हिंदुस्तानी संगीत में शास्त्रीय गायन की बड़ी हस्ती विदूषी प्रभा अत्रे के निधन से किराना घराने की गायिकी का स्तंभ ढह गया। प्रभा अत्रे पुराने गायकों की पीढ़ी की आखिरी चिराग थीं। सही मायने में संगीत की इस महान साधक के चले जाने से एक युग समाप्त हो गया। प्रभा अत्रे ने जो पारी खेली वह अपने में अनूठा है और अब इतिहास बन गया है।
इतने साल तक हिंदुस्तानी संगीत के उच्च स्थान पर विराजमान रहीं प्रभा अत्रे गायन में अपना एक अलग मुकाम कायम करने के लिए किन-किन रास्तों से गुजरीं, उसकी लंबी दास्तान है। एक प्रखर और सुरीली गायिका के अलावा संगीत शास्त्र और भारतीय संस्कृति में उनका गहन अध्ययन और समझ थी। उन्होंने बहुत गहराई से सदियों पुरानी संगीत विधा पर शोध किया और उसके रहस्य को बड़ी सूक्ष्मता से देखा, परखा और लिख कर इसे प्रकाशित किया। उनका मानना था कि संगीत विधा सिर्फ गाने-बजाने की चीज नहीं है। उसके पीछे हमारी संस्कृति की बड़ी विरासत है। प्रभा जी ने संगीत पर कई महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखीं। संगीत समझने वालों के लिए यह बड़ी देन है। उन्होंने गायन की बंदिशों में शब्दों की शुद्धता और साहित्य पर बहुत ध्यान दिया।
संगीत की विद्वान और गुणी गायिका प्रभा अत्रे का गायन का अनोखा अंदाज था। वह जिस सहजता से राग का विस्तार करती थीं और उसका रूवरूप निखारती थीं वह देखने लायक होता था। वे मंद से तार सप्तक तक स्वर संचार के सरस रंग भरती थीं। किराना गायकी से जुड़ी प्रभाजी ने गाने में अपना एक अलग और रसभरा अंदाज दिया। गाने में आकार की तानें, भींड, गमक खटका, बहलावा से लेकर रचना की भावाभिव्यक्ति में उनका गायन बहुत मुग्ध करने वाला था। उन्होंने कई अप्रचलित रागों को भी अपने गायन के जरिये दर्शाया। सात दशक तक संगीत की महफिलों से लेकर बड़े-बड़े समारोहों में अपने सुरीले स्वरों की छाप छोड़ने वाली प्रभा अत्रे को संगीत रसिक हमेशा याद करते रहेंगे। खयाल के अलावा ठुमरी, झूला होली और भजन गाने में भी उनका बहुत ही रोमांचक और रसपूर्ण अंदाज था।
सौम्य और शांत स्वभाव की प्रभा अत्रे ने पूरा जीवन शांति से जिया। गुरु के चरणों में बैठकर लंबे समय तक संगीत साधना में लीन रहकर उन्होंने संगीत की बारीकियों को गहराई से सीखा। जब उन्होंने गाना शुरू किया तो कुछ ही समय में उनका नाम उत्कृष्ट गायिका के रूप में दर्ज हो गया। हैरत की बात है कि नब्बे साल तक प्रभा अत्रे की आवाज की स्वाभाविकता पूरी तरह बनी रही।
प्रभा अत्रे अकादमिक क्षेत्र में भी अपनी एक हैसियत रखती थीं। कानून और विज्ञान की स्नातक और संगीत में डॉक्टरेट हासिल करने वाली प्रभा अत्रे को स्वरयोगिनी की उपाधि दी गई थी। पूरी तरह से संगीत के लिए समर्पित प्रभाजी ने पूरा जीवन संगीत में जिया। किराना घराने की महान हस्तियां उस्ताद अब्दुल करीम खां, गंगूबाई हंगल, पंडित भीमसेन जोशी से अलग उनका व्यक्तित्व बहुयामी था। उन्होंने एक अलग पायदान पर किराना घराने की गायकी को नए-नए बिंब देकर संवारा और गति दी। वे बेवजह राग को लंबा कर के नहीं गाती थीं। वह उतना ही गाती थीं, जो श्रोताओं को आनंदित करे। उनके द्वारा कुमार गंधर्व की गाई हुई रचना ‘जमुना किनारे मोरा गांव’ यादगार प्रस्तुति है। प्रभाजी का अपनी मां से गहरा जुड़ाव था। जीवन भर उन्होंने उनकी बहुत सेवा की। पारिवारिक जीवन में उन्होंने पूरे घर को संभाला और परिवार के सब लोगों की देखभाल करती रहीं। सरोद वादन के सरताज उस्ताद अमजद अली खां प्रभा अत्रे की इंसानियत ओर गायकी दोनों के बहुत प्रशंसक हैं। सन 2002 में मुंबई में उस्ताद अमजद अली ने उन्हें उस्ताद हाफिज अली खां अवॉर्ड से विभूषित किया था।
प्रभा अत्रे की महानता यह थी कि उनके सभी मानवीय गुण उनके संगीत की दिव्यता ओर सम्मोहक विविधता में रचे बसे थे। उनकी मधुर आवाज मन और आत्मा की गहराईयों को छू लेती थी। एक प्रखर गायिका और संगीत रचनाकार के रूप में विख्यात प्रभा अत्रे ने कई नए रागों की भी रचना की। एक प्रतिष्ठित गुरु के रूप में भी उनका एक बड़ा नाम है। उनकी छत्रछाया में कई शिष्य कुशल गायक के रूप में उभरे हैं। संगीत के प्रतिष्ठित मंचों पर अपने प्रभावशाली गायन से लगातार सरहाना अर्जित करने वाली प्रभा अत्रे को संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, तानसेन सम्मान, पद्मविभूषण सहित कई बड़े सम्मानों से समानित किया गया।