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राजनीति: मुद्दा आयोग?

बिहार में एसआइआर और वोटर लिस्ट की गड़बड़ियों पर विपक्ष का हमलावर रुख, लेकिन चुनाव आयोग के बचाव में भाजपा
नई पेशबंदीः संसद मार्ग पर विपक्ष का मार्च

वह पहले संसद का सदर दरवाजा हुआ करता था, जहां से संसद मार्ग निकलता है और उससे बमुश्किल 500 मीटर की दूरी पर सरदार पटेल की मूर्ति के बगल में निर्वाचन सदन है, जिसकी जवाबदेही संसदीय लोकतंत्र में जन प्रतिनिधियों का सटीक और गैर-विवादास्पद चुनाव कराने की है, जो हमारे गणतंत्र की बुनियाद है। यह संयोजन किसी सोच-समझ के साथ किया गया था, इसका तो पता नहीं, अलबत्ता यह प्रतीक जैसा आभास देता है। तो, जनता या जन प्रतिनिधियों से चुनाव आयोग का सहज और आसान उपलब्धि का रिश्ता ही सबसे अहम है। लेकिन क्या इसकी परिभाषा बदल रही है? 11 अगस्त को चुनाव आयोग को ज्ञापन सौंपने विपक्ष के 300 से ज्यादा सांसदों को संसद मार्ग पर कुछ कदम बढ़ते ही भारी पुलिस बंदोबस्त और कई परत की बैरिकेड का सामना करना पड़ा और आखिरकार उन्हें संसद मार्ग पुलिस थाने में लाया गया, जिसके बाईं तरफ सड़क पार निर्वाचन सदन है। वजहः चुनाव आयोग से सिर्फ 30 सांसदों के आने की अनुमति थी, जो उसने उसी सुबह कांग्रेस के जयराम रमेश की एक दिन पहले की चिट्ठी के जवाब में बताया था। तो, ज्ञापन में ऐसा क्या था, जो विपक्ष और चुनाव आयोग की नाक की लड़ाई जैसा बन गया? या कुछ साल पहले या ठीक-ठीक कहें तो 2018 तक निर्वाचन सदन के दरवाजे मोटे तौर पर सबके लिए खुले होते थे तो अब सांसदों तक के लिए इजाजत इस कदर जरूरी क्यों हो गई? फिर सवाल यह भी है कि हाल के वर्षों में विपक्ष के निशाने पर सरकार के बदले सीधे चुनाव आयोग क्यों आता गया है? अब तो निशाने पर सिर्फ वही लगता है।

विपक्ष के सवाल पिछले कई चुनावों और खासकर 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद तीखे, ब्यौरेवार और अब तो मय आंकड़े उठने लगे हैं। यह बिहार में 25 जून से जारी वोटर पहचान के लिए विशेष सघन पुनर्रीक्षण अभियान (एसआइआर) से आयोग और विपक्ष खुलकर आमने-सामने आ गया, जिसकी 1 अगस्त को जारी मसौदा वोटर लिस्ट में तकरीबन 66 लाख वोटर गायब हैं। इन गायब वोटरों और मसौदा लिस्ट को लेकर भी कई तरह के विवादास्पद सवाल खड़े हैं। लेकिन पहले यह देखा जाए कि 11 अगस्त के ज्ञापन में क्या था। तृणमूल कांग्रेस डेरेक ओ'ब्रायन के एक्स पर एक पोस्ट के मुताबिक, उसमें चार मुद्दे थे। एक, वोटर लिस्ट में गड़गड़ी के लिए पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार के खिलाफ एफआइआर दर्ज करें। दो, वोटर लिस्ट का डिजिटाइजेशन किया जाए। तीन, अभी कोई एसआइआर न किया जाए, विपक्ष-शासित राज्यों में एसआइआर न थोपा जाए (अगर मौजूदा वोटर लिस्ट गड़बड़ियों से भरी है तो केंद्र सरकार इस्तीफा दे)। चार, कोई राजनैतिक दल बीएलए-2 ब्यौरे (प्रोफाइल, संपर्क और फोटो) चुनाव आयोग से साझा नहीं करेगा, क्योंकि वह फौरन भाजपा के पास पहुंच जाएगा। संभव है 300 सांसदों के हाथ से ऐसा तीखा-दोटूक ज्ञापन आयोग के लिए मुश्किल खड़ा कर सकता था।

प्रेस कॉन्फ्रेंस में राहुल गांधी

प्रेस कॉन्फ्रेंस में राहुल गांधी

इसका एक नतीजा यह भी हुआ है कि 2024 के चुनावों के बाद विपक्षी दलों में बढ़ीं कुछ दूरियां सिमट गईं, जो 11 अगस्त के मार्च और उसके पहले लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी के घर डिनर में दिखीं। संसद से मार्च में सबसे बुजुर्ग राकांपा के शरद पवार और कांग्रेस के मल्लिकार्जुन खड़गे तो थे ही, इंडिया ब्लॉक से बाहर चली गई आम आदमी पार्टी के संजय सिंह भी नारे लगाते दिखे। एसआइआर के मसले पर एनडीए में शामिल तेलुगु देशम पार्टी भी विस्तृत आपत्तियां आयोग को सौंप चुकी है। 

उधर, बिहार में एसआइआर की मसौदा सूची में पिछली फरवरी में जारी सूची से 66 लाख लोगों के ब्यौरे जाहिर करने से आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में 9 अगस्त को दिए हलफनामे में इनकार कर दिया है। उसकी दलील है कि ऐसी सूची देने के लिए वह कानूनन बाध्य नहीं है। दरअसल शीर्ष अदालत ने एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स (एडीआर) की याचिका पर पिछली सुनवाई के दौरान आयोग से सूची में नहीं आए लोगों की सूची सौंपने को कहा था, ताकि जिन करीब 22 लाख लोगों को मृत और बाकी लोगों को गैर-मौजूद बताया गया है, उनकी सच्चाई का मिलान किया जा सके। उसके पहले की सुनवाई में अदालत ने कहा था कि अगर 15 ऐसे लोग जिंदा मिले, जिन्हें मृत बताया गया है तो कोई आदेश जारी किया जाएगा। लेकिन आयोग ने इससे ही इनकार नहीं किया, बल्कि अदालत के उससे पहले आधार कार्ड, वोटर आइडी को मान्य दस्तावेजों में शामिल करने के सुझाव को भी नहीं माना था।

मसौदा वोटर लिस्ट में ढेरों खामियों के आरोप हैं। बिहार में प्रतिपक्ष के नेता, राजद के तेजस्वी यादव ने बताया कि करीब तीन लाख वोटरों के मकान नंबर 000 लिखा हुआ है, सैकड़ों मिसालें ऐसी है कि एक ही पते पर 250, 300 लोगों के नाम दर्ज हैं और कई ऐसे हैं, जिनका निधन हो गया है लेकिन उनके नाम सूची में हैं। उपमुख्यमंत्री विजय सिन्हा के नाम दो विधानसभा क्षेत्रों पटना के बांकीपुर और लखीसराय में दर्ज दो वोटर आइ कार्ड हैं (वैसे तेजस्वी के नाम से भी दो वोटर कार्ड मिले और आयोग ने उन्हें भी नोटिस भेजा है)। आयोग ने उन्हें नोटिस देकर सच्चाई बताने को कहा है। सिन्हा का कहना है कि उन्होंने बांकीपुर वाला वोट कार्ड रद्द करने का फॉर्म भरा था पर वह नहीं हो पाया था।

इन सब आरोपों पर भाजपा नेताओं का कहना है कि संवैधानिक संस्‍था पर सवाल उठाना ठीक नहीं है और विपक्ष घुसपैठियों के अपने वोट बैंक बचाने में जुटा है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी सीतामढ़ी में जानकी मंदिर के उद्घाटन में कहा कि लालू प्रसाद घुसपैठियों को बचाने की कोशिश कर रहे हैं। अलबत्ता चुनाव आयोग ने अभी तक यह नहीं बताया कि उसे किसी विदेशी के वोटर बनने का पता चला है। यह भी आरोप है कि मसौदा वोटर लिस्ट की छानबीन को मुश्किल करने के लिए आयोग ने ऑनलाइन सूची को बदलकर पीडीएफ और मशीनी जांच में न आने वाले फॉर्मेट में अपलोड कर दिया है। ये विपक्ष की शंका को बढ़ा रहे हैं। अब  अदालती सुनवाई पर नजर है।

विपक्षी नेताओं का आरोप है कि हरियाणा और महाराष्ट्र में बड़ी संख्या में वोटर जोड़कर चुनाव जीता गया, जिस पर हल्ला हुआ तो अब बिहार में प्रतिकूल वोटरों के नाम काटने के लिए एसआइआर की प्रक्रिया चलाई जा रही है। लेकिन भाजपा आयोग की प्रक्रिया का वोटर शुद्घिकरण के नाम पर बचाव कर रही है।

वोटर लिस्ट को शुद्घ करने की बात राहुल गांधी भी कर रहे हैं। उन्होंने हाल में 2024 के लोकसभा चुनावों में गड़बड़ी के ब्यौरे बताकर नया विवाद खड़ा कर दिया। उन्होंने 7 मई को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बाकायदा चार्ट और वोटर लिस्ट के आंकड़ों के जरिए दिखाया कि कर्नाटक की बेंगलूरू सेंट्रल लोकसभा सीट के महादेवपुरा विधानसभा क्षेत्र में 1,14,00 वोटों की जीत के बल पर बाकी छह विधानसभा क्षेत्रों में हारी भाजपा संसदीय सीट 33,000 वोटों से जीत गई। फिर, उनका आरोप है कि महादेवपुरा में 1,00,250 वोट की धोखाधड़ी हुई। उनके अनुसार, इसमें  11,965 डुप्लीकेट मतदाता,  40,009 फर्जी पते वाले मतदाता,  10,452 एक ही पते वाले मतदाता, 4,132 बिना फोटो या न दिखने वाले मतदाता, और 33,692 मतदाता ऐसे हैं, जिन्होंने नए मतदाता पंजीकरण के लिए फॉर्म 6 का दुरुपयोग किया। आयोग उनसे हलफनामे में ये देने की मांग कर रहा है, लेकिन राहुल का कहना है कि वोटर लिस्ट तो आयोग का ही है तो वे दस्तखत करके क्यों दें। विवाद बढ़ रहा है और शायद यही आगे की राजनीति तय करे।