दक्षिणी दिल्ली के किसी होटल या रेस्तरां में अगर आप नॉन-वेज खाने जाते हैं, तो आपसे पूछा जा सकता है कि ‘हलाल या झटका’ कौन-सा मटन या चिकेन परोसा जाए। दक्षिणी दिल्ली नगर निगम (एसडीएमसी) ने 21 जनवरी को एक आदेश जारी किया है। इसमें हर रेस्तरां-होटल को ग्राहकों को यह जानकारी अनिवार्य तौर पर देने का निर्देश दिया गया है। इसके लिए दुकानदारों को बोर्ड लगाना होगा। दरअसल, जनवरी के पहले सप्ताह में केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के तहत कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपेडा) ने भैंसे के मांस के निर्यात के संबंध में एक नियमावली जारी की थी कि पैकेट पर ‘हलाल’ का जिक्र हटा दिया जाए। एपेडा का कहना है कि आयात करने वाले देश अपनी जरूरतों के हिसाब से यह तय कर लेंगे। लंबे समय से एपेडा पर आरोप लगते रहे हैं कि निर्यात किए जाने वाले ‘मांस’ के पैकेट पर ‘हलाल’ लिखने से आयातित देशों के गैर-मुस्लिमों को भी दबाव में वही खाना पड़ता है।
दिल्ली के तीनों नगर निगम- दक्षिण दिल्ली, पूर्वी दिल्ली और उत्तर दिल्ली नगर निगम में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का कब्जा है। दक्षिण दिल्ली नगर निगम के इस फैसले को आम आदमी पार्टी (आप) हिंदू वोट बैंक की राजनीति से जोड़कर देख रही है। भाजपा का मानना है कि यह चयन और जानकारी की आजादी का मामला है।
आउटलुक से बातचीत में दक्षिणी दिल्ली नगर निगम की मेयर अनामिका मिथिलेश कहती हैं, “हम कई साल से सोच रहे थे कि जब समुदाय विशेष अपनी मान्यता के मुताबिक यह तय कर सकता है कि वह क्या खाएगा, तो फिर अन्य धर्म के लोग क्यों नहीं? हमारे निगम में नॉन-वेज व्यंजन परोसने वाले करीब 900 रेस्तरां हैं। उनसे कहा गया है कि मीट-चिकेन के बारे में ग्राहकों को बताएं कि वह हलाल है या झटका। हालांकि, अभी सिर्फ लोगों में जागरूकता लाने का काम किया जा रहा है। उल्लंघन करने वालों पर कानूनी कार्रवाई को लेकर कोई नियम फिलहाल नहीं है।” कथित तौर पर एसडीएमसी का यह कदम केरल मामले के बाद आया है जहां पिछले साल क्रिसमस-डे के दिन ईसाइयों ने ‘हलाल’ मांस को लेकर विरोध प्रदर्शन किया था।
उधर, ‘आप’ प्रवक्ता गजेंद्र भारद्वाज का कहना है कि भाजपा सिर्फ तुष्टीकरण की राजनीति कर रही है। आउटलुक से बातचीत में वे कहते हैं, “लोग इतने समझदार हैं कि उन्हें क्या खाना है और क्या नहीं, वे जानते हैं। निगम को सबसे पहले कर्मचारियों के वेतन और राज्य में बदतर होते कूड़े और प्रदूषण के हालात पर ध्यान देने चाहिए।”
अनामिका मिथिलेश यह भी बताती हैं कि राजधानी के अन्य नगर निगमों में भी इस पर विचार-विमर्श चल रहा है। हालांकि, पूर्वी दिल्ली नगर निगम के मेयर निर्मल जैन कहते हैं कि फिलहाल ऐसा कोई कदम उठाने की योजना नहीं है। निगम के वेटनरी डॉक्टर डॉ. मूलचंद आउटलुक से कहते हैं, “सिर्फ बूचड़खानों और सप्लायर को हलाल और झटका का लाइसेंस जारी किया जाता है। निगम के डॉक्टरों की निगरानी में समय-समय पर जांच होती है कि जो जानवर काटे जा रहे हैं, वे बीमार या अस्वस्थ तो नहीं हैं।”
निर्यात के लिए यह इसलिए जरूरी हो जाता है क्योंकि खाड़ी और अन्य मुस्लिम देशों में ‘हलाल’ का जिक्र जरूरी है। इस्लाम में ‘हलाल’ का ही सेवन सही माना जाता है और यह सिर्फ नॉन-वेज सामग्रियों तक सीमित नहीं है। यह भुजिया, नमकीन, पापड़ समेत खाने-पीने की सभी चीजों पर लागू होता है। हालांकि गैर-मुस्लिम लोगों में ‘झटका’ नॉन-वेज खाने का रिवाज है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और कुछ हिंदू संगठन यह मुद्दा कुछ समय से उठाते रहे हैं। हलाल नियंत्रण मंच के तहत देवेश खंडेलवाल ने तो एक किताब ‘हलाल प्रमाणन तथ्यपरक विश्लेषण’ ही लिख डाली है। संगठन के पदाधिकारी हरिंदर सिक्का आउटलुक से कहते हैं, “देश के सभी रेस्तरां और ढाबा सिर्फ हलाल मीट परोसते हैं, जो गैर-मुस्लिम लोगों के अधिकारों के खिलाफ है।” वे सवाल करते हैं, “क्या किसी मुसलमानों को झटका मीट परोसा जा सकता है?”
हालांकि इसमें कितनी सच्चाई है, यह विवाद का विषय है, क्योंकि तथ्य कुछ और इशारा करते हैं। सिक्का यह भी कहते हैं, “एपेडा के नियम के मुताबिक ये प्रावधान किए गए हैं कि किसी भी बूचड़खाने में जानवरों को हलाल प्रक्रिया के तहत ही काटा जाएगा। ऐसा क्यों किया जाता है, सरकार को इसका जबाव देना चाहिए।”
एपेडा की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2019-20 में मांस का सर्वाधिक निर्यात वियतनाम को हुआ था। करीब 7,600 करोड़ रुपये का कारोबार हुआ। दिल्ली मीट मर्चेंट एसोसिएशन के महासचिव इरशाद कुरैशी का कहना है कि बकरी और भैंसे के मांस के लिए हलाल और झटके के बूचड़खाने अलग-अलग हैं।
हरिंदर सिक्का कहते हैं, “जिन देशों को सबसे अधिक मांस का निर्यात किया गया, उनके लिए ‘हलाल’ अनिवार्य नहीं है। चीन जैसे देशों को हलाल-झटका से कोई लेनादेना नहीं है।” वे यह भी कहते हैं कि हलाल का खाड़ी देशों के अलावा श्रीलंका, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया समेत कई अन्य देश विरोध कर रहे हैं। हालांकि उनकी इस बात के पक्ष में कोई उदाहरण मौजूद नहीं है।
एपेडा स्पष्ट करती रही है कि ‘हलाल’ सर्टिफिकेट देने में केंद्र या सरकारी मशीनरी की कोई भूमिका नहीं है। इसका प्रमाण जमीयत-उलेमा-ए-हिंद हलाल ट्रस्ट देता है। आउटलुक से बातचीत में ट्रस्ट के जनरल सेक्रेटरी न्याज़ अहमद फारूकी कहते हैं, “हम शाकाहारी खाद्य पदार्थ और रेड मीट का निर्यात करने वाली कंपनियों को ‘हलाल’ सर्टिफिकेट देते हैं। फारूकी के अनुसार एसडीएमसी के इस कदम को धार्मिक रंग देना सही नहीं है। यह हर किसी का अधिकार है कि वह अपनी आस्था के मुताबिक किसी चीज को ग्रहण करे या न करे।” ट्रस्ट की वेबसाइट के मुताबिक हलाल की प्रामाणिकता के लिए करीब 20,000 रुपये के साथ 18% जीएसटी बतौर रजिस्ट्रेशन वसूला जाता है। जबकि, इसके रिन्यूअल करने के लिए 15,000 रुपये के साथ 18% जीएसटी चार्ज देना पड़ता है।
हालांकि दक्षिण दिल्ली नगर निगम के फैसले का रेस्तरां-होटलों पर कुछ खास असर नहीं पड़ा है। न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी के नेशनल कम्युनिटी सेंटर में ‘अल-बेक’ का नॉन-वेज खाद्य पदार्थों का कारोबार एक दशक से अधिक समय से चल रहा है। आउटलुक से बातचीत में इसके एकाउंटेंट मो. सलीम कहते हैं, “अभी तक इसको लेकर हमारी जानकारी में कोई बात सामने नहीं आई है। आगे नियमों के मुताबिक काम किया जाएगा।” वहीं, विश्व हिंदू परिषद का मानना है कि हलाल सर्टिफिकेट को खत्म किया जाना चाहिए। अगर ऐसा नहीं किया जाता है तो झटका सर्टिफिकेट भी जारी किए जाने चाहिए। संगठन का आरोप है कि जमीयत उलेमा-ए-हिंद हलाल ट्रस्ट के जरिए जो पैसे इकठ्ठा किए जाते हैं, उसका दुरुपयोग होता है। लेकिन इसकी कोई मिसाल ये संगठन नहीं देते हैं। उम्मीद यही की जानी चाहिए कि यह भी समाज को बांटने और रंजिश पैदा करने का कोई बहाना न बने।
अभी यह कदम सिर्फ जागरूकता के लिए है, उल्लंघन पर कार्रवाई का नियम नहीं बना है
अनामिका मिथिलेश, मेयर, एसडीएमसी