भारत सरकार का टिकटॉक, वीचैट, हैलो सहित 59 चीनी ऐप प्रतिबंधित करने का फैसला चीन के “डिजिटल सिल्क रोड” योजना के लिए एक बड़ा झटका साबित हो सकता है। क्योंकि भारत की तरह दूसरे देश भी, जिनके नागरिक चीनी ऐप का बड़ी संख्या में इस्तेमाल कर रहे हैं, वह राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर भारत जैसा कदम उठा सकते हैं। हालांकि ऐसा करने में वह भारत जैसी जल्दबाजी भी नहीं करेंगे, क्योंकि भारत ने यह सख्त कदम लद्दाख समस्या की वजह से उठाया है। लेकिन इस बात की पूरी संभावना है कि दूसरे देश भी चीनी ऐप को लेकर अपनी नीति की समीक्षा जरूर करेंगे।
चीन में भारत के पूर्व राजदूत और इंस्टीट्यूट ऑफ चाइनीज स्टडीज के अशोक कांथा का कहना है, “भारत ने सीमा विवाद के बीच जिस तरह चीन के ऐप पर राष्ट्रीय सुरक्षा के खतरे का सवाल उठाया है, ऐसे में मुझे कोई आश्चर्य नहीं होगा अगर आने वाले दिनों में दूसरे देश भी चीनी ऐप को लेकर अपनी चिंता जताएंगे। ”
चीन के दोहरे रवैए को इसी तरह समझा जा सकता है कि एक तरफ वह डिजिटल सिल्क रूट के लिए लोकतांत्रिक देशों में मुक्त मीडिया नियमों का फायदा उठा कर, अपने ऐप यूजर्स बढ़ा रहा है, लेकिन दूसरी तरफ वह अपने देश में गूगल, फेसबुक, ट्विटर, यूट्यूब, भारतीय न्यूज वेबसाइट, वेबसाइट को प्रतिबंधित किए हुए है।
भारत ने 2017 में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट वन बेल्ट वन रोड में शामिल होने से न केवल इनकार कर दिया था, बल्कि चीन के उस सपने पर भी बहस खड़ी कर दी थी, जिसमें वह पूरी दुनिया में इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स के बहाने अपना प्रभाव जमाने की कोशिश कर रहा है।
इस बहस का ही परिणाम है कि मलेशिया ने देश में चीन के सहयोग से बनाए जा रहे रेल प्रोजेक्ट को रद्द कर दिया। इसी तरह दूसरे देश भी उनके देश में चीनी कंपनियों द्वारा चलाए जा रहे इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स पर होने वाले खर्च में छूट की मांग करने लगे हैं। कांथा कहते हैं, “वन बेल्ट वन रोड पर भारत की दूरगामी सोच का ही नतीजा था कि आज दूसरे देश भी चीन के मकड़जाल को समझ रहे हैं, जिसे भारत तीन साल से कहता आ रहा है।”
चीनी मोबाइल फोन की एक अहम खासियत यह होती है कि फोन में चीन के बने ऐप इनबिल्ट होते हैं। इस आधार पर हमें भारतीय मोबाइल मार्केट में चीन की हिस्सेदारी को समझने की जरूरत है। अब भारत सरकार ने इन ऐप पर प्रतिबंध का फैसला ले लिया है। ऐसे में, जहां चीन की कंपनियों पर बहुत प्रतिकूल असर पड़ेगा, वहीं सैमसंग और दूसरे ब्रांड को एक बड़ा फायदा मिलने वाला है। यही नहीं, फीचर्स फोन में भारतीय फोन कंपनियां भी बड़ा बाजार हासिल कर सकती हैं।
छोटे-छोटे वीडियो बनाने का मौका देने वाले टिकटॉक के भारत में सबसे ज्यादा 12 करोड़ यूजर हैं, इसके बाद अमेरिका में 4 करोड़, तुर्की में 2.8 करोड़, रूस में 2.4 करोड़, मैक्सिको में 2.0 करोड़, ब्राजील में 1.8 करोड़ और पाकिस्तान में 1.2 करोड़ यूजर हैं। हालांकि, वाट्सऐप जैसे फीचर वाला चीनी ऐप वीचैट भारत में यूजर्स के बीच बहुत ज्यादा पैठ नहीं बना पाया है। लेकिन उसमें वाट्सऐप को कड़ी टक्कर देने की पूरी संभावना है। मसलन, सोशल मीडिया ऐप में “वीचैट पे” की सुविधा मिलती है। जो कि इस समय दुनिया के 40 देशों में 12 मुद्राओं के जरिए लेन-देन करने की सुविधा अपने यूजर्स को दे रहा है।
मुंबई के कंज्यूमर और मीडिया एक्सपर्ट कुणाल सिन्हा ने काफी समय शंघाई में भी बिताया है। उनका कहना है, “चीन द्वारा गूगल, फेसबुक और दूसरे ऐप को प्रतिबंधित करने का फायदा यह हुआ है कि चीन में ऐप इंडस्ट्री का पूरा इकोसिस्टम तैयार हो गया, जिसकी वजह से टिकटॉक, वीचैट जैसे सफल ऐप उन्होंने बना लिए। आज 59 चीनी ऐप पर प्रतिबंध लगाने से भारत के पास भी एक बेहतरीन मौका है। हालांकि, हमें यह भी समझना होगा कि भारत के ज्यादातर टेक्नोलॉजी स्टार्टअप में चीन के निवेशकों का पैसा लगा हुआ है। ऐसे में, उन्हें नए ऐप विकसित करने के लिए दूसरे निवेशकों की तलाश करनी होगी।”
चीनी ऐप पर प्रतिबंध के बाद भारतीय कंपनियों के लिए अचानक से एक बड़ा बाजार खुल गया है। अब सवाल यही है कि भारतीय कंपनियां क्या इस मौके का फायदा उठा पाएंगी? प्रतिबंध को सही ठहराते हुए भारत ने कहा, “यह ऐप भारत की संप्रभुता, अखंडता के लिए खतरा हैं, जिसकी वजह से भारत के राज्य और लोगों की सुरक्षा का खतरा पैदा होने की आशंका है।” हालांकि, टिकटॉक ने यह भरोसा दिलाने की कोशिश की है कि उसने भारत का कोई भी डाटा किसी विदेशी सरकार, यहां तक कि चीन के साथ भी साझा नहीं किया है। लेकिन इसके बावजूद चीन की कंपनियों से साइबर खतरे को लेकर लोगों के बीच आशंका बनी हुई है।
चिंता की बात यह है कि बड़ी संख्या में चीन के बने मोबाइल और ऐप भारतीय सीमा और दूसरे संवेदनशील क्षेत्रों में सुरक्षा बल के लोग इस्तेमाल कर रहे हैं। छोटे-छोटे वीडियो ऐप निश्चित तौर पर इन क्षेत्रों में काफी खतरा पैदा कर सकते हैं। इन ऐप से होने वाले खतरे को लेकर यूरोपीय देश, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और दूसरे एशियाई देश पहले ही आगाह कर चुके हैं। अनेक देश चीन से निर्यात होने वाले टेलीकॉम उपकरणों से होने वाली जासूसी के आरोपों की भी बहुत गंभीरता से पड़ताल कर रहे हैं।
टिकटॉक भारतीय युवाओं में काफी लोकप्रिय हो चुका है। युवा छोटे-छोटे वीडियो बनाकर अपनी रचनात्मकता दिखाते हैं। उसकी वजह से चीन की छवि भी सकारात्मक बनी है। ऐसे में, इस पर लगा प्रतिबंध, एक खालीपन छोड़ गया है, जो यूट्यूब के लिए तुरंत पूरा करना आसान नहीं है, क्योंकि उसके काम-काज का तरीका पूरी तरह से अलग है।
प्रतिबंध के बाद भारतीय कंपनियों की क्षमता पर भी सवाल उठे हैं। क्योंकि ऐसा माना जा रहा है कि उनके लिए एक चौथाई मांग भी पूरा करना आसान नहीं है, जिन पर इस समय पूरी तरह चीन और अमेरिकी कंपनियों का कब्जा है। सूचना और प्रौद्योगिकी मंत्रालय की नीतियों पर भी सवाल उठ रहे हैं, जो अभी तक भारतीय कंपनियों को प्रोत्साहित करने के लिए कोई ठोस रणनीति नहीं बना पाया है। उदाहरण के तौर पर मंत्रालय को पता था कि भारत में बिकने वाले सभी चीनी स्मार्ट फोन में पहले ही चीन के ऐप डाउनलोडेड रहते हैं, जिन्हें हटाया नहीं जा सकता है। लेकिन उसने इस दिशा में न तो कोई ठोस कदम उठाया और न ही दक्षिण कोरियाई कंपनियों के साथ मिलकर भारत में मोबाइल फोन निर्माण का कोई इकोसिस्टम खड़ा किया।
मौजूदा समय में जो भारतीय ऐप चीन की कंपनियों को चुनौती दे रहे हैं, वह ऊंट के मुंह में जीरा के समान है। इस समय रिलायंस जिओ के कुछ ऐप और मित्रों, चिंगारी, समोसा, इनशॉर्ट्स और मिन्त्रा जैसे कुछ ही ऐप हैं, जो नए अवसर को भुनाने की कोशिश कर रहे हैं। एक और बात समझने वाली है कि चीन की 10 बड़ी ऐप कंपनियों के पास भारतीय ऐप कंपनियों की तुलना में 10-50 गुना ज्यादा यूजर हैं। चीनी कंपनियों की सफलता की एक अहम वजह यह है कि ये कंपनियां अपने ऐप को बहुत ही यूजर फ्रेंडली बनाती हैं, जिसकी वजह से ऐसा व्यक्ति भी अपना कंटेंट अच्छी तरह से बना लेता है, जो तकीनीकी का इस्तेमाल करने में बहुत दक्ष नहीं है। इस वजह से उन्हें आसानी से यूजर्स मिलते हैं, जो उनके लिए मार्केटिंग का भी मैकेनिज्म तैयार कर देते हैं।
सिन्हा का कहना है, “भारतीय किसी भी तकनीकी को बहुत तेजी से आत्मसात कर लेते हैं लेकिन उतनी तेजी से डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म बनाने में वह माहिर नहीं हैं। इसके अलावा डिजिटल प्लेटफॉर्म के लिए बड़ी मात्रा में निवेश की जरूरत होती है, जिससे कि वह समय-समय पर अपने प्लेटफॉर्म को अपग्रेड कर सकें।”
एक अहम सवाल यह है कि भारत सरकार ने यह प्रतिबंध (गैर सैनिक कार्रवाई) क्या केवल सीमा पर चीन की आक्रामक नीति को देखते हुए उठाया है या फिर यह उसकी लंबी रणनीति का नतीजा है। अगर भारतीय टेक कंपनियों को चीनी कंपनियों द्वारा खाली हुई जगह को भरना है, तो उन्हें सरकार सें दीर्घकालीन मददगार नीति की जरूरत होगी। भारत में 59 प्रतिबंधित चीनी ऐप के यूजर्स की संख्या (80 करोड़) देखी जाए, तो हर तीसरा मोबाइल फोन इस्तेमाल करने वाला यूजर चीन के ऐप इस्तेमाल कर रहा है। एक अहम बात यह भी समझने की है कि सरकार ने अली एक्सप्रेस, टर्बोवीपीएन, पबजी मोबाइल, पबजी लाइट, एमवी मास्टर और ऐप लॉक जैसे चीनी ऐप पर प्रतिबंध नहीं लगाया है। तो क्या सरकार इन्हें सुरक्षा के लिए खतरा नहीं मानती है या फिर प्रतिबंध लगाते वक्त इन ऐप्स को वह भूल गई?
अगली चुनौती
चीन में हजारों विदेशी और ढेर सारे चीनी निवासी वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क (वीपीएन) के जरिए प्रतिबंधित ऐप और वेबसाइट का इस्तेमाल करते हैं। वीपीएन के इस्तेमाल से यूजर की कोई निगरानी नहीं हो पाती है। चीन की कम्युनिस्ट सरकार लाख कोशिशों के बावजूद वीपीएन के तेजी से बढ़ते इस्तेमाल को रोक नहीं पाई है। ऐसे में, इस तरह के पूरे आसार हैं कि भारत में भी एक बड़ी आबादी जो टिकटॉक या दूसरे चीनी ऐप के इस्तेमाल की आदी हो गई है, वह वीपीएन के जरिए इन एप्लीकेशन का इस्तेमाल करने लगेगी। उनके लिए इन ऐप का इस्तेमाल इसलिए भी आसान है, क्योंकि वह पहले ही उनके मोबाइल फोन में डाउनलोड है। भारत में कुछ लोग वीपीएन के जरिए पॉर्न वेबसाइट्स का इस्तेमाल करने की कोशिश करते हैं। इंटरनेट पर बहुत से ऐसे वीपीएन मौजूद हैं जिनका इस्तेमाल कर कई कंपनियां लोगों को मुफ्त में कई सारी सुविधाएं प्रदान कर रही हैं, जबकि उन्हें विज्ञापन का कोई पैसा नहीं मिलता है। विशेषज्ञों का मानना है कि चीन की कंपनियां भी अपने कस्टमर को बनाए रखने के लिए वीपीएन का इस्तेमाल कर सकती हैं। ऐसे में, सरकार को नई उभरती हुई चुनौती से निपटने का रास्ता जल्द से जल्द निकालना होगा।