Advertisement
9 जनवरी 2023 · JAN 09 , 2023

मेरे पिता : आज भी चाहिए बाप की मार

राजनीति में अलग पहचान रखने वाले पिता जी जमीन से जुड़े आदमी थे
भागवत झा आजाद

कीर्ति आजाद, पूर्व सांसद, क्रिकेटर

पुत्र : भागवत झा आजाद

उस दिन पहली बार पिता जी की आंखों में खुशी के आंसू देखे थे, जब घर वालों की मर्जी से शादी के लिए हां कहा था। पापा समझते थे कि पप्पू इंटरनेशनल खिलाड़ी है, जो किसी से भी शादी कर सकता है पर हमारे कहने से कर रहा है। दरअसल उस दौर में चंद फिल्मी पत्रिकाओं में ऐसे गॉसिप आते रहते थे कि कपिल का इसके साथ अफेयर चल रहा है, गावस्कर का उसके साथ चल रहा है, कीर्ति का इसके साथ चल रहा है। मौसेरी बहनों के माध्यम से मां तक यह गॉसिप पहुंच जाती थी। एक बार 1986 में भारतीय क्रिकेट टीम में वापसी के लिए मद्रास में अभ्यास कर रहा था कि मां का फोन आया- बीमार हैं, मिल लो। आया तो देखा सब ठीक है। तब मां ने कहा, पापा पूछ रहे थे शादी के बारे में। अपनी मर्जी से करेगा या हम लोग चुन दें। यह सब गॉसिप का असर था। मैंने कहा कि यह तो फोन पर ही पूछ लेती। बस, चट मंगनी पट ब्याह हो गया।

कीर्ति आजाद

कीर्ति आजाद

राजनीति में अलग पहचान रखने वाले पिता जी जमीन से जुड़े आदमी थे। गरीब परिवार से थे। एक साल के थे, पिता का सिर से साया उठ गया। सौतेली मां का व्यवहार अच्छा नहीं था, तो मामा के यहां चले आए। वहां भी जीवन आसान नहीं था। दो कोस पैदल चलकर स्कूल जाते। स्वभाव शुरू से क्रांतिकारी था। 14-15 साल की उम्र में ही स्वतंत्रता आंदोलन में कूद गए। छह बार जेल की हवा खानी पड़ी। उनके नाम के पीछे ‘आजाद’ जुड़ने का भी अनूठा किस्सा है। आजादी से कोई एक दशक पहले की बात रही होगी। असलहा आ रहा था। ये लोग रेलवे ट्रैक की फिश प्लेट खोल रहे थे। गोली चली। पिताजी के पांव में गोली लगी। सिर पटरी से टकराया और वे बेहोश हो गए। पुलिस गई तो क्रांतिकारी साथी ढूंढने आए, बेसुध पड़ा देख कहा कि भागवत तो मर गया। किसी ने कहा सांस चल रही है। चेहरे पर पानी डाला, जूता सुंघाया, होश आया तो कहा कि “भागो तो आजाद भ गेलई।” उसी घटना के बाद उनका नाम भागवत झा से भागवत झा आजाद हो गया। कुछ दिनों बाद वे दिल्ली में नेहरू जी से मिले। वापस आए तो टेलीग्राम आया कि तुरंत सदाकत आश्रम आइए, आपको पूर्णिया संथाल परगना से एमपी का चुनाव लड़ना है। उनकी संसदीय यात्रा शुरू हो गई। 1951 में देश की पहली संसद के सबसे युवा सांसद थे। संसद में भी खूब बोलते। आजादी मिल गई, आज भी मेरे गांव में जाने का रास्ता नहीं है। सैकड़ों, हजारों गांव हैं, जहां न जाने का रास्ता है न बिजली है। यहां के अखबारों ने लिख दिया कि ‘यंग आजाद चैलेंजेज नेहरू ऑन डेवलपमेंट ऑफ इंडिया।’यहां के जो बुजुर्ग नेता प्रतिस्पर्धा का भाव रखते थे, अखबार की कतरन लेकर नेहरू के पास चले गए। नेहरू के आगे उनकी दाल नहीं गली। बोले, भागवत क्या गलत बोल रहा है। 1967 में जीते तो इंदिरा जी ने उन्हें मंत्री बनाया। कई सांगठनिक जिम्मेदारियां भी मिलीं। राजीव गांधी शासन में बिहार के मुख्यमंत्री बने। कोयला और शिक्षा माफिया के खिलाफ अभियान चलाया।

सख्त थे मगर प्रोत्साहन खूब देते थे। हम खेल रहे होते तो पिता जी मां के हाथ का बना मटन लेकर घर से गाड़ी ड्राइव कर खुद स्टेडियम पहुंच जाते। 1967 से 72 तक पापा शिक्षा और खेल मंत्री रहे। मां-पिता जी का हुक्म था कि कोई घर आया तो बिना खाए, चाय पिए नहीं जाएगा। स्टाफ को सर्वेंट या नौकर बोलना मना था, सहायक कहा जाता था। घर में बदमाशी करता तो बेंत से हम भाइयों की क्लास भी लग जाती। प्रोत्साहन और संस्कार का असर रहा कि खेल के बाद राजनीति के मैदान में आ गया। क्रिकेट और राजनीति दोनों अनिश्चितताओं का खेल है। आज भी कोई पूछे कि क्या चाहिए तो कहूंगा बाप की मार और मां का प्यार।

(नवीन कमार मिश्र से बातचीत पर आधारित)

Advertisement
Advertisement
Advertisement