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स्मृतिः प्रगतिशील-बौद्धिक अभिभावक का जाना

वे ऐसे अभिभावक की तरह थे जो हर परिवर्तनकामी-प्रगतिशील बौद्धिकों को दुनिया की घटनाओं के बारे में बताते रहते थे
एजाज़ अहमद (1941-2022)

एजाज़ अहमद ऐसे मार्क्सवादी विचारक थे, जिन्होंने द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद की दुनिया में आए राजनीतिक-सामाजिक और आर्थिक बदलावों की पड़ताल की और मनुष्यता पर गहरा असर डालने वाली विचारधाराओं तथा उनसे निकले तमाम विमर्शों को  वर्तमान परिप्रेक्ष्य में विश्लेषित किया। ऐसे समय जब कहा जा रहा था कि समाजवादी विचारधारा का अंत हो चुका है, उन्होंने उसकी प्रासंगिकता बताई। तार्किक ढंग से इसकी सीमाओं की चर्चा की और रेखांकित किया कि असली समाजवादी आंदोलन कैसा हो। उदारवाद और वैश्वीकरण से लेकर विश्व में फासीवाद के उभार को समझना हो तो हमें एजाज़ अहमद की जरूरत पड़ती है।

एजाज़ अहमद का जन्म 1941 में उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले में हुआ था। उनकी बाकायदा स्कूली पढ़ाई नहीं हुई क्योंकि उनके गांव में न तो स्कूल था, न ही बिजली। उन्होंने मैट्रिक के तीन साल पहले से स्कूल जाना शुरू किया। लेकिन वे घर पर खूब पढ़ते थे। उनके पिता जबरदस्त साहित्यप्रेमी थे। वे उन्हें पुस्तकें लाकर देते थे। एजाज़ ने उर्दू और रूसी साहित्य का बड़ा हिस्सा बचपन में ही पढ़ डाला। वे छोटी उम्र में ही मंटो, राजिंदर सिंह बेदी, कृष्ण चंदर, गोर्की, तुर्गनेव और चेखव को पढ़ चुके थे। प्रगतिशील साहित्य के अध्ययन ने ही उनके भीतर मार्क्सवाद के प्रति रुझान पैदा किया। विभाजन के समय उनका परिवार पाकिस्तान चला गया इसलिए उनकी उच्च शिक्षा पाकिस्तान में हुई। वहां उन्होंने लाहौर के फोरमैन क्रिश्चियन कॉलेज में दाखिला लिया और अंग्रेजी में एमए किया। उनका लेखन स्कूल के समय ही आरंभ हो गया था। सबसे पहले स्कूल में खेले जाने के लिए एक नाटक लिखा था। कॉलेज पहुंचने पर वे संजीदगी से लिखने लगे।

राजनीति और साहित्य उनके जुनून थे। कॉलेज के दिनों से ही वे राजनीति में भी सक्रिय हो गए थे। इसकी शुरुआत 1956 में मिस्र के स्वेज नहर के इलाके में एंग्लो-फ्रेंच-इजराइली घुसपैठ के विरोध में निकले जुलूस में शामिल होने से हुई थी। एजाज़ की पहली पुस्तक  ग़जल ऑफ़ ग़ालिब 1971 में प्रकाशित हुई। राजनीतिक दलों की बहसों में मार्क्सवाद को लेकर उनका नजरिया साफ हुआ। वामपंथी राजनीति में सक्रियता की वजह से वे पाकिस्तान में अधिकारियों की नजरों में चढ़ गए थे, इसलिए न्यूयॉर्क में शरण ली। वे 1980 के दशक में भारत आए। दिल्ली में रहते हुए उन्होंने शहर के विभिन्न कॉलेजों (जेएनयू सहित) में अध्यापन का काम किया। उन्होंने भारत, कनाडा और अमेरिका के विश्वविद्यालयों में पढ़ाया, साथ ही फिलीपींस से मैक्सिको तक व्याख्यान दिए। उनकी बहुचर्चित पुस्तक इन थियरी : क्लासेज, नेशंस, लिटरेचर क्लासिक का दर्जा रखती है। जीवन के अंत में वे ट्राइकॉन्टिनेंटल इंस्टीट्यूट फॉर सोशल रिसर्च में सीनियर फेलो बन गए थे। वे 2017 से कैलिफोर्निया में रह कर काम कर रहे थे। वहां लंबे समय से इलाज चल रहा था। 10 मार्च को घर पर ही उन्होंने आखिरी सांस ली।

उन्होंने भारतीय समाजवादी आंदोलनों का तटस्थ आकलन किया। उन्होंने साफ कहा कि भारत में वर्ग क्रांति का प्रश्न जाति के प्रश्न से जुड़ा है और जाति के उन्मूलन के बिना भारत में कोई समाजवादी क्रांति मुमकिन नहीं है। उनका मानना था कि वैश्वीकरण सियासी तत्वों के जरिए नहीं बल्कि सांस्कृतिक तत्वों के जरिए ज्यादा तेजी से फैलता है। उनका प्रसिद्ध वाक्य है: “हर देश को वह फासीवाद मिलता है जिसका वह हकदार है। !” इस क्रम में भारत की चर्चा करते हुए वे बताते हैं किस तरह इंदिरा गांधी के शासन के बाद धर्मनिरपेक्ष राजनीति कमजोर होती गई। संघ के चरित्र के बारे में वे लिखते हैं: “आरएसएस के मध्यवर्गीय महाराष्ट्रीयन ब्राह्मण खुद को उस राज्य का वारिस मानते हैं जिसे शिवाजी ने खड़ा किया था। इस तरह वे खुद को उस राज्य का वारिस मानते हैं जिसने मुगलों का विरोध किया और जिसे अंग्रेजों ने छिन्न-भिन्न कर दिया। लिहाजा, मुगलों और अंग्रेजों के जाने के बाद वे खुद को ही भारत के जायज शासक के रूप में देखते हैं। ये उनकी आकांक्षा का वैचारिक खाका है जो धीरे-धीरे आरएसएस के समूचे नेतृत्व की कल्पना का हिस्सा बन गया है, चाहे नेतृत्व के सभी लोग महाराष्ट्र के हों या न हों।” उनकी स्पष्ट राय है कि सांप्रदायिक राजनीति का मुकाबला वामपंथी राजनीति ही कर सकती है लेकिन आज की तारीख में तो उसे खुद को बचाने के लिए ही संघर्ष करना है।

एजाज़ ने 9/11 के बाद की घटनाओं के विनाशकारी मोड़, अफगानिस्तान, इराक, सीरिया और लीबिया में युद्ध की घटनाओं पर विस्तार से लिखा। अरब देशों में घटित क्रांति के हश्र की भी व्याख्या की। लैटिन अमेरिका में ऐसे व्यक्ति के नेतृत्व में वामपंथ की तरक्की पर लिखा, जिसकी कम चर्चा होती थी, ह्यूगो शावेज।

वे ऐसे अभिभावक की तरह थे जो हर परिवर्तनकामी-प्रगतिशील बौद्धिकों को दुनिया की घटनाओं के बारे में बताते रहते थे, उनमें निहित खतरों से सचेत करते और रास्ता दिखाते रहते थे। जब तक दुनिया में असमानता और शोषण के खिलाफ संघर्ष जारी रहेगा, एजाज़ अहमद के विचार हमें रोशनी दिखाते रहेंगे।

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