हाल ही में जफर एक्सप्रेस के नाटकीय अपहरण के बाद बलूच अलगाववादियों द्वारा सैन्य काफिले पर हमला पाकिस्तान में गंभीर सुरक्षा स्थिति का संकेत है। देश की डूबती अर्थव्यवस्था, सेना के लगातार हस्तक्षेप और सत्ता पर पकड़ बनाए रखने की कोशिश, साथ ही राष्ट्रीय संकट के समय पाकिस्तान के सियासी दलों के एक साथ आने की असमर्थता दिखाती है कि बुरी तरह ध्रुवीकृत पाकिस्तान में राजनैतिक सहमति की प्रक्रिया टूट चुकी है। पाकिस्तान का यह दावा गलत नहीं है कि वह आतंकवाद से पीड़ित है। ग्लोबल टेररिज्म इंडेक्स 2025, पाकिस्तान को दूसरे सबसे अधिक आतंकवाद ग्रस्त देश के रूप में स्थान देता है। रिपोर्ट के अनुसार आतंकवादी हमलों में 45 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई, जो 2023 में 748 से बढ़कर 2024 में 1,081 हो गए। पाकिस्तान दो मोर्चों से हमलों का सामना करता है। एक बलूचिस्तान प्रांत के विद्रोही हैं- बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (बीएलए) और बलूचिस्तान लिबरेशन फ्रंट (बीएलएफ) जहां के कबीलाई अब बहुत अधिक घातक हमले कर रहे हैं। दूसरा तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान या टीटीपी है, जिसने अफगानिस्तान से संचालित होने वाले नेतृत्व के तहत लगातार हमलों की बौछार कर रखी है। टीटीपी के अलावा पाकिस्तान को जिहादी समूह इस्लामिक स्टेट खुरासान प्रांत (आइएसकेपी) के हमलों से भी निपटना पड़ता है, जो शिया मस्जिदों और संस्थानों के साथ-साथ सुरक्षा बलों पर भी हमला करता है।
हिंसाः क्वेटा से पेशावर जाने वाली ट्रेन पर बीएलए के हमले का वीडियो क्लिप
पाकिस्तान ने जहां अफगानिस्तान, भारत और ईरान पर देश में आतंकवाद फैलाने का आरोप लगाया है, वहीं नई दिल्ली ने जफर एक्सप्रेस के अपहरण में किसी भी तरह का हाथ होने से इनकार किया है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने पाकिस्तान से कहा है कि वह दूसरों पर उंगली उठाने के बजाय अपने अंदर झांके। आतंकवादी समूहों को बाहर से तो हमेशा ही मदद मिलती है, लेकिन मूल कारण घरेलू होता है, जिसे सरकारें विदेशी हाथ की बात करते समय भूल जाती हैं।
ऐसा लगता है कि पाकिस्तान ने 1971 में बांग्लादेश के टूटने से ज्यादा सबक नहीं लिए हैं। बलूचिस्तान प्रांत आज देश के बाकी हिस्सों से उतना ही अलग-थलग है, जितना कि अतीत में बांग्लादेश के लोग थे। बलूचिस्तान में आतंकवादी हमलों की बड़े पैमाने पर वृद्धि ने उन लोगों को आश्चर्यचकित नहीं किया है जो प्रांत में होने वाली घटनाओं पर नजर रखते हैं। सार्वजनिक नीति के विश्लेषक रफीउल्लाह काकर उनमें से एक हैं। उन्होंने एक पॉडकास्ट में कहा कि पिछले दो वर्षों में प्रांत में सामने आई घटनाएं बिगड़ती स्थिति का संकेत थीं। उनका मानना है कि राज्य द्वारा सुधार के अभाव में अब ये घटनाएं ऐसे बिंदु पर आ गई हैं जहां से वापस जाना संभव नहीं है।
बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है और खनिज संपदा– सोना, तांबा, लोहा, क्रोमाइट और लिथियम में समृद्ध है। फिर भी यह देश के सबसे कम विकसित प्रांतों में से एक है। इस्लामाबाद ने शुरू से ही क्षेत्रों के प्राकृतिक संसाधनों का दोहन किया है, राजनीतिक रूप से राज्य को हाशिये पर रखा है और भ्रष्ट बलूच राजनेताओं पर भरोसा किया है, जबकि उन लोगों को दरकिनार कर दिया है जो फर्क डाल सकते थे। इस्लामाबाद ने बलूचिस्तान के लोगों से मुंह मोड़ लिया जबकि वहां से प्राप्त संसाधनों का इस्तेमाल पंजाब और सिंध में विकास के लिए किया।
सरकार और बलूच राष्ट्रवादियों के बीच तनाव समय-समय पर दोनों पक्षों द्वारा सशस्त्र कार्रवाई में भड़क उठता रहा है, लेकिन 2006 में जब जनरल मुशर्रफ की सेना ने शक्तिशाली बुगती जनजाति के करिश्माई राजनैतिक नेता अकबर बुगती को मार डाला, तो बलूचिस्तान का निर्णायक अलगाव हो गया। उस समय शुरू हुआ विद्रोह पिछले कुछ वर्षों में तेज हो गया है। इसके बाद जब भी पाकिस्तान की सरकार बलूच राष्ट्रवादियों के साथ किसी समझौते पर पहुंची, उसने अपने वादे तोड़े। असंतोष को दबाने और नियंत्रण के लिए उसने सैन्य ताकत पर भरोसा किया।
बीएलए और अन्य बलूच समूह पाकिस्तानी सेना, सरकारी प्रतिष्ठानों और चीनी श्रमिकों को निशाना बनाते हैं। चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के तहत परियोजनाओं के विकास में 65 अरब डॉलर के निवेश वाली शी जिनपिंग की महत्वाकांक्षी बेल्ट ऐंड रोड पहल का केंद्र-बिंदु बलूचिस्तान का ग्वादर बंदरगाह है। साथ ही चीन के तांबे की खदानों में भी हित हैं, चीन और पाकिस्तान बलूचिस्तान में सैंदक तांबा-सोना परियोजना में सहयोग कर रहे हैं। सैकड़ों चीनी इंजीनियर और पर्यवेक्षक प्रांत में निर्माण स्थलों की देखरेख करते हैं। पाकिस्तान के राष्ट्रीय आतंकवाद निरोधक प्राधिकरण के अनुसार 2021 से प्रांत में 20 चीनी नागरिक मारे गए हैं और 34 घायल हुए हैं, लेकिन 2016 से लगाया जाए तो 60 चीनी नागरिकों की हत्या हो चुकी है। स्थानीय लोग चीनियों के खिलाफ हैं। उनका मानना है कि प्रांत की संपदा का दोहन बाहरी लोगों को लाभ पहुंचाने के लिए किया जा रहा है, चाहे पाकिस्तानी हों या चीनी।
बीएलए ने पिछले कुछ वर्षों में अपनी रणनीति और संचालन में सुधार किया है। वह 2024 में पाकिस्तान में सबसे घातक आतंकवादी हमले के लिए जिम्मेदार था जब क्वेटा रेलवे स्टेशन पर एक आत्मघाती हमलावर ने कम से कम 25 नागरिकों और सैनिकों की हत्या कर दी थी। ज्यादातर पंजाब और खैबर पख्तूनख्वा प्रांतों के सुरक्षा बलों और उनके परिवारों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली जफर एक्सप्रेस पहले भी निशाना बनी है, लेकिन हमलावरों को ऐसी सफलता नहीं मिली थी। पिछले साल नवंबर में क्वेटा रेलवे स्टेशन पर एक आत्मघाती हमलावर ने खुद को उस समय उड़ा लिया था जब ट्रेन रवाना होने की तैयारी कर रही थी। इस बार जफर एक्सप्रेस का हाइजैक सफल रहा। बीएलए द्वारा बंधक बनाए गए सभी 26 लोगों को मार दिया गया, उनमें से 18 सैनिक थे। सेना द्वारा 30 घंटे के सैन्य अभियान के कारण सभी 190 यात्रियों को बचाया जा सका।
हमले में बाल-बाल बचे लोग
बलूचिस्तान में सुरक्षा बलों का रिकॉर्ड घातक रहा है। सामूहिक सजा, लोगों को गायब करवाने, न्यायेतर हत्याओं के परिणामस्वरूप लोगों का सरकार से अलगाव हुआ है। स्वतंत्रता के आकांक्षी समूहों से लेकर पाकिस्तान के भीतर अधिक स्वायत्तता की मांग करने वाले तमाम समूह सरकार का विरोध करने में एकजुट हैं। सुरक्षा बलों द्वारा अत्याचारों के खिलाफ नागरिक अधिकार समूहों द्वारा प्रतिरोध आंदोलन ने भी स्थानीय लोगों द्वारा महीनों के शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व किया है। महिलाएं और शिक्षित युवा और मध्यम वर्ग शांतिपूर्ण लेकिन शक्तिशाली प्रतिरोध आंदोलन का हिस्सा हैं। जैसे-जैसे संघीय सरकार बल प्रयोग के पुराने फार्मूले को दोहरा रही है, अधिकारियों के खिलाफ आक्रोश और आतंकवादियों के प्रति सहानुभूति बढ़ रही है। शिक्षित पुरुष और महिलाएं बीएलए और बीएलएफ में भर्ती हो रहे हैं।
पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी इंटर-सर्विसेज-इंटेलिजेंस अफगानी तालिबान की निर्माता और गॉडफादर है। पाकिस्तान के शीर्ष सैन्य अधिकारियों ने दोहा में तालिबान और अमेरिका के बीच मध्यस्थता कर के तालिबान की गाढे़ समय में मदद की थी। जब अगस्त 2021 में तालिबान सत्ता में वापस आया, तो काबुल में पाकिस्तान के अनुकूल शासन होने की इस्लामाबाद की लंबे समय से पोषित महत्वाकांक्षा साकार हुई। इससे पाकिस्ताकन के आधिकारिक हलकों में उल्लास था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान खान ने गुलामी की बेड़ियां तोड़कर फेंकने के लिए तालिबान की सराहना की थी, लेकिन अफगानिस्तान में तालिबान सरकार ने इस्लामाबाद में एक सख्त इस्लामी धार्मिक राज्य बनाने की पाकिस्तानी तालिबान की महत्वाकांक्षा को बढ़ावा दिया। तालिबान के जोर डालने पर इमरान सरकार ने टीटीपी के साथ शांति वार्ता शुरू की। वार्ता का नेतृत्व पाकिस्तान के खुफिया अधिकारियों ने किया था जो इमरान खान के पसंदीदा जनरल पूर्व आइएसआइ प्रमुख फैज हमीद की देखरेख में हुई थी। पाकिस्तान ने टीटीपी कमांडरों को रिहा किया, जिनमें से कई कट्टर आतंकवादी, लड़ाके और प्रचारक थे। उसके नेता अफगानिस्तान में पीछे बैठे रहे, जबकि काडर और कमांडर अब पाकिस्तान के अंदर काम करने के लिए स्वतंत्र थे। आखिरकार, संघर्ष विराम वार्ता टूट गई और टीटीपी ने नई ऊर्जा से पाकिस्तानी धरती पर अपने घातक हमले जारी रखे और आज भी यह जारी है।