संगीत के आकाश में सूरज की तरह चमकने वाले बेजोड़ शास्त्रीय गायक उस्ताद राशिद खां नहीं रहे। नौ जनवरी को वह दुनिया को अलविदा कह गए। उस्ताद राशिद खां का गाना एक मायने में अलग मुकाम पर था। उत्तर प्रदेश के बदायूं में जन्मे राशिद के रंगों में संगीत बचपन से ही समाया हुआ था। नैसर्गिक प्रतिभा के धनी राशिद खां ने नौ साल की उम्र में दिल्ली के सीरीफोर्ट सभागार में आइटीसी संगीत सम्मेलन में जब खयाल गायन की पहली प्रस्तुति दी, तो उन्होंने कलानुरागियों को न सिर्फ अचंभित किया बल्कि दिल भी जीता। उसके बाद वे दिनोदिन संगीत के ऊंचे पायदान पर चढ़ते चले गए।
उन्होंने दिग्गज कलाकारों और रसिकों से तो वाहवाही लूटी ही, आम श्रोताओं को भी अपने जादुई गायन से चमत्कृत करते रहे। उन्होंने अपनी दूरदर्शिता से सुरों में जो रंग भरा, वह बेजोड़ था। उनकी ऊर्जा भरी, खनकती आवाज में गजब का मधुर स्वर लगाव था। गायन में इसी करिश्मे ने उन्हें खयाल गायकी की ऊंचाई पर पहुंचा दिया। उनके रसपूर्ण गायन और गमकदार तानों में जो चमत्कार था उसे देखकर लगता था जैसे वर्षा के बूंदों की बौछार हो रही हो। तकरीबन पचास साल तक संगीत के छोटे आयोजनों से लेकर बड़े-बड़े समारोह में एक सी छाप छोड़ने वाले राशिद खां संगीत की दुनिया में बुलंदी से छाए रहे। पूरे देश में उनका गाना सुनने वाले श्रोताओं की भरमार थी। वे जहां भी गाने जाते वहां सुनने वालों का सैलाब उमड़ पड़ता था। खास बात यह है उनको जब भी सुना उनका गायन हमेशा नएपन ओर जोश से भरा पाया।
उस्ताद राशिद का ताल्लुक रामपुर सहसवान घराने से था। छोटी उम्र में राशिद की गाना सीखने की शुरुआत नाना उस्ताद निसार हुसैन खां की छत्रछाया में हुई। उस्ताद ने भांप लिया था कि इस बालक में संगीत के नैसर्गिक गुण हैं, पर उम्र कम होने पर यह बच्चा गाना सीखने के लिए उस्ताद के बुलाने पर आता ही नहीं था। जब उस्ताद उसे काबू करने की कोशिश करते, तो वह नदारद हो जाता था। उस्ताद कहते, ‘मेरे बुलावे पर नहीं आ रिया है, भागा-भागा घूम रिया है। रियाज तो बिलकुल नहीं कर रिया है।’ लेकिन जब उस बालक ने धीरे-धीरे उस्ताद के काबू में आकर उनसे गाना सीखना शुरू किया, तो खुद-ब-खुद उसके भीतर संगीत गूंजने लगा और गायन सीखने में उसकी लौ जग उठी। उसके बाद वह तन-मन से समर्पित होकर उस्ताद से गाना सीखने में जुट गया और अल्पायु में संगीत के गुर सीखकर प्रवीणता हासिल कर ली।
राशिद ने इसी घराने के उस्ताद मुस्तफा खां से खयाल गायन की बारीकियां सीखीं। गाने को नया तेवर देने के लिए विलंबित लय में खयाल को विस्तार देने, सरगम और तानों की निकास में अनोखा अंदाज दिया। हिंदुस्तानी संगीत में खयाल के साथ ठुमरी और सुगम संगीत के गीतों को भी स्वरबद्ध कर उन्हें रसभरे अंदाज में गाया।
उन्होंने संगीत जगत के दिग्गज गायक पंडित भीमसेन जोशी के साथ गायन की जुगलबंदी की। भीमसेन जी गाने में उनके हुनर से बहुत प्रभावित हुए और राशिद पर टिप्पणी करते हुए कहा, ‘यह नौजवान गायक हिंदुस्तानी संगीत का उज्ज्वल भविष्य है।’ रागदारी में हर राग के स्वरूप की परतों को खोलने और दूरदर्शित से पेश करने का उनका अलग ही ढंग था। उन्होंने गायन के अलावा वाद्ययंत्रों, सितार, सरोद, वायलिन, बांसुरी आदि के साथ भी मनोहारी जुगलबंदी की। रामपुर सहसवान घराने के इस गायक ने विभिन्न घरानों की गायन शैली की खूबियों को अपने गायन में जोड़कर बखूबी से पेश किया।
राशिद खां, उस्ताद अमीर खां के गायन से बहुत प्रभावित थे। वह एक तरह से उनके मुरीद थे। राशिद के गाने में उस्ताद अमीर खां की गायन शैली की बहुत झलक दिखती थी। वह कहते भी थे कि उस्ताद अमीर खां ने अपनी अनूठी गायकी से मुझे बहुत आकर्षित किया और मैं हमेशा उनका कायल रहूंगा। राशिद का मानना था कि गाने में उनकी जो भी पहचान बनी, वह खुदा की इबादत का नतीजा है। वह कहते थे, ‘उसी की वजह से मैं गाने लायक बन सका। जिस ढंग से मेरा गाना सभी को मोहित करता है, यह सब खुदा की देन और करिश्मा है।’
यह सच है कि राशिद खां के स्वभाव में जो सरलता और सच्चाई थी, उसे उन्होंने अपनी ऊंची सफलता के बाद भी खोया नहीं। यही उनका बड़प्पन था। इसलिए उस्ताद राशिद खां को संगीत की दुनिया का सर्वाधिक लोकप्रिय गायक और सरताज कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। देश-विदेश में अपने गायन का जादुई रंग बिखेरने वाले उस्ताद राशिद खां को संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, पद्मश्री और पद्मभूषण से लेकर कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मानों से नवाजा गया। राशिद का मानना था कि किसी कला में दक्षता हासिल करने के लिए सिर्फ रियाज नहीं, बल्कि गहराई से उसे समझने और अपनी दूरदर्शिता के साथ विकसित करने की जरूरत होती है।
शास्त्रीय गायन के अलावा राशिद खां ने फिल्मों में भी अपने गाने की छाप छोड़ी। उन्होंने राज 3, माइ नेम इज खान और मंटो जैसी कई फिल्मों में कर्णप्रिय गाने गाकर शोहरत पाई। उनके लोकप्रिय गानों में माइ नेम इज खान का गाना ‘अल्लाह ही रहम’, जब वी मेट का ‘आओगे जब तुम ओ साजना’ प्रमुख हैं।
गायक के साथ राशिद खां उच्चकोटि के संगीत रचनाकार और गुरु भी थे। गुरु-शिष्य परंपरा के तहत कई शिष्य उनसे संगीत का प्रशिक्षण लेते रहे। राशिद बहुत जीवट और नेक इंसान थे। वह संगीत सीखने वाले युवाओं के प्रेरणा स्रोत भी थे। शास्त्रीय संगीत में उस्ताद राशिद खां का अलग मुकाम है। वह भले ही शारीरिक रूप से हमारे बीच न हो, पर उनका संगीत हमेशा हमारे साथ रहेगा। शास्त्रीय संगीत की इस विरल विभूति के निधन से जो खालीपन आया है उसे कभी नहीं भरा जा सकेगा।