आनंद कुमार, सुपर30 के संस्थापक
पुत्र: राजेन्द्र प्रसाद
मेरे पिताजी सिर्फ मेरे पिता नहीं बल्कि मेरे सबसे अच्छे दोस्त थे। उनके गुजर जाने के बाद उनकी कमी बहुत खलती है। पिताजी का देहांत उस समय हुआ जब मैं कैंब्रिज यूनिवर्सिटी जाने के लिए प्रयासरत था और मेरे पास धन की कमी थी। हार्ट अटैक से पिताजी ऐसे चले गए कि हमको कुछ समझने का मौका ही नहीं मिला।
बचपन से ही पिताजी समझाते थे कि पिता बनना तो आसान है मगर पिता होना आसान नहीं है। बहुत से दायित्व, जिम्मेदारियां जुड़ जाती हैं पिता के खाते में। पिताजी अपने साथ मुझे सब्जी मार्केट ले जाते थे। कोई भी साहित्य का, संगीत का कार्यक्रम होता था तो पिताजी अपनी साइकिल पर बैठाकर मुझे ले जाते थे। इस दौरान वह मुझे गाना सुनाया करते थे। दुनिया से मेरा परिचय पिताजी के माध्यम से ही हुआ।
पिताजी ने हमेशा कहा कि जीवन में आगे बढ़ना जरूरी है, मगर एक अच्छा इंसान बनना ज्यादा जरूरी है। पिताजी ने हमेशा समाज के लिए कुछ करने का निर्देश दिया। यही कारण है कि मैं सुपर 30 जैसे मिशन पर निकल पाया। पिताजी पोस्ट ऑफिस में पत्र छांटने का काम करते थे। उनके पास संसाधन नहीं थे फिर भी वह लोगों की सहायता करने के लिए तत्पर रहते थे। एक बार एक लड़का बनारस की फैक्ट्री में काम करने गया और उसकी खोज खबर नहीं मिल रही थी। तब पिताजी खुद उसे ढूंढने के लिए बनारस गए। बनारस पहुंचने पर पता चला कि उस लड़के का हाथ कट गया है। पिताजी ने फैक्ट्री मालिक से गुजारिश की और लड़के को मुआवजा दिलवाकर उसे वापस गांव ले आए। पिताजी इस तरह दूसरे की पीड़ाओं का समाधान खोजने में लगे रहते थे।
मैंने एक बात गौर की कि पिताजी के पास कुछ नहीं होते हुए भी संतुष्टि थी, रौनक थी। वह बिना किसी स्वार्थ के लोगों की मदद करते थे। उनका मानना था कि मेहनत के साथ अगर आपका व्यवहार अच्छा है तो आपको जरूर कामयाबी मिलेगी। पिताजी ने मुझे आजादी दी। किसी तरह का कभी कोई दबाव नहीं बनाया।
उन्होंने हमेशा यही कहा कि कोई भी काम करो तो उसमें अव्वल रहने की कोशिश करो। पूरी निष्ठा और समर्पण से काम करो। पिताजी की हमेशा यह चाहत रही कि मैं अपने दिल की बात सुनूं और अपने भविष्य के निर्णय लूं। पिताजी अक्सर कहा करते थे कि तुम बहुत बड़े इनसान बनने वाले हो। यह बात याद कर आज भी मेरी आंखें भर आती हैं। मैं जिस मुकाम पर पहुंचा हूं, उसका सारा श्रेय पिताजी को, उनकी बताई सीख को, उनके दिखाए रास्ते को जाता है। यह भी पिता जी की ही प्रेरणा है और मैं कोशिश करता हूं कि एक अच्छा पिता साबित हो सकूं। एक अच्छा इनसान बनकर लोगों की भलाई करे, एक अच्छा पिता होकर ही मैं अपने पिताजी को सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित कर पाऊंगा।