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18 मार्च 2023 · MAR 18 , 2024

स्मृति: रेडियो का हिंदुस्तानी लहजा

कम लोग जानते हैं कि अमीन साहब की मां कुलसुम सायानी हिंदुस्तानी प्रचार सभा से जुड़ी थीं और महात्मा गांधी के निर्देश पर उन्होंने रहबर नाम से पत्रिका निकाली थी।
अमीन सायानी (21 दिसंबर 1932- 20 फरवरी 2024)

अफसोस, आवाज की दुनिया का सुनहरा पंछी उड़ गया और उनके जाने से सूनी हो गई है वह डाली। यह ख्वाब भी नहीं देखा था कि कभी हमारे कदम भी रेडियो की दुनिया में आएंगे। वह कौन-सी पहली आवाज थी, जिसने मुझे लुभाया था। यकीनन वे अमीन सायानी थे। मन में  सवाल उठता था, वे दिखते कैसे होंगे? बहुत बरस तक दुनिया सिर्फ इस आवाज से वाकिफ थी। उस आवाज का चेहरा कैसा है, लोगों को पता न था।

कम लोग जानते हैं कि अमीन साहब की मां कुलसुम सायानी हिंदुस्तानी प्रचार सभा से जुड़ी थीं और महात्मा गांधी के निर्देश पर उन्होंने रहबर नाम से पत्रिका निकाली थी। 

इसका अमीन सायानी पर गहरा असर पड़ा। उनके भाई हामिद अंग्रेजी की लोकप्रिय आवाज थे। वे बड़े जोशीले और शाहाना अंदाज में ‘बोर्नवीटा क्विज कॉन्टेयस्ट’ पेश करते रहे। यह आज से 73 बरस पहले की बात है। 1951 में रेडियो सीलोन के प्रोग्राम मुंबई में बनने शुरू हुए। प्रोग्राम डायरेक्टर बने हामिद सायानी। अमीन सायानी उन दिनों सेंट जेवीयर्स कॉलेज में पढ़ते थे और इसी कॉलेज के टेक्निकल इंस्टीट्यूट में ही रेडियो सीलोन के प्रोग्राम रिकॉर्ड होते थे। एक मौका ऐसा आया, जब बिनाका टूथपेस्ट बनाने वाली सीबा कंपनी के लिए एक प्रोग्राम बनाने की बात सोची गई। तय हुआ कि मामला जोखिम भरा है इसलिए कोई एकदम नया बंदा यह कार्यक्रम करे, ताकि कार्यक्रम फेल हो जाए, तो कम से कम किसी बड़े नाम के माथे फेल का ठीकरा नहीं फूटेगा।  प्रोग्राम पेश करने का जिम्मा मिला 19 बरस के युवा अमीन सायानी को। इस तरह 1952 के आखिरी दिनों में शुरू हुई ‘बिनाका गीतमाला’। उसके बाद तो सब इतिहास है। वक्त के साथ यह कार्यक्रम ‘कल्ट’ बन गया। रेडियो पर बिनाका गीत माला और फिर सिबाका गीत माला नाम से ये कार्यक्रम करीब चालीस बरस तक चलता रहा। इसने फिल्म-संगीत को जन-जन तक पहुंचाया। लोगों में फिल्मी-गाने सुनने के संस्कार और रुचि दोनों को पैदा किया। 

अमीन सायानी का एक बड़ा योगदान रेडियो की भाषा संवारने में भी रहा। यह शायद मां का असर था अमीन साहब की भाषा पर। उन्होंने बोलचाल की हिंदी और उर्दू को मिलाकर एक खास हिंदुस्तानी लहजा तैयार किया। ये अमीन सायानी की अपनी जबान थी। उन्होंने ही ‘पायदान’ और ‘सरताज’ जैसे कई शब्दों को हमारी बोलचाल में पिरोया। रेडियो के लेखकों की एक बड़ी फौज थी जिसे उन्होंने हिंदुस्तानी जबान में लिखने के लिए तैयार किया था। 

अमीन साहब इसके अलावा ‘एस. कुमार का फिल्मी मुकदमा’ नाम से एक और दिलचस्प कार्यक्रम भी करते थे। इसमें वे वकील बनकर फिल्मी सितारों पर मुकदमा चलाते थे। इसके कई एपीसोड बड़े नायाब बन पड़े थे। मुझे याद है, शोले फिल्म में मौसी का किरदार निभाने वाली अभिनेत्री लीला मिश्रा को उन्होंने इस प्रोग्राम में बुलाया था। उन्होंने अमीन साहब को बोलने ही नहीं दिया था! यह एपिसोड लाजवाब बन पड़ा था। आगे चलकर इसी कार्यक्रम की तर्ज पर टीवी पर ‘आपकी अदालत’ नाम से एक कार्यक्रम शुरू हुआ। 

अमीन सायानी का एक और लोकप्रिय कार्यक्रम था, ‘सेरीडॉन के साथी।’ इसके एक अंक में अमीन सायानी के पुराने दोस्ता बेमिसाल गायक किशोर कुमार ने चार आवाजें निकाली थीं। एक अपने बचपन की, एक अपने पिताजी की, एक पुराने जमाने के मशहूर एक्टर तिवारी की मिमिक्री करते हुए जज की और एक खुद की। उन्होंने इसके अलावा अपने भाई हामिद सायानी के निधन के बाद अंग्रेजी में ‘बोर्नवीटा क्विज कॉन्टे स्टा’ भी होस्ट किया था। अमीन सायानी दूरदर्शन के मेट्रो चैनल पर सिबाका गीत माला लेकर भी आए थे।

फिल्म संसार में पंचम दा, महमूद और अमीन साहब की तिकड़ी प्रसिद्ध थी। अमीन सायानी ने कई फिल्मों के प्रोमो और रेडियो कार्यक्रम भी किए। भूत बंगला और तीन देवियां जैसी फिल्मों में वे सुनाई और दिखाई देते हैं। उनकी एक लोकप्रिय पेशकश रही है ‘गीतमाला की छांव में।’

वे आवाज की दुनिया के इकलौते सुपर-स्टार रहे। जिस्मानी तौर पर अमीन साहब हमसे भले जुदा हो गए हों पर उनका अंदाज हमारे साथ ही है।

(मुंबई आकाशवाणी में उद्घोषक, रेडियो सखी नाम से लोकप्रिय और लेखिका)

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