कड़कड़ाती ठंड की 03 दिसंबर 2018 की रात। बिहार के सीवान जिले के पंजवार गांव में आखर परिवार की ओर से आयोजित होने वाला सालाना जलसा भोजपुरिया स्वाभिमान सम्मेलन। हड्डी को बेधनेवाली शीतलहरी चल रही थी। कुहासा ऐसा कि दस फुट की दूरी पर भी ठीक से न दिखे। उस रात, कुछ फॉग लाइट के सहारे तो कुछ ड्राइवर के अनुभव के सहारे पटना से धीरे-धीरे सरकती हुई गाड़ी की यात्रा कर जलसे में भाग लेने पहुंचे पंकज त्रिपाठी। हजारों की भीड़ उमड़ आई थी। पंकज त्रिपाठी गाड़ी से उतरे। सबसे मिलने-जुलने लगे। अपनी मातृभाषा भोजपुरी में ही सबसे बोलने-बतियाने लगे। स्टार को देखने के लिए पहुंची भीड़ भौंचक। सबको लगा, अरे ई तो खाली परदे पर स्टार है। परदे से इतर तो हम लोग जैसा ही सामान्य आदमी। बिल्कुल अपना आदमी। कुछ देर बाद जलसे के मंच पर पहुंचे। शामियाने में हजारों की संख्या में दूर-दराज के गांवों से आए ग्रामीण स्त्री-पुरुष बैठे थे। उस गांव में रहने वाले अनूठे कर्मयोगी घनश्याम शुक्ल (जो हाल ही में दुनिया से विदा हुए) भोजपुरी में पंकज त्रिपाठी के कंधे पर हाथ रखकर उनका परिचय कराए जा रहे हैं। पंकज त्रिपाठी के बोलने की बारी आई। मन भावुक था। गला भरा हुआ। कुछ बोले। फिर मंच से उतरकर हजारों ग्रामीणों के बीच, उनके साथ शामियाने में जमीन पर बैठ गए। भोजपुरी गीत-संगीत का आनंद लेने लगे। ठेठ भोजपुरिया मानुष की तरह माथे पर पगड़ी बांध, ताली बजाते हुए। वह दृश्य वहां मौजूद हजारों लोगों के मानस पर छाप छोड़ते हुए सदा-सदा के लिए अंकित हो गया। वह कृत्रिम दृश्य नहीं था। वाहवाही बटोरने के लिए प्रायोजित नहीं था, क्योंकि वहां न किसी बड़े मीडिया संस्थान के कैमरे थे, न मीडियाकर्मियों का दस्ता।
ऐसा नहीं था कि पंकज त्रिपाठी के लिए वह एक अवसर था कि वहां आए और निकल गए। वे जुड़ गए उस गांव से। हाल में जब उस गांव के घनश्याम शुक्ल की मृत्यु हुई तो उन्होंने भावुक पोस्ट लिखा। जब उन्हें मालूम चला कि गांव में मैरी कॉम क्लब बना है और लड़कियों में हॉकी खेलने का जुनून सवार हुआ है, तो पंकज त्रिपाठी ने खुद संपर्क किया। कहा, “लड़कियों के खेलने में कोई कमी न आए, मुझे बताइएगा, मैं गांव के साथ हूं, उन लड़कियों के साथ हूं, उनके सपनों और जूनन के साथ हूं।”
देसी अंदाज
पंकज त्रिपाठी ऐसे ही हैं। निजी जीवन में कैलकुलेशन से दूर कोमल मन और सरोकार वाले। पंकज त्रिपाठी को जो लोग अरसे से जानते हैं, वे जानते हैं कि वे असल जीवन में कैसे हैं। पेशेवर और निजी जिंदगी में दो पंकज त्रिपाठी हैं। पेशेवर जिंदगी में अपने अभिनय, अपनी प्रतिभा, अपनी मेहनत से अलग मुकाम और पहचान बनाने वाले स्टार, लेकिन असल जिंदगी में वही पंकज, जो अपने गांव में थे, जो रंगकर्म के संघर्ष के दिनों में पटना में थे। जब वे पटना आते हैं और किसी आयोजन में शामिल होते हैं तो मंच पर रहते तो हैं बड़े स्टार के रूप में, लेकिन सभागार में जो भी परिचित दिख जाए, उसका नाम लेकर दुआ-सलाम भी कर लेते हैं। वे अपने परिचितों को यह मौका नहीं देते कि मिलने के लिए उनके पास आना पड़े, या कभी रिकॉल कराकर पहचान बतानी पड़े, इंतजार करना पड़े।
जिनसे पंकज त्रिपाठी का निजी रिश्ता है, हर किसी के पास उनसे जुड़ा अनुभव है। दो दशक के रिश्ते में अनेक अनुभव हैं। सबको साझा नहीं किया जा सकता। पंकज त्रिपाठी नहीं चाहते कि उनके सरोकार के किसी काम का प्रचार हो। एकाध हालिया प्रसंग के उल्लेख से ही उनके सरोकार की झलक मिलेगी। कोविड का समय चल रहा था। फेसबुक पर एक पोस्ट आया, “रांची में कुछ नर्तकियों के सामने भूखमरी की स्थिति आनेवाली है।” पोस्ट फेसबुक पर गया नहीं कि पंकज त्रिपाठी का फोन आ गया। पंकज त्रिपाठी का रांची से उस तरह से कोई वास्ता नहीं। उन कलाकारों से कोई परिचय नहीं था। लेकिन वे बिना मांगे, मददगार बने। एक प्रसंग अनाथालय से जुड़ा है। पंकज त्रिपाठी को कहीं से मालूम चला। उन्होंने कहा कि एकाध बच्चे को उसके मन के अनुकूल पढ़ाई करवाइए। वह जो पढ़ना चाहते हैं, उन्हें जो जरूरत है, अपनी सामर्थ्य की सीमा में वे करेंगे। उसकी जरूरत नहीं पड़ी, क्योंकि बच्चे छोटे थे और सभी किसी न किसी स्कूल में पढ़ रहे थे। पर, पंकज लगातार फोन पर पूछते रहे कि बताइएगा जरूर।
घर गांव में पंकज त्रिपाठी स्टार के रूप में नहीं सहज व्यक्ति के रूप में रहते हैं
बिहार के सीवान जिले के पंजवार गांव से लेकर रांची तक लड़कियों के खेलने, पढ़ने, उनकी कल्पनाओं को पंख देने के लिए पंकज त्रिपाठी जिस तरह से व्यक्तिगत स्तर पर भावनात्मक रिश्ता जोड़ते हैं, उससे लगता है कि वे सिर्फ परदे पर ही गुंजन सक्सेना फिल्म में पिता की भूमिका में वैसे नहीं थे। असल जीवन में भी कारगिल गर्ल गुंजन सक्सेना के पिता अनूप सक्सेना की तरह ही हैं।
पंकज त्रिपाठी की पहचान देश और देश के बाहर भी है, लेकिन बिहार वाले उन्हें लेकर अलग ही अपनापे के भाव के साथ जीते हैं। बिहार में दूर-दूर गांव के लोगों के मानस में भी पंकज त्रिपाठी इसी तरह रचते-बसते जा रहे हैं। अभिनय से इतर उनका सरोकार और रोजमर्रा के जीवन में व्यवहार, उन्हें धीरे-धीरे ही सही, एक ठोस नायक के रूप में स्थापित कर रहा है। परदे के नायक से इतर या उसके समानांतर असल जीवन में नायक के रूप में।
(लेखक घुमंतू लेखक और संस्कृतिकर्मी हैं।)