उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 को राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गई है। इसमें उन सेलिब्रिटी और सेलिब्रिटा लोगों पर भी दंड का प्रावधान है, जो तमाम चीजों के इश्तेहार करते हैं, बिना तथ्यों को चेक किए। कानून तो तमाम चीजों के हैं, बस उनसे काम करवाना आसान ना है।
कानून कई मामलों में सरकारी कर्मियों की तरह होते हैं। हैं बाकायदा पर फिर काम करते क्यों ना दिखते। ये सवाल थोड़ा अलग है।
अमिताभ बच्चन वन प्लस फोन के ब्रांड एंबेसडर के तौर पर काम करते रहे हैं, पर एक विवाद यह उठा कि उन्होंने अपने सैमसंग फोन को लेकर एक शिकायत ट्विटर पर की। ब्रांड एंबेसडर वन प्लस के हैं, यूज सैमसंग फोन कर रहे हैं। टेढ़ा सवाल है।
जनार्दन द्विवेदी नेता कांग्रेस के हैं, जो धारा 370 हटाए जाने का समर्थन कर रहे हैं। कौन कहां है साहब यह समझ पाना मुश्किल है। खास तौर से नेताओं के बारे में तो यह पता लगा पाना बहुत ही मुश्किल है।
विराट कोहली उबर टैक्सी का इश्तेहार करते हैं। साहब हमें पूछने का हक है क्या कि विराट कोहली साल में कितनी बार उबर टैक्सी में बैठते हैं। अगर उबर टैक्सी से ही आवाजाही करते हैं तो, हीरो एक्सट्रीम 200 बाइक का इश्तेहार क्यों करते हैं। मतलब साफ हो जाए कि हम आने-जाने के लिए उबर पर भरोसा करें या हीरो एक्सट्रीम पर। या विराट कोहली यह साफ करें कि हफ्ते में चार दिन उबर से जाएं और तीन दिन हीरो बाइक से जाएं। नया अधिनियम इस पर कुछ कर पाएगा क्या। फिर विराट कोहली से हमें यह पूछने का हक मिलेगा कि पहले तो आप किसी और ब्रांड की बाइक को बढ़िया बताते थे अब हीरो पर आ गए। आपने अपनी जो राय बदली है, उसके वैज्ञानिक कारण क्या हैं, उन पर प्रकाश डालें।
अमिताभ बच्चन साहब को साफ बताना चाहिए कि जितने आइटमों के इश्तेहार वो करते हैं, क्या उन्हें यूज करने का वक्त उन्हें कभी मिल पाता है। एक पंप का इश्तेहार करते हैं अमिताभ बच्चन, क्या बच्चन साहब खेतों में आठ-दस बार पानी देकर यह बात कह रहे हैं या ऐसे ही। अमिताभ बच्चन अगर अपने द्वारा इश्तेहारित आइटमों का इस्तेमाल करने बैठें, तो पूरा दिन इसी सब में निकल लेगा। सुबह वह ब्यूटी क्रीम, फिर बनियान, फिर गोल्ड लोन के लिए उस कंपनी तक जाना, फिर गुजरात में कुछ दिन गुजारने जाना, फिर उस इंश्योरेंस कंपनी में इंश्योरेंस कराने जाना, फिर उस ज्वैलर की दुकान पर गहने खरीदने जाना यानी बहुत आफतें हैं। अमिताभ बच्चन दिन भर सिर्फ उन्हीं आइटमों के होकर रह जाएंगे। नए अधिनियम को यह कानून बनाना चाहिए कि सेलिब्रिटी या सेलिब्रिटा यह जरूर बताएं कि वह संबंधित आइटम को कब कितनी बार यूज करते हैं। हमें तो बताकर चले जाते हैं सेलिब्रिटा कि यूं कर लो। फिर खुद कुछ और करने लगते हैं। हमें तो बताते हैं कि वन प्लस यूज करो और खुद सैमसंग यूज करते हैं।
महेंद्र सिंह धोनी एक मोबाइल ब्रांड लावा का महिमा मंडन करते हैं। मेरी राय में अधिनियम के तहत उपभोक्ताओं को अधिकार मिलना चाहिए कि वो छापा मारकर यह चेक करें कि धोनी सच में कौन सा मोबाइल यूज करते हैं। हाल में ख्याति प्राप्त एक एथलीट ने अपनी कामयाबी का राज बहुराष्ट्रीय ब्रांड के जूतों को बताया। सेलिब्रिटी लोगों से निवेदन किया जाए कि वह साफ करें कि किस तरह से खास ब्रांड के जूते पहनने से स्पीड में बढ़ोतरी हो जाती है। कोई जूते स्पीड में किस तरह बढ़ोतरी कर सकते हैं, इसकी वैज्ञानिक व्याख्या भी होनी चाहिए।
हेमा मालिनी जी कुछ बरस पहले इश्तेहार में एक बैंक की तारीफ करती थीं। वह बैंक निपट गया और दूसरे बैंक में मिल गया। अब हेमा जी आर.ओ समेत कुछ और आइटमों की तारीफ करती हैं। मेरी राय में सेलिब्रिटी लोगों को बताना चाहिए कि वह जिस आइटम की तारीफ करते थे, अब नहीं रहे तो क्यों नहीं कर रहे। क्या वजह है। जब आप उस बैंक की तारीफ कर रही थीं, तो क्या वजह थी। अब बैंक ऐसा क्यों हो गया। विराट कोहली जिस बैंक की तारीफ कर रहे थे, उसमें नीरव मोदी हाथ साफ कर गए। विराट कोहली को बताना चाहिए था ऐसे कैसे हो गया। ना बताया। विराट कोहली कह सकते हैं, “अपने खेल पर ध्यान दूं या बैंक पर।” साहब जब बैंक पर ध्यान देने का वक्त और क्षमता नहीं है तो काहे को बोलते हो बैंक के बारे में। उन्हीं मसलों पर बोलो, जिनका ज्ञान है। जिन मसलों पर कोई ज्ञान नहीं, उन पर बोलने का संवैधानिक अधिकार सिर्फ और सिर्फ टीवी एंकरों का है। हर सेलिब्रिटी को यह अधिकार नहीं मिलना चाहिए।
खैर, सेलिब्रिटी और सेलिब्रिटा कुछ भी कह के निकल जाते हैं। नेताओं की तरह ना बताते। जैसे, जनार्दन द्विवेदी कांग्रेस में रहते हुए धारा 370 हटाए जाने का विरोध करते हैं।