“मैं जैसे बेहोश होने वाला था। मुझमें खड़ा होने की भी ताकत नहीं थी। तभी मेरे कप्तान और बैटिंग पार्टनर एलन बॉर्डर ने 12वें खिलाड़ी से कहा, 'इस विक्टोरियन को बाहर ले जाओ और किसी तगड़े क्वींसलैंडर को भेजो।' मैं चेन्नैै (तब मद्रास) के चेपक स्टेडियम में पसीने से लथपथ, घास पर लेटा था। तब मेरी उम्र 25 साल थी। कप्तान के इन शब्दों ने जैसे मुझमें जोश भर दिया और मैं उठकर बैटिंग करने लगा। इसके बाद जो हुआ वह इतिहास है।”
भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच 1986 में मैच के दौरान हुई इस घटना के बारे में डीन जोंस को बताते हुए मैंने कई बार सुना। डिनर के दौरान, टीवी पर क्रिकेट शो में, चेपक में आइपीएल फाइनल की कवरेज के दौरान, स्टेज पर लेक्चर में और दूरदर्शन के दिल्ली कार्यालय में जब भी हम साथ होते। वहां वे यह बताने से कभी नहीं चूकते थे कि उस मैच की ओरिजिनल फुटेज अब नहीं है क्योंकि दूरदर्शन के आर्काइव्स डिपार्टमेंट ने उस टेप पर किसी डेली सोप की रिकॉर्डिंग करना ज्यादा उचित समझा। फिर भी ‘डीनो’ की कहानी सुनकर कोई कभी बोर नहीं होता था। अच्छे कहानीकार ऐसा ही करते हैं। वे रेड कारपेट बिछाकर आपको अपनी दुनिया में ले जाते हैं और फिर अपनी बातों से यह एहसास कराते हैं जैसे घटना के वक्त आप भी वहां मौजूद थे। मैंने 2006 से 2016 के दौरान एक दशक तक उनके साथ काम किया। तब उन्होंने मुझे 1990 के दशक की सिडनी क्रिकेट ग्राउंड की वह घटना बताई जब उन्होंने वेस्टइंडीज के गेंदबाज कर्टली एंब्रोस को रिस्ट बैंड उतारने के लिए ललकारा था। उन्होंने कोलकाता का भी भाव-विभोर कर देने वाला वाकया बताया जब एक लाख से अधिक भारतीय दर्शकों ने ऑस्ट्रेलिया के नए विश्व चैंपियन बनने पर उनके और उनकी टीम के लिए प्रसन्नता जाहिर की थी।
डीन जोंस के बारे में मेरी सबसे पसंदीदा कहानी 1987 में ऑस्ट्रेलियाई टीम के न्यूजीलैंड दौरे से जुड़ी है। तब उन्होंने रिचर्ड हैडली को एक सामान्य गेंदबाज बताया था। उस बात ने कीवी लीजेंड हैडली पर इतना असर किया कि उन्होंने उस सीरीज में तीन बार डीनो को आउट किया। इस बारे में पूछने पर हाजिरजवाब जोंस ने कहा, “हां उन्होंने कई बार मुझे आउट किया और जब इंग्लैंड की महारानी ने यह सुना तो उन्हें नाइट की उपाधि भी दी।” संन्यास के बाद डीनो ने क्रिकेट मैच की कमेंट्री शुरू की और कहानी कहने की अनोखी शैली के कारण अग्रणी कमेंटेटर बन गए। हालांकि 2006 में दक्षिण अफ्रीका के एक मैच में हाशिम अमला के लिए अपशब्द कहने पर उनका कमेंट्री कॉन्ट्रैक्ट रद्द कर दिया गया था। कमेंटेटर के तौर पर उन्होंने छक्के के लिए ‘गोइंग... गोइंग... गॉन’ और हैट्रिक के लिए ‘थ्रीपीट’ जैसे मुहावरे का इजाद किया। अनोखे और दिलचस्प तरीके से क्रिकेट का संदेश देने के लिए कभी वे पुजारी बने तो कभी टुकटुक ड्राइवर, कभी पशु चिकित्सक तो कभी चीयरलीडर बने। इन बातों को लेकर उन्होंने कभी शिकायत नहीं की, जिससे क्रिकेट और कहानी कहने के प्रति उनके पैशन का पता चलता है। खासकर आइपीएल आने के बाद इस तरह का विश्लेषण अब सामान्य हो गया है, लेकिन यह बात भी उस लीजेंड को अग्रणी बनाती है।
क्रीम और शेड
डीन जोंस अपने शुरुआती दिनों से ही ट्रेंडसेटर थे। क्रिकेट के मैदान पर सनग्लास पहनने और जिंक क्रीम लगाने वाले वे पहले खिलाड़ियों में से थे। सनग्लास से उन्हें नीले आकाश में सफेद गेंद देखने में मदद मिलती थी। जिंक क्रीम का इस्तेमाल इसलिए करते थे क्योंकि सूर्य की रोशनी के प्रति उनकी त्वचा अति संवेदनशील थी। इसी वजह से मैदान में खेलते वक्त वे हमेशा पूरी बांह की शर्ट पहनते थे। लेकिन सिर्फ असेसरी की बातों से डीनो को अग्रणी बताना उनके क्रिकेट कौशल को कमतर आंकने के समान होगा। हम सबने कभी न कभी गली क्रिकेट खेला है। उस खेल में हर कोई अपने प्रिय बल्लेबाज जैसा दिखने की कोशिश करता है। 80 और 90 के दशक में मेरे दोस्त विवियन रिचर्ड्स, कपिल देव, इमरान खान, मार्टिन क्रो जैसे खिलाड़ियों की तरह दिखना चाहते थे, लेकिन मेरी पसंद हमेशा डीन जोंस रहे- गहरे रंग का सनग्लास और निचले होंठ पर जिंक क्रीम। सैटेलाइट टीवी आने और 1992 के विश्व कप का सीधा प्रसारण देखने तक भारत की गलियों में ऐसे अनेक खिलाड़ी हुए जो डीनों की तरह बनना चाहते थे।
छह फुट दो इंच लंबे, विक्टोरिया (ऑस्ट्रेलिया) के निवासी डीन जोंस ने अपनी आकर्षक बल्लेबाजी शैली और कसरती बदन से दुनियाभर के क्रिकेट प्रेमियों को आकर्षित किया। अगर आपने उन्हें उनके बेहतरीन दिनों में खेलते हुए देखा है तो इसकी वजह समझना भी मुश्किल नहीं। उन दिनों तेज गेंदबाजों के खिलाफ खुलकर प्रहार करना, एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में 45 का औसत और 70 से अधिक का स्ट्राइक रेट कम ही सुना जाता था। विकेट के बीच बिजली की गति से दौड़ने और आउटफील्ड में डाइव लगाकर गेंद पकड़ने जैसी बातें उन दिनों किसी और खिलाड़ी में नहीं दिखती थीं। उनकी इन्हीं प्रतिभाओं की वजह से उन्हें एकदिवसीय क्रिकेट का पहला विशेषज्ञ खिलाड़ी कहा जाता है।
सबसे बड़ा पछतावा
पिछले महीने डीनो कोरोना के कारण लागू किए गए लॉकडाउन के चलते मेलबर्न में अपने घर में फंसे थे। एक दिन मैंने इंस्टाग्राम पर उनसे बात की। हम एक खिलाड़ी और कमेंटेटर के रूप में उनके पुराने दिनों को याद कर रहे थे। तब उन्होंने अपने जीवन के सबसे बड़े पछतावे के बारे में बताया। उन्होंने कहा, “मुझे इतनी जल्दी एकदिवसीय क्रिकेट से संन्यास नहीं लेना चाहिए था। मैंने सिर्फ 32 साल की उम्र में संन्यास ले लिया था। हालांकि तब मुझे लगने लगा था कि एकदिवसीय खिलाड़ी के रूप में मुझे प्यार और सम्मान नहीं मिल रहा है। मैं एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट रैंकिंग में दूसरे-तीसरे नंबर पर था और 1994 में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ आखिरी एकदिवसीय मैच में उन्होंने मुझे बाहर कर दिया। उस समय टूर के दौरान टीम चयन के लिए पांच सदस्यों की समिति होती थी, जिसमें कप्तान, उपकप्तान, एक चयनकर्ता, कोच और एक वरिष्ठ खिलाड़ी होते थे। पांचों ने मेरे खिलाफ वोट किया। उनमें से चार तो इस लायक भी नहीं थे मेरे जूते के फीते बांध सकें।” हालांकि कमेंटेटर और विश्लेषक के रूप में दूसरी पारी में उन्हें वही प्यार और सम्मान मिला जिसकी कामना वे खिलाड़ी के तौर पर करते थे। टीवी स्टूडियो या बाहर जब भी हम साथ होते, तो अक्सर क्रिकेट से जुड़ी अलग-अलग बातों पर हमारी बहस होती थी। एक दिन हमारी बहस इस बात पर आकर टिक गई कि महेंद्र सिंह धोनी भारत के तीन सर्वकालिक श्रेष्ठ क्रिकेट खिलाड़ियों में एक होंगे। सुनील गावस्कर, कपिल देव, सचिन तेंडुलकर, राहुल द्रविड़, अनिल कुंबले और विराट कोहली के रहते मैं उनके इस तर्क से सहमत नहीं था। अंत में हमने तय किया कि जब धोनी क्रिकेट के हर फॉर्मेट से रिटायर हो जाएंगे तब इस पर बात करेंगे। दुर्भाग्यवश डीनो चले गए और धोनी अभी आइपीएल में खेल रहे हैं।
डीन जोंस ने ऑस्ट्रेलिया के लिए 52 टेस्ट खेले थे। इसलिए 52 उनका प्रिय आंकड़ा बन गया था। 2013 में जब वे 52 साल के हुए तो उन्होंने ऐलान कर दिया कि आज के बाद मेरा हर जन्मदिन 52वां जन्मदिन होगा, मानो उन्हें घड़ी की टिक-टिक करती सुई की कोई परवाह ही नहीं थी। आखिरकार वे अपने समय से आगे जो थे!
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार और मिरैकल मेनः द ग्रेटेस्ट अंडरडॉग स्टोरी इन क्रिकेट पुस्तक के लेखक हैं)