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आउटलुक-आइकेयर/देश के बेस्ट बी-स्कूल 2024: बिजनेस स्कूल के छात्रों में नैतिकता का पोषण

बिजनेस स्कूल एक छात्र की प्रेरणा विकसित करने के स्तर पर भी काम कर सकते हैं। मसलन, कारोबारी अनुभव छात्रों की नैतिक प्रेरणा को बढ़ाने में मदद कर सकते हैं
खेल भी:  के.जे. सोमैया इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, विद्याविहार, मुंबई कैंपस में शतरंज खेलते छात्र

इस दुनिया को बिजनेस प्रोफेशनल्स की जरूरत है। इसमें योगदान देने का सबसे अच्छा माध्यम बिजनेस स्कूल हैं। शायद इससे भी कहीं अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि आज इस दुनिया को ‘बिजनेस सिटिजंस’ की जरूरत है। बिजनेस स्कूलों में छात्रों को ऐसे नागरिक बनाने की भरपूर क्षमता है, लेकिन इसका पर्याप्त ढंग से अब तक दोहन नहीं किया गया है।

पिछले कुछ दशकों में बिजनेस स्कूलों से जो बिजनेस लीडर निकले, उनमें ये संस्थाएं कोई सामाजिक नजरिया या नैतिक दृष्टि पैदा करने में अक्षम रही हैं। इसके उलट, इन संस्थानों से निकले कई ऐसे लोग रहे जो सार्वजनिक जीवन में नैतिक रूप से भ्रष्ट साबित हुए। इसने यह सवाल खड़ा किया कि वास्तव में बिजनेस स्कूलों में क्या पढ़ाया जा रहा है और क्या छूट जा रहा है। हम देखते हैं कि अपनी शैक्षणिक यात्रा के दौरान- चाहे स्नातक की डिग्री या एमबीए की- तमाम छात्र अपने व्याक्तित्व में नैतिक विकास की कोई दृश्य उन्नति नहीं प्रदर्शित कर पाते। इसके विपरीत, अकसर हम पाते हैं कि व्यावसायिक शिक्षा लेने के साथ छात्रों का नैतिक जगत और ज्यादा भ्रष्ट हो जा रहा है।

इसकी सीधी जवाबदेही उन बिजनेस शिक्षकों पर है जो आर्थिक आयामों को लेकर अत्यधिक संकीर्ण होते हैं। ज्यादातर व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में सारा जोर मुनाफा बढ़ाने के ऊपर रहता है। यह बात अलग है कि नैतिक शिक्षा पर दिनोंदिन जोर बढ़ता जा रहा है। बिजनेस पाठ्यक्रमों के भीतर नैतिक संदेश डालने या फिर स्वायत्त नैतिक शिक्षा पाठ्यक्रम शुरू करने तक तमाम कोशिशें की गई हैं, इसके बावजूद ऐसा लगता है कि छात्रों के भीतर नैतिक शिक्षा का पोषण नहीं हो पा रहा है। अब भी सारी कारोबारी शिक्षा का मुख्य जोर ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाने पर केंद्रित है, जिसे तकरीबन सभी बिजनेस स्कूलों में एक विशिष्ट गुण माना जाता है।

आज हमें देखना होगा कि कैसे कुछ सर्वश्रेष्ठ बिजनेस स्कूल अपने छात्रों के पेशेवर विकास के साथ-साथ उन्हें ‘कारोबारी नागरिक’ बनाकर अपनी वैधता को बढ़ा सकते हैं। बिजनेस स्कूलों में चरित्र निर्माण का यह एक ऐसा पहलू है जिसे अब तक साकार नहीं किया गया है और अगर ऐसा होता है तो यह अंतत: सामाजिक विकास में अपना योगदान दे सकता है।

बिजनेस स्कूलों की चुनौती

विद्वानों का मानना है कि छात्रों का बुनियादी सामाजीकरण परिवार के भीतर और जीवन के शुरुआती वर्षों में होता है। उस अवधि के दौरान शुरुआती मूल्यों को पोषित किया जाता है, दृष्टिकोण बनते हैं, और प्राथमिकताएं व व्यवहार पद्धति विकसित होती है। इसी शुरुआती सामाजीकरण प्रक्रिया का एक हिस्सा स्कूल होते हैं, जहां व्यक्ति एक ऐसी संरचना के भीतर अवस्थित कर दिया जाता है जो उसके व्यक्तित्व और प्रवृत्तियों को गढ़ने में मदद करती है। बिजनेस छात्रों के लिए बिजनेस स्कू्ल सामाजीकरण के दूसरे चरण की नुमाइंदगी करते हैं। यहीं उनके भीतर नई आस्थाएं और मूल्य पोषित किए जाते हैं। यहां दुनिया को देखने के वैकल्पिक या पूरक नजरिये उनके भीतर रोपे जाते हैं। एक बिजनेस स्कूल- विशेष रूप से वह जो लिबरल शिक्षा देता है और जो अंतरविषयक ज्ञान सहित कौशल के एक विस्तृत दायरे को खोलता है - विभिन्न जीवन दृष्टिकोणों के लिए दरवाजा खोलता है, नए अवसर प्रस्तुत करता है और एक युवा के समक्ष सकारात्मक चुनौतियां प्रदान करता है। दृष्टिकोण अक्सर बदलते हैं और विश्वविद्यालय के वर्षों के दौरान मूल्य प्रणाली भी बदल जाती है। इसीलिए बिजनेस स्कूलों में चरित्र और गुणों के निर्माण के माध्यम से भविष्य के व्यावसायिक प्रोफेशनल्स के अगले सामाजीकरण का केंद्र बनने की क्षमता होती है।

चरित्र और बिजनेस शिक्षण

बिजनेस स्कूलों को उन छात्रों को स्नातक बनाने की जरूरत है जिनके पास वास्तविक दुनिया में काम करने के लिए आवश्यक कौशल, दक्षता, प्राथमिक आनुभविक बोध और चरित्र हो। कॉर्पोरेट विश्वविद्यालय, ओपन-एजुकेशन प्लेटफॉर्म और अन्य समान संस्थागत व्यवस्थाएं बिजनेस स्कूल का विकल्प नहीं हो सकती हैं। ये संस्थान उस तरह से चरित्र निर्माण नहीं कर सकते हैं जिस तरह से एक बिजनेस स्कूल कर सकता है।

वर्तमान में कई बिजनेस स्कूल पर्याप्त ढंग से छात्रों का चरित्र निर्माण करने में सक्षम नहीं हैं। प्रारंभिक अध्ययनों से पता चलता है कि उच्च शिक्षा संस्थान "चरित्र या सामाजिक विवेक के निर्माण" पर बहुत कम समय बिताते हैं और विश्वविद्यालय उस संबंध में केवल सीमित योगदान देते हैं। बिजनेस स्कूल भी उसी अदूरदर्शिता से पीड़ित हैं जो किसी संगठनात्मक संरचना के भीतर काम करने वाले प्रबंधकों को अंधा बनाता है। प्रतिष्ठित बिजनेस स्कूलों के बीच उच्च और बेहतर रैंकिंग, उच्च स्तर के वित्तपोषण को आकर्षित करना, अधिक और बेहतर छात्रों को शामिल होने के लिए लुभाना और छात्रों की रोजगार क्षमता में वृद्धि करना उच्च शिक्षा संस्थानों के लिए उचित और मूल्यवान प्रदर्शन संकेतक हैं। फिर भी, इन ठोस उद्देश्यों को प्राथमिकता देने में बिजनेस स्कूल अकसर मूल्य प्रणालियों की उपेक्षा कर देते हैं (उदाहरण के लिए, व्यावसायिक निर्णयों में व्यापक हितधारकों की जरूरत को पूरा करना)। यह विफलता हालांकि बिजनेस स्कूलों को अप्रासंगिक या बेकार नहीं कर देती है। जरूरत है कि बिजनेस स्कूंलों को दुरुस्त किया जाए, खत्‍म नहीं।

चरित्र को विकसित भी किया जा सकता है। बिजनेस में नेतृत्व के चरित्र की भूमिका को पर्याप्त ढंग से अभी परिभाषित नहीं किया गया है। एक चरित्रवान व्यक्ति का अर्थ वह होता है जिसने ज्ञान, साहस, अखंडता, मानवता, विनम्रता, न्याय, परिप्रेक्ष्य, संयम, निर्णय और उत्थान का एक सराहनीय स्तर प्राप्त कर लिया हो। चरित्रगत अवधारणाएं आंतरिक गुणों और व्यवहारगत लक्षणों में अभिव्यतक्त होती हैं जिनका संबंध व्यक्तित्व से होता है, हालांकि ये किसी के व्यक्तित्व का पर्याय हों ऐसा जरूरी नहीं है। चरित्र के इन कथित आयामों में से कई नैतिकता से संबंधित हैं। एक बिजनेस स्कूल में चरित्र और अंतर्निहित गुणों को विकसित करने की क्षमता बेशक है। इस मामले में एक बिजनेस स्कूल अन्य उभरते वैकल्पिक शैक्षिक तंत्र- ऑनलाइन विश्वविद्यालयों, कॉर्पोरेट अनुभवों, आदि के मुकाबले कहीं अधिक दे सकता है। यहां तक कि कार्यस्थल पर भी जो नहीं मिल सकता वह बिजनेस स्कूंल दे सकता है।

बिजनेस स्कूलों की भूमिका

अभ्यासियों की जरूरतों के जिए ज्यादा प्रासंगिक होने का अर्थ यह नहीं है कि एक बिजनेस स्कूल कॉर्पोरेशन की तरह काम करने लग जाए। बिजनेस स्कूल ऐसे अनुभव प्रदान करने में सक्षम होते हैं जो कारेाबारी क्षेत्र में किसी को जस का तस नहीं मिल सकते। कॉर्पोरेट संस्कृति में विश्वविद्यालयी अनुभव नहीं मिलते हैं। यहां तक कि बाद के जीवन में सकारात्मक और सराहनीय संगठनात्मक संस्कृति के भीतर भी मिलने वाले अनुभव विश्वविद्यालय में मिले अनुभवों की भरपाई नहीं कर सकते। कारोबारों के भीतर संगठनात्मक संस्कृति के मूल्य पर अत्यधिक जोर होता है, लेकिन वहां इसका अनुपालन न होने की कीमत भी बहुत बड़ी होती है। मसलन, जो कर्मचारी उक्त संगठनात्मक संस्कृति में फिट नहीं हो पाते हैं, उन्हें कभी-कभार वह नौकरी छोड़कर दूसरी जगह काम ढूंढना पड़ जाता है। विश्वविद्यालय में ऐसा नहीं होता क्योंकि वहां विश्वविद्यालय परिसर, उसके आदर्शों के प्रति प्रतिबद्धता विकसित करनी होती है। एक अच्छा विश्वविद्यालय इस हद तक छात्रों को बहुलतावादी अनुभवों से युक्त कर देता है कि कॉर्पोरेट संरचना में उसका समानांतर मिलना दुर्लभ है। यही सांस्कृतिक बहुलता विश्वतविद्यालय के छात्रों के लिए एक समृद्ध अनुभव का काम करती है और चरित्र के विकास में अहम भूमिका निभाती है।

चरित्र विकास 

एक बिजनेस स्कूल में नैतिक शिक्षा के मुद्दे को उठाना संदेह का बायस बन सकता है। नैतिक आयाम पर ध्यान केंद्रित करने से यह धारणा पैदा हो सकती है कि बिजनेस स्कूलों को प्राथमिक रूप से जिन कामों के लिए गढ़ा गया है उससे ध्यान भटकाने की कोशिश कहीं न की जा रही हो। मसलन, दलील दी जा सकती है कि इन संस्थानों का काम ऐसे प्रोफेशनल बनाना है जो बॉटमलाइन में अपना योगदान दे सकें, कंपनी को और प्रतिस्पर्धी बना सकें तथा मुनाफे को ज्यादा से ज्यादा बढ़ा सकें। इसी लिहाज से बिजनेस स्कूलों में पढ़ाए जाने वाले कई व्यावसायिक सिद्धांतों और दृष्टिकोणों को उस प्राथमिक लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए विकसित किया गया है जिससे निवेश पर उच्चतम रिटर्न मिल सके। इन सिद्धांतों का मूल्यांकन ज्यादातर वित्तीय चश्मे से किया जाता है। यह कहने का मतलब ये नहीं है कि ये दृष्टिकोण और अवधारणाएं अनैतिक हैं। फिर भी, कारोबारी निर्णयों के नैतिक आधार को पर्याप्त रूप से संबोधित कर पाने में विफल रहने से ऐसा लगता है कि ये सिद्धांत नैतिकता को व्यावसायिक जगत के दायरे के बाहर की चीज मानते हैं। इसी से ऐसे सिद्धांतों का विकास हुआ जो छात्रों और भविष्य के प्रबंधकों को नैतिक बाध्यता की किसी भी भावना से छूट देते हैं। बिजनेस स्कूल में इसीलिए चरित्र विकास पर काम करना कहीं ज्यादा मुश्किल है, बोलना आसान। फिर भी, यह संभव तो है ही। 

नैतिक जागरूकता

एक बिजनेस स्कूल नैतिक जागरूकता कैसे विकसित कर सकता है? एक शोध से पता चलता है कि लोगों का नैतिक विकास बचपन में नहीं रुक जाता। जैसे-जैसे लोग वयस्क होते हैं, उनका नैतिक दृष्टिकोण भी विकसित होता रहता है। अध्ययन बताते हैं कि नैतिक जागरूकता विकसित करने में एथिक्स का पाठ्यक्रम एक भूमिका अदा कर सकता है। कई बिजनेस स्कूल बिजनेस एथिक्स और सामाजिक उत्तरदायित्व के पाठ्यक्रम अपने यहां चलाते हैं पर ज्वलंत व्यावसायिक मुद्दों के बरअक्स नैतिक जागरूकता पैदा करने में वे पर्याप्त नहीं हैं। व्यवसाय के नैतिक आयाम पर न केवल हर पाठ्यक्रम में जोर दिया जाना चाहिए, बल्कि एक बिजनेस छात्र के समूचे सफर के दौरान इसे एक सामान्य और आवर्ती विषय होना चाहिए।

कुछ अध्ययन कार्यस्थल के नैतिक वातावरण और नैतिक जागरूकता के बीच के संबंध को बताते हैं क्योंकि लोग जिस माहौल में काम करते हैं उससे प्रभावित भी होते हैं। जब कार्य संस्कृति मूल्य-आधारित होती है, तो बिजनेस लीडर व्यावसायिक निर्णय लेते समय मूल्यों के महत्व पर जोर देंगे और संगठनात्मक संस्कृति नैतिक व्यवहार की अपेक्षा करेगी और उसे पुरस्कृत भी करेगी। नतीजतन, अधिक संभावना यह बनेगी कि कर्मचारी उन स्थितियों के प्रति अधिक सतर्क हो जाएं जो नैतिक चुनौती पैदा कर सकते हैं। इसी तर्ज पर कक्षाओं और बिजनेस स्कूलों में भी नैतिक जागरूकता को लागू करने की आवश्यकता है।

नैतिक निर्णय

सही नैतिक निर्णय लेना केवल नैतिक मानदंडों और दृष्टिकोणों को समझने का मसला नहीं है। कई अच्छे लोग, अच्छे इरादों वाले लोग, नैतिक दृष्टिकोण से गलत निर्णय ले लेते हैं। व्यावसायिक शिक्षा को विभिन्न व्यावसायिक अवधारणाओं को इस तरह से प्रसारित करने की आवश्यकता है जहां निर्णय लेने वाले या छात्र विभिन्न व्यावसायिक लेनदेन की जटिलताओं को गहराई से समझ सकें।

नैतिक प्रेरणा

नैतिक प्रेरणा उन "कारणों, प्रेरणाओं, आवेगों और/या उत्तेजनाओं को संदर्भित करती है जो किसी व्यक्ति को नैतिक रूप से कार्य करने के लिए प्रेरित करती हैं"। नैतिक प्रेरणा जरूरी नहीं कि प्राथमिक सामाजीकरण से निर्धारित हो। बाद के प्रभावों का भी उस पर असर होता है। इसलिए बिजनेस स्कूल एक छात्र की प्रेरणा विकसित करने के स्तर पर भी काम कर सकते हैं। मसलन, कारोबारी अनुभव छात्रों की नैतिक प्रेरणा को बढ़ाने में मदद कर सकते हैं। कुछ स्कूल समुदाय-आधारित परियोजनाओं को अपनाते हैं, जहां छात्रों को एक परियोजना में भाग लेना पड़ता है जो बाहरी सामाजिक तत्वों को संलग्न करता है।

नैतिक साहस

नैतिक साहस विरोधी ताकतों के समक्ष "सही" कार्रवाई करने के दृढ़ संकल्प को संदर्भित करता है। साहस कक्षा में नहीं सिखाया जा सकता। यह बचपन में पारिवारिक सामाजीकरण के माध्यम से हासिल होता है और बाद में जीवन अनुभवों से विकसित होता है। बिजनेस स्कूल इस गुण के विकास में सही संदर्भों को पैदा कर के योगदान दे सकते हैं।

बिजनेस सिटिजंस का विकास

मैं एक बिजनेस सिटिजन को उस व्यक्ति के रूप में परिभाषित करता हूं जो महत्वपूर्ण व्यावसायिक अवधारणाओं को समझता है और प्रासंगिक व्यावसायिक उपकरणों और तकनीकों तक पहुंच रखता है, लेकिन इन सब से ऊपर वह एक ऐसा व्योक्ति है जो विभिन्न, अकसर परस्पर विरोधी, प्रतिस्पर्धी, सामाजिक, पर्यावरणीय और नैतिक मांगों के दबाव में व्यवसाय संचालित करने के तरीकों को समझता हो।

आगे का रास्ता 

बिजनेस स्कूलों को बिजनेस सिटिजंस का चरित्र विकसित करने के इर्द-गिर्द शिक्षा और पाठ्यक्रम को फिर से तैयार करने की आवश्यकता है। ऐसा करने में सफलता का मतलब होगा कि बिजनेस स्कूल आने वाली पीढ़ियों के लिए भी प्रासंगिक बना रहेगा।

प्रविधि

उच्च शिक्षा संस्थानों को पांच मानदंडों पर मापा जाता है: संकाय-छात्र अनुपात, शोध, रोजगारपरकता, संकाय गुणवत्ता, और समावेश व विविधता। इन पांच व्यापक मापदंडों को फिर कई उप-मापदंडों/संकेतकों में विभाजित किया जाता है, जिनमें से प्रत्येक से कुल अधिभार निकाला जाता है। इसके बाद मानदंड स्कोर को सामान्यीकृत किया जाता है; प्रत्येक माप के लिए स्कोर को 100 के अंतिम समग्र स्कोर पर पहुंचने के लिए अधिभारित किया जाता है। यह प्रविधि वर्षों के शोध का उत्पाद है। इसे उपयोगकर्ता की प्रतिक्रिया, अकादमिक लीडर्स और उच्च शिक्षा विशेषज्ञों के साथ चर्चा, साहित्य समीक्षा, डेटा रुझान, नए डेटा की उपलब्धता और कुलपतियों, डीन, शोधकर्ताओं, शिक्षाविदों और प्रमुख शिक्षाविदों के साथ जुड़ाव के आधार पर लगातार परिष्कृत किया जाता है। परिणाम के अवलोकन से पता चलता है कि भारत के बिजनेस स्कूल लगातार विकसित हो रहे हैं और अनुभवात्मक शिक्षण, प्रायोगिक दृष्टिकोण और उद्यमशीलता के तीन सूत्रों से समस्या का समाधान कर रहे हैं। ये स्कूल वर्तमान स्थिति को बदलने और जागरूक पूंजीवाद को बढ़ावा देकर भारत में बिजनेस शिक्षण के अनुभव को नया स्वरूप देने की कोशिश करेंगे। इसीलिए ये स्कूल अपने कृत्यों में कल्याण, विविधता, समता और समावेश के लक्ष्यों पर भी काम कर रहे हैं।

कार्तिक श्रीधर

(इंडियन सेंटर फॉर एकेडमिक रैंकिंग ऐंड एक्सिलेंस (आइकेयर) के वाइस चेयरमैन हैं और देश की पहली सरकार द्वारा अनुमोदित एकेडमिक ऑडिट ऐंड रेटिंग एजेंसी के वास्तुकारों में से एक हैं)

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