिम्मा सौंपा।

आरोप हैं कि भारत पे से फर्जी एचआर कंसल्टेंट फर्मों को भुगतान किया गया। जिन कर्मचारियों की भर्ती इन फर्मों के माध्यम से बताई गई, उन कर्मचारियों ने ही उससे इनकार किया है। ये फर्म माधुरी जैन के भाई श्वेतांक जैन के बताए जाते हैं। कुछ फर्जी वेंडर को भी बड़ी रकम भुगतान करने का आरोप है। ये वेंडर माधुरी के पैतृक शहर पानीपत के हैं और उनका पता, ईमेल, बैंक शाखा एक हैं। इसके बाद भारत पे ने माधुरी को 23 फरवरी को बर्खास्त कर दिया।

अशनीर ने कंपनी में चल रही जांच रुकवाने के लिए सिंगापुर अंतरराष्ट्रीय आर्बिट्रेशन कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। लेकिन कोर्ट ने फिलहाल हस्तक्षेप से इनकार कर दिया। अशनीर के पास भारत पे के नौ फीसदी से कुछ ज्यादा शेयर हैं। कहा जा रहा है कि वे इसे 4000 करोड़ रुपये में बेचना चाहते हैं, हालांकि अशनीर की तरफ से ऐसा कोई बयान नहीं आया है।

आनंद दंपती का आनंद काल

आनंद सुब्रमण्यम

आनंद सुब्रमण्यम को एनएसई में 1 अप्रैल 2013 से चीफ स्ट्रैटजिक एडवाइजर पद का ऑफर दिया गया। एनएसई में उसका इंटरव्यू लेने वाली एकमात्र शख्स चित्रा थीं। चीफ स्ट्रैटजिक एडवाइजर पद की नियुक्ति का न तो विज्ञापन निकाला गया न किसी और के नाम पर विचार हुआ। आनंद को इस तरह के काम का कोई अनुभव भी नहीं था। एनएसई से पहले वह बामर एंड लॉरी कंपनी की सब्सिडियरी रिपेयर सर्विसेज ऑफ ट्रांसेफ सर्विसेज लिमिटेड में वाइस प्रेसिडेंट था। वहां उसका सालाना पैकेज 15 लाख रुपये था, जबकि एनएसई में उसे 1.68 करोड़ रुपये का पैकेज दिया गया। काम भी पार्ट टाइम था, हफ्ते में सिर्फ चार दिन। एक साल बाद उसके काम को ए प्लस रेटिंग देते हुए चित्रा ने वेतन दो करोड़ कर दिया। दो महीने बाद, 6 मई 2014 से वेतन बढ़ाकर 2.32 करोड़, 30 मार्च 2015 को 3.33 करोड़ और 1 अप्रैल 2016 को 4.21 करोड़ रुपये कर दिया गया। हर बार उसे ए प्लस रेटिंग दी गई जबकि उसके कामकाज के मूल्यांकन का कोई रिकॉर्ड एक्सचेंज के पास नहीं है। अप्रैल 2015 में चित्रा ने आनंद को ग्रुप ऑपरेटिंग ऑफिसर और अपना सलाहकार बना दिया, लेकिन पदोन्नति की फाइल भी रेम्यूनरेशन कमेटी को नहीं भेजी गई। हर बार टॉप परफॉर्मर होने के बावजूद उसकी किसी फाइल में परफॉर्मेंस का सबूत नहीं है। गड़बड़ी का खुलासा होने के बाद आनंद ने अक्टूबर 2016 में इस्तीफा दे दिया।

2013 से 2016 का समय आनंद दंपती के लिए एनएसई में सचमुच आनंद का था। आनंद की पत्नी सुनीता को भी अच्छा खासा वेतन मिला। सुनीता को एनएसई के चेन्नई ऑफिस में 1 अप्रैल 2013 से 31 मार्च 2014 तक 60 लाख के पैकेज पर कंसलटेंट नियुक्त किया गया था। हर साल कॉन्ट्रैक्ट रिन्यू होता रहा और पैकेज 72 लाख, एक करोड़ और 1.15 करोड़ रुपए हो गया। उनका कांट्रैक्ट 1 अप्रैल 2016 से आखिरी बार रिन्यू हुआ तो वेतन 1.33 करोड़ तय किया गया। उन्होंने दिसंबर 2016 में इस्तीफा दिया।

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