उस दिन पुलिस के आला अफसर छुट्टी पर थे। सरकार खुफिया सूचना की फाइलों का तकिया बनाकर सो रही थी। किसी ने नहीं सोचा था कि जुलाई के अंतिम दिन ढलते सूरज की आभा में निकली ब्रजमंडल शोभा यात्रा न सिर्फ मेवात के लिए, बल्कि गुरुग्राम, पलवल, फरीदाबाद, हिसार के साथ राजस्थान के अलवर और भरतपुर के लिए भी अशुभ साबित होगी। पैटर्न वही पुराना था, जो बीस साल से चला आ रहा है- बस एक पत्थर कहीं से किसी ने हवा में उछाल दिया था। उसके बाद भड़की हुई हिंसा की आग पलक झपकते मीलों दूर तक फैल गई। इस हिंसा ने दंगे का रूप ले लिया। बेकसूर मारे गए। सरकार की नींद खुली, तो आनन-फानन उसने सजा देने के नाम पर कुछ और बेकसूरों के घर उजाड़ दिए। इस दंगे के केंद्र में जिस शख्स का नाम बार-बार लिया जाता रहा, वह कहीं चैन से बैठा है। दंगे की आग बुझी भी नहीं थी कि हरियाणा के मुख्यमंत्री ने मुख्य संदिग्ध मोनू मानेसर को पकड़ने का ठीकरा राजस्थान सरकार के सिर पर फोड़ डाला, बावजूद इसके कि इस व्यक्ति के ऊपर पटौदी में एक केस चल रहा है। दूसरे संदिग्ध बिट्टू बजरंगी को पुलिस ने फरीदाबाद से दो हफ्ते बाद गिरफ्तार किया। यह गिरफ्तारी एक पुलिसवाले की शिकायत पर हुई।
दिखावे की गिरफ्तारीः पुलिस कस्टडी में बिट्टू बजरंगी
हरियाणा के मेवात दंगे की योजना बिलकुल उसी मॉडल पर गढ़ी गई थी, जिससे गुजरात, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और दूसरे राज्यों के लोग बरसों से परिचित हैं। इस कहानी में केंद्रीय किरदार मोनू यादव उर्फ मानेसर, जगह मेवात और मौका एक धार्मिक यात्रा का- तीनों का सुयोग संयोग नहीं, सुनियोजित है। मेवात यानी गुर्जरों की धरती यानी गोचरों की धरती यानी कृष्ण की धरती। बृजमंडल धार्मिक यात्रा मेवात की इस पहचान से जुड़ी है। जगह सही थी, मौका भी। जरूरत बस एक किरदार की थी। यात्रा से ठीक पहले गायों की रक्षा करने के नाम पर निर्दोषों की हत्या के आरोपित मोनू मानेसर ने यात्रा में शामिल होने का वीडियो जारी किया। यात्रा से ऐन पहले विश्व हिंदू परिषद के महासचिव ने सभा में ऐलान किया कि “मेवात की धरती को संपूर्ण रूप से बदलना है।”
इसके बाद जो हुआ, इतिहास है। इस दंगे को लेकर अपनी ही पार्टी की सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले केंद्रीय राज्यमंत्री और गुरुग्राम के सांसद राव इन्द्रजीत सिंह ने आउटलुक से बातचीत में बृजमंडल यात्रा में शामिल लोगों द्वारा हथियार लेकर जाने पर सवाल खड़ा किया। राव ने कहा, “आजादी के बाद से लेकर आज तक वहां इस प्रकार की कथित जातीय हिंसा देखने को नहीं मिली है। नूंह में दोनों समुदायों के बीच 75 वर्ष से अमन चैन कायम रहा है।”
हिंसा में खाक हुए वाहन
नूंह से कांग्रेस के तीन बार के विधायक आफताब अहमद ने कहा, “गौरक्षक दस्ते के मोनू मानेसर और बिट्टू बजरंगी ने मुस्लिम भाईचारे को चेतावनी देते हुए घटना से चार दिन पहले वीडिया जारी किया, जो हिंसा का कारण बना। फरवरी 2023 में मोनू मानेसर पर भरतपुर पुलिस ने भावनाएं भड़काने के आरोप में मामला दर्ज किया। इस बारे में हमने विधानसभा के बजट सत्र दौरान सरकार को ध्यान दिलाया था, पर हालात पर नजर रखने के बजाय सरकार की घोर लापरवाही के कारण इतनी बड़ी घटना ने नूंह की शांति छीन ली।”
पुलिस की नाकामी पर सवाल उठाते हुए जजपा नेता, उप-मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने भी कहा कि विश्व हिंदू परिषद ने सरकार को गुमराह किया है। मोनू मानेसर और उसके संगी बिट्टू बजरंगी के भड़काऊ वीडियो पर खुफिया एजेंसियों ने स्थानीय प्रशासन से लेकर राजधानी चंडीगढ़ में बैठी सरकार को सचेत किया था। यहां तक कि 27 जुलाई को नूंह में स्थानीय पुलिस प्रशासन के आला अफसरों की बैठक में भी वीडियो देखा गया था। इसके बावजूद यात्रा को लेकर संभावित हालात से मौके पर निपटने की तैयारी के बजाय घटना के दिन नूंह के उपायुक्त और पुलिस प्रमुख छुट्टी काट रहे थे।
दो होमगार्ड जवानों समेत छह लोगों की जान लील जाने वाली यह खूनी हिंसा अचानक नहीं हुई। इसे होने दिया गया। यदि ऐसा नहीं है, तो फिर खुफिया एजेंसियों द्वारा चेतावनी दिए जाने बावजूद यात्रा में शामिल दो सौ से अधिक वाहनों में सवार डंडे, बंदूक, तलवार लिए हुड़दंगियों को रोका क्यों नहीं गया? जबकि मेवात के लोगों ने पहले ही कह दिया था कि वे मोनू को यात्रा में शामिल नहीं होने देंगे। गौरक्षा के नाम पर निर्दोषों को मारने-धमकाने वाले इस शख्स को लेकर समूचे मेवात में बहुत असंतोष है। यह बात प्रशासन को पता थी।
स्थानीय प्रशासन और राज्य सरकार की यह कोई पहली लापरवाही नहीं है। बलात्कार के मामले में 20 साल की सजा काट रहे डेरा सच्चा सौदा प्रमुख राम रहीम के अगस्त 2017 में पंचकूला सीबीआइ कोर्ट में पेश होने के वक्त दो दिन पहले से तनाव के हालात जानते हुए भी सरकार की बेबसी ने 36 बेकसूरों की जान ले ली थी और सैकड़ों लोग सड़कों पर घायल पड़े थे। बीते छह वर्ष में पंचकूला समेत झज्जर, सोनीपत और हिसार में घटी हिंसक घटनाओं के बाद नूंह की यह पांचवीं ऐसी घटना है जिसमें स्थानीय प्रशासन से लेकर सरकार की नाकामी ऐसे सामने आई, जैसे कि दंगे को जान-बूझ कर होने दिया गया हो। यही कहते हुए तब हाइकोर्ट ने सरकार को लताड़ा था।
गुड़गांव, बादशाहपुर के सेक्टर 67 में रजाई-गद्दों की एक छोटी सी दुकान को हिंसा की आग ने 1 अगस्त की सुबह अपनी चपेट में ले लिया था। सुबह दुकान खोलने आए कल्लू मियां ने जब जली हुई दुकान की तस्वीर सोशल मीडिया पर डाली, तब स्थानीय स्वयंसेवी संस्था ‘परी’ की संचालक योगिता ने उनकी मदद के लिए आगे हाथ बढ़ाया। चार दिन बाद संस्था की मदद से कल्लू मियां की जली हुई दुकान के पास ही एक दूसरी दुकान बनवा कर सौंप दी गई।
हिंसक माहौल में एक-दूसरे की मदद करने की कुछेक ऐसी मिसालों ने जहां भाईचारे की बहाली का संकेत दिया, वहीं हिंसा के अगले दिन नूंह के साथ लगते गुरुग्राम, पलवल, फरीदाबाद में खौफजदा सैकड़ों मुस्लिम कामगार पलायन कर गए। कोरोना जैसी संकट की घड़ी में भी जब देश भर के कई इलाकों से कामगार अपने मूल राज्यों में सैकड़ों मील पैदल चल कर गए थे, तब भी गुड़गांव, फरीदाबाद की फैक्टरियों की चिमनियां ठंडी न पड़ने देने वाले सैकड़ों गरीब कामगारों को इस दंगे के बाद रातोरात पलायन करना पड़ गया।
डर से पलायन करते लोग
हिंसा के आरोप में चार लोगों की गिरफ्तारी नूंह के वार्ड 7 में रहने वाले एक परिवार से की गई। परिवार ने दावा किया कि गिरफ्तार इमरान, सद्दाम, इब्राहिम और इस्माइल हिंसा में शामिल नहीं थे। दंगे के दिन सद्दाम अपने परिवार के साथ ताजमहल घूमने आगरा गया था, जबकि इमरान और इस्माइल नूंह की पंजाबी मार्केट में स्थित अपनी दुकान में थे, जिसकी पुष्टि दुकान में लगे सीसीटीवी फुटेज से भी कराई गई है। वहीं इब्राहिम अपनी बीमार बेटी के इलाज के लिए नूंह के मलिक अस्पताल में था, जिसकी पुष्टि अस्पताल के रिकॉर्ड से कराई गई। बावजूद इसके चारों को पुलिस ने हिरासत में रखा।
निर्दोषों की ऐसी ताबड़तोड़ गिरफ्तारी को लेकर राज्य के गृह मंत्री अनिल विज का कहना था, “नूंह हिंसा से जुड़े मामलों में अभी तक 312 लोगों की गिरफ्तारी हुई है और 142 एफआइआर दर्ज की गई हैं, जिसमें अकेले नूंह में 57 एफआइआर दर्ज हैं। 106 लोगों को एहतियातन हिरासत में लिया गया है।” इसके विरोध में स्वराज पार्टी के अध्यक्ष योगेंद्र यादव का कहना है, “हिंसा में शामिल असल अपराधियों की शिनाख्त करने के बजाय घटना के दिन मौके से भागने वाली पुलिस ने बाद में अपनी खाल बचाने के लिए जबरन सैकड़ों लोगों की धरपकड़ की है। इसमें कई बेकसूर हैं।”
स्थानीय पुलिस प्रशासन ने बगैर किसी पुष्टि के कि नूंह में हुए निर्माण अवैध हैं या नहीं और इनके मालिकों का दंगे से कोई वास्ता है या नहीं, हिंसा के अगले चार दिन तक बुलडोजर से कई आशियानों को धूल में मिला दिया। अवैध निर्माण बताते हुए नूंह शहर और इसके साथ लगते पुन्हाना, नगीना, फिरोजपुर झिरका और पिंगनवा इलाकों में 750 से ज्यादा मकान, दुकान से लेकर झुग्गियां और होटल यह हवाला देकर गिराए गए कि इनमें रहने वाले 31 जुलाई की हिंसा में शामिल थे।
बुलडोजर की चपेट में परिवार की 15 दुकानें खोने वाले नूंह के नवाब शेख कहते हैं, “हमारी अपनी जमीन पर बनी पांच भाइयों के परिवार की 15 दुकानें जिसके कागजात हमारे पास हैं, यह कहते हुए चंद मिनटों में मिट्टी में मिला दी गईं कि दुकानें अवैध हैं।”
खट्टर सरकार के एक मंत्री ने इस पर सफाई देते हुए कहा कि सांप्रदायिक हिंसा की जांच में बुलडोजर इलाज का हिस्सा है। नूंह के उपायुक्त धीरेंद्र खडगटा ने कहा, “केवल वही निर्माण गिराए गए हैं जो अवैध थे”, जबकि नूंह के प्लानिंग अधिकारी विनेश सिंह का कहना है, “जिन घरों से पत्थरबाजी हुई है वे गिराए गए हैं।” इन दो आला अफसरों के विरोधाभासी बयान ही इस कार्रवाई पर सवाल उठाते हैं, पर सबसे बड़ा सवाल यह है कि बरसों से बने आशियाने रातोरात अवैध कैसे हो गए? यदि अवैध थे तो स्थानीय प्रशासन और सरकार ने पहले कार्रवाई क्यों नहीं की?
योंगेंद्र यादव कहते हैं, “कानून ताक पर रख सैकड़ों दुकानों और मकानों पर अतिक्रमण के नाम पर बुलडोजर फिरा दिए गए। घटना के बाद शांति बहाली के बजाय सरकार की यह कार्रवाई एक पक्ष की दूसरे पक्ष से बदला लेने जैसी कार्रवाई जैसा है। हालात पर काबू पाने की कवायद में सरकार ने दमन की जो नीति अपनाई है उससे शांति स्थापित नहीं होगी बल्कि असंतोष, अलगाव की भावना सुलगेगी।”
घटना के बाद चार दिनों तक नूंह में चले सरकार के बुलडोजर अभियान पर 7 अगस्त को पंजाब एवं हरियाणा हाइकोर्ट के जस्टिस जीएस संधावालिया और जस्टिस हरप्रीत कौर की खंडपीठ ने संज्ञान लेते हुए रोक लगा दी। अदालत ने कहा कि “नियम के मुताबिक बगैर कोई कानूनी नोटिस दिए निर्माण गिराना ठीक नहीं है। यह कार्रवाई मानव अधिकारों का हनन है।”
राज्य सरकार की खिंचाई करते हुए हाइकोर्ट ने एडवोकेट जनरल बलदेव महाजन से पूछा कि “क्या सरकार कानून की आड़ में जातीय संहार कर रही है? क्या निर्माण गिराने से पहले नोटिस जारी किए थे?”
फिलहाल, शुक्रवार 11 अगस्त से मेवात में स्कूलों को दोबारा खोल दिया गया है और यातायात व्यवस्था भी सामान्य हो गई है, लेकिन नफरत की आग सतह के नीचे अब भी सुलग रही है। गुरुवार 10 अगस्त को गुरुग्राम के एक गांव में असलम नाम के एक व्यक्ति के परिवार के ऊपर 10 से ज्यादा लोगों की भीड़ ने जानलेवा हमला कर दिया। शिकायत में असलम ने कहा है कि दंगे भड़काने की मंशा से यह हमला किया गया था। सुप्रीम कोर्ट में एक पत्रकार शाहीन अब्दुल्ला द्वारा दायर एक याचिका में यह बात सामने आई है कि दंगे के बाद से राज्य भर में 27 से ज्यादा भड़काऊ सांप्रदायिक रैलियां हुई हैं जिनमें नफरती भाषण दिए गए हैं। इन रैलियों में मुसलमानों के बहिष्कार का आह्वान किया गया था। हिसार का एक वीडियो 2 अगस्त को सामने आया था जिसमें समस्त हिंदू समाज के नाम से एक रैली पुलिस की मौजूदगी में निकली थी। इस रैली में शामिल लोगों ने दुकानदारों को धमकाया था कि अगले दो दिन के भीतर वे मुसलमान कर्मचारियों को काम से निकाल दें।
अब्दुल्ला की याचिका पर शुक्रवार, 11 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने पैरवी की और अदालत से अनुरोध किया कि वह लोगों की रक्षा करे। इस पर न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और एसवीएन भट्टी की खंडपीठ ने स्पष्ट कहा कि मुलमानों के आर्थिक बहिष्कार का आह्वान ‘अस्वीकार्य’ है।
पलवल के पौंडरी गांव में हिंदू संगठनों की महापंचायत
इस बीच हिंदू संगठनों ने कहा है कि उनकी यात्रा अधूरी रह गई थी, इसलिए बृजमंडल यात्रा का दोबारा आयोजन किया जाएगा। पलवल के पौंडरी गांव में हिंदू संगठनों द्वारा 13 अगस्त को बुलाई गई महापंचायत में 28 अगस्त को फिर से नूंह में बृजमंडल यात्रा निकालने का ऐलान किया गया है। महापंचायत में शामिल एक व्यक्ति ने बंदूक लहराते हुए अपनी सुरक्षा के लिए बंदूक की मांग की और प्रधानमंत्री से पूछा कि वे हरियाणा को योगी आदित्यनाथ जैसा मुख्यमंत्री क्यों नहीं देते।
बहरहाल, बिट्टू बजरंगी की गिरफ्तारी के बावजूद हालात अब भी सामान्य नहीं हैं। विहिप की यात्रा के ऐलान ने समूचे हरियाणा और आसपास सामाजिक तनाव को बहुत बढ़ा दिया है। इसलिए ऐहतियाती कदम जरूरी हैं।