राकेश बख्शी
पुत्र: गीतकार आनन्द बख्शी
पिताजी का स्वभाव अंतर्मुखी था। वह मुझसे बहुत प्यार करते थे मगर कभी भी प्यार शब्दों में जाहिर नहीं करते थे। उन्हें प्यार दिखाना नहीं आता था। जब मैं छोटा था, तब पिताजी काम में बहुत व्यस्त रहते थे। जब तक वह रात को काम से घर लौटते मैं सो चुका होता। पिताजी कमरे में आते और बड़े आहिस्ता से मेरे सिर पर हाथ रखते और वापस चले जाते। वह ध्यान रखते थे कि मेरी नींद न टूट जाए।
पिताजी ने फिल्म जगत का संघर्ष देखा था। वह फिल्मी दुनिया की दुश्वारियां जानते थे। इसलिए उन्होंने बचपन से मुझे पढ़ाई के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कभी नहीं कहा कि मैं फिल्मों में काम करूं। इसका कारण यह था कि उन्होंने मुझे बहुत सुख और सुविधाओं में पाला था। उन्हें लगता था कि मैं फिल्मी दुनिया के थपेड़े नहीं सह पाऊंगा। इसीलिए उन्होंने मुझे नौकरी अथवा बिजनेस करने के लिए ही प्रेरित किया। पिताजी का चूंकि भारतीय सेना से रिश्ता था तो उनके स्वभाव में अनुशासन था। घर में उन्होंने स्वतंत्रता तो दी थी लेकिन सख्त नियम और अनुशासन का वातावरण था। पिताजी अक्सर अपनी मां को याद करते थे। वह हमसे कहते थे कि मां की इज्जत करो क्योंकि जब मां नहीं होती तो बहुत याद आती है।
पिताजी यूं तो हमेशा अपने भाव अभिव्यक्त करने से परहेज करते थे लेकिन जब मेरी बहनों की शादी हुई तो उनकी आंखों में आंसू थे। यह दर्शाता है कि वह अपने बच्चों से किसी भी आम पिता की तरह ही प्रेम करते थे। पिताजी ने जीवन भर मेरी दोनों बहनों और मां को पूरा सम्मान और अधिकार दिया। वह मुझसे अधिक उनकी बातों को महत्व देते थे। पिताजी का कहना था कि विकसित समाज की निशानी है कि वहां स्त्री शक्ति का सम्मान होगा।
मैंने बहुत मेहनत की लेकिन मेरा बिजनेस कामयाब नहीं हुआ। तब मैंने निर्णय लिया कि मैं फिल्म जगत में काम करूंगा। पिताजी ने मेरी मेहनत देखी थी। उन्हें मालूम था कि मेरी कोशिश में कमी नहीं थी। इसलिए जब मैंने फिल्मी दुनिया में काम करने की इच्छा उनके आगे जाहिर की तो उन्होंने मेरा साथ दिया। उन्होंने सुभाष घई के पास मुझे भेजा और काम सीखने के लिए कहा। जब मैंने सुभाष घई के साथ काम करना शुरू किया तो उन्होंने स्पष्ट रूप से सुभाष घई से कहा कि यदि मैं कोई गलती करूं तो मुझे सजा दी जाए। मुझे इस बात का फायदा न मिले कि मैं आनन्द बख्शी का पुत्र हूं। यह दिखाता है कि पिताजी काम के प्रति कितने ईमानदार थे।
पिताजी कर्म के सिद्धांत को मानते थे। उनका कहना था कि शोर मचाने से कुछ नहीं होता। आपको काम करना चाहिए ईमानदारी से और बाकी सब कुछ स्वयं होता है। पिताजी ने मुझे जीवन भर यही सीख दी कि अकेलेपन से भागो मत। अकेलेपन में जीवन के महत्वपूर्ण प्रश्नों के जवाब मिलते हैं। इसलिए एकांत को पसंद करो। पिताजी ने आजीवन समय की इज्जत की। उनके बारे में सभी बड़े निर्देशकों और संगीतकारों की यही राय थी कि उन्होंने कभी गीत लिखने में देरी नहीं की। वह समयसीमा के भीतर ही गीत लिखकर सौंप देते थे। पिताजी कहते थे कि यदि हम समय पर काम नहीं कर सकते तो हमारे काम का कोई असर नहीं होता। मुझे हर दिन महसूस होता है कि मेरे पिताजी एक महान इंसान थे। मैं कोशिश करता हूं कि अपने कर्मों से उनके सम्मान को, उनकी इज्जत को कायम रख सकूं।
(मनीष पाण्डेय से बातचीत पर आधारित)