देश में कृषि मामलों और किसानों से जुड़े मुद्दों में सबसे अधिक राजनीति गन्ना किसानों और चीनी उद्योग को लेकर होती है। चीनी उद्योग हमेशा की तरह रोना रोते हुए आगे बढ़ता जाता है और सरकार किसानों के तथाकथित भले के लिए उसे पैकेज देती रहती है। इस बार भी ऐसा ही हुआ। उम्मीद के मुताबिक नया सीजन (अक्टूबर, 2019-सितंबर,2020) शुरू होने के पहले सरकार ने 28 अगस्त को चीनी उद्योग को प्रोत्साहन देने के लिए नए पैकेज की घोषणा कर दी कि चीनी निर्यात के लिए 6,268 करोड़ रुपये की सब्सिडी दी जाएगी। यह कदम डब्ल्यूटीओ के नियमों के तहत रहे, इसका ख्याल रखा गया है। यहीं पेच है, क्योंकि जो सब्सिडी दी गई है, वह किसानों के नाम पर है ताकि उन्हें गन्ना आपूर्ति का पैसा समय से मिल सके। देखने में यह सीधा और साफ मसला लगता है। लेकिन ऐसा है नहीं। इसमें राजनैतिक फायदा भी देखा गया है क्योंकि चीनी उत्पादन में खास स्थान रखने वाले महाराष्ट्र में अगले कुछ महीने में चुनाव होने वाले हैं। दिलचस्प यह है कि आगामी सीजन के लिए सरकार ने गन्ने का फेयर ऐंड रिम्यूनिरेटेवि प्राइस (एफआरपी) फ्रीज कर दिया है। यानी गन्ना किसानों को खेती में बढ़ती लागत के बावजूद कोई अतिरिक्त दाम देने की जरूरत नहीं है।
अब देखिए, इसे भुनाने की कोशिश कैसे हुई। पैकेज की घोषणा के बाद कुछ ‘समझदार’ समाचार माध्यमों ने लिखा कि गन्ना किसानों के लिए पैकेज जारी किया गया। सरकारी ब्रीफिंग में भी ऐसा ही कुछ साबित करने की कोशिश की गई। लेकिन वास्तविकता यह है कि जो चालू पेराई सीजन 30 सितंबर, 2019 को समाप्त होगा, उसका गन्ना किसानों का बकाया अभी भी करीब दस हजार करोड़ रुपये है, जबकि यह पैकेज आगामी सीजन के निर्यात के लिए है।
चालू सीजन के बकाए में से 30 अगस्त तक अकेले उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों का बकाया 6,821.85 करोड़ रुपये है, जो कुल गन्ना मूल्य भुगतान का 20 फीसदी से ज्यादा है। इसका अधिकांश हिस्सा 6,365.80 करोड़ रुपये का बकाया निजी चीनी मिलों पर है। हालांकि, कुछ बकाया सरकारी और सहकारी चीनी मिलों पर भी है, जिसका भुगतान राज्य सरकार कर ही सकती है, लेकिन उसने अभी तक ऐसा नहीं किया।
निर्यात पैकेज के साथ 40 लाख टन चीनी का बफर स्टॉक भी 31 अगस्त, 2019 से 31 जुलाई, 2020 तक बनाने का फैसला किया गया है, जिसका उद्योग को फायदा होगा। जहां तक किसान की बात है तो चालू सीजन में भी गन्ना मूल्यों में उत्तर प्रदेश में कोई बढ़ोतरी नहीं की गई थी। अलबत्ता वहां गन्ना विकास और चीनी उद्योग मंत्री का ओहदा जरूर राज्यमंत्री से बढ़कर कैबिनेट मंत्री का हो गया है। लेकिन मंत्री का दर्जा बढ़ने से किसानों को कुछ भी हासिल नहीं हो पाया। अगर उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने केंद्र का संकेत माना तो वह आगामी सीजन में भी राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) को पिछले स्तर पर ही फ्रीज रख सकती है। इसके पहले मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की समाजवादी सरकार भी तीन साल तक गन्ना का एसएपी फ्रीज रखने का रिकॉर्ड कायम कर चुकी है। वैसे भी किसान अपने मुद्दों पर तो आजकल चुनाव में सरकार के लिए मतदान नहीं करता है, फिर भी चुनाव दूर हों तो राज्य सरकारें चीनी मिलों के हितों का ख्याल रखने की परंपरा पर चलती रही हैं।
यहां यह भी साफ करना जरूरी है कि चीनी मिलों पर चालू सीजन तक का गन्ना मूल्य भुगतान का जो बकाया है उसका नए पैकेज से कोई लेनादेना नहीं है। जब नए सीजन की चीनी निर्यात होगी तभी किसानों के भुगतान के लिए मिलों को यह पैसा मिलेगा। इसके लिए 60 लाख टन चीनी के निर्यात का लक्ष्य रखा गया है। वैसे चीनी उद्योग भी खुश नहीं है। उसका कहना है कि पहले निर्यात पर 13.88 रुपये किलो के रेट से सब्सिडी मिलती थी लेकिन अब इसे घटाकर 10.44 रुपये प्रति किलो कर दिया गया है। हालांकि चालू सीजन में करीब 40 लाख टन चीनी निर्यात के सौदे हो चुके हैं और सबसे बड़े निर्यातक के रूप में रेणुका शुगर मिल आगे है जिसे अडाणी समूह ने खरीद लिया था।
इसलिए सरकारें मिलों के लिए तो चानी की मिठास कायम रखती हैं लेकिन किसानों का बकाया जारी रहने का सिलसिला कभी नहीं टूटता। जब सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की गिरावट का दौर चल रहा हो और उसके लिए ग्रामीण अर्थव्यवस्था की बदहाली को एक बड़ी वजह माना जा रहा हो, तो भी किसानों की कीमत पर उद्योग की मदद का यह ऐसा उदाहरण है जिसमें सरकार की प्राथमिकता साफ दिखती है।